< مزامیر 42 >
برای سالار مغنیان. قصیده بنی قورح چنانکه آهو برای نهرهای آب شدت اشتیاق دارد، همچنانای خدا جان من اشتیاق شدید برای تو دارد. | ۱ 1 |
जैसे हिरनी पानी के नालों को तरसती है, वैसे ही ऐ ख़ुदा! मेरी रूह तेरे लिए तरसती है।
جان من تشنه خداست تشنه خدای حی، که کی بیایم و به حضور خدا حاضر شوم. | ۲ 2 |
मेरी रूह, ख़ुदा की, ज़िन्दा ख़ुदा की प्यासी है। मैं कब जाकर ख़ुदा के सामने हाज़िर हूँगा?
اشکهایم روز و شب نان من میبود، چون تمامی روز مرا میگفتند: «خدای تو کجاست؟» | ۳ 3 |
मेरे आँसू दिन रात मेरी खू़राक हैं; जिस हाल कि वह मुझ से बराबर कहते हैं, तेरा ख़ुदा कहाँ है?
چون این را بیاد میآورم جان خود را بر خود میریزم. چگونه با جماعت میرفتم و ایشان را به خانه خدا پیشروی میکردم، به آواز ترنم و تسبیح در گروه عیدکنندگان. | ۴ 4 |
इन बातों को याद करके मेरा दिल भरआता है, कि मैं किस तरह भीड़ या'नी 'ईद मनाने वाली जमा'अत के साथ, खु़शी और हम्द करता हुआ उनको ख़ुदा के घर में ले जाता था।
ای جانم چرا منحنی شدهای و چرا درمن پریشان گشتهای؟ بر خدا امید دار زیرا که او رابرای نجات روی او باز حمد خواهم گفت. | ۵ 5 |
ऐ मेरी जान, तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि उसके नजात बख़्श दीदार की ख़ातिर मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।
ای خدای من، جانم در من منحنی شد. بنابراین تو را از زمین اردن یاد خواهم کرد، ازکوههای حرمون و از جبل مصغر. | ۶ 6 |
ऐ मेरे ख़ुदा! मेरी जान मेरे अंदर गिरी जाती है, इसलिए मैं तुझे यरदन की सरज़मीन से और हरमून और कोह — ए — मिस्फ़ार पर से याद करता हूँ।
لجه به لجه ندا میدهد از آواز آبشارهای تو جمیع خیزابها وموجهای تو بر من گذشته است. | ۷ 7 |
तेरे आबशारों की आवाज़ से गहराव को पुकारता है। तेरी सब मौजें और लहरें मुझ पर से गुज़र गई।
در روز خداوندرحمت خود را خواهد فرمود. و در شب سرود اوبا من خواهد بود و دعا نزد خدای حیات من. | ۸ 8 |
तोभी दिन को ख़ुदावन्द अपनी शफ़क़त दिखाएगा; और रात को मैं उसका हम्द गाऊँगा, बल्कि अपनी ज़िन्दगी के ख़ुदा से दुआ करूँगा।
به خدا گفتهام: «ای صخره من چرا مرا فراموش کردهای؟» چرا بهسبب ظلم دشمن ماتمکنان ترددبکنم؟ | ۹ 9 |
मैं ख़ुदा से जो मेरी चट्टान है कहूँगा, “तू मुझे क्यूँ भूल गया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से, क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?”
دشمنانم به کوبیدگی در استخوانهایم مرا ملامت میکنند، چونکه همه روزه مرامی گویند: «خدای تو کجاست؟» | ۱۰ 10 |
मेरे मुख़ालिफ़ों की मलामत, जैसे मेरी हड्डियों में तलवार है, क्यूँकि वह मुझ से बराबर कहते हैं, “तेरा ख़ुदा कहाँ है?”
ای جان من چرا منحنی شده و چرا در من پریشان گشتهای؟ بر خدا امید دار زیرا که او را باز حمد خواهم گفت، که نجات روی من و خدای من است. | ۱۱ 11 |
ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अंदर ही अंदर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।