< داوران 11 >

و یفتاح جلعادی مردی زورآور، شجاع، وپسر فاحشه‌ای بود، و جلعاد یفتاح را تولیدنمود. ۱ 1
और जिल'आदी इफ़्ताह बड़ा ज़बरदस्त सूर्मा और कस्बी का बेटा था; और जिल'आद से इफ़्ताह पैदा हुआ था।
و زن جلعاد پسران برای وی زایید، وچون پسران زنش بزرگ شدند یفتاح را بیرون کرده، به وی گفتند: «تو در خانه پدر ما میراث نخواهی یافت، زیرا که تو پسر زن دیگر هستی.» ۲ 2
और जिल'आद की बीवी के भी उससे बेटे हुए, और जब उसकी बीवी के बेटे बड़े हुए, तो उन्होंने इफ़्ताह को यह कहकर निकाल दिया कि हमारे बाप के घर में तुझे कोई मीरास नहीं मिलेगी, क्यूँकि तू ग़ैर 'औरत का बेटा है।
پس یفتاح از حضور برادران خود فرار کرده، درزمین طوب ساکن شد، و مردان باطل نزد یفتاح جمع شده، همراه وی بیرون می‌رفتند. ۳ 3
तब इफ़्ताह अपने भाइयों के पास से भाग कर तोब के मुल्क में रहने लगा और इफ़्ताह के पास शुहदे जमा' हो गए, और उसके साथ फिरने लगे।
و واقع شد بعد از مرور ایام که بنی عمون بااسرائیل جنگ کردند. ۴ 4
और कुछ 'अरसे के बाद बनी 'अम्मून ने बनी — इस्राईल से जंग छेड़ दी।
و چون بنی عمون بااسرائیل جنگ کردند، مشایخ جلعاد رفتند تایفتاح را از زمین طوب بیاروند. ۵ 5
और जब बनी 'अम्मून बनी — इस्राईल से लड़ने लगे, तो जिल'आदी बुज़ुर्ग चले कि इफ़्ताह को तोब के मुल्क से ले आएँ।
و به یفتاح گفتندبیا سردار ما باش تا با بنی عمون جنگ نماییم.» ۶ 6
इसलिए वह इफ़्ताह से कहने लगे कि हम बनी 'अम्मून से लड़ें।
یفتاح به مشایخ جلعاد گفت: «آیا شما به من بغض ننمودید؟ و مرا از خانه پدرم بیرون نکردید؟ و الان چونکه در تنگی هستید چرا نزدمن آمده‌اید؟» ۷ 7
और इफ़्ताह ने जिल'आदी बुज़ुगों से कहा, “क्या तुम ने मुझ से 'अदावत करके मुझे मेरे बाप के घर से निकाल नहीं दिया? इसलिए अब जो तुम मुसीबत में पड़ गए हो तो मेरे पास क्यूँ आए?”
مشایخ جلعاد به یفتاح گفتند: «از این سبب الان نزد تو برگشته‌ایم تا همراه ما آمده، بابنی عمون جنگ نمایی، و بر ما و بر تمامی ساکنان جلعاد سردار باشی.» ۸ 8
जिल'आदी बुज़ुर्गों ने इफ़्ताह से कहा कि अब हम ने फिर इसलिए तेरी तरफ़ रुख़ किया है, कि तू हमारे साथ चलकर बनी 'अम्मून से जंग करे; और तू ही जिल'आद के सब बाशिंदों पर हमारा हाकिम होगा।
یفتاح به مشایخ جلعادگفت: «اگر مرا برای جنگ کردن با بنی عمون بازآورید و خداوند ایشان را به‌دست من بسپارد، آیامن سردار شما خواهم بود.» ۹ 9
और इफ़्ताह ने जिल'आदी बुज़ुर्गों से कहा, “अगर तुम मुझे बनी 'अम्मून से लड़ने को मेरे घर ले चलो, और ख़ुदावन्द उनको मेरे हवाले कर दे, तो क्या मैं तुम्हारा हाकिम हूँगा?”
و مشایخ جلعاد به یفتاح گفتند: «خداونددر میان ما شاهد باشد که البته برحسب سخن توعمل خواهیم نمود. ۱۰ 10
जिल'आदी बुज़ुर्गों ने इफ़्ताह को जवाब दिया कि ख़ुदावन्द हमारे बीच गवाह हो, यक़ीनन जैसा तूने कहा, हम वैसा ही करेंगे।
پس یفتاح با مشایخ جلعاد رفت و قوم او را بر خود رئیس و سردارساختند، و یفتاح تمام سخنان خود را به حضورخداوند در مصفه گفت. ۱۱ 11
तब इफ़्ताह जिल'आदी बुज़ुर्गों के साथ रवाना हुआ, और लोगों ने उसे अपना हाकिम और सरदार बनाया; और इफ़्ताह ने मिस्फ़ाह में ख़ुदावन्द के आगे अपनी सब बातें कह सुनाई।
و یفتاح قاصدان نزد ملک بنی عمون فرستاده، گفت: «تو را با من چه‌کار است که نزد من آمده‌ای تا با زمین من جنگ نمایی؟» ۱۲ 12
और इफ़्ताह ने बनी 'अम्मून के बादशाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि तुझे मुझ से क्या काम, जो तू मेरे मुल्क में लड़ने को मेरी तरफ़ आया है?
