< लूकः 9 >

1 ततः परं स द्वादशशिष्यानाहूय भूतान् त्याजयितुं रोगान् प्रतिकर्त्तुञ्च तेभ्यः शक्तिमाधिपत्यञ्च ददौ।
फिर उसने उन बारह को बुलाकर उन्हें सब बदरूहों पर इख़्तियार बख़्शा और बीमारियों को दूर करने की क़ुदरत दी।
2 अपरञ्च ईश्वरीयराज्यस्य सुसंवादं प्रकाशयितुम् रोगिणामारोग्यं कर्त्तुञ्च प्रेरणकाले तान् जगाद।
और उन्हें ख़ुदा की बादशाही का ऐलान करने और बीमारों को अच्छा करने के लिए भेजा,
3 यात्रार्थं यष्टि र्वस्त्रपुटकं भक्ष्यं मुद्रा द्वितीयवस्त्रम्, एषां किमपि मा गृह्लीत।
और उनसे कहा, “राह के लिए कुछ न लेना, न लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपए, न दो दो कुरते रखना।
4 यूयञ्च यन्निवेशनं प्रविशथ नगरत्यागपर्य्यनतं तन्निवेशने तिष्ठत।
और जिस घर में दाख़िल हो वहीं रहना और वहीं से रवाना होना;
5 तत्र यदि कस्यचित् पुरस्य लोका युष्माकमातिथ्यं न कुर्व्वन्ति तर्हि तस्मान्नगराद् गमनकाले तेषां विरुद्धं साक्ष्यार्थं युष्माकं पदधूलीः सम्पातयत।
और जिस शहर के लोग तुम्हें क़ुबूल ना करें, उस शहर से निकलते वक़्त अपने पाँव की धूल झाड़ देना ताकि उन पर गवाही हो।”
6 अथ ते प्रस्थाय सर्व्वत्र सुसंवादं प्रचारयितुं पीडितान् स्वस्थान् कर्त्तुञ्च ग्रामेषु भ्रमितुं प्रारेभिरे।
पस वो रवाना होकर गाँव गाँव ख़ुशख़बरी सुनाते और हर जगह शिफ़ा देते फिरे।
7 एतर्हि हेरोद् राजा यीशोः सर्व्वकर्म्मणां वार्त्तां श्रुत्वा भृशमुद्विविजे
चौथाई मुल्क का हाकिम हेरोदेस सब अहवाल सुन कर घबरा गया, इसलिए कि कुछ ये कहते थे कि युहन्ना मुर्दों में से जी उठा है,
8 यतः केचिदूचुर्योहन् श्मशानादुदतिष्ठत्। केचिदूचुः, एलियो दर्शनं दत्तवान्; एवमन्यलोका ऊचुः पूर्व्वीयः कश्चिद् भविष्यद्वादी समुत्थितः।
और कुछ ये कि एलियाह ज़ाहिर हुआ, और कुछ ये कि क़दीम नबियों में से कोई जी उठा है।
9 किन्तु हेरोदुवाच योहनः शिरोऽहमछिनदम् इदानीं यस्येदृक्कर्म्मणां वार्त्तां प्राप्नोमि स कः? अथ स तं द्रष्टुम् ऐच्छत्।
मगर हेरोदेस ने कहा, “युहन्ना का तो मैं ने सिर कटवा दिया, अब ये कौन जिसके बारे में ऐसी बातें सुनता हूँ?” पस उसे देखने की कोशिश में रहा।
10 अनन्तरं प्रेरिताः प्रत्यागत्य यानि यानि कर्म्माणि चक्रुस्तानि यीशवे कथयामासुः ततः स तान् बैत्सैदानामकनगरस्य विजनं स्थानं नीत्वा गुप्तं जगाम।
फिर रसूलों ने जो कुछ किया था लौटकर उससे बयान किया; और वो उनको अलग लेकर बैतसैदा नाम एक शहर को चला गया।
