< ལཱུཀཿ 10 >
1 ཏཏཿ པརཾ པྲབྷུརཔརཱན྄ སཔྟཏིཤིཥྱཱན྄ ནིཡུཛྱ སྭཡཾ ཡཱནི ནགརཱཎི ཡཱནི སྠཱནཱནི ཙ གམིཥྱཏི ཏཱནི ནགརཱཎི ཏཱནི སྠཱནཱནི ཙ པྲཏི དྭཽ དྭཽ ཛནཽ པྲཧིཏཝཱན྄།
१और इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस-जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो-दो करके अपने आगे भेजा।
2 ཏེབྷྱཿ ཀཐཡཱམཱས ཙ ཤསྱཱནི བཧཱུནཱིཏི སཏྱཾ ཀིནྟུ ཚེདཀཱ ཨལྤེ; ཏསྨཱདྡྷེཏོཿ ཤསྱཀྵེཏྲེ ཚེདཀཱན྄ ཨཔརཱནཔི པྲེཥཡིཏུཾ ཀྵེཏྲསྭཱམིནཾ པྲཱརྠཡདྷྭཾ།
२और उसने उनसे कहा, “पके खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं इसलिए खेत के स्वामी से विनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे।
3 ཡཱུཡཾ ཡཱཏ, པཤྱཏ, ཝྲྀཀཱཎཱཾ མདྷྱེ མེཥཤཱཝཀཱནིཝ ཡུཥྨཱན྄ པྲཧིཎོམི།
३जाओ; देखों मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ।
4 ཡཱུཡཾ ཀྵུདྲཾ མཧད྄ ཝཱ ཝསནསམྤུཊཀཾ པཱདུཀཱཤྩ མཱ གྲྀཧླཱིཏ, མཱརྒམདྷྱེ ཀམཔི མཱ ནམཏ ཙ།
४इसलिए न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो।
5 ཨཔརཉྩ ཡཱུཡཾ ཡད྄ ཡཏ྄ ནིཝེཤནཾ པྲཝིཤཐ ཏཏྲ ནིཝེཤནསྱཱསྱ མངྒལཾ བྷཱུཡཱདིཏི ཝཱཀྱཾ པྲཐམཾ ཝདཏ།
५जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, ‘इस घर पर कल्याण हो।’
6 ཏསྨཱཏ྄ ཏསྨིན྄ ནིཝེཤནེ ཡདི མངྒལཔཱཏྲཾ སྠཱསྱཏི ཏརྷི ཏནྨངྒལཾ ཏསྱ བྷཝིཥྱཏི, ནོཙེཏ྄ ཡུཥྨཱན྄ པྲཏི པརཱཝརྟྟིཥྱཏེ།
६यदि वहाँ कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा।
7 ཨཔརཉྩ ཏེ ཡཏྐིཉྩིད྄ དཱསྱནྟི ཏདེཝ བྷུཀྟྭཱ པཱིཏྭཱ ཏསྨིནྣིཝེཤནེ སྠཱསྱཐ; ཡཏཿ ཀརྨྨཀཱརཱི ཛནོ བྷྲྀཏིམ྄ ཨརྷཏི; གྲྀཧཱད྄ གྲྀཧཾ མཱ ཡཱསྱཐ།
७उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ-पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए; घर-घर न फिरना।
8 ཨནྱཙྩ ཡུཥྨཱསུ ཀིམཔི ནགརཾ པྲཝིཥྚེཥུ ལོཀཱ ཡདི ཡུཥྨཱཀམ྄ ཨཱཏིཐྱཾ ཀརིཥྱནྟི, ཏརྷི ཡཏ྄ ཁཱདྱམ྄ ཨུཔསྠཱསྱནྟི ཏདེཝ ཁཱདིཥྱཐ།
८और जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें उतारें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ।
9 ཏནྣགརསྠཱན྄ རོགིཎཿ སྭསྠཱན྄ ཀརིཥྱཐ, ཨཱིཤྭརཱིཡཾ རཱཛྱཾ ཡུཥྨཱཀམ྄ ཨནྟིཀམ྄ ཨཱགམཏ྄ ཀཐཱམེཏཱཉྩ པྲཙཱརཡིཥྱཐ།
९वहाँ के बीमारों को चंगा करो: और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’
10 ཀིནྟུ ཀིམཔི པུརཾ ཡུཥྨཱསུ པྲཝིཥྚེཥུ ལོཀཱ ཡདི ཡུཥྨཱཀམ྄ ཨཱཏིཐྱཾ ན ཀརིཥྱནྟི, ཏརྷི ཏསྱ ནགརསྱ པནྠཱནཾ གཏྭཱ ཀཐཱམེཏཱཾ ཝདིཥྱཐ,
