< مزامیر 95 >
بیایید خداوند را ستایش کنیم و در وصف صخرهٔ نجات خود، با شادی سرود بخوانیم! | 1 |
आओ हम ख़ुदावन्द के सामने नग़मासराई करे! अपनी नजात की चट्टान के सामने खु़शी से ललकारें।
با شکرگزاری به حضور او بیاییم و با سرودهای شاد او را بپرستیم! | 2 |
शुक्रगुज़ारी करते हुए उसके सामने में हाज़िर हों, मज़मूर गाते हुए उसके आगे ख़ुशी से ललकारें।
زیرا خداوند، خدای عظیمی است؛ او پادشاهی است که بر همهٔ خدایان فرمان میراند. | 3 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा — ए — 'अज़ीम है, और सब इलाहों पर शाह — ए — 'अज़ीम है।
اعماق زمین در دست خداوند است و بلندی و عظمت کوهها از آن او میباشد. | 4 |
ज़मीन के गहराव उसके क़ब्ज़े में हैं; पहाड़ों की चोटियाँ भी उसी की हैं।
آبها و خشکیها را خدا به وجود آورده و آنها به او تعلق دارند. | 5 |
समन्दर उसका है, उसी ने उसको बनाया, और उसी के हाथों ने खु़श्की को भी तैयार किया।
بیایید در برابر خدا، سر فرود آوریم و او را عبادت کنیم. بیایید در حضور آفرینندهٔ خود زانو بزنیم. | 6 |
आओ हम झुकें और सिज्दा करें, और अपने खालिक़ ख़ुदावन्द के सामने घुटने टेकें!
ما قوم او هستیم و او خدای ما، ما گلهٔ او هستیم و او شبان ما. امروز، اگر صدای او را میشنوید که میفرماید: | 7 |
क्यूँकि वह हमारा ख़ुदा है, और हम उसकी चरागाह के लोग, और उसके हाथ की भेड़ें हैं। काश कि आज के दिन तुम उसकी आवाज़ सुनते!
«دل خود را سخت نکنید، همان کاری که نیاکان شما در صحرای مریبا و مَسّا کردند. | 8 |
तुम अपने दिल को सख़्त न करो जैसा मरीबा में, जैसा मस्साह के दिन वीरान में किया था,
زیرا در آنجا، نیاکان شما، صبر مرا آزمایش و امتحان کردند، با اینکه کارهای مرا دیده بودند. | 9 |
उस वक़्त तुम्हारे बाप — दादा ने मुझे आज़माया, और मेरा इम्तिहान किया और मेरे काम को भी देखा।
مدت چهل سال، از آنها بیزار بودم، و گفتم:”اینها قومی هستند که دلشان از من برگشته. آنها دیگر مرا اطاعت نمیکنند. | 10 |
चालीस बरस तक मैं उस नसल से बेज़ार रहा, और मैने कहा, कि “ये वह लोग हैं जिनके दिल आवारा हैं, और उन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना।”
پس در خشم خود سوگند خوردم که به آسایش من هرگز راه نخواهند یافت.“» | 11 |
चुनाँचे मैने अपने ग़ज़ब में क़सम खाई कि यह लोग मेरे आराम में दाख़िल न होंगे।