11 पश्चाल् लोकास्तद् विदित्वा तस्य पश्चाद् ययुः; ततः स तान् नयन् ईश्वरीयराज्यस्य प्रसङ्गमुक्तवान्, येषां चिकित्सया प्रयोजनम् आसीत् तान् स्वस्थान् चकार च।
ये जानकर भीड़ उसके पीछे गई और वो ख़ुशी के साथ उनसे मिला और उनसे ख़ुदा की बादशाही की बातें करने लगा, और जो शिफ़ा पाने के मुहताज थे उन्हें शिफ़ा बख़्शी।
12 अपरञ्च दिवावसन्ने सति द्वादशशिष्या यीशोरन्तिकम् एत्य कथयामासुः, वयमत्र प्रान्तरस्थाने तिष्ठामः, ततो नगराणि ग्रामाणि गत्वा वासस्थानानि प्राप्य भक्ष्यद्रव्याणि क्रेतुं जननिवहं भवान् विसृजतु।
जब दिन ढलने लगा तो उन बारह ने आकर उससे कहा, “भीड़ को रुख़्सत कर के चारों तरफ़ के गाँव और बस्तियों में जा टिकें और खाने का इन्तिज़ाम करें।” क्यूँकि हम यहाँ वीरान जगह में हैं।
13 तदा स उवाच, यूयमेव तान् भेजयध्वं; ततस्ते प्रोचुरस्माकं निकटे केवलं पञ्च पूपा द्वौ मत्स्यौ च विद्यन्ते, अतएव स्थानान्तरम् इत्वा निमित्तमेतेषां भक्ष्यद्रव्येषु न क्रीतेषु न भवति।
उसने उनसे कहा, “तुम ही उन्हें खाने को दो,” उन्होंने कहा, “हमारे पास सिर्फ़ पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ है, मगर हाँ हम जा जाकर इन सब लोगों के लिए खाना मोल ले आएँ।”
14 तत्र प्रायेण पञ्चसहस्राणि पुरुषा आसन्।
क्यूँकि वो पाँच हज़ार मर्द के क़रीब थे। उसने अपने शागिर्दों से कहा, “उनको तक़रीबन पचास — पचास की क़तारों में बिठाओ।”
15 तदा स शिष्यान् जगाद पञ्चाशत् पञ्चाशज्जनैः पंक्तीकृत्य तानुपवेशयत, तस्मात् ते तदनुसारेण सर्व्वलोकानुपवेशयापासुः।
उन्होंने उसी तरह किया और सब को बिठाया।
16 ततः स तान् पञ्च पूपान् मीनद्वयञ्च गृहीत्वा स्वर्गं विलोक्येश्वरगुणान् कीर्त्तयाञ्चक्रे भङ्क्ता च लोकेभ्यः परिवेषणार्थं शिष्येषु समर्पयाम्बभूव।
फिर उसने वो पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देख कर उन पर बर्क़त बख़्शी, और तोड़कर अपने शागिर्दों को देता गया कि लोगों के आगे रख्खें।
17 ततः सर्व्वे भुक्त्वा तृप्तिं गता अवशिष्टानाञ्च द्वादश डल्लकान् संजगृहुः।
उन्होंने खाया और सब सेर हो गए, और उनके बचे हुए बे इस्तेमाल खाने की बारह टोकरियाँ उठाई गईं।
18 अथैकदा निर्जने शिष्यैः सह प्रार्थनाकाले तान् पप्रच्छ, लोका मां कं वदन्ति?
जब वो तन्हाई में दुआ कर रहा था और शागिर्द उसके पास थे, तो ऐसा हुआ कि उसने उनसे पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?”