१०परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारों में जाकर कहो,
11 ཡུཥྨཱཀཾ ནགརཱིཡཱ ཡཱ དྷཱུལྱོ྅སྨཱསུ སམལགན྄ ཏཱ ཨཔི ཡུཥྨཱཀཾ པྲཱཏིཀཱུལྱེན སཱཀྵྱཱརྠཾ སམྤཱཏཡཱམཿ; ཏཐཱཔཱིཤྭརརཱཛྱཾ ཡུཥྨཱཀཾ སམཱིཔམ྄ ཨཱགཏམ྄ ཨིཏི ནིཤྩིཏཾ ཛཱནཱིཏ།
११‘तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पाँवों में लगी है, हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं, फिर भी यह जान लो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’
12 ཨཧཾ ཡུཥྨབྷྱཾ ཡཐཱརྠཾ ཀཐཡཱམི, ཝིཙཱརདིནེ ཏསྱ ནགརསྱ དཤཱཏཿ སིདོམོ དཤཱ སཧྱཱ བྷཝིཥྱཏི།
१२मैं तुम से कहता हूँ, कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
13 ཧཱ ཧཱ ཀོརཱསཱིན྄ ནགར, ཧཱ ཧཱ བཻཏྶཻདཱནགར ཡུཝཡོརྨདྷྱེ ཡཱདྲྀཤཱནི ཨཱཤྩཪྻྱཱཎི ཀརྨྨཱཎྱཀྲིཡནྟ, ཏཱནི ཀརྨྨཱཎི ཡདི སོརསཱིདོནོ རྣགརཡོརཀཱརིཥྱནྟ, ཏདཱ ཨིཏོ བཧུདིནཔཱུཪྻྭཾ ཏནྣིཝཱསིནཿ ཤཎཝསྟྲཱཎི པརིདྷཱཡ གཱཏྲེཥུ བྷསྨ ཝིལིཔྱ སམུཔཝིཤྱ སམཁེཏྶྱནྟ།
१३“हाय खुराजीन! हाय बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सोर और सीदोन में किए जाते, तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते।
14 ཨཏོ ཝིཙཱརདིཝསེ ཡུཥྨཱཀཾ དཤཱཏཿ སོརསཱིདོནྣིཝཱསིནཱཾ དཤཱ སཧྱཱ བྷཝིཥྱཏི།
१४परन्तु न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सोर और सीदोन की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
15 ཧེ ཀཕརྣཱཧཱུམ྄, ཏྭཾ སྭརྒཾ ཡཱཝད྄ ཨུནྣཏཱ ཀིནྟུ ནརཀཾ ཡཱཝཏ྄ ནྱགྦྷཝིཥྱསི། (Hadēs )
१५और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा। (Hadēs )
16 ཡོ ཛནོ ཡུཥྨཱཀཾ ཝཱཀྱཾ གྲྀཧླཱཏི ས མམཻཝ ཝཱཀྱཾ གྲྀཧླཱཏི; ཀིཉྩ ཡོ ཛནོ ཡུཥྨཱཀམ྄ ཨཝཛྙཱཾ ཀརོཏི ས མམཻཝཱཝཛྙཱཾ ཀརོཏི; ཡོ ཛནོ མམཱཝཛྙཱཾ ཀརོཏི ཙ ས མཏྤྲེརཀསྱཻཝཱཝཛྙཱཾ ཀརོཏི།
१६“जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है, और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है।”
17 ཨཐ ཏེ སཔྟཏིཤིཥྱཱ ཨཱནནྡེན པྲཏྱཱགཏྱ ཀཐཡཱམཱསུཿ, ཧེ པྲབྷོ བྷཝཏོ ནཱམྣཱ བྷཱུཏཱ ཨཔྱསྨཱཀཾ ཝཤཱིབྷཝནྟི།
१७वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में है।”
18 ཏདཱནཱིཾ ས ཏཱན྄ ཛགཱད, ཝིདྱུཏམིཝ སྭརྒཱཏ྄ པཏནྟཾ ཤཻཏཱནམ྄ ཨདརྴམ྄།
१८उसने उनसे कहा, “मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था।
