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I understand that the Aionian Bible republishes public domain and Creative Commons Bible texts and that volunteers may be needed to present the original text accurately. I also understand that apocryphal text is removed and most variant verse numbering is mapped to the English standard. I have entered my corrections under the verse(s) below. Proposed corrections to the Hindi Bible, 2-Chronicles Chapter 18 https://www.AionianBible.org/Bibles/Hindi---Hindi-Bible/2-Chronicles/18 1 १) यहोशापात बड़ा धनवान और ऐश्वर्यवान हो गया; और उसने अहाब के घराने के साथ विवाह-सम्बंध स्थापित किया। 2 २) कुछ वर्ष के बाद वह सामरिया में अहाब के पास गया, तब अहाब ने उसके और उसके संगियों के लिये बहुत सी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल काटकर, उसे गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करने को उकसाया। 3 ३) इस्राएल के राजा अहाब ने यहूदा के राजा यहोशापात से कहा, “क्या तू मेरे साथ गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करेगा?” उसने उसे उत्तर दिया, “जैसा तू वैसा मैं भी हूँ, और जैसी तेरी प्रजा, वैसी मेरी भी प्रजा है। हम लोग युद्ध में तेरा साथ देंगे।” 4 ४) फिर यहोशापात ने इस्राएल के राजा से कहा, “आओ, पहले यहोवा का वचन मालूम करें।” 5 ५) तब इस्राएल के राजा ने नबियों को जो चार सौ पुरुष थे, इकट्ठा करके उनसे पूछा, “क्या हम गिलाद के रामोत पर युद्ध करने को चढ़ाई करें, अथवा मैं रुका रहूँ?” उन्होंने उत्तर दिया, “चढ़ाई कर, क्योंकि परमेश्वर उसको राजा के हाथ कर देगा।” 6 ६) परन्तु यहोशापात ने पूछा, “क्या यहाँ यहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिससे हम पूछ लें?” 7 ७) इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “हाँ, एक पुरुष और है, जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं; परन्तु मैं उससे घृणा करता हूँ; क्योंकि वह मेरे विषय कभी कल्याण की नहीं, सदा हानि ही की नबूवत करता है। वह यिम्ला का पुत्र मीकायाह है।” यहोशापात ने कहा, “राजा ऐसा न कहे।” 8 ८) तब इस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवाकर कहा, “यिम्ला के पुत्र मीकायाह को फुर्ती से ले आ।” 9 ९) इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात अपने-अपने राजवस्त्र पहने हुए, अपने-अपने सिंहासन पर बैठे हुए थे; वे सामरिया के फाटक में एक खुले स्थान में बैठे थे और सब नबी उनके सामने नबूवत कर रहे थे। 10 १०) तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बनवाकर कहा, “यहोवा यह कहता है, कि इनसे तू अरामियों को मारते-मारते नाश कर डालेगा।” 11 ११) सब नबियों ने इसी आशय की नबूवत करके कहा, “गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्थ होवे; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ कर देगा।” 12 १२) जो दूत मीकायाह को बुलाने गया था, उसने उससे कहा, “सुन, नबी लोग एक ही मुँह से राजा के विषय शुभ वचन कहते हैं; इसलिए तेरी बात उनकी सी हो, तू भी शुभ वचन कहना।” 13 १३) मीकायाह ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, जो कुछ मेरा परमेश्वर कहे वही मैं भी कहूँगा।” 14 १४) जब वह राजा के पास आया, तब राजा ने उससे पूछा, “हे मीकायाह, क्या हम गिलाद के रामोत पर युद्ध करने को चढ़ाई करें अथवा मैं रुका रहूँ?” उसने कहा, “हाँ, तुम लोग चढ़ाई करो, और कृतार्थ हो; और वे तुम्हारे हाथ में कर दिए जाएँगे।” 15 १५) राजा ने उससे कहा, “मुझे कितनी बार तुझे शपथ धराकर चिताना होगा, कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझसे सच ही कह।” 