19 ततस्ते प्राचुः, त्वां योहन्मज्जकं वदन्ति; केचित् त्वाम् एलियं वदन्ति, पूर्व्वकालिकः कश्चिद् भविष्यद्वादी श्मशानाद् उदतिष्ठद् इत्यपि केचिद् वदन्ति।
उन्होंने जवाब में कहा, “युहन्ना बपतिस्मा देनेवाला और कुछ एलियाह कहते हैं, और कुछ ये कि पुराने नबियों में से कोई जी उठा है।”
20 तदा स उवाच, यूयं मां कं वदथ? ततः पितर उक्तवान् त्वम् ईश्वराभिषिक्तः पुरुषः।
उसने उनसे कहा, “लेकिन तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने जवाब में कहा, “ख़ुदावन्द का मसीह।”
21 तदा स तान् दृढमादिदेश, कथामेतां कस्मैचिदपि मा कथयत।
उसने उनको हिदायत करके हुक्म दिया कि ये किसी से न कहना,
22 स पुनरुवाच, मनुष्यपुत्रेण वहुयातना भोक्तव्याः प्राचीनलोकैः प्रधानयाजकैरध्यापकैश्च सोवज्ञाय हन्तव्यः किन्तु तृतीयदिवसे श्मशानात् तेनोत्थातव्यम्।
और कहा, “ज़रूर है इब्न — ए — आदम बहुत दुःख उठाए और बुज़ुर्ग और सरदार काहिन और आलिम उसे रद्द करें और वो क़त्ल किया जाए और तीसरे दिन जी उठे।”
23 अपरं स सर्व्वानुवाच, कश्चिद् यदि मम पश्चाद् गन्तुं वाञ्छति तर्हि स स्वं दाम्यतु, दिने दिने क्रुशं गृहीत्वा च मम पश्चादागच्छतु।
और उसने सब से कहा, “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप से इनकार करे और हर रोज़ अपनी सलीब उठाए और मेरे पीछे हो ले।
24 यतो यः कश्चित् स्वप्राणान् रिरक्षिषति स तान् हारयिष्यति, यः कश्चिन् मदर्थं प्राणान् हारयिष्यति स तान् रक्षिष्यति।
क्यूँकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहे, वो उसे खोएगा और जो कोई मेरी ख़ातिर अपनी जान खोए वही उसे बचाएगा।
25 कश्चिद् यदि सर्व्वं जगत् प्राप्नोति किन्तु स्वप्राणान् हारयति स्वयं विनश्यति च तर्हि तस्य को लाभः?
और आदमी अगर सारी दुनिया को हासिल करे और अपनी जान को खो दे या नुक़्सान उठाए तो उसे क्या फ़ाइदा होगा?
26 पुन र्यः कश्चिन् मां मम वाक्यं वा लज्जास्पदं जानाति मनुष्यपुत्रो यदा स्वस्य पितुश्च पवित्राणां दूतानाञ्च तेजोभिः परिवेष्टित आगमिष्यति तदा सोपि तं लज्जास्पदं ज्ञास्यति।
क्यूँकि जो कोई मुझ से और मेरी बातों से शरमाएगा, इब्न — ए — आदम भी जब अपने और अपने बाप के और पाक फ़रिश्तों के जलाल में आएगा तो उस से शरमाएगा।
27 किन्तु युष्मानहं यथार्थं वदामि, ईश्वरीयराजत्वं न दृष्टवा मृत्युं नास्वादिष्यन्ते, एतादृशाः कियन्तो लोका अत्र स्थनेऽपि दण्डायमानाः सन्ति।
लेकिन मैं तुम से सच कहता हूँ कि उनमें से जो यहाँ खड़े हैं कुछ ऐसे हैं कि जब तक ख़ुदा की बादशाही को देख न लें मौत का मज़ा हरगिज़ न चखेंगे।”
28 एतदाख्यानकथनात् परं प्रायेणाष्टसु दिनेषु गतेषु स पितरं योहनं याकूबञ्च गृहीत्वा प्रार्थयितुं पर्व्वतमेकं समारुरोह।
फिर इन बातों के कोई आठ रोज़ बाद ऐसा हुआ, कि वो पतरस और यूहन्ना और या'क़ूब को साथ लेकर पहाड़ पर दुआ करने गया।
29 अथ तस्य प्रार्थनकाले तस्य मुखाकृतिरन्यरूपा जाता, तदीयं वस्त्रमुज्ज्वलशुक्लं जातं।
जब वो दुआ कर रहा था, तो ऐसा हुआ कि उसके चेहरे की सूरत बदल गई, और उसकी पोशाक सफ़ेद बर्राक़ हो गई।
30 अपरञ्च मूसा एलियश्चोभौ तेजस्विनौ दृष्टौ
और देखो, दो शख़्स या'नी मूसा और एलियाह उससे बातें कर रहे थे।
