< ᎣᏍᏛ ᎧᏃᎮᏛ ᎷᎦ ᎤᏬᏪᎳᏅᎯ 19 >

1 ᏥᏌᏃ ᎤᏴᎴ ᎠᎴ ᎤᎶᏎ ᏤᎵᎪ.
वह यरीहो में प्रवेश करके जा रहा था।
2 ᎠᎴ ᎬᏂᏳᏉ ᎡᎮ ᎠᏍᎦᏯ ᏌᎩᏯ ᏧᏙᎢᏛ, ᎾᏍᎩ ᏄᎬᏫᏳᏒ ᎨᏎ ᎠᏕᎸᎠᎩᏏᏙᎯ, ᎠᎴ ᎤᏪᎿᎭᎢᏳ ᎨᏎᎢ.
वहाँ जक्कई नामक एक मनुष्य था, जो चुंगी लेनेवालों का सरदार और धनी था।
3 ᎠᎴ ᎤᏲᎴ ᏥᏌ ᎤᎪᏩᏛᏗᏱ, ᎾᏍᎩ ᏄᏍᏛᎢ; ᎠᏎᏃ ᎤᏄᎸᏁ ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗᏍᎨ ᎤᏂᏣᏘ ᎨᏒᎢ, ᎤᏍᏗᎩᏳᏰᏃ ᎨᏎᎢ.
वह यीशु को देखना चाहता था कि वह कौन सा है? परन्तु भीड़ के कारण देख न सकता था। क्योंकि वह नाटा था।
4 ᎢᎬᏱᏃ ᏭᏗᏢᏍᏔᏅ ᎤᎸᏎ ᎫᏩᏧᏁᎬ ᏡᎬ ᎤᎪᏩᏛᏗᏱ ᎤᏚᎵᏍᎨᎢ; ᎾᎿᎭᏰᏃ ᎢᏗᏢ ᏭᎶᎯᏍᏗ ᎨᏎᎢ.
तब उसको देखने के लिये वह आगे दौड़कर एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि यीशु उसी मार्ग से जानेवाला था।
5 ᏥᏌᏃ ᎾᎿᎭᎤᎷᏨ, ᎦᎸᎳᏗ ᏫᏚᎧᎿᎭᏁᎢ, ᎠᎴ ᎤᎪᎮᎢ, ᎠᎴ ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎴᎢ, ᏌᎩᏯ, ᏞᎩᏳ ᎡᎭᏠᎠᎯ; ᎪᎯᏰᏃ ᎢᎦ ᏥᎩ ᏘᏁᎸ ᏫᎨᏙᎮᏍᏗ.
जब यीशु उस जगह पहुँचा, तो ऊपर दृष्टि करके उससे कहा, “हे जक्कई, झट उतर आ; क्योंकि आज मुझे तेरे घर में रहना अवश्य है।”
6 ᎤᏩᏅᏤᏃ ᏗᎤᏠᎠᏎᎢ, ᎠᎴ ᎤᎵᎮᎵᏨᎯ ᏚᏓᏂᎸᏤᎢ.
वह तुरन्त उतरकर आनन्द से उसे अपने घर को ले गया।
7 ᎤᏂᎪᎲᏃ ᎾᏍᎩ ᏂᎦᏛ ᎤᏂᏐᏅᏤᎴᎢ, ᎯᎠ ᏄᏂᏪᏎᎢ, ᏩᏴᏢ ᏮᏛᏒᏎᎵ ᎠᏍᎦᏯ ᎠᏍᎦᎾᎢ.