ملک بنی عمون به قاصدان یفتاح گفت: «از این سبب که اسرائیل چون از مصر بیرون آمدند زمین مرا ازارنون تا یبوق و اردن گرفتند، پس الان آن زمینهارا به سلامتی به من رد نما.» ۱۳ 13
बनी 'अम्मून के बादशाह ने इफ़्ताह के क़ासिदों को जवाब दिया, “इसलिए कि जब इस्राईली मिस्र से निकल कर आए, तो अरनून से यब्बूक़ और यरदन तक जो मेरा मुल्क था उसे उन्होंने छीन लिया; इसलिए अब तू उन 'इलाकों को सुलह — ओ — सलामती से मुझे लौटा दे।”
و یفتاح بار دیگر قاصدان نزد ملک بنی عمون فرستاد. ۱۴ 14
तब इफ़्ताह ने फिर क़ासिदों को बनी 'अम्मून के बादशाह के पास रवाना किया,
و او را گفت که «یفتاح چنین می‌گوید: اسرائیل زمین موآب و زمین بنی عمون را نگرفت. ۱۵ 15
और यह कहला भेजा कि इफ़्ताह यूँ कहता है कि; इस्राईलियों ने न तो मोआब का मुल्क और न बनी 'अम्मोन का मुल्क छीना;
زیرا که چون اسرائیل از مصر بیرون آمدند، در بیابان تا بحر قلزم سفر کرده، به قادش رسیدند.» ۱۶ 16
बल्कि इस्राईली जब मिस्र से निकले और वीराने छानते हुए बहर — ए — कु़लजु़म तक आए और क़ादिस में पहुँचे,
و اسرائیل رسولان نزد ملک ادوم فرستاده، گفتند: «تمنا اینکه از زمین تو بگذریم. اما ملک ادوم قبول نکرد، و نزد ملک موآب نیز فرستادند و او راضی نشد، پس اسرائیل در قادش ماندند. ۱۷ 17
तो इस्राईलियों ने अदोम के बादशाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि हम को ज़रा अपने मुल्क से होकर गुज़र जाने दे, लेकिन अदोम का बादशाह न माना। इसी तरह उन्होंने मोआब के बादशाह को कहला भेजा, और वह भी राज़ी न हुआ। चुनाँचे इस्राईली क़ादिस में रहे।
پس در بیابان سیر کرده، زمین ادوم و زمین موآب را دور زدند و به‌جانب شرقی زمین موآب آمده، به آن طرف ارنون اردو زدند، وبه حدود موآب داخل نشدند، زیرا که ارنون حدموآب بود. ۱۸ 18
तब वह वीराने में होकर चले, और अदोम के मुल्क और मोआब के मुल्क के बाहर बाहर चक्कर काट कर मोआब के मुल्क के मशरिक़ की तरफ़ आए, और अरनून के उस पार डेरे डाले, पर मोआब की सरहद में दाख़िल न हुए, इसलिए कि मोआब की सरहद अरनून था।
و اسرائیل رسولان نزد سیحون، ملک اموریان، ملک حشبون، فرستادند، واسرائیل به وی گفتند: تمنا اینکه از زمین تو به مکان خود عبور نماییم. ۱۹ 19
फिर इस्राईलियों ने अमोरियों के बादशाह सीहोन के पास जो हस्बोन का बादशाह था, क़ासिद रवाना किए; और इस्राईलियों ने उसे कहला भेजा कि 'हम को ज़रा इजाज़त दे दे, कि तेरे मुल्क में से होकर अपनी जगह को चले जाएँ।
اما سیحون بر اسرائیل اعتماد ننمود تا از حدود او بگذرند، بلکه سیحون تمامی قوم خود را جمع کرده، در یاهص اردوزدند و با اسرائیل جنگ نمودند. ۲۰ 20
लेकिन सीहोन ने इस्राईलियों का इतना ऐ'तबार न किया कि उनको अपनी सरहद से गुज़रने दे, बल्कि सीहोन अपने सब लोगों को जमा' करके यहसा में ख़ेमाज़न हुआ और इस्राईलियों से लड़ा।
و یهوه خدای اسرائیل سیحون و تمامی قومش را به‌دست اسرائیل تسلیم نمود که ایشان را شکست دادند، پس اسرائیل تمامی زمین اموریانی که ساکن آن ولایت بودند در تصرف آوردند. ۲۱ 21
और ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने सीहोन और उसके सारे लश्कर को इस्राईलियों के क़ब्ज़े में कर दिया, और उन्होंने उनको मार लिया; इसलिए इस्राईलियों ने अमोरियों के जो वहाँ के बाशिंदे थे, सारे मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया।
و تمامی حدود اموریان را از ارنون تا بیوق و از بیابان تااردن به تصرف آوردند. ۲۲ 22
और वह अरनून से यब्बूक तक, और वीरान से यरदन तक अमोरियों की सब सरहदों पर क़ाबिज़ हो गए।
پس حال یهوه، خدای اسرائیل، اموریان را از حضور قوم خود اسرائیل اخراج نموده است، و آیا تو آنها را به تصرف خواهی آورد؟ ۲۳ 23
तब ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने अमोरियों को उनके मुल्क से अपनी क़ौम इस्राईल के सामने से ख़ारिज किया; इसलिए क्या तू अब उस पर क़ब्ज़ा करने पाएगा?