31 तौ तेन यिरूशालम्पुरे यो मृत्युः साधिष्यते तदीयां कथां तेन सार्द्धं कथयितुम् आरेभाते।
ये जलाल में दिखाई दिए और उसके इन्तक़ाल का ज़िक्र करते थे, जो येरूशलेम में वाक़े' होने को था।
32 तदा पितरादयः स्वस्य सङ्गिनो निद्रयाकृष्टा आसन् किन्तु जागरित्वा तस्य तेजस्तेन सार्द्धम् उत्तिष्ठन्तौ जनौ च ददृशुः।
मगर पतरस और उसके साथी नींद में पड़े थे और जब अच्छी तरह जागे, तो उसके जलाल को और उन दो शख़्सों को देखा जो उसके साथ खड़े थे।
33 अथ तयोरुभयो र्गमनकाले पितरो यीशुं बभाषे, हे गुरोऽस्माकं स्थानेऽस्मिन् स्थितिः शुभा, तत एका त्वदर्था, एका मूसार्था, एका एलियार्था, इति तिस्रः कुट्योस्माभि र्निर्म्मीयन्तां, इमां कथां स न विविच्य कथयामास।
जब वो उससे जुदा होने लगे तो ऐसा हुआ कि पतरस ने ईसा से कहा, “ऐ उस्ताद! हमारा यहाँ रहना अच्छा है: पस हम तीन डेरे बनाएँ, एक तेरे लिए एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।” लेकिन वो जानता न था कि क्या कहता है।
34 अपरञ्च तद्वाक्यवदनकाले पयोद एक आगत्य तेषामुपरि छायां चकार, ततस्तन्मध्ये तयोः प्रवेशात् ते शशङ्किरे।
वो ये कहता ही था कि बादल ने आकर उन पर साया कर लिया, और जब वो बादल में घिरने लगे तो डर गए।
35 तदा तस्मात् पयोदाद् इयमाकाशीया वाणी निर्जगाम, ममायं प्रियः पुत्र एतस्य कथायां मनो निधत्त।
और बादल में से एक आवाज़ आई, “ये मेरा चुना हुआ बेटा है, इसकी सुनो।”
36 इति शब्दे जाते ते यीशुमेकाकिनं ददृशुः किन्तु ते तदानीं तस्य दर्शनस्य वाचमेकामपि नोक्त्वा मनःसु स्थापयामासुः।
ये आवाज़ आते ही ईसा अकेला दिखाई दिया; और वो चुप रहे, और जो बातें देखी थीं उन दिनों में किसी को उनकी कुछ ख़बर न दी।
37 परेऽहनि तेषु तस्माच्छैलाद् अवरूढेषु तं साक्षात् कर्त्तुं बहवो लोका आजग्मुः।
दूसरे दिन जब वो पहाड़ से उतरे थे, तो ऐसा हुआ कि एक बड़ी भीड़ उससे आ मिली।
38 तेषां मध्याद् एको जन उच्चैरुवाच, हे गुरो अहं विनयं करोमि मम पुत्रं प्रति कृपादृष्टिं करोतु, मम स एवैकः पुत्रः।
और देखो एक आदमी ने भीड़ में से चिल्लाकर कहा, “ऐ उस्ताद! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरे बेटे पर नज़र कर; क्यूँकि वो मेरा इकलौता है।
39 भूतेन धृतः सन् सं प्रसभं चीच्छब्दं करोति तन्मुखात् फेणा निर्गच्छन्ति च, भूत इत्थं विदार्य्य क्लिष्ट्वा प्रायशस्तं न त्यजति।
और देखो, एक रूह उसे पकड़ लेती है, और वो यकायक चीख़ उठता है; और उसको ऐसा मरोड़ती है कि क़फ़ भर लाता है, और उसको कुचल कर मुश्किल से छोड़ती है।
40 तस्मात् तं भूतं त्याजयितुं तव शिष्यसमीपे न्यवेदयं किन्तु ते न शेकुः।
मैंने तेरे शागिर्दों की मिन्नत की कि उसे निकाल दें, लेकिन वो न निकाल सके।”
41 तदा यीशुरवादीत्, रे आविश्वासिन् विपथगामिन् वंश कतिकालान् युष्माभिः सह स्थास्याम्यहं युष्माकम् आचरणानि च सहिष्ये? तव पुत्रमिहानय।
ईसा ने जवाब में कहा, “ऐ कम ईमान वालों मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा और तुम्हारी बर्दाश्त करूँगा? अपने बेटे को ले आ।”
42 ततस्तस्मिन्नागतमात्रे भूतस्तं भूमौ पातयित्वा विददार; तदा यीशुस्तममेध्यं भूतं तर्जयित्वा बालकं स्वस्थं कृत्वा तस्य पितरि समर्पयामास।
