< اول پادشاهان 17 >
روزی یک نبی به نام ایلیا که از اهالی تشبی جلعاد بود، به اَخاب پادشاه گفت: «به خداوند، خدای زندهٔ اسرائیل، یعنی به همان خدایی که خدمتش میکنم قسم که تا چند سال شبنم و باران بر زمین نخواهد آمد مگر اینکه من درخواست کنم.» | 1 |
एलियाह तिशबी ने जो जिल'आद के परदेसियों में से था, अख़ीअब से कहा कि “ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हयात की क़सम, जिसके सामने मैं खड़ा हूँ, इन बरसों में न ओस पड़ेगी न बारिश होगी, जब तक मैं न कहूँ।”
پس خداوند به ایلیا فرمود: | 2 |
और ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ कि
«برخیز و به طرف مشرق برو و کنار نهر کریت، در شرق رود اردن خود را پنهان کن. | 3 |
“यहाँ से चल दे और मशरिक़ की तरफ़ अपना रुख कर और करीत के नाले के पास, जो यरदन के सामने है, जा छिप।
در آنجا از آب نهر بنوش و خوراکی را که کلاغها به فرمان من برای تو میآورند، بخور.» | 4 |
और तू उसी नाले में से पीना, और मैंने कौवों को हुक्म किया है कि वह तेरी परवरिश करें।”
ایلیای نبی به دستور خداوند عمل کرد و در کنار نهر کریت ساکن شد. | 5 |
तब उसने जाकर ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ किया, क्यूँकि वह गया और करीत के नाले के पास जो यरदन के सामने है रहने लगा।
هر صبح و شام کلاغها برایش نان و گوشت میآوردند و او از آب نهر مینوشید. | 6 |
और कौवे उसके लिए सुबह को रोटी और गोश्त, और शाम को भी रोटी और गोश्त लाते थे, और वह उस नाले में से पिया करता था।
اما چندی بعد به علّت نبودن باران نهر خشکید. | 7 |
और कुछ 'अरसे के बाद वह नाला सूख गया इसलिए कि उस मुल्क में बारिश नहीं हुई थी।
آنگاه خداوند به ایلیا فرمود: | 8 |
तब ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ, कि
«برخیز و به شهر صرفه که نزدیک شهر صیدون است برو و در آنجا ساکن شو. من در آنجا به بیوهزنی دستور دادهام خوراک تو را فراهم سازد.» | 9 |
“उठ और सैदा के सारपत को जा और वहीं रह। देख, मैंने एक बेवा को वहाँ हुक्म दिया है कि तेरी परवरिश करे।”
پس ایلیا از آنجا به صرفه رفت. وقتی به دروازهٔ شهر رسید، بیوهزنی را دید که مشغول جمع کردن هیزم است. ایلیا از او کمی آب خواست. | 10 |
तब वह उठकर सारपत को गया, और जब वह शहर के फाटक पर पहुँचा तो देखा, कि एक बेवा वहाँ लकड़ियाँ चुन रही है; तब उसने उसे पुकार कर कहा, “ज़रा मुझे थोड़ा सा पानी किसी बर्तन में ला दे कि मैं पियूं।”
وقتی آن زن به راه افتاد تا آب بیاورد، ایلیا او را صدا زد و گفت: «خواهش میکنم یک لقمه نان هم بیاور.» | 11 |
जब वह लेने चली, तो उसने पुकार कर कहा, “ज़रा अपने हाथ में एक टुकड़ा रोटी मेरे वास्ते लेती आना।”
اما بیوهزن گفت: «به خداوند، خدای زندهات قسم که در خانهام حتی یک تکه نان هم پیدا نمیشود! فقط یک مشت آرد در ظرف و مقدار کمی روغن در ته کوزه مانده است. الان هم کمی هیزم جمع میکردم تا ببرم نان بپزم و با پسرم بخورم. این آخرین غذای ما خواهد بود و بعد از آن از گرسنگی خواهیم مرد.» | 12 |
उसने कहा, “ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की हयात की कसम, मेरे यहाँ रोटी नहीं सिर्फ़ मुट्ठी भर आटा एक मटके में, और थोड़ा सा तेल एक कुप्पी में है। और देख, मैं दो एक लकड़ियाँ चुन रही हूँ, ताकि घर जाकर अपने और अपने बेटे के लिए उसे पकाऊँ, और हम उसे खाएँ, फिर मर जाएँ।”