19 པཤྱཏ སརྤཱན྄ ཝྲྀཤྩིཀཱན྄ རིཔོཿ སཪྻྭཔརཱཀྲམཱཾཤྩ པདཏལཻ རྡལཡིཏུཾ ཡུཥྨབྷྱཾ ཤཀྟིཾ དདཱམི ཏསྨཱད྄ ཡུཥྨཱཀཾ ཀཱཔི ཧཱནི རྣ བྷཝིཥྱཏི།
१९मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदनेका, और शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी।
20 བྷཱུཏཱ ཡུཥྨཱཀཾ ཝཤཱིབྷཝནྟི, ཨེཏནྣིམིཏྟཏ྄ མཱ སམུལླསཏ, སྭརྒེ ཡུཥྨཱཀཾ ནཱམཱནི ལིཁིཏཱནི སནྟཱིཏི ནིམིཏྟཾ སམུལླསཏ།
२०तो भी इससे आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।”
21 ཏདྒྷཊིཀཱཡཱཾ ཡཱིཤུ རྨནསི ཛཱཏཱཧླཱདཿ ཀཐཡཱམཱས ཧེ སྭརྒཔྲྀཐིཝྱོརེཀཱདྷིཔཏེ པིཏསྟྭཾ ཛྙཱནཝཏཱཾ ཝིདུཥཱཉྩ ལོཀཱནཱཾ པུརསྟཱཏ྄ སཪྻྭམེཏད྄ ཨཔྲཀཱཤྱ བཱལཀཱནཱཾ པུརསྟཱཏ྄ པྲཱཀཱཤཡ ཨེཏསྨཱདྡྷེཏོསྟྭཱཾ དྷནྱཾ ཝདཱམི, ཧེ པིཏརིཏྠཾ བྷཝཏུ ཡད྄ ཨེཏདེཝ ཏཝ གོཙར ཨུཏྟམམ྄།
२१उसी घड़ी वह पवित्र आत्मा में होकर आनन्द से भर गया, और कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया, हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।
22 པིཏྲཱ སཪྻྭཱཎི མཡི སམརྤིཏཱནི པིཏརཾ ཝིནཱ ཀོཔི པུཏྲཾ ན ཛཱནཱཏི ཀིཉྩ པུཏྲཾ ཝིནཱ ཡསྨཻ ཛནཱཡ པུཏྲསྟཾ པྲཀཱཤིཏཝཱན྄ ཏཉྩ ཝིནཱ ཀོཔི པིཏརཾ ན ཛཱནཱཏི།
२२मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंप दिया है; और कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है, केवल पिता और पिता कौन है यह भी कोई नहीं जानता, केवल पुत्र के और वह जिस पर पुत्र उसे प्रकट करना चाहे।”
23 ཏཔཿ པརཾ ས ཤིཥྱཱན྄ པྲཏི པརཱཝྲྀཏྱ གུཔྟཾ ཛགཱད, ཡཱུཡམེཏཱནི སཪྻྭཱཎི པཤྱཐ ཏཏོ ཡུཥྨཱཀཾ ཙཀྵཱུཾཥི དྷནྱཱནི།
२३और चेलों की ओर मुड़कर अकेले में कहा, “धन्य हैं वे आँखें, जो ये बातें जो तुम देखते हो देखती हैं,
24 ཡུཥྨཱནཧཾ ཝདཱམི, ཡཱུཡཾ ཡཱནི སཪྻྭཱཎི པཤྱཐ ཏཱནི བཧཝོ བྷཝིཥྱདྭཱདིནོ བྷཱུཔཏཡཤྩ དྲཥྚུམིཙྪནྟོཔི དྲཥྚུཾ ན པྲཱཔྣུཝན྄, ཡུཥྨཱབྷི ཪྻཱ ཡཱཿ ཀཐཱཤྩ ཤྲཱུཡནྟེ ཏཱཿ ཤྲོཏུམིཙྪནྟོཔི ཤྲོཏུཾ ནཱལབྷནྟ།
२४क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं।”
25 ཨནནྟརམ྄ ཨེཀོ ཝྱཝསྠཱཔཀ ཨུཏྠཱཡ ཏཾ པརཱིཀྵིཏུཾ པཔྲཙྪ, ཧེ ཨུཔདེཤཀ ཨནནྟཱཡུཥཿ པྲཱཔྟཡེ མཡཱ ཀིཾ ཀརཎཱིཡཾ? (aiōnios )
२५तब एक व्यवस्थापक उठा; और यह कहकर, उसकी परीक्षा करने लगा, “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूँ?” (aiōnios )
26 ཡཱིཤུཿ པྲཏྱུཝཱཙ, ཨཏྲཱརྠེ ཝྱཝསྠཱཡཱཾ ཀིཾ ལིཁིཏམསྟི? ཏྭཾ ཀཱིདྲྀཀ྄ པཋསི?