वो आता ही था कि बदरूह ने उसे पटक कर मरोड़ा और ईसा ने उस नापाक रूह को झिड़का और लड़के को अच्छा करके उसके बाप को दे दिया।
43 ईश्वरस्य महाशक्तिम् इमां विलोक्य सर्व्वे चमच्चक्रुः; इत्थं यीशोः सर्व्वाभिः क्रियाभिः सर्व्वैर्लोकैराश्चर्य्ये मन्यमाने सति स शिष्यान् बभाषे,
और सब लोग ख़ुदा की शान देखकर हैरान हुए। लेकिन जिस वक़्त सब लोग उन सब कामों पर जो वो करता था ता'ज्जुब कर रहे थे, उसने अपने शागिर्दों से कहा,
44 कथेयं युष्माकं कर्णेषु प्रविशतु, मनुष्यपुत्रो मनुष्याणां करेषु समर्पयिष्यते।
“तुम्हारे कानों में ये बातें पड़ी रहें, क्यूँकि इब्न — ए — आदम आदमियों के हवाले किए जाने को है।”
45 किन्तु ते तां कथां न बुबुधिरे, स्पष्टत्वाभावात् तस्या अभिप्रायस्तेषां बोधगम्यो न बभूव; तस्या आशयः क इत्यपि ते भयात् प्रष्टुं न शेकुः।
लेकिन वो इस बात को समझते न थे, बल्कि ये उनसे छिपाई गई ताकि उसे मा'लूम न करें; और इस बात के बारे में उससे पूछते हुए डरते थे।
46 तदनन्तरं तेषां मध्ये कः श्रेष्ठः कथामेतां गृहीत्वा ते मिथो विवादं चक्रुः।
फिर उनमें ये बहस शुरू' हुई, कि हम में से बड़ा कौन है?
47 ततो यीशुस्तेषां मनोभिप्रायं विदित्वा बालकमेकं गृहीत्वा स्वस्य निकटे स्थापयित्वा तान् जगाद,
लेकिन ईसा ने उनके दिलों का ख़याल मा'लूम करके एक बच्चे को लिया, और अपने पास खड़ा करके उनसे कहा,
48 यो जनो मम नाम्नास्य बालास्यातिथ्यं विदधाति स ममातिथ्यं विदधाति, यश्च ममातिथ्यं विदधाति स मम प्रेरकस्यातिथ्यं विदधाति, युष्माकं मध्येयः स्वं सर्व्वस्मात् क्षुद्रं जानीते स एव श्रेष्ठो भविष्यति।
“जो कोई इस बच्चे को मेरे नाम से क़ुबूल करता है, वो मुझे क़ुबूल करता है; और जो मुझे क़ुबूल करता है, वो मेरे भेजनेवाले को क़ुबूल करता है; क्यूँकि जो तुम में सब से छोटा है वही बड़ा है”
49 अपरञ्च योहन् व्याजहार हे प्रभेा तव नाम्ना भूतान् त्याजयन्तं मानुषम् एकं दृष्टवन्तो वयं, किन्त्वस्माकम् अपश्चाद् गामित्वात् तं न्यषेधाम्। तदानीं यीशुरुवाच,
यूहन्ना ने जवाब में कहा, “ऐ उस्ताद! हम ने एक शख़्स को तेरे नाम से बदरूह निकालते देखा, और उसको मनह' करने लगे, क्यूँकि वो हमारे साथ तेरी पैरवी नहीं करता।”
50 तं मा निषेधत, यतो यो जनोस्माकं न विपक्षः स एवास्माकं सपक्षो भवति।
लेकिन ईसा ने उससे कहा, “उसे मनह' न करना, क्यूँकि जो तुम्हारे ख़िलाफ़ नहीं वो तुम्हारी तरफ़ है।”
51 अनन्तरं तस्यारोहणसमय उपस्थिते स स्थिरचेता यिरूशालमं प्रति यात्रां कर्त्तुं निश्चित्याग्रे दूतान् प्रेषयामास।
जब वो दिन नज़दीक आए कि वो ऊपर उठाया जाए, तो ऐसा हुआ कि उसने येरूशलेम जाने को कमर बाँधी।
52 तस्मात् ते गत्वा तस्य प्रयोजनीयद्रव्याणि संग्रहीतुं शोमिरोणीयानां ग्रामं प्रविविशुः।
और आगे क़ासिद भेजे, वो जाकर सामरियों के एक गाँव में दाख़िल हुए ताकि उसके लिए तैयारी करें
53 किन्तु स यिरूशालमं नगरं याति ततो हेतो र्लोकास्तस्यातिथ्यं न चक्रुः।
लेकिन उन्होंने उसको टिकने न दिया, क्यूँकि उसका रुख येरूशलेम की तरफ़ था।
54 अतएव याकूब्योहनौ तस्य शिष्यौ तद् दृष्ट्वा जगदतुः, हे प्रभो एलियो यथा चकार तथा वयमपि किं गगणाद् आगन्तुम् एतान् भस्मीकर्त्तुञ्च वह्निमाज्ञापयामः? भवान् किमिच्छति?