यह देखकर सब लोग कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “वह तो एक पापी मनुष्य के यहाँ गया है।”
8 ᏌᎩᏯᏃ ᎤᎴᏁ ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎴ ᎤᎬᏫᏳᎯ, ᎬᏂᏳᏉ, ᏣᎬᏫᏳᎯ, ᎠᏰᎵ ᎢᎦᎢ ᏧᎬᏩᎶᏗ ᎠᎩᎲ ᎤᏲ ᎢᏳᎾᏛᎿᎭᏕᎩ ᏕᏥᎥᏏ; ᎢᏳ ᎠᎴ ᎦᏰᎪᎩ ᎠᏋᏔᏅᎯ ᏱᎩ ᎩᎶ ᎪᎱᏍᏗ ᏱᏥᎩᎡᎸ, ᏅᎩ ᎢᏳᏩᎫᏗ ᎢᎦᎢ ᏥᎥᏏ.
जक्कई ने खड़े होकर प्रभु से कहा, “हे प्रभु, देख, मैं अपनी आधी सम्पत्ति कंगालों को देता हूँ, और यदि किसी का कुछ भी अन्याय करके ले लिया है तो उसे चौगुना फेर देता हूँ।”
9 ᏥᏌᏃ ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎴᎢ, ᎪᎯ ᎢᎦ ᎠᎵᏍᏕᎸᏙᏗ ᎨᏒ ᎦᎷᎩ ᎠᏂ ᎠᏓᏁᎸᎢ, ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗ ᎾᏍᎩ ᎾᏍᏉ ᎡᏆᎭᎻ ᎤᏪᏥ ᎨᏒᎢ.
तब यीशु ने उससे कहा, “आज इस घर में उद्धार आया है, इसलिए कि यह भी अब्राहम का एक पुत्रहै।
10 ᏴᏫᏰᏃ ᎤᏪᏥ ᏚᏲᎵᎸ ᎠᎴ ᏚᏍᏕᎸᎯᎸ ᎤᎾᎴᎾᎸᎯ ᏥᎨᏒᎩ.
१०क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।”
11 ᎾᏍᎩᏃ ᎯᎠ ᎤᎾᏛᎦᏅ ᎤᏁᏉᎡ ᏚᏟᎶᏍᏓᏁᎴᎢ, ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗᏍᎨ ᏥᎷᏏᎵᎻ ᎾᎥ ᎤᎷᏥᏗᏒᎢ, ᎠᎴ ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗᏍᎨ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎤᎬᏫᏳᎯ ᎨᏒ ᎢᎬᏪᏅᏛ ᏓᎦᎾᏄᎪᏥ ᎠᏁᎵᏍᎬᎢ.
११जब वे ये बातें सुन रहे थे, तो उसने एक दृष्टान्त कहा, इसलिए कि वह यरूशलेम के निकट था, और वे समझते थे, कि परमेश्वर का राज्य अभी प्रगट होनेवाला है।
12 ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎢ, ᎩᎶ ᎢᏳᏍᏗ ᎠᏍᎦᏰᎬᏍᏓ ᎢᎸᎯᏢ ᎢᏅ ᏭᎶᏎᎢ, ᎤᎸᏒᏎ ᎤᎬᏫᏳᎯ ᎢᏯᎬᏁᏗᏱ ᎠᎴ ᎥᎤᎷᎯᏍᏗᏱ.
१२अतः उसने कहा, “एक धनी मनुष्य दूर देश को चला ताकि राजपद पाकर लौट आए।
13 ᏫᏚᏯᏅᎮᏃ ᎠᏍᎪᎯ ᎢᏯᏂᏛ ᏧᏅᏏᏓᏍᏗ, ᎠᎴ ᏕᎤᏲᎯᏎᎴ ᎠᏍᎪᎯ ᎢᏳᏓᎨᏛ [ ᎠᏕᎸ, ] ᎯᎠ ᏂᏚᏪᏎᎴᎢ, ᎪᎱᏍᏗ ᏕᏨᏗᏍᎨᏍᏗ ᎬᏂ ᎢᏥᎷᏨᎭ.
१३और उसने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं, और उनसे कहा, ‘मेरे लौट आने तक लेन-देन करना।’
14 ᎠᏎᏃ ᏧᏤᎵ ᏴᏫ ᎢᎬᏩᏂᏆᏘᎴᎢ, ᎠᎴ ᏚᏂᏅᏎ ᎬᏩᎨᎮᎩ, ᎯᎠ ᏫᎾᏂᏪᏍᎨᎢ, ᎥᏝ ᏲᎦᏚᎵ ᎯᎠ ᎠᏍᎦᏯ ᎤᎬᏫᏳᎯ ᎣᎦᏤᎵ ᎢᏳᎵᏍᏙᏗᏱ.
