< ଲୂକଃ 19 >

1 ଯଦା ଯୀଶୁ ର୍ୟିରୀହୋପୁରଂ ପ୍ରୱିଶ୍ୟ ତନ୍ମଧ୍ୟେନ ଗଚ୍ଛଂସ୍ତଦା
پس وارد اریحا شده، از آنجا می گذشت.۱
2 ସକ୍କେଯନାମା କରସଞ୍ଚାଯିନାଂ ପ୍ରଧାନୋ ଧନୱାନେକୋ
که ناگاه شخصی زکی نام که رئیس باجگیران و دولتمند بود،۲
3 ଯୀଶୁଃ କୀଦୃଗିତି ଦ୍ରଷ୍ଟୁଂ ଚେଷ୍ଟିତୱାନ୍ କିନ୍ତୁ ଖର୍ୱ୍ୱତ୍ୱାଲ୍ଲୋକସଂଘମଧ୍ୟେ ତଦ୍ଦର୍ଶନମପ୍ରାପ୍ୟ
خواست عیسی را ببیند که کیست و از کثرت خلق نتوانست، زیرا کوتاه قد بود.۳
4 ଯେନ ପଥା ସ ଯାସ୍ୟତି ତତ୍ପଥେଽଗ୍ରେ ଧାୱିତ୍ୱା ତଂ ଦ୍ରଷ୍ଟୁମ୍ ଉଡୁମ୍ବରତରୁମାରୁରୋହ|
پس پیش دویده بردرخت افراغی برآمد تا او را ببیند. چونکه اومی خواست از آن راه عبور کند.۴
5 ପଶ୍ଚାଦ୍ ଯୀଶୁସ୍ତତ୍ସ୍ଥାନମ୍ ଇତ୍ୱା ଊର୍ଦ୍ଧ୍ୱଂ ୱିଲୋକ୍ୟ ତଂ ଦୃଷ୍ଟ୍ୱାୱାଦୀତ୍, ହେ ସକ୍କେଯ ତ୍ୱଂ ଶୀଘ୍ରମୱରୋହ ମଯାଦ୍ୟ ତ୍ୱଦ୍ଗେହେ ୱସ୍ତୱ୍ୟଂ|
و چون عیسی به آن مکان رسید، بالا نگریسته او را دید و گفت: «ای زکی بشتاب و به زیر بیا زیرا که باید امروز درخانه تو بمانم.»۵
6 ତତଃ ସ ଶୀଘ୍ରମୱରୁହ୍ୟ ସାହ୍ଲାଦଂ ତଂ ଜଗ୍ରାହ|
پس به زودی پایین شده او را به خرمی پذیرفت.۶
7 ତଦ୍ ଦୃଷ୍ଟ୍ୱା ସର୍ୱ୍ୱେ ୱିୱଦମାନା ୱକ୍ତୁମାରେଭିରେ, ସୋତିଥିତ୍ୱେନ ଦୁଷ୍ଟଲୋକଗୃହଂ ଗଚ୍ଛତି|
و همه چون این را دیدند، همهمه‌کنان می‌گفتند که در خانه شخصی گناهکار به میهمانی رفته است.۷
8 କିନ୍ତୁ ସକ୍କେଯୋ ଦଣ୍ଡାଯମାନୋ ୱକ୍ତୁମାରେଭେ, ହେ ପ୍ରଭୋ ପଶ୍ୟ ମମ ଯା ସମ୍ପତ୍ତିରସ୍ତି ତଦର୍ଦ୍ଧଂ ଦରିଦ୍ରେଭ୍ୟୋ ଦଦେ, ଅପରମ୍ ଅନ୍ୟାଯଂ କୃତ୍ୱା କସ୍ମାଦପି ଯଦି କଦାପି କିଞ୍ଚିତ୍ ମଯା ଗୃହୀତଂ ତର୍ହି ତଚ୍ଚତୁର୍ଗୁଣଂ ଦଦାମି|
اما زکی برپا شده به خداوند گفت: «الحال‌ای خداوند نصف مایملک خود را به فقرامی دهم و اگر چیزی ناحق از کسی گرفته باشم، چهار برابر بدو رد می‌کنم.»۸
9 ତଦା ଯୀଶୁସ୍ତମୁକ୍ତୱାନ୍ ଅଯମପି ଇବ୍ରାହୀମଃ ସନ୍ତାନୋଽତଃ କାରଣାଦ୍ ଅଦ୍ୟାସ୍ୟ ଗୃହେ ତ୍ରାଣମୁପସ୍ଥିତଂ|
