< دوم تواریخ 25 >

اَمَصیا بیست و پنج ساله بود که پادشاه شد و بیست و نه سال در اورشلیم سلطنت کرد. مادرش یهوعدان اورشلیمی بود. 1
अमसियाह पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने उनतीस साल येरूशलेम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम यहूअद्दान था, जो येरूशलेम की थी।
او هر چه در نظر خداوند پسندیده بود انجام می‌داد، اما نه با تمام دل و جان. 2
उसने वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है, लेकिन कामिल दिल से नहीं।
وقتی اَمَصیا زمام امور را در دست گرفت افرادی را که پدرش را کشته بودند، از بین برد، 3
जब वह हुकूमत पर जम गया तो उसने अपने उन मुलाज़िमों को, जिन्होंने उसके बाप बादशाह को मार डाला था क़त्ल किया,
ولی فرزندانشان را نکشت زیرا خداوند در تورات موسی امر فرموده بود که نه پدران برای گناه پسران کشته شوند و نه پسران به سبب گناه پدران، بلکه هر کس برای گناه خودش مجازات شود. 4
लेकिन उनकी औलाद को जान से नहीं मारा बल्कि उसी के मुताबिक़ किया जो मूसा की किताब तौरेत में लिखा है, जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि बेटों के बदले बाप — दादा न मारे जाएँ, और न बाप — दादा के बदले बेटे मारे जाएँ, बल्कि हर आदमी अपने ही गुनाह के लिए मारा जाए।
اَمَصیا مردان خاندانهای یهودا و بنیامین را احضار کرد و از آنها سپاهی تشکیل داده، آنان را به چند دسته تقسیم کرد و برای هر دسته فرماندهی تعیین نمود. سپاه او از سیصد هزار مرد بیست ساله و بالاتر تشکیل شده بود که همه تعلیم دیده بودند و در به کار بردن نیزه و سپر، بسیار مهارت داشتند. 5
इसके 'अलावा अमसियाह ने यहूदाह को इकट्ठा किया, और उनको उनके आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ तमाम मुल्क — ए — यहूदाह और बिनयमीन में हज़ार हज़ार के सरदारों और सौ सौ के सरदारों के नीचे ठहराया; और उनमें से जिनकी उम्र बीस साल या उससे ऊपर थी उनको शुमार किया, और उनको तीन लाख चुने हुए जवान पाया जो जंग में जाने के क़ाबिल और बर्छी और ढाल से काम ले सकते थे।
علاوه بر این عده، با پرداخت سه هزار و چهارصد کیلوگرم نقره، صد هزار سرباز دیگر از اسرائیل اجیر کرد. 6
और उसने सौ क़िन्तार चाँदी देकर इस्राईल में से एक लाख ज़बरदस्त सूर्मा नौकर रखे।
اما مرد خدایی نزد اَمَصیا آمده، گفت: «ای پادشاه، سربازان اسرائیلی را اجیر نکن، زیرا خداوند با آنها نیست. او این افرایمی‌ها را کمک نخواهد کرد. 7
लेकिन एक नबी ने उसके पास आकर कहा, “ऐ बादशाह, इस्राईल की फ़ौज तेरे साथ जाने न पाए, क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल या'नी सब बनी इफ़्राईम के साथ नहीं है।
اگر بگذاری آنها همراه سپاهیان تو به جنگ بروند، هر چند هم خوب بجنگید ولی عاقبت شکست خواهید خورد. زیرا خداست که می‌تواند انسان را پیروز سازد یا شکست دهد.» 8
लेकिन अगर तू जाना ही चाहता है तो जा और लड़ाई के लिए मज़बूत हो, ख़ुदा तुझे दुश्मनों के आगे गिराएगा क्यूँकि ख़ुदा में संभालनेऔर गिराने की ताक़त है।”
اَمَصیا گفت: «پس پولی که بابت اجیر کردن آنها پرداخته‌ام چه می‌شود؟» آن مرد خدا جواب داد: «خداوند قادر است بیش از این به تو بدهد.» 9
अमसियाह ने उस नबी से कहा, “लेकिन सौ क़िन्तारों के लिए जो मैंने इस्राईल के लश्कर को दिए, हम क्या करें?” उस नबी ने जवाब दिया, “ख़ुदावन्द तुझे इससे बहुत ज़्यादा दे सकता है।”
پس اَمَصیا سربازان اجیر شدهٔ اسرائیلی را مرخص کرد تا به خانه‌هایشان در افرایم بازگردند. این موضوع خشم آنها را برانگیخت و آنها در شدت غضب به خانه‌های خود بازگشتند. 10
तब अमसियाह ने उस लश्कर को जो इफ़्राईम में से उसके पास आया था जुदा किया, ताकि वह फिर अपने घर जाएँ। इस वजह से उनका गु़स्सा यहूदाह पर बहुत भड़का, और वह बहुत गु़स्से में घर को लौटे।
آنگاه اَمَصیا با شجاعت سپاه خود را به «درهٔ نمک» برد و در آنجا ده هزار نفر از ادومی‌ها را کشت. 11
और अमसियाह ने हौसला बाँधा और अपने लोगों को लेकर वादी — ए — शोर को गया, और बनी श'ईर में से दस हज़ार को मार दिया;
سپاه اَمَصیا ده هزار نفر دیگر را گرفته، به بالای پرتگاهی بردند و آنها را از آنجا به زیر انداختند که بر روی تخته سنگهای پایین افتاده، متلاشی شدند. 12
और दस हज़ार को बनी यहूदाह ज़िन्दा पकड़ कर ले गए, और उनको एक चट्टान की चोटी पर पहुँचाया और उस चट्टान की चोटी पर से उनको नीचे गिरा दिया, ऐसा कि सब के सब टुकड़े टुकड़े हो गए।
در این ضمن، سربازان اسرائیلی که اَمَصیا آنها را به وطنشان بازگردانده بود، به شهرهای یهودا که بین بیت‌حورون و سامره قرار داشتند، هجوم بردند و سه هزار نفر را کشتند و غنیمت بسیار با خود بردند. 13
लेकिन उस लश्कर के लोग जिनको अमसियाह ने लौटा दिया था कि उसके साथ जंग में न जाएँ, सामरिया से बैतहौरून तक यहूदाह के शहरों पर टूट पड़े और उनमें से तीन हज़ार जवानों को मार डाला और बहुत सी लूट ले गए।
اَمَصیای پادشاه هنگام مراجعت از کشتار ادومی‌ها، بتهایی را که از دشمن گرفته و با خود آورده بود به عنوان خدایان بر پا داشت و آنها را سجده نمود و برای آنها بخور سوزانید. 14
जब अमसियाह अदोमियों के क़िताल से लौटा, तो बनी श'ईर के मा'बूदों को लेता आया और उनको नस्ब किया ताकि वह उसके मा'बूद हों, और उनके आगे सिज्दा किया और उनके आगे ख़ुशबू जलाया।
این عمل، خداوند را به خشم آورد و او یک نبی نزد اَمَصیا فرستاد. آن نبی به اَمَصیا گفت: «چرا خدایانی را پرستش کردی که حتی نتوانستند قوم خود را از دست تو برهانند؟» 15
इसलिए ख़ुदावन्द का ग़ज़ब अमसियाह पर भड़का और उसने एक नबी को उसके पास भेजा, जिसने उससे कहा, “तू उन लोगों के मा'बूदों का तालिब क्यूँ हुआ, जिन्होंने अपने ही लोगों को तेरे हाथ से न छुड़ाया?”
پادشاه جواب داد: «مگر از تو نظر خواسته‌ام؟ ساکت شو! والا دستور می‌دهم تو را بکشند!» آن نبی این اخطار را به پادشاه داد و از نزد او رفت: «حال می‌دانم که خدا تصمیم گرفته تو را از میان بردارد، زیرا این بتها را سجده نموده‌ای و نصیحت مرا نپذیرفتی.» 16
वह उससे बातें कर ही रहा था कि उसने उससे कहा कि क्या हम ने तुझे बादशाह का सलाहकार बनाया है? चुप रह, तू क्यूँ मार खाए? तब वह नबी यह कहकर चुप हो गया कि मैं जानता हूँ कि ख़ुदा का इरादा यह है कि तुझे हलाक करे, इसलिए कि तू ने यह किया है और मेरी सलाह नहीं मानी।
اَمَصیا، پادشاه یهودا با مشورت مشاوران خود به یهوآش، پادشاه اسرائیل (پسر یهوآحاز، نوهٔ ییهو) اعلان جنگ داد. 17
तब यहूदाह के बादशाह अमसियाह ने सलाह करके इस्राईल के बादशाह यूआस बिन यहूआख़ज़ बिन याहू के पास कहला भेजा कि ज़रा आ तो, हम एक दूसरे का मुक़ाबिला करें।
اما یهوآش پادشاه اسرائیل با این مَثَل جواب اَمَصیا پادشاه یهودا را داد: «روزی در لبنان، یک بوتهٔ خار به یک درخت سرو آزاد گفت:”دخترت را به پسر من به زنی بده.“ولی درست در همین وقت حیوانی وحشی از آنجا عبور کرد و آن خار را پایمال نمود. 18
इसलिए इस्राईल के बादशाह यूआस ने यहूदाह के बादशाह अमसियाह को कहला भेजा, कि लुबनान के ऊँट — कटारे ने लुबनान के देवदार को पैग़ाम भेजा कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में एक जंगली दरिंदा जो लुबनान में रहता था, गुज़रा और उसने ऊँटकटारे को रौंद डाला।
تو از فتح ادوم مغرور شده‌ای و به خود می‌بالی، اما به تو نصیحت می‌کنم که در سرزمینت بمانی و با من درگیر نشوی. چرا می‌خواهی کاری کنی که به زیان تو و مردم یهودا تمام شود؟» 19
तू कहता है, “देख मैंने अदोमियों को मारा, इसलिए तेरे दिल में घमण्ड समाया है कि फ़ख़्र करे; घर ही में बैठा रह तू क्यूँ अपने नुक़सान के लिए दस्तअन्दाज़ी करता है कि तू भी गिरे और तेरे साथ यहूदाह भी?”
ولی اَمَصیا به حرفهای او گوش نداد زیرا خدا ترتیبی داده بود که او را به سبب پرستش بتهای ادوم به دست دشمن نابود کند. 20
लेकिन अमसियाह ने न माना; क्यूँकि यह ख़ुदा की तरफ़ से था कि वह उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दे, इसलिए कि वह अदोमियों के मा'बूदों के तालिब हुए थे।
پس یهوآش، پادشاه اسرائیل سپاه خود را آمادهٔ جنگ با امصیا پادشاه یهودا کرد. جنگ در بیت‌شمس، یکی از شهرهای یهودا، درگرفت. 21
इसलिए इस्राईल का बादशाह यूआस चढ़ आया, और वह और शाह — ए — यहूदाह अमसियाह यहूदाह के बैतशम्स में एक दूसरे के मुक़ाबिल हुए।
سپاه یهودا شکست خورد و سربازان به شهرهای خود فرار کردند. 22
और यहूदाह ने इस्राईल के मुक़ाबिले में शिकस्त खाई, और उनमें से हर एक अपने डेरे को भागा।
یهوآش (پادشاه اسرائیل)، اَمَصیا پادشاهِ مغلوبِ یهودا را اسیر کرده، به اورشلیم برد. یهوآش دستور داد که حصار اورشلیم را از دروازهٔ افرایم تا دروازهٔ زاویه که طولش حدود دویست متر بود در هم بکوبند. 23
और शाह — ए — इस्राईल यूआस ने शाह — ए — यहूदाह अमसियाह बिन यूआस बिन यहूआखज़ को बैतशम्स में पकड़ लिया और उसे येरूशलेम में लाया, और येरूशलेम की दीवार इफ़्राईम के फाटक से कोने के फाटक तक चार सौ हाथ ढा दी।
او عده‌ای را گروگان گرفت و تمام طلا و نقره و لوازم خانهٔ خدا را که نگهداری آنها به عهدهٔ عوبید ادوم بود و نیز موجودی خزانه‌های کاخ سلطنتی را برداشته، به سامره بازگشت. 24
और सारे सोने और चाँदी और सब बर्तनों को जो 'ओबेद अदोम के पास ख़ुदा के घर में मिले, और शाही महल के खज़ानों और कफ़ीलों को भी लेकर सामरिया को लौटा।
اَمَصیا پادشاه یهودا بعد از مرگ یهوآش پانزده سال دیگر هم زندگی کرد. 25
और शाह — ए — यहूदाह अमसियाह बिन यूआस, शाह — ए — इस्राईल यूआस बिन यहूआख़ज़ के मरने के बाद पंद्रह साल ज़िन्दा रहा।
شرح بقیهٔ رویدادهای دوران سلطنت اَمَصیا، از ابتدا تا انتها، در کتاب «تاریخ پادشاهان یهودا و اسرائیل» نوشته شده است. 26
अमसियाह के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक, क्या वह यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में क़लमबन्द नहीं हैं?
اَمَصیا از پیروی خداوند برگشت و در اورشلیم علیه او توطئه چیدند و او به لاکیش گریخت، ولی دشمنانش او را تعقیب کرده در آنجا او را کشتند؛ 27
जब से अमसियाह ख़ुदावन्द की पैरवी से फिरा, तब ही से येरूशलेम के लोगों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की, इसलिए वह लकीस को भाग गया। लेकिन उन्होंने लकीस में उसके पीछे लोग भेजकर उसे वहाँ क़त्ल किया।
سپس جنازه‌اش را روی اسب گذاشته، به اورشلیم آوردند و او را در آرامگاه سلطنتی دفن کردند. 28
और वह उसे घोड़ों पर ले आए, और यहूदाह के शहर में उसके बाप — दादा के साथ उसे दफ़्न किया।

< دوم تواریخ 25 >