२६उसने उससे कहा, “व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?”
27 ཏཏཿ སོཝདཏ྄, ཏྭཾ སཪྻྭཱནྟཿཀརཎཻཿ སཪྻྭཔྲཱཎཻཿ སཪྻྭཤཀྟིབྷིཿ སཪྻྭཙིཏྟཻཤྩ པྲབྷཽ པརམེཤྭརེ པྲེམ ཀུརུ, སམཱིཔཝཱསིནི སྭཝཏ྄ པྲེམ ཀུརུ ཙ།
२७उसने उत्तर दिया, “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्रेम रख।”
28 ཏདཱ ས ཀཐཡཱམཱས, ཏྭཾ ཡཐཱརྠཾ པྲཏྱཝོཙཿ, ཨིཏྠམ྄ ཨཱཙར ཏེནཻཝ ཛཱིཝིཥྱསི།
२८उसने उससे कहा, “तूने ठीक उत्तर दिया, यही कर तो तू जीवित रहेगा।”
29 ཀིནྟུ ས ཛནཿ སྭཾ ནིརྡྡོཥཾ ཛྙཱཔཡིཏུཾ ཡཱིཤུཾ པཔྲཙྪ, མམ སམཱིཔཝཱསཱི ཀཿ? ཏཏོ ཡཱིཤུཿ པྲཏྱུཝཱཙ,
२९परन्तु उसने अपने आपको धर्मी ठहराने की इच्छा से यीशु से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?”
30 ཨེཀོ ཛནོ ཡིརཱུཤཱལམྤུརཱད྄ ཡིརཱིཧོཔུརཾ ཡཱཏི, ཨེཏརྷི དསྱཱུནཱཾ ཀརེཥུ པཏིཏེ ཏེ ཏསྱ ཝསྟྲཱདིཀཾ ཧྲྀཏཝནྟཿ ཏམཱཧཏྱ མྲྀཏཔྲཱཡཾ ཀྲྀཏྭཱ ཏྱཀྟྭཱ ཡཡུཿ།
३०यीशु ने उत्तर दिया “एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मारपीट कर उसे अधमरा छोड़कर चले गए।
31 ཨཀསྨཱད྄ ཨེཀོ ཡཱཛཀསྟེན མཱརྒེཎ གཙྪན྄ ཏཾ དྲྀཥྚྭཱ མཱརྒཱནྱཔཱརྴྭེན ཛགཱམ།
३१और ऐसा हुआ कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था, परन्तु उसे देखकर कतराकर चला गया।
32 ཨིཏྠམ྄ ཨེཀོ ལེཝཱིཡསྟཏྶྠཱནཾ པྲཱཔྱ ཏསྱཱནྟིཀཾ གཏྭཱ ཏཾ ཝིལོཀྱཱནྱེན པཱརྴྭེན ཛགཱམ།
३२इसी रीति से एक लेवीउस जगह पर आया, वह भी उसे देखकर कतराकर चला गया।
33 ཀིནྟྭེཀཿ ཤོམིརོཎཱིཡོ གཙྪན྄ ཏཏྶྠཱནཾ པྲཱཔྱ ཏཾ དྲྀཥྚྭཱདཡཏ།
३३परन्तु एक सामरीयात्री वहाँ आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया।
34 ཏསྱཱནྟིཀཾ གཏྭཱ ཏསྱ ཀྵཏེཥུ ཏཻལཾ དྲཱཀྵཱརསཉྩ པྲཀྵིཔྱ ཀྵཏཱནི བདྡྷྭཱ ནིཛཝཱཧནོཔརི ཏམུཔཝེཤྱ པྲཝཱསཱིཡགྲྀཧམ྄ ཨཱནཱིཡ ཏཾ སིཥེཝེ།
३४और उसके पास आकर और उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकरपट्टियाँ बाँधी, और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की।
35 པརསྨིན྄ དིཝསེ ནིཛགམནཀཱལེ དྭཽ མུདྲཱཔཱདཽ ཏདྒྲྀཧསྭཱམིནེ དཏྟྭཱཝདཏ྄ ཛནམེནཾ སེཝསྭ ཏཏྲ ཡོ྅དྷིཀོ ཝྱཡོ བྷཝིཥྱཏི ཏམཧཾ པུནརཱགམནཀཱལེ པརིཤོཏྶྱཱམི།
३५दूसरे दिन उसने दो दीनार निकालकर सराय के मालिक को दिए, और कहा, ‘इसकी सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे दे दूँगा।’
36 ཨེཥཱཾ ཏྲཡཱཎཱཾ མདྷྱེ ཏསྱ དསྱུཧསྟཔཏིཏསྱ ཛནསྱ སམཱིཔཝཱསཱི ཀཿ? ཏྭཡཱ ཀིཾ བུདྷྱཏེ?