عیسی به وی گفت: «امروز نجات در این خانه پیدا شد. زیرا که این شخص هم پسر ابراهیم است.۹
10 ଯଦ୍ ହାରିତଂ ତତ୍ ମୃଗଯିତୁଂ ରକ୍ଷିତୁଞ୍ଚ ମନୁଷ୍ୟପୁତ୍ର ଆଗତୱାନ୍|
زیرا که پسرانسان آمده است تا گمشده را بجوید و نجات‌بخشد.»۱۰
11 ଅଥ ସ ଯିରୂଶାଲମଃ ସମୀପ ଉପାତିଷ୍ଠଦ୍ ଈଶ୍ୱରରାଜତ୍ୱସ୍ୟାନୁଷ୍ଠାନଂ ତଦୈୱ ଭୱିଷ୍ୟତୀତି ଲୋକୈରନ୍ୱଭୂଯତ, ତସ୍ମାତ୍ ସ ଶ୍ରୋତୃଭ୍ୟଃ ପୁନର୍ଦୃଷ୍ଟାନ୍ତକଥାମ୍ ଉତ୍ଥାପ୍ୟ କଥଯାମାସ|
و چون ایشان این را شنیدند او مثلی زیادکرده آورد چونکه نزدیک به اورشلیم بود و ایشان گمان می‌بردند که ملکوت خدا می‌باید در همان زمان ظهور کند.۱۱
12 କୋପି ମହାଲ୍ଲୋକୋ ନିଜାର୍ଥଂ ରାଜତ୍ୱପଦଂ ଗୃହୀତ୍ୱା ପୁନରାଗନ୍ତୁଂ ଦୂରଦେଶଂ ଜଗାମ|
پس گفت: «شخصی شریف به دیار بعید سفر کرد تا ملکی برای خود گرفته مراجعت کند.۱۲
13 ଯାତ୍ରାକାଲେ ନିଜାନ୍ ଦଶଦାସାନ୍ ଆହୂଯ ଦଶସ୍ୱର୍ଣମୁଦ୍ରା ଦତ୍ତ୍ୱା ମମାଗମନପର୍ୟ୍ୟନ୍ତଂ ୱାଣିଜ୍ୟଂ କୁରୁତେତ୍ୟାଦିଦେଶ|
پس ده نفر از غلامان خود راطلبیده ده قنطار به ایشان سپرده فرمود، تجارت کنید تا بیایم.۱۳
14 କିନ୍ତୁ ତସ୍ୟ ପ୍ରଜାସ୍ତମୱଜ୍ଞାଯ ମନୁଷ୍ୟମେନମ୍ ଅସ୍ମାକମୁପରି ରାଜତ୍ୱଂ ନ କାରଯିୱ୍ୟାମ ଇମାଂ ୱାର୍ତ୍ତାଂ ତନ୍ନିକଟେ ପ୍ରେରଯାମାସୁଃ|
اما اهل ولایت او، چونکه او رادشمن می‌داشتند ایلچیان در عقب او فرستاده گفتند، نمی خواهیم این شخص بر ما سلطنت کند.۱۴
15 ଅଥ ସ ରାଜତ୍ୱପଦଂ ପ୍ରାପ୍ୟାଗତୱାନ୍ ଏକୈକୋ ଜନୋ ବାଣିଜ୍ୟେନ କିଂ ଲବ୍ଧୱାନ୍ ଇତି ଜ୍ଞାତୁଂ ଯେଷୁ ଦାସେଷୁ ମୁଦ୍ରା ଅର୍ପଯତ୍ ତାନ୍ ଆହୂଯାନେତୁମ୍ ଆଦିଦେଶ|
و چون ملک را گرفته مراجعت کرده بود، فرمود تا آن غلامانی را که به ایشان نقد سپرده بودحاضر کنند تا بفهمد هر یک چه سود نموده است.۱۵
16 ତଦା ପ୍ରଥମ ଆଗତ୍ୟ କଥିତୱାନ୍, ହେ ପ୍ରଭୋ ତୱ ତଯୈକଯା ମୁଦ୍ରଯା ଦଶମୁଦ୍ରା ଲବ୍ଧାଃ|