१४परन्तु उसके नगर के रहनेवाले उससे बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतों के द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे।
15 ᎯᎠᏃ ᏄᎵᏍᏔᏁᎢ, ᎢᎤᎷᏥᎸ, ᎤᎬᏫᏳᎯ ᎢᏯᎬᏁᎸᎯ ᎨᏎᎢ, ᎤᏁᏤ ᎾᏍᎩ ᎨᏥᏅᏏᏓᏍᏗ ᏫᎨᏥᏯᏅᏗᏱ ᎬᏩᎷᏤᏗᏱ, ᎾᏍᎩ Ꮎ ᎠᏕᎸ ᏧᎨᏅᏛᎯ, ᎾᏍᎩ ᎤᏙᎴᎰᎯᏍᏗᏱ ᎢᎦᎢ ᎠᏂᏏᏴᏫ ᎤᏂᏁᏉᏤᎸ ᎠᏂᏃᏗᏍᎬᎢ.
१५“जब वह राजपद पाकर लौट आया, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने दासों को जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन-देन से क्या-क्या कमाया।
16 ᎢᎬᏱᏃ ᎤᎷᏨᎯ, ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎢ, ᏍᎩᎾᏝᎢ, ᏣᏤᎵ ᏑᏓᎨᏛ ᎠᏍᎪᎯ ᎢᏳᏓᎨᏛ ᎤᏁᏉᏨ.
१६तब पहले ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरे मुहर से दस और मुहरें कमाई हैं।’
17 ᎾᏍᎩᏃ ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎴᎢ, ᎣᏏᏳ, ᎰᏍᏛ ᎡᏣᏅᏏᏓᏍᏗ; ᎤᏍᏗ ᎨᏒ ᎣᏏᏳ ᏂᏣᏛᏁᎸ; ᏣᎬᏫᏳᏌᏕᎩ ᎨᏎᏍᏗ ᎠᏍᎪᎯ ᏕᎦᏚᎲᎢ.
१७उसने उससे कहा, ‘हे उत्तम दास, तू धन्य है, तू बहुत ही थोड़े में विश्वासयोग्य निकला अब दस नगरों का अधिकार रख।’
18 ᏔᎵᏁᏃ ᎤᎷᏨᎯ, ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎢ, ᏍᎩᎾᏝᎢ, ᏣᏤᎵ ᏑᏓᎨᏛ ᎯᏍᎩ ᎢᏳᏓᎨᏛ ᎤᏁᏉᏨ.
१८दूसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरी मुहर से पाँच और मुहरें कमाई हैं।’
19 ᎾᏍᎩᏃ ᎾᏍᏉ ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎴᎢ, ᏂᎯ ᎾᏍᏉ ᎯᏍᎩ ᎢᎦᏚᎩ ᏣᎬᏫᏳᏌᏕᎩ ᎨᏎᏍᏗ.
१९उसने उससे कहा, ‘तू भी पाँच नगरों पर अधिकार रख।’
20 ᏅᏩᏓᎴᏃ ᎤᎷᏤᎢ, ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎢ, ᏍᎩᎾᏝᎢ, ᎬᏂᏳᏉ ᎠᏂ ᏣᏤᎵ ᏑᏓᎨᏛ, ᎠᎩᏍᏆᏂᎪᏛᎩ ᎠᎩᏣᏄᎸᎩ ᎠᏯᏠᎩᎯ;
२०तीसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, देख, तेरी मुहर यह है, जिसे मैंने अँगोछे में बाँध रखा था।
21 ᎬᎾᏰᏍᎬᏰᏃ, ᏅᏓᎦᎵᏍᏙᏗᏍᎬᎩ ᎯᏍᏓᏱᏳ ᎨᏒ ᎯᏍᎦᏯ; ᎯᎩᏍᎪᏰᏃ ᎾᏍᎩ ᏂᏣᏅᎾ ᎨᏒᎢ, ᎠᎴ ᎯᏍᎫᏕᏍᎪ ᎾᏍᎩ ᏂᏣᏫᏒᎾ ᎨᏒᎢ.