آیا آنچه خدای تو، کموش به تصرف تو بیاورد، مالک آن نخواهی شد؟ وهمچنین هرکه را یهوه، خدای ما از حضور مااخراج نماید آنها را مالک خواهیم بود. ۲۴ 24
क्या जो कुछ तेरा मा'बूद कमोस तुझे क़ब्ज़ा करने को दे, तू उस पर क़ब्ज़ा न करेगा? इसलिए जिस जिस को ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमारे सामने से ख़ारिज कर दिया है, हम भी उनके मुल्क पर क़ब्ज़ा करेंगे।
و حال آیا تو از بالاق بن صفور، ملک موآب بهتر هستی وآیا او با اسرائیل هرگز مقاتله کرد یا با ایشان جنگ نمود؟ ۲۵ 25
और क्या तू सफ़ोर के बेटे बलक़ से जो मोआब का बादशाह था, कुछ बेहतर है? क्या उसने इस्राईलियों से कभी झगड़ा किया या कभी उन से लड़ा?
هنگامی که اسرائیل در حشبون ودهاتش و عروعیر و دهاتش و در همه شهرهایی که بر کناره ارنون است، سیصد سال ساکن بودند پس در آن مدت چرا آنها را باز نگرفتید؟ ۲۶ 26
जब इस्राईली हस्बोन और उसके क़स्बों, और 'अरो'ईर और उसके क़स्बों और उन सब शहरों में जो अरनून के किनारे — किनारे हैं तीन सौ बरस से बसे हैं, तो इस 'अरसे में तुम ने उनको क्यूँ न छुड़ा लिया?
من به تو گناه نکردم بلکه تو به من بدی کردی که با من جنگ می‌نمایی. پس یهوه که داور مطلق است امروز در میان بنی‌اسرائیل و بنی عمون داوری نماید.» ۲۷ 27
ग़रज़ मैंने तेरी ख़ता नहीं की, बल्कि तेरा मुझ से लड़ना तेरी तरफ़ से मुझ पर ज़ुल्म है; इसलिए ख़ुदावन्द ही जो मुन्सिफ़ है, बनी — इस्राईल और बनी 'अम्मोन के बीच आज इन्साफ़ करे।
اما ملک بنی عمون سخن یفتاح را که به او فرستاده بود، گوش نگرفت. ۲۸ 28
लेकिन बनी 'अम्मोन के बादशाह ने इफ़्ताह की यह बातें, जो उसने उसे कहला भेजी थीं न मानीं।
و روح خداوند بر یفتاح آمد و او از جلعادو منسی گذشت و از مصفه جلعاد عبور کرد و ازمصفه جلعاد به سوی بنی عمون گذشت. ۲۹ 29
तब ख़ुदावन्द की रूह इफ़्ताह पर नाज़िल हुई, और वह जिल'आद और मनस्सी से गुज़र कर जिल'आद के मिस्फ़ाह में आया; और जिल'आद के मिस्फ़ाह से बनी 'अमोन की तरफ़ चला।
ویفتاح برای خداوند نذر کرده، گفت: «اگربنی عمون را به‌دست من تسلیم نمایی، ۳۰ 30
और इफ़्ताह ने ख़ुदावन्द की मिन्नत मानी और कहा कि अगर तू यक़ीनन बनी 'अम्मोन को मेरे हाथ में कर दे;
آنگاه وقتی که به سلامتی از بنی عمون برگردم، هر‌چه به استقبال من از در خانه‌ام بیرون آید از آن خداوندخواهد بود، و آن را برای قربانی سوختنی خواهم گذرانید.» ۳۱ 31
तो जब मैं बनी 'अम्मोन की तरफ़ से सलामत लौटूँगा, उस वक़्त जो कोई पहले मेरे घर के दरवाज़े से निकलकर मेरे इस्तक़बाल को आए वह ख़ुदावन्द का होगा; और मैं उसको सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर पेश करूँगा।
پس یفتاح به سوی بنی عمون گذشت تا با ایشان جنگ نماید، و خداوند ایشان را به‌دست او تسلیم کرد. ۳۲ 32
तब इफ़्ताह बनी 'अम्मून की तरफ़ उनसे लड़ने को गया, और ख़ुदावन्द ने उनको उसके हाथ में कर दिया।
