< خرُوج 21 >
وَهَذِهِ هِي الأَحْكَامُ الَّتِي تَضَعُهَا أَمَامَهُمْ: | ١ 1 |
“वह अहकाम जो तुझे उनको बताने हैं यह हैं:
إنِ اشْتَرَيْتَ عَبْداً عِبْرَانِيّاً فَلْيَخْدُمْكَ سِتَّ سَنَوَاتٍ، وَفِي السَّنَةِ السَّابِعَةِ تُطْلِقُهُ حُرّاً مَجَّاناً | ٢ 2 |
अगर तू कोई 'इब्रानी ग़ुलाम ख़रीदे तो वह छ: बरस ख़िदमत करे और सातवें बरस मुफ़्त आज़ाद होकर चला जाए।
وَإِذَا اشْتَرَيْتَهُ وَهُوَ أَعْزَبُ يُطْلَقُ وَحْدَهُ. وَإِنِ اشْتَرَيْتَهُ وَهُوَ بَعْلُ امْرَأَةٍ، تُطْلَقُ زَوْجَتُهُ مَعَهُ. | ٣ 3 |
अगर वह अकेला आया हो तो अकेला ही चला जाए और अगर वह शादी शुदा हो तो उसकी बीवी भी उसके साथ जाए।
وَإِنْ وَهَبَهُ مَوْلاهُ زَوْجَةً وَأَنْجَبَتْ لَهُ بَنِينَ وَبَنَاتٍ، فَإِنَّ زَوْجَتَهُ وَأَوْلاَدَهَا يَكُونُونَ مِلْكاً لِسَيِّدِهِ، وَهُوَ يُطْلَقُ وَحْدَهُ حُرّاً. | ٤ 4 |
अगर उसके आक़ा ने उसकी शादी कराया हो और उस 'औरत के उससे बेटे और बेटियाँ हुई हों तो वह 'औरत और उसके बच्चे उस आक़ा के होकर रहें और वह अकेला चला जाए।
لَكِنْ إِنْ قَالَ الْعَبْدُ: «أُحِبُّ مَوْلايَ وَزَوْجَتِي وَأَوْلاَدِي، وَلاَ أُرِيدُ أَنْ أَخْرُجَ حُرّاً. | ٥ 5 |
पर अगर वह ग़ुलाम साफ़ कह दे कि मैं अपने आक़ा से और अपनी बीवी और बच्चों से मुहब्बत रखता हूँ, मैं आज़ाद होकर नहीं जाऊँगा।
يَأْخُذُهُ سَيِّدُهُ إِلَى قُضَاةِ الْمَدِينَةِ، ثُمَّ يُقِيمُهُ لِصْقَ الْبَابِ أَوْ قَائِمَتِهِ، وَيَثْقُبُ أُذُنَهُ بِمِخْرَزٍ، فَيُصْبِحُ خَادِماً لَهُ مَدَى الْحَيَاةِ. | ٦ 6 |
तो उसका आक़ा उसे ख़ुदा के पास ले जाए, और उसे दरवाज़े पर या दरवाज़े की चौखट पर लाकर सुतारी से उसका कान छेदे; तब वह हमेशा उसकी खि़दमत करता रहे।
وَلَكِنْ إِذَا بَاعَ رَجُلٌ ابْنَتَهُ كَأَمَةٍ، فَإِنَّهَا لاَ تُطْلَقُ حُرَّةً كَمَا يُطْلَقُ الْعَبْدُ. | ٧ 7 |
'और अगर कोई शख़्स अपनी बेटी को लौंडी होने के लिए बेच डाले तो वह गु़लामों की तरह चली न जाए।
فَإِذَا لَمْ تَرُقْ لِمَوْلاَهَا الَّذِي خَطَبَهَا لِنَفْسِهِ، يَسْمَحُ بِافْتِدَائِهَا، وَلاَ يَحِقُّ لَهُ أَنْ يَبِيعَهَا لِقَوْمٍ أَجَانِبَ لأَنَّهُ غَدَرَ بِهَا فَلَمْ يَتَزَوَّجْهَا | ٨ 8 |
अगर उसका आक़ा जिसने उससे निस्बत की है उससे ख़ुश न हो, तो वह उसका फ़िदिया मंजूर करे पर उसे यह इख़्तियार न होगा कि उसको किसी अजनबी क़ौम के हाथ बेचे, क्यूँकि उसने उससे दग़ाबाज़ी की।
وَإِنْ خَطَبَهَا لاِبْنِهِ فَإِنَّهُ يُعَامِلُهَا كَابْنَةٍ لَهُ. | ٩ 9 |
और अगर वह उसकी निस्बत अपने बेटे से कर दे तो वह उससे बेटियों का सा सुलूक करे।