२१क्योंकि मैं तुझ से डरता था, इसलिए कि तू कठोर मनुष्य है: जो तूने नहीं रखा उसे उठा लेता है, और जो तूने नहीं बोया, उसे काटता है।’
22 ᎯᎠᏃ ᏄᏪᏎᎴᎢ, ᏨᏒ ᏂᏣᏪᏒ ᏓᎬᏔᏂ ᏙᏓᎬᏳᎪᏓᏁᎵ ᏣᏲ ᎡᏣᏅᏏᏓᏍᏗ. ᎯᎦᏔᎲᎩ ᏥᏍᏓᏱᏳ ᎨᏒᎢ, ᏥᎩᏍᎬ ᎾᏍᎩ ᎠᎩᏅᎯ ᏂᎨᏒᎾ ᎨᏒᎢ, ᎠᎴ ᏥᏍᎫᏕᏍᎬ ᎾᏍᎩ ᎠᎩᏫᏒᎯ ᏂᎨᏒᎾ ᎨᏒᎢ;
२२उसने उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास, मैं तेरे ही मुँह सेतुझे दोषी ठहराता हूँ। तू मुझे जानता था कि कठोर मनुष्य हूँ, जो मैंने नहीं रखा उसे उठा लेता, और जो मैंने नहीं बोया, उसे काटता हूँ;
23 ᎦᏙᏃ Ꮭ ᏗᏍᏆᏂᎪᏙᏗᏱ ᏱᏫᏙᏣᏁ ᏗᏆᏤᎵ ᎠᏕᏄ, ᎠᎩᎷᏥᎸᏃ ᏗᏆᏤᎵ ᎠᎴ ᎤᏂᏁᏉᏨᎯ ᏱᏓᎩᎩᏎᎢ.
२३तो तूने मेरे रुपये सर्राफों को क्यों नहीं रख दिए, कि मैं आकर ब्याज समेत ले लेता?’
24 ᎯᎠᏃ ᏂᏚᏪᏎᎴ ᎾᎥ ᎠᏂᏙᎾᎢ, ᎡᏥᎩᏏ ᎾᏍᎩ Ꮎ ᏑᏓᎨᏛ, ᎠᎴ ᎠᏍᎪᎯ ᎢᏳᏓᎨᏛ ᏧᎯ ᎡᏥᎥᏏ —
२४और जो लोग निकट खड़े थे, उसने उनसे कहा, ‘वह मुहर उससे ले लो, और जिसके पास दस मुहरें हैं उसे दे दो।’
25 ᎯᎠᏃ ᏂᎬᏩᏪᏎᎴᎢ, ᏗᏍᎩᎾᏝᎢ, ᎠᏍᎪᎯ ᎢᏳᏓᎨᏛ ᏕᎤᎭ —
२५उन्होंने उससे कहा, ‘हे स्वामी, उसके पास दस मुहरें तो हैं।’
26 ᎯᎠᏰᏃ ᏂᏨᏪᏎᎭ, ᎾᏍᎩ ᎾᏂᎥ ᎤᏂᎯ ᎨᏥᏁᏗ ᎨᏎᏍᏗ; ᏄᏂᎲᎾᏃ ᏥᎩ, ᎾᏍᎩ ᎾᏍᏉ ᎤᏂᎲ ᎨᏥᎩᎡᏗ ᎨᏎᏍᏗ.