پس اولی آمده گفت، ای آقا قنطار تو ده قنطار دیگر نفع آورده است.۱۶
17 ତତଃ ସ ଉୱାଚ ତ୍ୱମୁତ୍ତମୋ ଦାସଃ ସ୍ୱଲ୍ପେନ ୱିଶ୍ୱାସ୍ୟୋ ଜାତ ଇତଃ କାରଣାତ୍ ତ୍ୱଂ ଦଶନଗରାଣାମ୍ ଅଧିପୋ ଭୱ|
بدو گفت آفرین‌ای غلام نیکو. چونکه بر چیز کم امین بودی بر ده شهر حاکم شو.۱۷
18 ଦ୍ୱିତୀଯ ଆଗତ୍ୟ କଥିତୱାନ୍, ହେ ପ୍ରଭୋ ତୱୈକଯା ମୁଦ୍ରଯା ପଞ୍ଚମୁଦ୍ରା ଲବ୍ଧାଃ|
و دیگری آمده گفت، ای آقاقنطار تو پنج قنطار سود کرده است.۱۸
19 ତତଃ ସ ଉୱାଚ, ତ୍ୱଂ ପଞ୍ଚାନାଂ ନଗରାଣାମଧିପତି ର୍ଭୱ|
او را نیزفرمود بر پنج شهر حکمرانی کن.۱۹
20 ତତୋନ୍ୟ ଆଗତ୍ୟ କଥଯାମାସ, ହେ ପ୍ରଭୋ ପଶ୍ୟ ତୱ ଯା ମୁଦ୍ରା ଅହଂ ୱସ୍ତ୍ରେ ବଦ୍ଧ୍ୱାସ୍ଥାପଯଂ ସେଯଂ|
و سومی آمده گفت، ای آقا اینک قنطار تو موجود است، آن را در پارچه‌ای نگاه داشته‌ام.۲۰
21 ତ୍ୱଂ କୃପଣୋ ଯନ୍ନାସ୍ଥାପଯସ୍ତଦପି ଗୃହ୍ଲାସି, ଯନ୍ନାୱପସ୍ତଦେୱ ଚ ଛିନତ୍ସି ତତୋହଂ ତ୍ୱତ୍ତୋ ଭୀତଃ|
زیرا که از توترسیدم چونکه مرد تندخویی هستی. آنچه نگذارده‌ای، برمی داری و از آنچه نکاشته‌ای درومی کنی.۲۱
22 ତଦା ସ ଜଗାଦ, ରେ ଦୁଷ୍ଟଦାସ ତୱ ୱାକ୍ୟେନ ତ୍ୱାଂ ଦୋଷିଣଂ କରିଷ୍ୟାମି, ଯଦହଂ ନାସ୍ଥାପଯଂ ତଦେୱ ଗୃହ୍ଲାମି, ଯଦହଂ ନାୱପଞ୍ଚ ତଦେୱ ଛିନଦ୍ମି, ଏତାଦୃଶଃ କୃପଣୋହମିତି ଯଦି ତ୍ୱଂ ଜାନାସି,
به وی گفت، از زبان خودت بر توفتوی می‌دهم، ای غلام شریر. دانسته‌ای که من مرد تندخویی هستم که برمیدارم آنچه رانگذاشته‌ام و درو می‌کنم آنچه را نپاشیده‌ام.۲۲
23 ତର୍ହି ମମ ମୁଦ୍ରା ବଣିଜାଂ ନିକଟେ କୁତୋ ନାସ୍ଥାପଯଃ? ତଯା କୃତେଽହମ୍ ଆଗତ୍ୟ କୁସୀଦେନ ସାର୍ଦ୍ଧଂ ନିଜମୁଦ୍ରା ଅପ୍ରାପ୍ସ୍ୟମ୍|
پس برای چه نقد مرا نزد صرافان نگذاردی تاچون آیم آن را با سود دریافت کنم؟۲۳
24 ପଶ୍ଚାତ୍ ସ ସମୀପସ୍ଥାନ୍ ଜନାନ୍ ଆଜ୍ଞାପଯତ୍ ଅସ୍ମାତ୍ ମୁଦ୍ରା ଆନୀଯ ଯସ୍ୟ ଦଶମୁଦ୍ରାଃ ସନ୍ତି ତସ୍ମୈ ଦତ୍ତ|
پس به حاضرین فرمود قنطار را از این شخص بگیرید وبه صاحب ده قنطار بدهید.۲۴
