< ارمیا 18 >

خداوند به من فرمود: «برخیز و به کارگاه کوزه‌گری برو، و من در آنجا با تو سخن خواهم گفت.» 1
ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
2
कि “उठ और कुम्हार के घर जा, और मैं वहाँ अपनी बातें तुझे सुनाऊँगा।”
برخاستم و به کارگاه کوزه‌گری رفتم. دیدم که کوزه‌گر بر سر چرخش سرگرم کار است؛ 3
तब मैं कुम्हार के घर गया और क्या देखता हूँ कि वह चाक पर कुछ बना रहा है।
ولی کوزه‌ای که مشغول ساختنش بود، به شکل دلخواهش در نیامد؛ پس آن را دوباره خمیر کرد و بر چرخ گذاشت تا کوزه‌ای دیگر مطابق میلش بسازد. 4
उस वक़्त वह मिट्टी का बर्तन जो वह बना रहा था, उसके हाथ में बिगड़ गया; तब उसने उससे जैसा मुनासिब समझा एक दूसरा बर्तन बना लिया।
آنگاه خداوند فرمود: 5
तब ख़ुदावन्द का यह कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
«ای بنی‌اسرائیل، آیا من نمی‌توانم با شما همان‌گونه رفتار کنم که این کوزه‌گر با گلش کرد؟ شما هم در دستهای من، همچون گل در دست کوزه‌گر هستید. 6
ऐ इस्राईल के घराने, क्या मैं इस कुम्हार की तरह तुम से सुलूक नहीं कर सकता हूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है। देखो, जिस तरह मिट्टी कुम्हार के हाथ में है उसी तरह, ऐ इस्राईल के घराने, तुम मेरे हाथ में हो।
هرگاه اعلام نمایم که قصد دارم قومی یا مملکتی را منهدم و ویران سازم، 7
अगर किसी वक़्त मैं किसी क़ौम और किसी सल्तनत के हक़ में कहूँ कि उसे उखाड़ूँ और तोड़ डालूँ और वीरान करूँ,
اگر آن قوم از شرارت دست کشند و توبه کنند، از قصد خود منصرف می‌شوم و نابودشان نخواهم کرد. 8
और अगर वह क़ौम, जिसके हक़ में मैंने ये कहा, अपनी बुराई से बाज़ आए, तो मैं भी उस बुराई से जो मैंने उस पर लाने का इरादा किया था बाज़ आऊँगा।
و اگر اعلام کنم که می‌خواهم قومی یا مملکتی را قدرتمند و بزرگ سازم، 9
और फिर, अगर मैं किसी क़ौम और किसी सल्तनत के बारे में कहूँ कि उसे बनाऊँ और लगाऊँ;
اما آن قوم راه و روش خود را تغییر داده، به دنبال شرارت بروند و احکام مرا اطاعت نکنند، آنگاه من نیز نیکویی و برکتی را که در نظر داشتم، به آن قوم نخواهم داد. 10
और वह मेरी नज़र में बुराई करे और मेरी आवाज़ को न सुने, तो मैं भी उस नेकी से बाज़ रहूँगा जो उसके साथ करने को कहा था।
«حال برو و به تمام ساکنان یهودا و اورشلیم هشدار بده و بگو که من علیه ایشان بلایی تدارک می‌بینم؛ پس بهتر است از راههای زشتشان بازگردند و کردار خود را اصلاح کنند. 11
और अब तू जाकर यहूदाह के लोगों और येरूशलेम के बाशिन्दों से कह दे, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं तुम्हारे लिए मुसीबत तजवीज़ करता हूँ और तुम्हारी मुख़ालिफ़त में मनसूबा बाँधता हूँ। इसलिए अब तुम में से हर एक अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, और अपनी राह और अपने 'आमाल को दुरुस्त करे।
«اما ایشان جواب خواهند داد:”بیهوده خود را زحمت مده! ما هر طور که دلمان می‌خواهد زندگی خواهیم کرد و امیال سرکش خود را دنبال خواهیم نمود!“» 12
लेकिन वह कहेंगे, 'यह तो फ़ुज़ूल है, क्यूँकि हम अपने मन्सूबों पर चलेंगे, और हर एक अपने बुरे दिल की सख़्ती के मुताबिक़ 'अमल करेगा।
خداوند می‌فرماید: «حتی در میان بت‌پرستان تاکنون چنین چیزی رخ نداده است! قوم من عمل زشتی مرتکب شده که تصورش را هم نمی‌توان کرد! 13
“इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: दरियाफ़्त करो कि क़ौमों में से किसी ने कभी ऐसी बातें सुनी हैं? इस्राईल की कुँवारी ने बहुत हौलनाक काम किया।
قله‌های بلند کوههای لبنان هرگز بدون برف نمی‌مانند؛ جویبارهای خنک نیز که از دور دستها جاری‌اند، هرگز خشک نمی‌شوند. 14
क्या लुबनान की बर्फ़ जो चट्टान से मैदान में बहती है, कभी बन्द होगी? क्या वह ठंडा बहता पानी जो दूर से आता है, सूख जाएगा?