२६‘मैं तुम से कहता हूँ, कि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं, उससे वह भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा।
27 ᎾᏃ ᎬᎩᏍᎦᎩ, ᏄᎾᏚᎵᏍᎬᎾ ᏥᎨᏒ ᎠᎩᎬᏫᏳᎯ ᎢᏯᏆᎵᏍᏙᏗᏱ ᎠᏁᎲᎢ, ᎡᏗᏣᏘᏄᎦ, ᎠᎴ ᏗᏥᎷᎦ ᏥᎦᏔᎲᎢ
२७परन्तु मेरे उन बैरियों को जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर राज्य करूँ, उनको यहाँ लाकर मेरे सामने मार डालो।’”
28 [ ᏥᏌᏃ ] ᎾᏍᎩ ᏄᏪᏒ, ᎢᎬᏱ ᎤᏪᏅᎭ ᎤᎿᎭᎷᏎ ᏥᎷᏏᎵᎻ ᏩᎦᏖᎢ.
२८ये बातें कहकर वह यरूशलेम की ओर उनके आगे-आगे चला।
29 ᎯᎠᏃ ᎸᎵᏍᏔᏁ ᎾᎥ ᎤᎷᏨ ᏒᎦᏙᎯ ᎠᎴ ᏇᏗᏂᏱ, ᎾᎿᎭᎣᎵᏩᏲᎯ ᎤᏌᎯᎸ ᏥᏚᏙᎠ, ᎾᏍᎩ ᎠᏂᏔᎵ ᎬᏩᏍᏓᏩᏗᏙᎯ ᏚᏅᏎᎢ,
२९और जब वह जैतून नाम पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास पहुँचा, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहकर भेजा,
30 ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎢ, ᎢᏍᏕᎾ ᎢᏢ Ꮎ ᏨᏗᎦᏚᎭ, ᎾᎿᎭᏃ ᏫᏍᏗᎷᏨᎭ ᏓᏰᏍᏗᏩᏛᎯ ᎠᎩᎾ ᎨᎵᏌᏕᏍᏗ, ᎾᏍᎩ ᎥᏝ ᎠᏏ ᎩᎶ ᎤᎩᎸᏔᏅᎯ ᏱᎩ; ᎡᏍᏕᎵᏌᏕᏒᎭ ᎠᎴ ᏤᏍᏓᏘᏁᏒᎭ.
३०“सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, बन्धा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोलकर लाओ।
31 ᎢᏳᏃ ᎩᎶ ᎢᏍᏓᏛᏛᏅ ᎦᏙᏃ ᎢᎡᏍᏕᎵᏌᏕᎭ? ᎢᏍᏙᏎᎸᎭ, ᎯᎠ ᏁᏍᏗᏪᏎᎸᎭ; ᎤᎬᏫᏳᎯᏰᎾ ᎤᏚᎵᎭ.
३१और यदि कोई तुम से पूछे, कि क्यों खोलते हो, तो यह कह देना, कि प्रभु को इसकी जरूरत है।”
32 ᎨᏥᏅᏒᎯᏃ ᎤᏁᏅᏎ ᎠᎴ ᏭᏂᏩᏛᎮ ᎾᏍᎩᏯ ᏂᏚᏪᏎᎸᎢ.
३२जो भेजे गए थे, उन्होंने जाकर जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया।
33 ᎠᏁᎵᏌᏕᏍᎨᏃ ᎠᎩᎾ, ᎤᏂᎾᏝᎢ ᎯᎠ ᏂᎬᏩᏂᏪᏎᎴᎢ, ᎦᏙᏃ ᎢᎡᏍᏕᎵᏌᏕ ᎠᎩᎾ?
३३जब वे गदहे के बच्चे को खोल रहे थे, तो उसके मालिकों ने उनसे पूछा, “इस बच्चे को क्यों खोलते हो?”
34 ᎯᎠᏃ ᏄᏂᏪᏎᎢ, ᎤᎬᏫᏳᎯ ᎤᏚᎵᎭ.
