< ایّوب 26 >
«شخص بیقوت را چگونه اعانت کردی؟ و بازوی ناتوان را چگونه نجات دادی؟ | ۲ 2 |
“जो बे ताक़त उसकी तूने कैसी मदद की; जिस बाज़ू में कु़व्वत न थी, उसको तू ने कैसा संभाला।
شخص بیحکمت را چه نصیحت نمودی؟ وحقیقت امر را به فراوانی اعلام کردی! | ۳ 3 |
नादान को तूने कैसी सलाह दी, और हक़ीक़ी पहचान ख़ूब ही बताई।
برای که سخنان را بیان کردی؟ و نفخه کیست که از توصادر شد؟ | ۴ 4 |
तू ने जो बातें कहीं? इसलिए किस से और किसकी रूह तुझ में से हो कर निकली?”
ارواح مردگان میلرزند، زیر آبها وساکنان آنها. | ۵ 5 |
“मुर्दों की रूहें पानी और उसके रहने वालों के नीचे काँपती हैं।
هاویه به حضور او عریان است، وابدون را ستری نیست. (Sheol ) | ۶ 6 |
पाताल उसके सामने खुला है, और जहन्नुम बेपर्दा है। (Sheol )
شمال را بر جو پهن میکند، و زمین را بر نیستی آویزان میسازد. | ۷ 7 |
वह शिमाल को फ़ज़ा में फैलाता है, और ज़मीन को ख़ला में लटकाता है।
آبها را در ابرهای خود میبندد، پس ابر، زیرآنها چاک نمی شود. | ۸ 8 |
वह अपने पानी से भरे हुए बादलों पानी को बाँध देता और बादल उसके बोझ से फटता नहीं।
روی تخت خود رامحجوب میسازد و ابرهای خویش را پیش آن میگستراند. | ۹ 9 |
वह अपने तख़्त को ढांक लेता है और उसके ऊपर अपने बादल को तान देता है।
به اطراف سطح آبها حد میگذاردتا کران روشنایی و تاریکی. | ۱۰ 10 |
उसने रोशनी और अंधेरे के मिलने की जगह तक, पानी की सतह पर हद बाँध दी है।
ستونهای آسمان متزلزل میشود و از عتاب او حیران میماند. | ۱۱ 11 |
आसमान के सुतून काँपते, और और झिड़की से हैरान होते हैं।
به قوت خود دریا را به تلاطم میآورد، و به فهم خویش رهب را خرد میکند. | ۱۲ 12 |
वह अपनी क़ुदरत से समन्दर को तूफ़ानी करता, और अपने फ़हम से रहब को छेद देता है।
به روح اوآسمانها زینت داده شد، و دست او مار تیز رو راسفت. | ۱۳ 13 |
उसके दम से आसमान आरास्ता होता है, उसके हाथ ने तेज़रू साँप को छेदा है।
اینک اینها حواشی طریق های او است. و چه آواز آهستهای درباره او میشنویم، لکن رعد جبروت او را کیست که بفهمد؟» | ۱۴ 14 |
देखो, यह तो उसकी राहों के सिर्फ़ किनारे हैं, और उसकी कैसी धीमी आवाज़ हम सुनते हैं। लेकिन कौन उसकी क़ुदरत की गरज़ को समझ सकता है?”