أَمَّا إِذَا أَعْجَبَتْهُ وَتَزَوَّجَهَا، ثُمَّ عَادَ فَتَزَوَّجَ مِنْ أُخْرَى، فَإِنَّهُ لاَ يُنَقِّصُ شَيْئاً مِنْ طَعَامِهَا وَكُسْوَتِهَا وَمُعَاشَرَتِهَا، | ١٠ 10 |
अगर वह दूसरी 'औरत कर ले तो भी वह उसके खाने, कपड़े और शादी के फ़र्ज़ में क़ासिर न हो।
فَإِذَا قَصَّرَ فِي وَاحِدٍ مِنْ هَذِهِ الأَشْيَاءِ الثَّلاَثَةِ، عَلَيْهِ أَنْ يُطْلِقَهَا حُرَّةً مَجَّاناً. | ١١ 11 |
और अगर वह उससे यह तीनों बातें न करे तो वह मुफ़्त बे — रुपये दिए चली जाए।
مَنْ ضَرَبَ إنْسَاناً وَقَتَلَهُ، فَالضَّارِبُ حَتْماً يَمُوتُ. | ١٢ 12 |
'अगर कोई किसी आदमी को ऐसा मारे कि वह मर जाए तो वह क़तई' जान से मारा जाए।
وَلَكِنْ إِنْ لَمْ يَتَعَمَّدِ الضَّارِبُ ذَلِكَ، بَلْ حَدَثَ الأَمْرُ بِقَضَاءِ اللهِ فَإِنِّي سَأُعَيِّنُ لَهَ مَكَاناً يَلْجَأُ إِلَيْهِ. | ١٣ 13 |
लेकिन अगर वह शख़्स घात लगाकर न बैठा हो बल्कि ख़ुदा ही ने उसे उसके हवाले कर दिया हो, तो मैं ऐसे हाल में एक जगह बता दूँगा जहाँ वह भाग जाए।
وَلَكِنْ إِذَا تَآمَرَ أَحَدٌ عَلَى آخَرَ وَتَعَمَّدَ قَتْلَهُ، فَسُقْهُ لِلْمَوْتِ حَتَّى وَلَوِ احْتَمَى بِمَذْبَحِي | ١٤ 14 |
और अगर कोई दीदा — ओ — दानिस्ता अपने पड़ोसी पर चढ़ आए ताकि उसे धोखे से मार डाले, तो तू उसे मेरी क़ुर्बानगाह से जुदा कर देना ताकि वह मारा जाए।
كُلُّ مَنْ يَضْرِبْ أَبَاهُ أَوْ أُمَّهُ، يُقْتَلْ. | ١٥ 15 |
“और जो कोई अपने बाप या अपनी माँ को मारे वह क़तई' जान से मारा जाए।
مَنْ يَخْطِفْ إِنْسَاناً وَيَبِعْهُ أَوْ يَسْتَرِقَّهُ عِنْدَهُ حَتْماً يَمُتْ. | ١٦ 16 |
“और जो कोई किसी आदमी को चुराए चाहे वह उसे बेच डाले चाहे वह उसके यहाँ मिले, वह क़तई' मार डाला जाए।
مَنْ يَشْتِمْ أَبَاهُ أَوْ أُمَّهُ يُقْتَلْ. | ١٧ 17 |
'और जो अपने बाप या अपनी माँ पर ला'नत करे वह क़तई' मार डाला जाए।
إِذَا تَعَارَكَ رَجُلاَنِ فَضَرَبَ أَحَدُهُمَا الآخَرَ بِحَجَرٍ أَوْ لَكَمَهُ مِنْ غَيْرِ أَنْ يُمِيتَهُ بَلْ أَلْزَمَهُ الْفِرَاشَ، | ١٨ 18 |
“और अगर दो शख़्स झगड़ें और एक दूसरे को पत्थर या मुक्का मारे और वह मरे तो नहीं पर बिस्तर पर पड़ा रहे,
ثُمَّ قَامَ مُتَمَشِّياً مُتَوَكِّئاً عَلَى عُكَّازِهِ، يُبَرَّأُ الضَّارِبُ، إلاَّ أَنَّ عَلَيْهِ أَنْ يَدْفَعَ لِلْمَضْرُوبِ تَعْوِيضاً عَنْ مُدَّةِ تَعَطُّلِهِ، وَيَتَحَمَّلَ نَفَقَاتِ عِلاَجِهِ. | ١٩ 19 |
तो जब वह उठ कर अपनी लाठी के सहारे बाहर चलने — फिरने लगे, तब वह जिसने मारा था बरी हो जाए और सिर्फ़ उसका हरजाना भर दे और उसका पूरा 'इलाज करा दे।