ایلیا به او گفت: «نترس! برو و آن را بپز. اما اول، از آن آرد نان کوچکی برای من بپز و پیش من بیاور، بعد با بقیهٔ آن برای خودت و پسرت نان بپز. | 13 |
और एलियाह ने उससे कहा, “मत डर; जा और जैसा कहती है कर, लेकिन पहले मेरे लिए एक टिकिया उसमें से बनाकर मेरे पास ले आ; उसके बाद अपने और अपने बेटे के लिए बना लेना।
زیرا خداوند، خدای اسرائیل میفرماید: تا وقتی که باران بر زمین نبارانم، آرد و روغن تو تمام نخواهد شد.» | 14 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है, उस दिन तक जब तक ख़ुदावन्द ज़मीन पर मेंह न बरसाए, न तो आटे का मटका खाली होगा और न तेल की कुप्पी में कमी होगी।”
بیوهزن رفت و مطابق گفتهٔ ایلیا عمل کرد. از آن به بعد، آنها هر چقدر از آن آرد و روغن مصرف میکردند تمام نمیشد، همانطور که خداوند توسط ایلیا فرموده بود. | 15 |
तब उसने जाकर एलियाह के कहने के मुताबिक़ किया, और यह और वह और उसका कुन्बा बहुत दिनों तक खाते रहे।
और ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो उसने एलियाह की ज़रिए' फ़रमाया था, न तो आटे का मटका ख़ाली हुआ और न तेल की कुप्पी में कमी हुई।
مدتی گذشت. یک روز پسر آن بیوهزن بیمار شد. حال او بدتر و بدتر شد و عاقبت مرد. | 17 |
इन बातों के बाद उस 'औरत का बेटा, जो उस घर की मालिक थी, बीमार पड़ा और उसकी बीमारी ऐसी सख़्त हो गई कि उसमें दम बाक़ी न रहा।
زن به ایلیا گفت: «ای مرد خدا، این چه بلایی است که بر سر من آوردی؟ آیا به اینجا آمدهای تا به سبب گناهانم پسرم را بکشی؟» | 18 |
तब वह एलियाह से कहने लगी, ऐ नबी, मुझे तुझ से क्या काम? तू मेरे पास आया है, कि मेरे गुनाह याद दिलाए और मेरे बेटे को मार दे!“
ایلیا به او گفت: «پسرت را به من بده.» آنگاه ایلیا جنازه را برداشت و به بالاخانه، جایی که خودش زندگی میکرد برد و او را روی بستر خود خواباند. | 19 |
उसने उससे कहा, अपना बेटा मुझ को दे।” और वह उसे उसकी गोद से लेकर उसकी बालाखाने पर, जहाँ वह रहता था, ले गया और उसे अपने पलंग पर लिटाया।
سپس با صدای بلند چنین دعا کرد: «ای خداوند، خدای من، چرا این بلا را بر سر این بیوهزن آوردی؟ چرا پسر او را که مرا در خانهاش پناه داده است، کشتی؟» | 20 |
और उसने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, “ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! क्या तू ने इस बेवा पर भी, जिसके यहाँ मैं टिका हुआ हूँ, उसके बेटे को मार डालने से बला नाज़िल की?”
سپس ایلیا سه بار روی جنازهٔ پسر دراز کشید و دعا کرد: «ای خداوند، خدای من، از تو تمنا میکنم که این پسر را زنده کنی!» | 21 |
और उसने अपने आपको तीन बार उस लड़के पर पसार कर ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, “ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि इस लड़के की जान इसमें फिर आ जाए।”
خداوند دعای ایلیا را شنید و پسر را زنده کرد. | 22 |
और ख़ुदावन्द ने एलियाह की फ़रयाद सुनी औए लड़के की जान उसमें फिर आ गई और वह जी उठा।
آنگاه ایلیا پسر را از بالاخانه پایین آورد و به مادرش داد و گفت: «نگاه کن، پسرت زنده است!» | 23 |
तब एलियाह उस लड़के को उठाकर बालाखाने पर से नीचे घर के अन्दर ले गया, और उसे उसकी माँ के ज़िम्मे किया, और एलियाह ने कहा, “देख, तेरा बेटा ज़िन्दा है।”
آن زن به ایلیا گفت: «الان فهمیدم که تو براستی مرد خدا هستی و هر چه میگویی از جانب خداوند است!» | 24 |
तब उस 'औरत ने एलियाह से कहा, “अब मैं जान गई कि तू नबी है, और ख़ुदावन्द का जो कलाम तेरे मुँह में है वह सच है।”