३४उन्होंने कहा, “प्रभु को इसकी जरूरत है।”
35 ᏥᏌᏃ ᎤᎾᏘᏃᎮᎴᎢ; ᏧᎾᏄᏬᏃ ᎠᎩᎾ ᎦᏐᎯ ᏚᏂᏢᏁᎢ, ᎠᎴ ᎾᎿᎭᎤᎾᎩᎸᏔᏁ ᏥᏌ.
३५वे उसको यीशु के पास ले आए और अपने कपड़े उस बच्चे पर डालकर यीशु को उस पर बैठा दिया।
36 ᎠᎢᏒᏃ ᏧᎾᏄᏬ ᏚᏂᏰᏍᏛᏁ ᏅᏃᎯ.
३६जब वह जा रहा था, तो वे अपने कपड़े मार्ग में बिछाते जाते थे।
37 ᎾᎥᏃ ᏭᎷᏨ, ᎾᎿᎭᎠᎦᏐᎠᏍᎬ ᎢᏴᏛ ᎣᎵᏩᏲ ᎤᏌᎯᎸᎢ, ᏂᎦᏛ ᎤᏂᏣᏘ ᎨᏒ ᎠᎾᏓᏍᏓᏩᏗᏙᎯ ᎤᎾᎴᏅᎮ ᎠᎾᎵᎮᎵᎨ ᎠᎴ ᎠᏂᎸᏉᏗᏍᎨ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎠᏍᏓᏯ ᎠᏂᏁᎨᎢ, ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗᏍᎨ ᏂᎦᏛ ᎤᏍᏆᏂᎪᏗ ᏕᎦᎸᏫᏍᏓᏁᎸ ᎤᏂᎪᎲᎢ;
३७और निकट आते हुए जब वह जैतून पहाड़ की ढलान पर पहुँचा, तो चेलों की सारी मण्डली उन सब सामर्थ्य के कामों के कारण जो उन्होंने देखे थे, आनन्दित होकर बड़े शब्द से परमेश्वर की स्तुति करने लगी:
38 ᎯᎠ ᎾᏂᏪᏍᎨᎢ. ᎦᎸᏉᏗᏳ ᎨᏎᏍᏗ ᎾᏍᎩ Ꮎ ᎤᎬᏫᏳᎯ ᏱᎰᏩ ᏚᏙᏍᏛ ᏥᎦᎷᎯᏍᏗᎭ; ᎦᎸᎳᏗ ᏅᏩᏙᎯᏯᏛ ᎨᏎᏍᏗ, ᎠᎴ ᎦᎸᏉᏗᏳ ᎨᏎᏍᏗ ᏩᏍᏛ ᎦᎸᎳᏗᏳ ᎨᏒᎢ!
३८“धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम से आता है! स्वर्ग में शान्ति और आकाश में महिमा हो!”
39 ᎢᎦᏛᏃ ᎠᏂᏆᎵᏏ ᎾᎿᎭᎤᏂᏣᏘ ᏄᎾᏛᏅ ᎯᎠ ᏅᏗᎬᏩᏪᏎᎴᎢ, ᏔᏕᏲᎲᏍᎩ, ᏘᏅᏍᏓᏗᏏ ᎨᏣᏍᏓᏩᏗᏙᎯ.
३९तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।”
40 ᎤᏁᏨᏃ ᎯᎠ ᏂᏚᏪᏎᎴᎢ, ᎯᎠ ᏂᏨᏪᏎᎭ, ᎢᏳᏃ ᎯᎠ ᎡᎳᏪᏱ ᏳᏅᏅ, ᏅᏯ ᎩᎳᏉ ᎢᏴᏛ ᏯᏁᎷᎲᎦ.
४०उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।”
41 ᎾᎥᏃ ᎤᎷᏨ, ᏚᎧᎿᎭᏅ ᎦᏚᎲᎢ, ᎤᏍᎪᏂᎴᎢ,
४१जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया।
42 ᎯᎠ ᏄᏪᏎᎢ, ᎢᏳᏃ ᏂᎯ ᏱᎯᎦᏔᎮᎢ, ᎥᎥ, ᏂᎯ, ᎪᎯ ᎾᏍᏉ ᎾᏍᎩ ᎯᎠ ᏣᏤᎵ ᎢᎦ ᎨᏒᎢ, ᎾᏍᎩ ᏅᏩᏙᎯᏯᏛ ᏣᏁᎯ ᎨᏒᎢ! ᎠᏎᏃ ᎿᎭᏉ ᎡᏨᏍᎦᎳᏁᎸ.
