< रोमियों 1 >

1 पौलुस की ओर से जो यीशु मसीह का दास है, और प्रेरित होने के लिये बुलाया गया, और परमेश्वर के उस सुसमाचार के लिये अलग किया गया है
ⲁ̅ⲡⲁⲩⲗⲟⲥ ⲡϩⲙ̅ϩⲁⲗ ⲛ̅ⲓ̅ⲥ̅ ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅ ⲡⲁⲡⲟⲥⲧⲟⲗⲟⲥ ⲉⲧⲧⲁϩⲙ̅ ⲡⲉⲛⲧⲁⲩⲡⲟⲣϫϥ̅ ⲉⲃⲟⲗ ⲉⲡⲉⲩⲁⲅⲅⲉⲗⲓⲟⲛ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ.
2 जिसकी उसने पहले ही से अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्रशास्त्र में,
ⲃ̅ⲡⲁⲓ̈ ⲉⲛⲧⲁϥϣⲣⲡ̅ⲉⲣⲏⲧ ⲙ̅ⲙⲟϥ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲓⲧⲟⲟⲧⲟⲩ ⲛ̅ⲛⲉϥⲡⲣⲟⲫⲏⲧⲏⲥ ϩⲛ̅ⲛⲉⲅⲣⲁⲫⲏ ⲉⲧⲟⲩⲁⲁⲃ
3 अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के विषय में प्रतिज्ञा की थी, जो शरीर के भाव से तो दाऊद के वंश से उत्पन्न हुआ।
ⲅ̅ⲉⲧⲃⲉⲡⲉϥϣⲏⲣⲉ ⲡⲁⲓ̈ ⲉⲛⲧⲁϥϣⲱⲡⲉ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲙ̅ⲡⲉⲥⲡⲉⲣⲙⲁ ⲛ̅ⲇⲁⲩⲉⲓⲇ ⲕⲁⲧⲁⲥⲁⲣⲝ.
4 और पवित्रता की आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्थ्य के साथ परमेश्वर का पुत्र ठहरा है।
ⲇ̅ⲡⲉⲛⲧⲁⲩⲧⲟϣϥ̅ ⲛ̅ϣⲏⲣⲉ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ϩⲛ̅ⲧϭⲟⲙ ⲕⲁⲧⲁⲡⲉⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲙ̅ⲡⲧⲃ̅ⲃⲟ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲙ̅ⲡⲧⲱⲟⲩⲛ ⲛ̅ⲛⲉⲧⲙⲟⲟⲩⲧ ⲛ̅ⲓ̅ⲥ̅ ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅ ