< ایّوب 7 >

«آیا برای انسان بر زمین مجاهده‌ای نیست؟ و روزهای وی مثل روزهای مزدور نی؟ ۱ 1
“क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते?
مثل غلام که برای سایه اشتیاق دارد، و مزدوری که منتظر مزد خویش است، ۲ 2
जैसा कोई दास छाया की अभिलाषा करे, या मजदूर अपनी मजदूरी की आशा रखे;
همچنین ماههای بطالت نصیب من شده است، و شبهای مشقت برای من معین گشته. ۳ 3
वैसा ही मैं अनर्थ के महीनों का स्वामी बनाया गया हूँ, और मेरे लिये क्लेश से भरी रातें ठहराई गई हैं।
چون می‌خوابم می‌گویم: کی برخیزم؟ و شب بگذرد و تا سپیده صبح ازپهلو به پهلو گردیدن خسته می‌شوم. ۴ 4
जब मैं लेट जाता, तब कहता हूँ, ‘मैं कब उठूँगा?’ और रात कब बीतेगी? और पौ फटने तक छटपटाते-छटपटाते थक जाता हूँ।
جسدم ازکرمها و پاره های خاک ملبس است، و پوستم تراکیده و مقروح می‌شود. ۵ 5
मेरी देह कीड़ों और मिट्टी के ढेलों से ढकी हुई है; मेरा चमड़ा सिमट जाता, और फिर गल जाता है।
روزهایم از ماکوی جولا تیزروتر است، و بدون امید تمام می‌شود. ۶ 6
मेरे दिन जुलाहे की ढरकी से अधिक फुर्ती से चलनेवाले हैं और निराशा में बीते जाते हैं।
به یاد آور که زندگی من باد است، و چشمانم دیگر نیکویی را نخواهد دید. ۷ 7
“याद कर कि मेरा जीवन वायु ही है; और मैं अपनी आँखों से कल्याण फिर न देखूँगा।
چشم کسی‌که مرامی بیند دیگر به من نخواهد نگریست، وچشمانت برای من نگاه خواهد کرد و نخواهم بود. ۸ 8
जो मुझे अब देखता है उसे मैं फिर दिखाई न दूँगा; तेरी आँखें मेरी ओर होंगी परन्तु मैं न मिलूँगा।
مثل ابر که پراکنده شده، نابود می‌شود. همچنین کسی‌که به گور فرو می‌رود، برنمی آید. (Sheol h7585) ۹ 9
जैसे बादल छटकर लोप हो जाता है, वैसे ही अधोलोक में उतरनेवाला फिर वहाँ से नहीं लौट सकता; (Sheol h7585)
به خانه خود دیگر نخواهد برگشت، و مکانش باز او را نخواهد شناخت. ۱۰ 10
१०वह अपने घर को फिर लौट न आएगा, और न अपने स्थान में फिर मिलेगा।
پس من نیز دهان خود را نخواهم بست. از تنگی روح خود سخن می‌رانم، و از تلخی جانم شکایت خواهم کرد. ۱۱ 11
११“इसलिए मैं अपना मुँह बन्द न रखूँगा; अपने मन का खेद खोलकर कहूँगा; और अपने जीव की कड़वाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूँगा।
آیا من دریا هستم یا نهنگم که بر من کشیکچی قرار می‌دهی؟ ۱۲ 12
१२क्या मैं समुद्र हूँ, या समुद्री अजगर हूँ, कि तू मुझ पर पहरा बैठाता है?
چون گفتم که تخت خوابم مراتسلی خواهد داد و بسترم شکایت مرا رفع خواهد کرد، ۱۳ 13
१३जब जब मैं सोचता हूँ कि मुझे खाट पर शान्ति मिलेगी, और बिछौने पर मेरा खेद कुछ हलका होगा;
آنگاه مرا به خوابها ترسان گردانیدی، و به رویاها مرا هراسان ساختی. ۱۴ 14
१४तब-तब तू मुझे स्वप्नों से घबरा देता, और दर्शनों से भयभीत कर देता है;
به حدی که جانم خفه شدن را اختیار کرد و مرگ رابیشتر از این استخوانهایم. ۱۵ 15
१५यहाँ तक कि मेरा जी फांसी को, और जीवन से मृत्यु को अधिक चाहता है।
کاهیده می‌شوم ونمی خواهم تا به ابد زنده بمانم. مرا ترک کن زیراروزهایم نفسی است. ۱۶ 16
१६मुझे अपने जीवन से घृणा आती है; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता। मेरा जीवनकाल साँस सा है, इसलिए मुझे छोड़ दे।
«انسان چیست که او را عزت بخشی، و دل خود را با او مشغول سازی؟ ۱۷ 17
१७मनुष्य क्या है कि तू उसे महत्त्व दे, और अपना मन उस पर लगाए,
و هر بامداد از اوتفقد نمایی و هرلحظه او را بیازمایی؟ ۱۸ 18
१८और प्रति भोर को उसकी सुधि ले, और प्रति क्षण उसे जाँचता रहे?
تا به کی چشم خود را از من برنمی گردانی؟ مرا واگذار تاآب دهان خود را فرو برم. ۱۹ 19
१९तू कब तक मेरी ओर आँख लगाए रहेगा, और इतनी देर के लिये भी मुझे न छोड़ेगा कि मैं अपना थूक निगल लूँ?
من گناه کردم، اما با تو‌ای پاسبان بنی آدم چه کنم؟ برای چه مرا به جهت خود هدف ساخته‌ای، به حدی که برای خود بار سنگین شده‌ام؟ ۲۰ 20
२०हे मनुष्यों के ताकनेवाले, मैंने पाप तो किया होगा, तो मैंने तेरा क्या बिगाड़ा? तूने क्यों मुझ को अपना निशाना बना लिया है, यहाँ तक कि मैं अपने ऊपर आप ही बोझ हुआ हूँ?
و چرا گناهم رانمی آمرزی، و خطایم را دور نمی سازی؟ زیرا که الان در خاک خواهم خوابید، و مرا تفحص خواهی کرد و نخواهم بود.» ۲۱ 21
२१और तू क्यों मेरा अपराध क्षमा नहीं करता? और मेरा अधर्म क्यों दूर नहीं करता? अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊँगा, और तू मुझे यत्न से ढूँढ़ेगा पर मेरा पता नहीं मिलेगा।”

< ایّوب 7 >