25 ତେ ପ୍ରୋଚୁଃ ପ୍ରଭୋଽସ୍ୟ ଦଶମୁଦ୍ରାଃ ସନ୍ତି|
به او گفتند‌ای خداوند، وی ده قنطار دارد.۲۵
26 ଯୁଷ୍ମାନହଂ ୱଦାମି ଯସ୍ୟାଶ୍ରଯେ ୱଦ୍ଧତେ ଽଧିକଂ ତସ୍ମୈ ଦାଯିଷ୍ୟତେ, କିନ୍ତୁ ଯସ୍ୟାଶ୍ରଯେ ନ ୱର୍ଦ୍ଧତେ ତସ୍ୟ ଯଦ୍ୟଦସ୍ତି ତଦପି ତସ୍ମାନ୍ ନାଯିଷ୍ୟତେ|
زیرا به شمامی گویم به هر‌که دارد داده شود و هر‌که نداردآنچه دارد نیز از او گرفته خواهد شد.۲۶
27 କିନ୍ତୁ ମମାଧିପତିତ୍ୱସ୍ୟ ୱଶତ୍ୱେ ସ୍ଥାତୁମ୍ ଅସମ୍ମନ୍ୟମାନା ଯେ ମମ ରିପୱସ୍ତାନାନୀଯ ମମ ସମକ୍ଷଂ ସଂହରତ|
اما آن دشمنان من که نخواستند من بر ایشان حکمرانی نمایم، در اینجا حاضر ساخته پیش من به قتل رسانید.»۲۷
28 ଇତ୍ୟୁପଦେଶକଥାଂ କଥଯିତ୍ୱା ସୋଗ୍ରଗଃ ସନ୍ ଯିରୂଶାଲମପୁରଂ ଯଯୌ|
و چون این را گفت، پیش رفته متوجه اورشلیم گردید.۲۸
29 ତତୋ ବୈତ୍ଫଗୀବୈଥନୀଯାଗ୍ରାମଯୋଃ ସମୀପେ ଜୈତୁନାଦ୍ରେରନ୍ତିକମ୍ ଇତ୍ୱା ଶିଷ୍ୟଦ୍ୱଯମ୍ ଇତ୍ୟୁକ୍ତ୍ୱା ପ୍ରେଷଯାମାସ,
و چون نزدیک بیت‌فاجی وبیت عنیا بر کوه مسمی به زیتون رسید، دو نفر ازشاگردان خود را فرستاده،۲۹
30 ଯୁୱାମମୁଂ ସମ୍ମୁଖସ୍ଥଗ୍ରାମଂ ପ୍ରୱିଶ୍ୟୈୱ ଯଂ କୋପି ମାନୁଷଃ କଦାପି ନାରୋହତ୍ ତଂ ଗର୍ଦ୍ଦଭଶାୱକଂ ବଦ୍ଧଂ ଦ୍ରକ୍ଷ୍ୟଥସ୍ତଂ ମୋଚଯିତ୍ୱାନଯତଂ|
گفت: «به آن قریه‌ای که پیش روی شما است بروید و چون داخل آن شدید، کره الاغی بسته خواهید یافت که هیچ‌کس بر آن هرگز سوار نشده. آن را باز کرده بیاورید.۳۰
31 ତତ୍ର କୁତୋ ମୋଚଯଥଃ? ଇତି ଚେତ୍ କୋପି ୱକ୍ଷ୍ୟତି ତର୍ହି ୱକ୍ଷ୍ୟଥଃ ପ୍ରଭେରତ୍ର ପ୍ରଯୋଜନମ୍ ଆସ୍ତେ|
و اگر کسی به شما گوید، چرا این راباز می‌کنید، به وی گویید خداوند او را لازم دارد.»۳۱
32 ତଦା ତୌ ପ୍ରରିତୌ ଗତ୍ୱା ତତ୍କଥାନୁସାରେଣ ସର୍ୱ୍ୱଂ ପ୍ରାପ୍ତୌ|
پس فرستادگان رفته آن چنانکه بدیشان گفته بود یافتند.۳۲
33 ଗର୍ଦଭଶାୱକମୋଚନକାଲେ ତତ୍ୱାମିନ ଊଚୁଃ, ଗର୍ଦଭଶାୱକଂ କୁତୋ ମୋଚଯଥଃ?