३६अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?”
37 ཏཏཿ ས ཝྱཝསྠཱཔཀཿ ཀཐཡཱམཱས ཡསྟསྨིན྄ དཡཱཾ ཙཀཱར། ཏདཱ ཡཱིཤུཿ ཀཐཡཱམཱས ཏྭམཔི གཏྭཱ ཏཐཱཙར།
३७उसने कहा, “वही जिसने उस पर तरस खाया।” यीशु ने उससे कहा, “जा, तू भी ऐसा ही कर।”
38 ཏཏཿ པརཾ ཏེ གཙྪནྟ ཨེཀཾ གྲཱམཾ པྲཝིཝིཤུཿ; ཏདཱ མརྠཱནཱམཱ སྟྲཱི སྭགྲྀཧེ ཏསྱཱཏིཐྱཾ ཙཀཱར།
३८फिर जब वे जा रहे थे, तो वह एक गाँव में गया, और मार्था नाम एक स्त्री ने उसे अपने घर में स्वागत किया।
39 ཏསྨཱཏ྄ མརིཡམ྄ ནཱམདྷེཡཱ ཏསྱཱ བྷགིནཱི ཡཱིཤོཿ པདསམཱིཔ ཨུཝཝིཤྱ ཏསྱོཔདེཤཀཐཱཾ ཤྲོཏུམཱརེབྷེ།
३९और मरियम नामक उसकी एक बहन थी; वह प्रभु के पाँवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी।
40 ཀིནྟུ མརྠཱ ནཱནཱཔརིཙཪྻྱཱཡཱཾ ཝྱགྲཱ བབྷཱུཝ ཏསྨཱདྡྷེཏོསྟསྱ སམཱིཔམཱགཏྱ བབྷཱཥེ; ཧེ པྲབྷོ མམ བྷགིནཱི ཀེཝལཾ མམོཔརི སཪྻྭཀརྨྨཎཱཾ བྷཱརམ྄ ཨརྤིཏཝཏཱི ཏཏྲ བྷཝཏཱ ཀིཉྩིདཔི ན མནོ ནིདྷཱིཡཏེ ཀིམ྄? མམ སཱཧཱཡྻཾ ཀརྟྟུཾ བྷཝཱན྄ ཏཱམཱདིཤཏུ།
४०परन्तु मार्था सेवा करते-करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी, “हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सेवा करने के लिये अकेली ही छोड़ दिया है? इसलिए उससे कह, मेरी सहायता करे।”
41 ཏཏོ ཡཱིཤུཿ པྲཏྱུཝཱཙ ཧེ མརྠེ ཧེ མརྠེ, ཏྭཾ ནཱནཱཀཱཪྻྱེཥུ ཙིནྟིཏཝཏཱི ཝྱགྲཱ ཙཱསི,
४१प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है।
42 ཀིནྟུ པྲཡོཛནཱིཡམ྄ ཨེཀམཱཏྲམ྄ ཨཱསྟེ། ཨཔརཉྩ ཡམུཏྟམཾ བྷཱགཾ ཀོཔི ཧརྟྟུཾ ན ཤཀྣོཏི སཨེཝ མརིཡམཱ ཝྲྀཏཿ།
४२परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उससे छीना न जाएगा।”