४२और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं।
43 ᎾᎯᏳᏰᏃ ᎨᏒ ᏓᏣᎵᏰᎢᎶᎮᎵ, ᎾᏍᎩ ᎨᏣᏍᎦᎩ ᎨᏒ ᏙᏛᏁᎵᏍᎦᎸᎯ ᎬᏩᏚᏫᏛ, ᎠᎴ ᏙᏓᎨᏣᏚᏫᏍᏔᏂ, ᎠᎴ ᏅᎦᏘᏓᏂ ᎨᏣᎵᏍᏚᏕᏍᏗ.
४३क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे।
44 ᎠᎴ ᎦᏙᎯ ᏓᎨᏣᏡᏂ, ᎠᎴ ᏗᏤᏥ ᎬᏂᏯᎢ ᎨᏎᏍᏗ; ᎠᎴ ᎥᏝ ᎨᏣᎯᏰᏗ ᏱᎨᏎᏍᏗ ᏌᏉ ᏅᏯ ᏱᏚᏓᏌᏝᎮᏍᏗ; ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗᎭ ᏂᎦᏔᎲᎾ ᏥᎨᏒ ᎢᏳ ᎡᏣᏩᏛᎯᎯᏍᏗ ᎨᏒᎢ.
४४और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्टि की गई न पहचाना।”
45 ᏭᏴᎸᏃ ᎤᏛᎾ-ᏗᎦᎳᏫᎢᏍᏗᏱ, ᎤᎴᏅᎮ ᏚᏄᎪᏫᏎ ᎾᎿᎭᎠᏂᏃᏗᏍᎩ, ᎠᎴ ᎤᏂᏩᏒᎥᏍᎩ;
४५तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा।
46 ᎯᎠ ᏂᏚᏪᏎᎴᎢ, ᎯᎠ ᏂᎬᏅ ᎪᏪᎳ, ᏥᏁᎸ ᎠᏓᏙᎵᏍᏙᏗᏱ ᎠᏓᏁᎸ ᏚᏙᎠ, ᎠᏎᏃ ᏂᎯ ᎠᏂᏃᏍᎩᏍᎩ ᎤᏂᏴᏍᏗᏱ ᎤᏍᏓᎦᎸ ᏂᏨᏁᎸ.
४६और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा,’ परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।”
47 ᏂᏚᎩᏨᏂᏒᏃ ᏓᏕᏲᎲᏍᎨ ᎤᏛᎾᏗᎦᎳᏫᎢᏍᏗᏱ. ᎠᏎᏃ ᏄᏂᎬᏫᏳᏒ ᎠᏥᎸ-ᎠᏁᎶᎯ ᎠᎴ ᏗᏃᏪᎵᏍᎩ ᎠᎴ ᏄᏂᎬᏫᏳᏒ ᎠᏫ ᎤᎾᏁᎶᏔᏁ ᎬᏩᎯᏍᏗᏱ.
४७और वह प्रतिदिन मन्दिर में उपदेश देता था: और प्रधान याजक और शास्त्री और लोगों के प्रमुख उसे मार डालने का अवसर ढूँढ़ते थे।
48 ᎠᎴ ᎤᎾᏠᏤ ᎢᏳᎾᏛᏁᏗᏱ; ᏂᎦᏛᏰᏃ ᏴᏫ ᎬᏩᏝᏫᏍᏗᏕᎨ ᎬᏩᏛᏓᏍᏓᏁᏗᏱ.
४८परन्तु कोई उपाय न निकाल सके; कि यह किस प्रकार करें, क्योंकि सब लोग बड़ी चाह से उसकी सुनते थे।

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