< ایّوب 14 >
قلیل الایام و پر از زحمات است. | ۱ 1 |
इंसान जो 'औरत से पैदा होता है थोड़े दिनों का है, और दुख से भरा है।
مثل گل میروید و بریده میشود. و مثل سایه میگریزد و نمی ماند. | ۲ 2 |
वह फूल की तरह निकलता, और काट डाला जाता है। वह साए की तरह उड़ जाता है और ठहरता नहीं।
و آیا بر چنین شخص چشمان خود را میگشایی و مرا با خود به محاکمه میآوری؟ | ۳ 3 |
इसलिए क्या तू ऐसे पर अपनी आँखें खोलता है; और मुझे अपने साथ 'अदालत में घसीटता है?
کیست که چیز طاهر را ازچیز نجس بیرون آورد؟ هیچکس نیست. | ۴ 4 |
नापाक चीज़ में से पाक चीज़ कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।
چونکه روزهایش مقدر است و شماره ماههایش نزد توست و حدی از برایش گذاشتهای که از آن تجاوز نتواند نمود. | ۵ 5 |
उसके दिन तो ठहरे हुए हैं, और उसके महीनों की ता'दाद तेरे पास है; और तू ने उसकी हदों को मुक़र्रर कर दिया है, जिन्हें वह पार नहीं कर सकता।
از او رو بگردان تاآرام گیرد. و مثل مزدور روزهای خود را به انجام رساند. | ۶ 6 |
इसलिए उसकी तरफ़ से नज़र हटा ले ताकि वह आराम करे, जब तक वह मज़दूर की तरह अपना दिन पूरा न कर ले।
«زیرا برای درخت امیدی است که اگر بریده شود باز خواهد رویید، و رمونهایش نابودنخواهد شد. | ۷ 7 |
“क्यूँकि दरख़्त की तो उम्मीद रहती है कि अगर वह काटा जाए तो फिर फूट निकलेगा, और उसकी नर्म नर्म डालियाँ ख़त्म न होंगी।
اگرچه ریشهاش در زمین کهنه شود، و تنه آن در خاک بمیرد. | ۸ 8 |
अगरचे उसकी जड़ ज़मीन में पुरानी हो जाए, और उसका तना मिट्टी में गल जाए,
لیکن از بوی آب، رمونه میکند و مثل نهال نو، شاخهها میآورد. | ۹ 9 |
तोभी पानी की बू पाते ही वह नए अखुवे लाएगा, और पौदे की तरह शाख़ें निकालेगा।
اما مرد میمیرد و فاسد میشود و آدمی چون جان را سپارد کجا است؟ | ۱۰ 10 |
लेकिन इंसान मर कर पड़ा रहता है, बल्कि इंसान जान छोड़ देता है, और फिर वह कहाँ रहा?
چنانکه آبها از دریازایل میشود، و نهرها ضایع و خشک میگردد. | ۱۱ 11 |
जैसे झील का पानी ख़त्म हो जाता, और दरिया उतरता और सूख जाता है,
همچنین انسان میخوابد و برنمی خیزد، تانیست شدن آسمانها بیدار نخواهند شد و ازخواب خود برانگیخته نخواهند گردید. | ۱۲ 12 |
वैसे आदमी लेट जाता है और उठता नहीं; जब तक आसमान टल न जाए, वह बेदार न होंगे; और न अपनी नींद से जगाए जाएँगे।
کاش که مرا در هاویه پنهان کنی؛ و تا غضبت فرو نشیند، مرا مستور سازی؛ و برایم زمانی تعیین نمایی تا مرا به یاد آوری. (Sheol ) | ۱۳ 13 |
काश कि तू मुझे पाताल में छिपा दे, और जब तक तेरा क़हर टल न जाए, मुझे पोशीदा रख्खे; और कोई मुक़र्ररा वक़्त मेरे लिए ठहराए और मुझे याद करे। (Sheol )
اگر مرد بمیرد باردیگر زنده شود؛ در تمامی روزهای مجاهده خودانتظار خواهم کشید، تا وقت تبدیل من برسد. | ۱۴ 14 |
अगर आदमी मर जाए तो क्या वह फिर जिएगा? मैं अपनी जंग के सारे दिनों में मुन्तज़िर रहता जब तक मेरा छुटकारा न होता।
تو ندا خواهی کرد و من جواب خواهم داد، و به صنعت دست خود مشتاق خواهی شد. | ۱۵ 15 |
तू मुझे पुकारता और मैं तुझे जवाब देता; तुझे अपने हाथों की सन'अत की तरफ़ ख्वाहिश होती।
اما الان قدمهای مرا میشماری و آیا برگناه من پاسبانی نمی کنی؟ | ۱۶ 16 |
लेकिन अब तो तू मेरे क़दम गिनता है; क्या तू मेरे गुनाह की ताक में लगा नहीं रहता?
معصیت من در کیسه مختوم است. و خطای مرا مسدود ساختهای. | ۱۷ 17 |
मेरी ख़ता थैली में सरब — मुहर है, तू ने मेरे गुनाह को सी रख्खा है।
به درستی کوهی که میافتد فانی میشود وصخره از مکانش منتقل میگردد. | ۱۸ 18 |
यक़ीनन पहाड़ गिरते गिरते ख़त्म हो जाता है, और चट्टान अपनी जगह से हटा दी जाती है।
آب سنگهارا میساید، و سیلهایش خاک زمین را میبرد. همچنین امید انسان را تلف میکنی، | ۱۹ 19 |
पानी पत्थरों को घिसा डालता है, उसकी बाढ़ ज़मीन की ख़ाक को बहाले जाती है; इसी तरह तू इंसान की उम्मीद को मिटा देता है।
بر او تا به ابد غلبه میکنی، پس میرود. روی او را تغییرمی دهی و او را رها میکنی. | ۲۰ 20 |
तू हमेशा उस पर ग़ालिब होता है, इसलिए वह गुज़र जाता है। तू उसका चेहरा बदल डालता और उसे ख़ारिज कर देता है।
پسرانش به عزت میرسند و او نمی داند. یا به ذلت میافتند و ایشان را به نظر نمی آورد. | ۲۱ 21 |
उसके बेटों की 'इज़्ज़त होती है, लेकिन उसे ख़बर नहीं। वह ज़लील होते हैं लेकिन वह उनका हाल‘नहीं जानता।
برای خودش فقط جسد اواز درد بیتاب میشود. و برای خودش جان اوماتم میگیرد.» | ۲۲ 22 |
बल्कि उसका गोश्त जो उसके ऊपर है, दुखी रहता; और उसकी जान उसके अन्दर ही अन्दर ग़म खाती रहती है।”