ये देखकर उसके शागिर्द या'क़ूब और यूहन्ना ने कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू चाहता है कि हम हुक्म दें कि आसमान से आग नाज़िल होकर उन्हें भस्म कर दे [जैसा एलियाह ने किया]?”
55 किन्तु स मुखं परावर्त्य तान् तर्जयित्वा गदितवान् युष्माकं मनोभावः कः, इति यूयं न जानीथ।
मगर उसने फिरकर उन्हें झिड़का [और कहा, तुम नहीं जानते कि तुम कैसी रूह के हो। क्यूँकि इब्न — ए — आदम लोगों की जान बरबाद करने नहीं बल्कि बचाने आया है]
56 मनुजसुतो मनुजानां प्राणान् नाशयितुं नागच्छत्, किन्तु रक्षितुम् आगच्छत्। पश्चाद् इतरग्रामं ते ययुः।
फिर वो किसी और गाँव में चले गए।
57 तदनन्तरं पथि गमनकाले जन एकस्तं बभाषे, हे प्रभो भवान् यत्र याति भवता सहाहमपि तत्र यास्यामि।
जब वो राह में चले जाते थे तो किसी ने उससे कहा, “जहाँ कहीं तू जाए, मैं तेरे पीछे चलूँगा।”
58 तदानीं यीशुस्तमुवाच, गोमायूनां गर्त्ता आसते, विहायसीयविहगाानां नीडानि च सन्ति, किन्तु मानवतनयस्य शिरः स्थापयितुं स्थानं नास्ति।
ईसा ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भठ होते हैं और हवा के परिन्दों के घोंसले, मगर इब्न — ए — आदम के लिए सिर रखने की भी जगह नहीं।”
59 ततः परं स इतरजनं जगाद, त्वं मम पश्चाद् एहि; ततः स उवाच, हे प्रभो पूर्व्वं पितरं श्मशाने स्थापयितुं मामादिशतु।
फिर उसने दूसरे से कहा, “मेरे पीछे हो ले।” उसने जवाब में कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! मुझे इजाज़त दे कि पहले जाकर अपने बाप को दफ़्न करूँ।”
60 तदा यीशुरुवाच, मृता मृतान् श्मशाने स्थापयन्तु किन्तु त्वं गत्वेश्वरीयराज्यस्य कथां प्रचारय।
उसने उससे कहा, “मुर्दों को अपने मुर्दे दफ़्न करने दे, लेकिन तू जाकर ख़ुदा की बादशाही की ख़बर फैला।”
61 ततोन्यः कथयामास, हे प्रभो मयापि भवतः पश्चाद् गंस्यते, किन्तु पूर्व्वं मम निवेशनस्य परिजनानाम् अनुमतिं ग्रहीतुम् अहमादिश्यै भवता।
एक और ने भी कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरे पीछे चलूँगा, लेकिन पहले मुझे इजाज़त दे कि अपने घर वालों से रुख़्सत हो आऊँ।”
62 तदानीं यीशुस्तं प्रोक्तवान्, यो जनो लाङ्गले करमर्पयित्वा पश्चात् पश्यति स ईश्वरीयराज्यं नार्हति।
ईसा ने उससे कहा, “जो कोई अपना हाथ हल पर रख कर पीछे देखता है वो ख़ुदा की बादशाही के लायक़ नहीं।”

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