به پایداری اینها می‌توان اعتماد کرد، اما به قوم من اعتمادی نیست! زیرا آنها مرا ترک نموده و به بتها روی آورده‌اند؛ از راههای هموار قدیم بازگشته‌اند و در بی‌راهه‌های گناه قدم می‌زنند. 15
लेकिन मेरे लोग मुझ को भूल गए, और उन्होंने बेकार के लिए ख़ुशबू जलाया; और उसने उनकी राहों में या'नी क़दीम राहों में उनको गुमराह किया, ताकि वह पगडंडियों में जाएँ और ऐसी राह में जो बनाई न गई।
از این رو سرزمینشان چنان ویران خواهد شد که هر کس از آن عبور کند، حیرت نماید و از تعجب سر خود را تکان دهد. 16
कि वह अपनी सरज़मीन की वीरानी और हमेशा की हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाएँ; हर एक जो उधर से गुज़रे दंग होगा और सिर हिलाएगा।
همان‌طور که باد شرقی خاک را پراکنده می‌کند، من هم قوم خود را به هنگام رویارویی با دشمنانشان پراکنده خواهم ساخت؛ و به هنگام مصیبت رویم را برگردانده به ایشان اعتنایی نخواهم نمود!» 17
मैं उनको दुश्मन के सामने जैसे पूरबी हवा से तितर — बितर कर दूँगा; उनकी मुसीबत के वक़्त उनको मुँह नहीं, बल्कि पीठ दिखाऊँगा।”
آنگاه قوم گفتند: «بیایید خود را از شر ارمیا خلاص کنیم! ما خود کاهنانی داریم که شریعت را به ما تعلیم می‌دهند و حکیمانی داریم که ما را راهنمایی می‌نمایند و انبیایی داریم که پیام خدا را به ما اعلام می‌کنند؛ دیگر چه احتیاجی به موعظهٔ ارمیا داریم؟ پس بیایید به سخنانش گوش فرا ندهیم و تهمتی بر او وارد سازیم تا دیگر بر ضد ما سخن نگوید!» 18
तब उन्होंने कहा, आओ, हम यरमियाह की मुख़ालिफ़त में मंसूबे बाँधे, क्यूँकि शरी'अत काहिन से जाती न रहेगी, और न मश्वरत मुशीर से और न कलाम नबी से। आओ, हम उसे ज़बान से मारें, और उसकी किसी बात पर तव्ज्जुह न करें।
بنابراین ارمیا دعا کرده، گفت: «خداوندا، به سخنانم توجه نما! ببین دربارهٔ من چه می‌گویند. 19
ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझ पर तवज्जुह कर और मुझसे झगड़ने वालों की आवाज़ सुन।
آیا باید خوبی‌های مرا با بدی تلافی کنند؟ برای کشتن من دام گذاشته‌اند حال آنکه من بارها نزد تو از ایشان طرفداری کرده و کوشیده‌ام خشم تو را از ایشان برگردانم. 20
क्या नेकी के बदले बदी की जाएगी? क्यूँकि उन्होंने मेरी जान के लिए गढ़ा खोदा। याद कर कि मैं तेरे सामने खड़ा हुआ कि उनकी शफ़ा'अत करूँ और तेरा क़हर उन पर से टला दूँ।
اما حال خداوندا، بگذار فرزندانشان از گرسنگی بمیرند و شمشیر خون آنها را بریزد؛ زنانشان بیوه بشوند و مادرانشان داغدیده! مردها از بیماری بمیرند و جوانان در جنگ کشته شوند! 21
इसलिए उनके बच्चों को काल के हवाले कर, और उनको तलवार की धार के सुपुर्द कर, उनकी बीवियाँ बेऔलाद और बेवा हों, और उनके मर्द मारे जाएँ, उनके जवान मैदान — ए — जंग में तलवार से क़त्ल हों।
بگذار وقتی سربازان به ناگه بر آنها هجوم می‌آورند، فریاد و شیون از خانه‌هایشان برخیزد! زیرا بر سر راهم دام گسترده‌اند و برایم چاه کنده‌اند. 22
जब तू अचानक उन पर फ़ौज चढ़ा लाएगा, उनके घरों से मातम की सदा निकले! क्यूँकि उन्होंने मुझे फँसाने को गढ़ा खोदा और मेरे पाँव के लिए फन्दे लगाए।
خداوندا، تو از تمام توطئه‌های ایشان برای کشتن من آگاهی؛ پس آنها را نبخش و گناهشان را از نظرت دور مدار؛ ایشان را به هنگام خشم و غضب خود، داوری فرما و در حضور خود هلاک نما!» 23
लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तू उनकी सब साज़िशों को जो उन्होंने मेरे क़त्ल पर कीं जानता है। उनकी बदकिरदारी को मु'आफ़ न कर, और उनके गुनाह को अपनी नज़र से दूर न कर; बल्कि वह तेरे सामने पस्त हों, अपने क़हर के वक़्त तू उनसे यूँ ही कर।

< ارمیا 18 >