و چون کره را باز می‌کردند، مالکانش به ایشان گفتند چرا کره را باز می‌کنید؟۳۳
34 ତାୱୂଚତୁଃ ପ୍ରଭୋରତ୍ର ପ୍ରଯୋଜନମ୍ ଆସ୍ତେ|
گفتند خداوند او را لازم دارد.۳۴
35 ପଶ୍ଚାତ୍ ତୌ ତଂ ଗର୍ଦଭଶାୱକଂ ଯୀଶୋରନ୍ତିକମାନୀଯ ତତ୍ପୃଷ୍ଠେ ନିଜୱସନାନି ପାତଯିତ୍ୱା ତଦୁପରି ଯୀଶୁମାରୋହଯାମାସତୁଃ|
پس او را به نزد عیسی آوردند و رخت خود را بر کره افکنده، عیسی را سوار کردند.۳۵
36 ଅଥ ଯାତ୍ରାକାଲେ ଲୋକାଃ ପଥି ସ୍ୱୱସ୍ତ୍ରାଣି ପାତଯିତୁମ୍ ଆରେଭିରେ|
و هنگامی که او می‌رفت جامه های خود را در راه می‌گستردند.۳۶
37 ଅପରଂ ଜୈତୁନାଦ୍ରେରୁପତ୍ୟକାମ୍ ଇତ୍ୱା ଶିଷ୍ୟସଂଘଃ ପୂର୍ୱ୍ୱଦୃଷ୍ଟାନି ମହାକର୍ମ୍ମାଣି ସ୍ମୃତ୍ୱା,
و چون نزدیک به‌سرازیری کوه زیتون رسید، تمامی شاگردانش شادی کرده، به آوازبلند خدا را حمد گفتن شروع کردند، به‌سبب همه قواتی که از او دیده بودند.۳۷
38 ଯୋ ରାଜା ପ୍ରଭୋ ର୍ନାମ୍ନାଯାତି ସ ଧନ୍ୟଃ ସ୍ୱର୍ଗେ କୁଶଲଂ ସର୍ୱ୍ୱୋଚ୍ଚେ ଜଯଧ୍ୱନି ର୍ଭୱତୁ, କଥାମେତାଂ କଥଯିତ୍ୱା ସାନନ୍ଦମ୍ ଉଚୈରୀଶ୍ୱରଂ ଧନ୍ୟଂ ୱକ୍ତୁମାରେଭେ|
و می‌گفتند مبارک باد آن پادشاهی که می‌آید، به نام خداوند سلامتی در آسمان و جلال در اعلی علیین باد.۳۸
39 ତଦା ଲୋକାରଣ୍ୟମଧ୍ୟସ୍ଥାଃ କିଯନ୍ତଃ ଫିରୂଶିନସ୍ତତ୍ ଶ୍ରୁତ୍ୱା ଯୀଶୁଂ ପ୍ରୋଚୁଃ, ହେ ଉପଦେଶକ ସ୍ୱଶିଷ୍ୟାନ୍ ତର୍ଜଯ|
آنگاه بعضی از فریسیان از آن میان بدو گفتند: «ای استاد شاگردان خود را نهیب نما.»۳۹
40 ସ ଉୱାଚ, ଯୁଷ୍ମାନହଂ ୱଦାମି ଯଦ୍ୟମୀ ନୀରୱାସ୍ତିଷ୍ଠନ୍ତି ତର୍ହି ପାଷାଣା ଉଚୈଃ କଥାଃ କଥଯିଷ୍ୟନ୍ତି|
او درجواب ایشان گفت: «به شما می‌گویم اگراینها ساکت شوند، هرآینه سنگها به صداآیند.»۴۰
41 ପଶ୍ଚାତ୍ ତତ୍ପୁରାନ୍ତିକମେତ୍ୟ ତଦୱଲୋକ୍ୟ ସାଶ୍ରୁପାତଂ ଜଗାଦ,
و چون نزدیک شده، شهر را نظاره کرد برآن گریان گشته،۴۱