إنْ ضَرَبَ أَحَدٌ عَبْدَهُ أَوْ أَمَتَهُ بِالْعَصَا ضَرْباً أَفْضَى إِلَى الْمَوْتِ، يُعَاقَبُ. | ٢٠ 20 |
“और अगर कोई अपने ग़ुलाम या लौंडी को लाठी से ऐसा मारे कि वह उसके हाथ से मर जाए तो उसे ज़रूर सज़ा दी जाए।
لَكِنْ إِنْ بَقِيَ حَيّاً يَوْماً أَوْ يَوْمَيْنِ، لاَ يُعَاقَبُ الضَّارِبُ، لأَنَّ العَبْدَ مِلْكُهُ. | ٢١ 21 |
लेकिन अगर वह एक — दो दिन जीता रहे तो आक़ा को सज़ा न दी जाए, इसलिए कि वह ग़ुलाम उसका माल है।
إِنْ تَضَارَبَ رِجَالٌ وَصَدَمُوا امْرَأَةً حَامِلاً فَأَجْهَضَتْ مِنْ غَيْرِ أَنْ تَتَأَذَّى، يَدْفَعُ الصَّادِمُ غَرَامَةً بِمُقْتَضَى مَا يُطَالِبُ بِهِ الزَّوْجُ وَوَفْقاً لِقَرَارِ الْقُضَاةِ. | ٢٢ 22 |
“अगर लोग आपस में मार पीट करें और किसी हामिला को ऐसी चोट पहुँचाएँ कि उसे इस्क़ात हो जाए, लेकिन और कोई नुक़्सान न हो तो उससे जितना जुर्माना उसका शौहर तजवीज़ करे लिया जाए, और वह जिस तरह क़ाज़ी फ़ैसला करें जुर्माना भर दे।
أَمَّا إِذَا تَأَذَّتِ الْمَرْأَةُ، تَأْخُذُ نَفْساً بِنَفْسٍ، | ٢٣ 23 |
लेकिन अगर नुक़्सान हो जाए तो तू जान के बदले जान ले,
وَعَيْناً بِعَيْنٍ، وَسِنّاً بِسِنٍّ، وَيَداً بِيَدٍ، وَرِجْلاً بِرِجْلٍ، | ٢٤ 24 |
और आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, और हाथ के बदले हाथ, पाँव के बदले पाँव,
وَكَيّاً بِكَيٍّ، وَجُرْحاً بِجُرْحٍ، وَرَضّاً بِرَضٍّ. | ٢٥ 25 |
जलाने के बदले जलाना, ज़ख़्म के बदले ज़ख़्म और चोट के बदले चोट।
وَإِذَا ضَرَبَ أَحَدٌ عَبْدَهُ أَوْ أَمَتَهُ، فَأَتْلَفَ عَيْنَهُ، فَإِنَّهُ يُطْلِقُهُ حُرّاً تَعْوِيضاً لَهُ عَنْ عَيْنِهِ | ٢٦ 26 |
“और अगर कोई अपने ग़ुलाम या अपनी लौंडी की आँख पर ऐसा मारे कि वह फूट जाए, तो वह उसकी आँख के बदले उसे आज़ाद कर दे।
وَإِذَا ضَرَبَ أَحَدٌ عَبْدَهُ أَوْ أَمَتَهُ، فَأَسْقَطَ سِنَّهُ، فَإِنَّهُ يُطْلِقُهُ حُرّاً تَعْوِيضاً عَنْ سِنِّهِ. | ٢٧ 27 |
अगर कोई अपने ग़ुलाम या अपनी लौंडी का दाँत मार कर तोड़ दे, तो वह उसके दाँत के बदले उसे आज़ाद कर दे।
إِذَا نَطَحَ ثَوْرٌ رَجُلاً أَوِ امْرَأَةً فَمَاتَ، يُرْجَمُ الثَّوْرُ حَتَّى الْمَوْتِ وَلاَ تَأْكُلُونَ لَحْمَهُ، وَيَكُونُ صَاحِبُ الثَّوْرِ بَرِيئاً. | ٢٨ 28 |
'अगर बैल किसी मर्द या 'औरत को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल ज़रूर संगसार किया जाय और उसका गोश्त खाया न जाए, लेकिन बैल का मालिक बेगुनाह ठहरे।
