< ایّوب 29 >
و ایوب باز مثل خود را آورده، گفت: | ۱ 1 |
और अय्यूब फिर अपनी मिसाल लाकर कहने लगा,
«کاش که من مثل ماههای پیش میبودم و مثل روزهایی که خدا مرا در آنها نگاه میداشت. | ۲ 2 |
“काश कि मैं ऐसा होता जैसे गुज़रे महीनों में, या'नी जैसा उन दिनों में जब ख़ुदा मेरी हिफ़ाज़त करता था।
هنگامی که چراغ او بر سر من میتابید، و با نور او به تاریکی راه میرفتم. | ۳ 3 |
जब उसका चराग़ मेरे सिर पर रोशन रहता था, और मैं अँधेरे में उसके नूर के ज़रिए' से चलता था।
چنانکه در روزهای کامرانی خود میبودم، هنگامی که سر خدا بر خیمه من میماند. | ۴ 4 |
जैसा में अपनी बरोमन्दी के दिनों में था, जब ख़ुदा की ख़ुशनूदी मेरे ख़ेमे पर थी।
وقتی که قادر مطلق هنوز با من میبود، و فرزندانم به اطراف من میبودند. | ۵ 5 |
जब क़ादिर — ए — मुतलक़ भी मेरे साथ था, और मेरे बच्चे मेरे साथ थे।
حینی که قدمهای خود را باکره میشستم و صخره، نهرهای روغن را برای من می ریخت. | ۶ 6 |
जब मेरे क़दम मख्खन से धुलते थे, और चट्टान मेरे लिए तेल की नदियाँ बहाती थी।
چون به دروازه شهر بیرون میرفتم وکرسی خود را در چهار سوق حاضر میساختم. | ۷ 7 |
जब मैं शहर के फाटक पर जाता और अपने लिए चौक में बैठक तैयार करता था;
جوانان مرا دیده، خود را مخفی میساختند، وپیران برخاسته، میایستادند. | ۸ 8 |
तो जवान मुझे देखते और छिप जाते, और उम्र रसीदा उठ खड़े होते थे।
سروران از سخنگفتن بازمی ایستادند، و دست به دهان خودمی گذاشتند. | ۹ 9 |
हाकिम बोलना बंद कर देते, और अपने हाथ अपने मुँह पर रख लेते थे।
آواز شریفان ساکت میشد وزبان به کام ایشان میچسبید. | ۱۰ 10 |
रईसों की आवाज़ थम जाती, और उनकी ज़बान तालू से चिपक जाती थी।
زیرا گوشی که مرا میشنید، مرا خوشحال میخواند و چشمی که مرا میدید، برایم شهادت میداد. | ۱۱ 11 |
क्यूँकि कान जब मेरी सुन लेता तो मुझे मुबारक कहता था, और आँख जब मुझे देख लेती तो मेरी गावाही देती थी;
زیرافقیری که استغاثه میکرد او را میرهانیدم، ویتیمی که نیز معاون نداشت. | ۱۲ 12 |
क्यूँकि मैं ग़रीब को जब वह फ़रियाद करता छुड़ाता था और यतीमों को भी जिसका कोई मददगार न था।
برکت شخصی که در هلاکت بود، به من میرسید و دل بیوهزن راخوش میساختم. | ۱۳ 13 |
हलाक होनेवाला मुझे दुआ देता था, और मैं बेवा के दिल को ऐसा ख़ुश करता था कि वह गाने लगती थी।
عدالت را پوشیدم و مراملبس ساخت، و انصاف من مثل ردا و تاج بود. | ۱۴ 14 |
मैंने सदाक़त को पहना और उससे मुलब्बस हुआ: मेरा इन्साफ़ गोया जुब्बा और 'अमामा था।
من به جهت کوران چشم بودم، و به جهت لنگان پای. | ۱۵ 15 |
मैं अंधों के लिए आँखें था, और लंगड़ों के लिए पाँव।
برای مسکینان پدر بودم، و دعوایی را که نمی دانستم، تفحص میکردم. | ۱۶ 16 |
मैं मोहताज का बाप था, और मैं अजनबी के मु'आमिले की भी तहक़ीक़ करता था।
دندانهای آسیای شریر را میشکستم و شکار را ازدندانهایش میربودم. | ۱۷ 17 |
मैं नारास्त के जबड़ों को तोड़ डालता, और उसके दाँतों से शिकार छुड़ालेता था।
«و میگفتم، در آشیانه خود جان خواهم سپرد و ایام خویش را مثل عنقا طویل خواهم ساخت. | ۱۸ 18 |
तब मैं कहता था, कि मैं अपने आशियाने में हूँगा और मैं अपने दिनों को रेत की तरह बे शुमार करूँगा,
ریشه من به سوی آبها کشیده خواهدگشت، و شبنم بر شاخه هایم ساکن خواهد شد. | ۱۹ 19 |
मेरी जड़ें पानी तक फैल गई हैं, और रात भर ओस मेरी शाखों पर रहती है;
جلال من در من تازه خواهد شد، و کمانم دردستم نو خواهد ماند. | ۲۰ 20 |
मेरी शौकत मुझ में ताज़ा है, और मेरी कमान मेरे हाथ में नई की जाती है।
مرا میشنیدند و انتظارمی کشیدند، و برای مشورت من ساکت میماندند. | ۲۱ 21 |
'लोग मेरी तरफ़ कान लगाते और मुन्तज़िर रहते, और मेरी मशवरत के लिए ख़ामोश हो जाते थे।
بعد از کلام من دیگر سخن نمی گفتند و قول من بر ایشان فرو میچکید. | ۲۲ 22 |
मेरी बातों के बा'द, वह फिर न बोलते थे; और मेरी तक़रीर उन पर टपकती थी
و برای من مثل باران انتظار میکشیدند و دهان خویش را مثل باران آخرین باز میکردند. | ۲۳ 23 |
वह मेरा ऐसा इन्तिज़ार करते थे जैसा बारिश का; और अपना मुँह ऐसा फैलाते थे जैसे पिछले मेंह के लिए।
اگر بر ایشان میخندیدم باور نمی کردند، و نور چهره مرا تاریک نمی ساختند. | ۲۴ 24 |
जब वह मायूस होते थे तो मैं उन पर मुस्कराता था, और मेरे चेहरे की रोनक की उन्होंने कभी न बिगाड़ा।
راه را برای ایشان اختیار کرده، به ریاست مینشستم، و در میان لشکر، مثل پادشاه ساکن میبودم، و مثل کسیکه نوحهگران را تسلی میبخشد. | ۲۵ 25 |
मैं उनकी राह को चुनता, और सरदार की तरह बैठता, और ऐसे रहता था जैसे फ़ौज में बादशाह, और जैसे वह जो ग़मज़दों को तसल्ली देता है।