< مزامیر 10 >
ای خداوند چرا دور ایستادهای و خودرا در وقت های تنگی پنهان میکنی؟ | ۱ 1 |
ऐ ख़ुदावन्द तू क्यूँ दूर खड़ा रहता है? मुसीबत के वक़्त तू क्यूँ छिप जाता है?
از تکبر شریران، فقیر سوخته میشود؛ درمشورت هایی که اندیشیدهاند، گرفتار میشوند. | ۲ 2 |
शरीर के गु़रूर की वजह से ग़रीब का तेज़ी से पीछा किया जाता है; जो मन्सूबे उन्होंने बाँधे हैं, वह उन ही में गिरफ़्तार हो जाएँ।
زیرا که شریر به شهوات نفس خود فخر میکند، و آنکه میرباید شکر میگوید و خداوند را اهانت میکند. | ۳ 3 |
क्यूँकि शरीर अपनी जिस्मानी ख़्वाहिश पर फ़ख़्र करता है, और लालची ख़ुदावन्द को छोड़ देता बल्कि उसकी नाक़द्री करता है।
شریر در غرور خود میگوید: «بازخواست نخواهد کرد.» همه فکرهای او اینست که خدایی نیست. | ۴ 4 |
शरीर अपने तकब्बुर में कहता है कि वह पूछताछ नहीं करेगा; उसका ख़याल सरासर यही है कि कोई ख़ुदा नहीं।
راههای او همیشه استوار است. احکام تو از او بلند و بعید است. همه دشمنان خود را به هیچ میشمارد. | ۵ 5 |
उसकी राहें हमेशा बराबर हैं, तेरे अहकाम उसकी नज़र से दूर — ओ — बुलन्द हैं; वह अपने सब मुख़ालिफ़ों पर फूंकारता है।
در دل خود گفته است: «هرگزجنبش نخواهم خورد، و دور به دور بدی رانخواهم دید.» | ۶ 6 |
वह अपने दिल में कहता है, “मैं जुम्बिश नहीं खाने का; नसल दर नसल मुझ पर कभी मुसीबत न आएगी।”
دهن او از لعنت و مکر و ظلم پر است؛ زیرزبانش مشقت و گناه است؛ | ۷ 7 |
उसका मुँह ला'नत — ओ — दग़ा और ज़ुल्म से भरा है; शरारत और बदी उसकी ज़बान पर हैं।
در کمینهای دهات مینشیند؛ در جایهای مخفی بیگناه را میکشد؛ چشمانش برای مسکینان مراقب است؛ | ۸ 8 |
वह देहात की घातों में बैठता है, वह पोशीदा मक़ामों में बेगुनाह को क़त्ल करता है; उसकी आँखें बेकस की घात में लगी रहती हैं।
در جای مخفی مثل شیر در بیشه خود کمین میکند؛ به جهت گرفتن مسکین کمین میکند؛ فقیر را به دام خود کشیده، گرفتار میسازد. | ۹ 9 |
वह पोशीदा मक़ाम में शेर — ए — बबर की तरह दुबक कर बैठता है; वह ग़रीब को पकड़ने की घात लगाए रहता है; वह ग़रीब को अपने जाल में फंसा कर पकड़ लेता है।
پس کوفته وزبون میشود؛ و مساکین در زیر جباران اومی افتند. | ۱۰ 10 |
वह दुबकता है, वह झुक जाता है; और बेकस उसके पहलवानों के हाथ से मारे जाते हैं।
در دل خود گفت: «خدا فراموش کرده است؛ روی خود را پوشانیده و هرگزنخواهد دید.» | ۱۱ 11 |
वह अपने दिल में कहता है, “ख़ुदा भूल गया है, वह अपना मुँह छिपाता है; वह हरगिज़ नहीं देखेगा।”
ای خداوند برخیز! ای خدا دست خود رابرافراز! و مسکینان را فراموش مکن. | ۱۲ 12 |
उठ ऐ ख़ुदावन्द! ऐ ख़ुदा अपना हाथ बुलंद कर! ग़रीबों को न भूल।
چراشریر خدا را اهانت کرده، در دل خود میگوید: «تو بازخواست نخواهی کرد؟» | ۱۳ 13 |
शरीर किस लिए ख़ुदा की नाक़द्री करता है और अपने दिल में कहता है कि तू पूछताछ ना करेगा?
البته دیدهای زیرا که تو بر مشقت و غم مینگری، تا بهدست خود مکافات برسانی. مسکین امر خویش را به توتسلیم کرده است. مددکار یتیمان، تو هستی. | ۱۴ 14 |
तूने देख लिया है क्यूँकि तू शरारत और बुग्ज़ देखता है ताकि अपने हाथ से बदला दे। बेकस अपने आप को तेरे सिपुर्द करता है तू ही यतीम का मददगार रहा है।
بازوی گناهکار را بشکن. و اما شریر را ازشرارت او بازخواست کن تا آن را نیابی. | ۱۵ 15 |
शरीर का बाज़ू तोड़ दे। और बदकार की शरारत को जब तक बर्बाद न हो ढूँढ़ — ढूँढ़ कर निकाल।
خداوند پادشاه است تا ابدالاباد. امتها اززمین او هلاک خواهند شد. | ۱۶ 16 |
ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा बादशाह है। क़ौमें उसके मुल्क में से हलाक हो गयीं।
ای خداوندمسالت مسکینان را اجابت کردهای، دل ایشان رااستوار نمودهای و گوش خود را فراگرفتهای، | ۱۷ 17 |
ऐ ख़ुदावन्द तूने हलीमों का मुद्दा'सुन लिया है तू उनके दिल को तैयार करेगा — तू कान लगा कर सुनेगा
تایتیمان و کوفته شدگان را دادرسی کنی. انسانی که از زمین است، دیگر نترساند. | ۱۸ 18 |
कि यतीम और मज़लूम का इन्साफ़ करे ताकि इंसान जो ख़ाक से है फिर ना डराए।