أَمَّا إِنْ كَانَ الثَّوْرُ نَطَّاحاً مِنْ قَبْلُ، وَسَبَقَ إِنْذَارُ صَاحِبِهِ، فَلَمْ يَكْبَحْهُ، فَقَتَلَ رَجُلاً أَوِ امْرَأَةً، يُرْجَمُ الثَّوْرُ، وَيُقْتَلُ صَاحِبُهُ. | ٢٩ 29 |
लेकिन अगर उस बैल की पहले से सींग मारने की 'आदत थी और उसके मालिक को बता भी दिया गया था तोभी उसने उसे बाँध कर नहीं रख्खा, और उसने किसी मर्द या'औरत को मार दिया हो तो बैल संगसार किया जाए और उसका मालिक भी मारा जाए।
إلاَّ إِذَا طُولِبَ بِدَفْعِ الدِّيَّةِ، فَيَدْفَعُ آنَئِذٍ فِدَاءَ نَفْسِهِ مَا هُوَ مَتَوَجِّبٌ عَلَيْهِ. | ٣٠ 30 |
और अगर उससे ख़ूनबहा माँगा जाए, तो उसे अपनी जान के फ़िदिया में जितना उसके लिए ठहराया जाए उतना ही देना पड़ेगा।
وَإِذَا نَطَحَ ابْناً أَوِ ابْنَةً، يُنَفَّذُ فِيهِ هَذَا الْحُكْمُ. | ٣١ 31 |
चाहे उसने किसी के बेटे को मारा हो या बेटी को, इसी हुक्म के मुवाफ़िक़ उसके साथ 'अमल किया जाए।
وَإِذَا نَطَحَ الثَّوْرُ عَبْداً أَوْ أَمَةً، فَإِنَّ صَاحِبَهُ يَدْفَعُ ثَلاَثِينَ قِطْعَةَ فِضَّةٍ تَعْوِيضاً لِمَوْلاهُ، وَيُرْجَمُ الثَّوْرُ. | ٣٢ 32 |
अगर बैल किसी के ग़ुलाम या लौंडी को सींग से मारे तो मालिक उस ग़ुलाम या लौंडी के मालिक को तीस मिस्काल रुपये दे और बैल संगसार किया जाए।
إنْ كَشَفَ إِنْسَانٌ غِطَاءَ بِئْرِهِ، أَوْ حَفَرَ بِئْراً وَتَرَكَهَا مِنْ غَيْرِ غِطَاءٍ، فَوَقَعَ فِيهَا ثَوْرٌ أَوْ حِمَارٌ، | ٣٣ 33 |
'और अगर कोई आदमी गढ़ा खोले या खोदे और उसका मुँह न ढाँपे, और कोई बैल या गधा उसमें गिर जाए;
يَقُومُ صَاحِبُ الْبِئْرِ بِدَفْعِ تَعْوِيضٍ عَنِ الْخَسَارَةِ تُضَاهِي ثَمَنَهُ، وَيَكُونُ الْمَيْتُ لَهُ. | ٣٤ 34 |
तो गढ़े का मालिक इसका नुक़्सान भर दे और उनके मालिक को क़ीमत दे और मरे हुए जानवर को ख़ुद ले ले।
وَإِذَا نَطَحَ ثَوْرُ إِنْسَانٍ ثَوْرَ صَاحِبٍ لَهُ فَمَاتَ الثَّوْرُ، فَإِنَّهُمَا يَبِيعَانِ الثَّوْرَ الْحَيَّ وَيَقْتَسِمَانِ ثَمَنَهُ، وَكَذَلِكَ يَقْتَسِمَانِ الثَّوْرَ الْمَيْتَ. | ٣٥ 35 |
“और अगर किसी का बैल दूसरे के बैल को ऐसी चोट पहुँचाए के वह मर जाए, तो वह जीते बैल को बेचें और उसका दाम आधा आधा आपस में बाँट लें और इस मरे हुए बैल को भी ऐसे ही बाँट लें।
وَأَمَّا إِذَا كَانَ مَعْرُوفاً مِنْ قَبْلُ، أَنَّ الثَّوْرَ نَطَّاحٌ وَلَمْ يَكْبَحْهُ صَاحِبُهُ، فَإِنَّهُ يُعَوِّضُ ثَوْراً بِثَوْرٍ، وَيَكُونُ الثَّوْرُ الْمَيْتُ لَهُ. | ٣٦ 36 |
और अगर मा'लूम हो जाए कि उस बैल की पहले से सींग मारने की 'आदत थी और उसके मालिक ने उसे बाँध कर नहीं रख्खा, तो उसे क़तई' बैल के बदले बैल देना होगा और वह मरा हुआ जानवर उसका होगा।