42 ହା ହା ଚେତ୍ ତ୍ୱମଗ୍ରେଽଜ୍ଞାସ୍ୟଥାଃ, ତୱାସ୍ମିନ୍ନେୱ ଦିନେ ୱା ଯଦି ସ୍ୱମଙ୍ଗଲମ୍ ଉପାଲପ୍ସ୍ୟଥାଃ, ତର୍ହ୍ୟୁତ୍ତମମ୍ ଅଭୱିଷ୍ୟତ୍, କିନ୍ତୁ କ୍ଷଣେସ୍ମିନ୍ ତତ୍ତୱ ଦୃଷ୍ଟେରଗୋଚରମ୍ ଭୱତି|
گفت: «اگر تو نیز می‌دانستی هم در این زمان خود آنچه باعث سلامتی تومیشد، لاکن الحال از چشمان تو پنهان گشته است.۴۲
43 ତ୍ୱଂ ସ୍ୱତ୍ରାଣକାଲେ ନ ମନୋ ନ୍ୟଧତ୍ଥା ଇତି ହେତୋ ର୍ୟତ୍କାଲେ ତୱ ରିପୱସ୍ତ୍ୱାଂ ଚତୁର୍ଦିକ୍ଷୁ ପ୍ରାଚୀରେଣ ୱେଷ୍ଟଯିତ୍ୱା ରୋତ୍ସ୍ୟନ୍ତି
زیرا ایامی بر تو می‌آید که دشمنانت گرد تو سنگرها سازند و تو را احاطه کرده از هرجانب محاصره خواهند نمود.۴۳
44 ବାଲକୈଃ ସାର୍ଦ୍ଧଂ ଭୂମିସାତ୍ କରିଷ୍ୟନ୍ତି ଚ ତ୍ୱନ୍ମଧ୍ୟେ ପାଷାଣୈକୋପି ପାଷାଣୋପରି ନ ସ୍ଥାସ୍ୟତି ଚ, କାଲ ଈଦୃଶ ଉପସ୍ଥାସ୍ୟତି|
و تو را وفرزندانت را در اندرون تو بر خاک خواهند افکندو در تو سنگی بر سنگی نخواهند گذاشت زیرا که ایام تفقد خود را ندانستی.»۴۴
45 ଅଥ ମଧ୍ୟେମନ୍ଦିରଂ ପ୍ରୱିଶ୍ୟ ତତ୍ରତ୍ୟାନ୍ କ୍ରଯିୱିକ୍ରଯିଣୋ ବହିଷ୍କୁର୍ୱ୍ୱନ୍
و چون داخل هیکل شد، کسانی را که درآنجا خرید و فروش می‌کردند، به بیرون نمودن آغاز کرد.۴۵
46 ଅୱଦତ୍ ମଦ୍ଗୃହଂ ପ୍ରାର୍ଥନାଗୃହମିତି ଲିପିରାସ୍ତେ କିନ୍ତୁ ଯୂଯଂ ତଦେୱ ଚୈରାଣାଂ ଗହ୍ୱରଂ କୁରୁଥ|
و به ایشان گفت: «مکتوب است که خانه من خانه عبادت است لیکن شما آن را مغاره دزدان ساخته‌اید.»۴۶
47 ପଶ୍ଚାତ୍ ସ ପ୍ରତ୍ୟହଂ ମଧ୍ୟେମନ୍ଦିରମ୍ ଉପଦିଦେଶ; ତତଃ ପ୍ରଧାନଯାଜକା ଅଧ୍ୟାପକାଃ ପ୍ରାଚୀନାଶ୍ଚ ତଂ ନାଶଯିତୁଂ ଚିଚେଷ୍ଟିରେ;
و هر روز در هیکل تعلیم می‌داد، اما روسای کهنه و کاتبان و اکابر قوم قصدهلاک نمودن او می‌کردند.۴۷
48 କିନ୍ତୁ ତଦୁପଦେଶେ ସର୍ୱ୍ୱେ ଲୋକା ନିୱିଷ୍ଟଚିତ୍ତାଃ ସ୍ଥିତାସ୍ତସ୍ମାତ୍ ତେ ତତ୍କର୍ତ୍ତୁଂ ନାୱକାଶଂ ପ୍ରାପୁଃ|
و نیافتند چه کنندزیرا که تمامی مردم بر او آویخته بودند که از اوبشنوند.۴۸

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