و ایشان را از عروعیرتا منیت که بیست شهر بود و تا آبیل کرامیم به صدمه بسیار عظیم شکست داد، و بنی عمون ازحضور بنی‌اسرائیل مغلوب شدند. ۳۳ 33
और उसने 'अरो'ईर से मिनियत तक जो बीस शहर हैं, और अबील करामीम तक बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ उनको मारा; इस तरह बनी 'अम्मून बनी — इस्राईल से मग़लूब हुए।
و یفتاح به مصفه به خانه خود آمد و اینک دخترش به استقبال وی با دف و رقص بیرون آمدو او دختر یگانه او بود و غیر از او پسری یادختری نداشت. ۳۴ 34
और इफ़्ताह मिस्फ़ाह को अपने घर आया, और उसकी बेटी तबले बजाती और नाचती हुई उसके इस्तक़बाल को निकलकर आई; और वही एक उसकी औलाद थी, उसके सिवा उसके कोई बेटी बेटा न था।
و چون او را دید، لباس خودرا دریده، گفت: «آه‌ای دختر من، مرا بسیار ذلیل کردی و تو یکی از آزارندگان من شدی، زیرا دهان خود را به خداوند باز نموده‌ام و نمی توانم برگردم.» ۳۵ 35
जब उसने उसको देखा, तो अपने कपड़े फाड़ कर कहा, “हाय, मेरी बेटी! तूने मुझे पस्त कर दिया, और जो मुझे दुख देते हैं उनमें से एक तू है; क्यूँकि मैंने ख़ुदावन्द को ज़बान दी है, और मैं पलट नहीं सकता।”
و او وی را گفت: «ای پدر من دهان خود را نزد خداوند باز کردی پس با من چنانکه ازدهانت بیرون آمد عمل نما، چونکه خداوند انتقام تو را از دشمنانت بنی عمون کشیده است.» ۳۶ 36
उसने उससे कहा, “ऐ मेरे बाप, तूने ख़ुदावन्द को ज़बान दी है, इसलिए जो कुछ तेरे मुँह से निकला वही मेरे साथ कर, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने तेरे दुश्मनों बनी 'अम्मून से तेरा इन्तक़ाम लिया।”
و به پدر خود گفت: «این کار به من معمول شود. دو ماه مرا مهلت بده تا رفته بر کوهها گردش نمایم وبرای بکریت خود با رفقایم ماتم گیرم.» ۳۷ 37
फिर उसने अपने बाप से कहा, “मेरे लिए इतना कर दिया जाए कि दो महीने की मोहलत मुझ को मिले, ताकि मैं जाकर पहाड़ों पर अपनी हमजोलियों के साथ अपने कुँवारेपन पर मातम करती फिरूं।”
اوگفت: «برو». و او را دو ماه روانه نمود پس او بارفقای خود رفته، برای بکریتش بر کوهها ماتم گرفت. ۳۸ 38
उसने कहा, “जा!” और उसने उसे दो महीने की रुख्त़स दी, और वह अपनी हमजोलियों को लेकर गई, और पहाड़ों पर अपने कुँवारेपन पर मातम करती फिरी।
و واقع شد که بعد از انقضای دو ماه نزدپدر خود برگشت و او موافق نذری که کرده بود به او عمل نمود، و آن دختر مردی را نشناخت، پس در اسرائیل عادت شد، ۳۹ 39
और दो महीने के बाद वह अपने बाप के पास लौट आई, और वह उसके साथ वैसा ही पेश आया जैसी मिन्नत उसने मानी थी। इस लड़की ने शख़्स का मुँह न देखा था; इसलिए बनी इस्राईल में यह दस्तूर चला,
که دختران اسرائیل سال به سال می‌رفتند تا برای دختر یفتاح جلعادی چهار روز در هر سال ماتم گیرند. ۴۰ 40
कि साल — ब — साल इस्राईली 'औरतें जाकर बरस में चार दिन तक इफ़्ताह जिल'आदी की बेटी की यादगारी करती थीं।

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