16 १६) मीकायाह ने कहा, “मुझे सारा इस्राएल बिना चरवाहे की भेड़-बकरियों के समान पहाड़ों पर तितर-बितर दिखाई पड़ा, और यहोवा का वचन आया कि वे तो अनाथ हैं, इसलिए हर एक अपने-अपने घर कुशल क्षेम से लौट जाएँ।” 17 १७) तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “क्या मैंने तुझ से न कहा था, कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं, हानि ही की नबूवत करेगा?” 18 १८) मीकायाह ने कहा, “इस कारण तुम लोग यहोवा का यह वचन सुनो मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके दाएँ-बाएँ खड़ी हुई स्वर्ग की सारी सेना दिखाई पड़ी। 19 १९) तब यहोवा ने पूछा, ‘इस्राएल के राजा अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा, कि वह गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करे।’ तब किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा। 20 २०) अन्त में एक आत्मा पास आकर यहोवा के सम्मुख खड़ी हुई, और कहने लगी, ‘मैं उसको बहकाऊँगी।’ 21 २१) यहोवा ने पूछा, ‘किस उपाय से?’ उसने कहा, ‘मैं जाकर उसके सब नबियों में पैठ के उनसे झूठ बुलवाऊँगी।’ यहोवा ने कहा, ‘तेरा उसको बहकाना सफल होगा, जाकर ऐसा ही कर।’ 22 २२) इसलिए सुन, अब यहोवा ने तेरे इन नबियों के मुँह में एक झूठ बोलनेवाली आत्मा बैठाई है, और यहोवा ने तेरे विषय हानि की बात कही है।” 23 २३) तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने निकट जा, मीकायाह के गाल पर थप्पड़ मारकर पूछा, “यहोवा का आत्मा मुझे छोड़कर तुझ से बातें करने को किधर गया।” 24 २४) उसने कहा, “जिस दिन तू छिपने के लिये कोठरी से कोठरी में भागेगा, तब जान लेगा।” 25 २५) इस पर इस्राएल के राजा ने कहा, “मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और राजकुमार योआश के पास लौटाकर, 26 २६) उनसे कहो, ‘राजा यह कहता है, कि इसको बन्दीगृह में डालो, और जब तक मैं कुशल से न आऊँ, तब तक इसे दुःख की रोटी और पानी दिया करो।’” 27 २७) तब मीकायाह ने कहा, “यदि तू कभी कुशल से लौटे, तो जान कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा।” फिर उसने कहा, “हे लोगों, तुम सब के सब सुन लो।” 28 २८) तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनों ने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की। 29 २९) इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “मैं तो भेष बदलकर युद्ध में जाऊँगा, परन्तु तू अपने ही वस्त्र पहने रह।” इस्राएल के राजा ने भेष बदला और वे दोनों युद्ध में गए। 30 ३०) अराम के राजा ने तो अपने रथों के प्रधानों को आज्ञा दी थी, “न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से, केवल इस्राएल के राजा से लड़ो।” 31 ३१) इसलिए जब रथों के प्रधानों ने यहोशापात को देखा, तब कहा, “इस्राएल का राजा वही है,” और वे उसी से लड़ने को मुड़े। इस पर यहोशापात चिल्ला उठा, तब यहोवा ने उसकी सहायता की। परमेश्वर ने उनको उसके पास से फिर जाने को प्रेरित किया। 32 ३२) यह देखकर कि वह इस्राएल का राजा नहीं है, रथों के प्रधान उसका पीछा छोड़कर लौट गए। 33 ३३) तब किसी ने यूँ ही एक तीर चलाया, और वह इस्राएल के राजा के झिलम और निचले वस्त्र के बीच छेदकर लगा; तब उसने अपने सारथी से कहा, “मैं घायल हो गया हूँ, इसलिए लगाम फेरकर मुझे सेना में से बाहर ले चल।” 34 ३४) और उस दिन युद्ध बढ़ता गया और इस्राएल का राजा अपने रथ में अरामियों के सम्मुख साँझ तक खड़ा रहा, परन्तु सूर्य अस्त होते-होते वह मर गया। Additional comments?
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