< ایوب 4 >

آنگاه الیفاز تیمانی پاسخ داد: 1
तब तेमानी इलिफ़ज़ कहने लगा,
ای ایوب، آیا اجازه می‌دهی چند کلمه‌ای حرف بزنم؟ چون دیگر نمی‌توانم ساکت بمانم. 2
अगर कोई तुझ से बात चीत करने की कोशिश करे तो क्या तू अफ़सोस करेगा?, लेकिन बोले बगै़र कौन रह सकता है?
تو در گذشته بسیاری را نصیحت کرده‌ای که به خدا توکل جویند. به ضعیفان و بیچارگان و کسانی که گرفتار یأس بودند، قوت قلب داده‌ای. 3
देख, तू ने बहुतों को सिखाया, और कमज़ोर हाथों को मज़बूत किया।
4
तेरी बातों ने गिरते हुए को संभाला, और तू ने लड़खड़ाते घुटनों को मज़बूत किया।
ولی اکنون که مصیبت به سراغ تو آمده است بی‌طاقت و پریشان شده‌ای. 5
लेकिन अब तो तुझी पर आ पड़ी और तू कमज़ोर हुआ जाता है। उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।
آیا اطمینان تو نباید بر خداترسی‌ات باشد، و امید تو بر زندگی بی‌عیبی که داری؟ 6
क्या तेरे ख़ुदा का डर ही तेरा भरोसा नहीं? क्या तेरी राहों की रास्ती तेरी उम्मीद नहीं?
قدری فکر کن و ببین آیا تا به حال دیده‌ای انسانی درستکار و بی‌گناهی هلاک شود؟ 7
क्या तुझे याद है कि कभी कोई मा'सूम भी हलाक हुआ है? या कहीं रास्तबाज़ भी काट डाले गए?
تجربه من نشان می‌دهد که هر چه بکاری همان را درو می‌کنی. کسانی که گناه و بدی می‌کارند همان را درو می‌کنند. 8
मेरे देखने में तो जो गुनाह को जोतते और दुख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।
دَمِ خدا آنها را نابود می‌کند، و آنها از بادِ غضبش تباه می‌شوند. 9
वह ख़ुदा के दम से हलाक होते, और उसके ग़ुस्से के झोंके से भस्म होते हैं।
شیر می‌غُرّد و شیر ژیان نعره می‌کشد، اما دندانهای شیران قوی خواهند شکست. 10
बबर की ग़रज़ और खू़ँख़्वार बबर की दहाड़, और बबर के बच्चों के दाँत, यह सब तोड़े जाते हैं।
شیر نر از گرسنگی تلف می‌شود و تمام بچه‌هایش پراکنده می‌گردند. 11
शिकार न पाने से बूढ़ा बबर हलाक होता, और शेरनी के बच्चे तितर — बितर हो जाते हैं।
سخنی در خفا به من رسید، گویی کسی در گوشم زمزمه می‌کرد. 12
एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, उसकी भनक मेरे कान में पड़ी।
این سخن در رویایی آشفته، هنگامی که مردم در خوابی سنگین بودند بر من آشکار گشت. 13
रात के ख़्वाबों के ख़्यालों के बीच, जब लोगों को गहरी नींद आती है।
ناگهان ترس وجودم را فرا گرفت و لرزه بر استخوانهایم افتاد. 14
मुझे ख़ौफ़ और कपकपी ने ऐसा पकड़ा, कि मेरी सब हड्डियों को हिला डाला।
روحی از برابر من گذشت و موی بر تنم راست شد! 15
तब एक रूह मेरे सामने से गुज़री, और मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
حضور روح را احساس می‌کردم، ولی نمی‌توانستم او را ببینم. سپس در آن سکوت وحشتناک این ندا به گوشم رسید: 16
वह चुपचाप खड़ी हो गई लेकिन मैं उसकी शक्ल पहचान न सका; एक सूरत मेरी आँखों के सामने थी और सन्नाटा था। फिर मैंने एक आवाज़ सुनी:
«آیا انسان خاکی می‌تواند در نظر خدای خالق، پاک و بی‌گناه به حساب بیاید؟ 17
कि क्या फ़ानी इंसान ख़ुदा से ज़्यादा होगा? क्या आदमी अपने ख़ालिक़ से ज़्यादा पाक ठहरेगा?
خدا حتی به فرشتگان آسمان نیز اعتماد ندارد و بر خادمان خود خرده می‌گیرد، 18
देख, उसे अपने ख़ादिमों का 'ऐतबार नहीं, और वह अपने फ़रिश्तों पर हिमाक़त को 'आइद करता है।
چه برسد به آدمیانی که از خاک آفریده شده‌اند و مانند بید ناپایدارند. 19
फिर भला उनकी क्या हक़ीक़त है, जो मिट्टी के मकानों में रहते हैं। जिनकी बुन्नियाद ख़ाक में है, और जो पतंगे से भी जल्दी पिस जाते हैं।
صبح، زنده‌اند و شب، می‌میرند و برای همیشه از بین می‌روند و اثری از آنها باقی نمی‌ماند. 20
वह सुबह से शाम तक हलाक होते हैं, वह हमेशा के लिए फ़ना हो जाते हैं, और कोई उनका ख़याल भी नहीं करता।
طنابِ خیمۀ آنها کشیده می‌شود و خیمه فرو می‌افتد، و آنها در جهالت می‌میرند.» 21
क्या उनके ख़ेमे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर तोड़ी नहीं जाती? वह मरते हैं और यह भी बगै़र दानाई के।

< ایوب 4 >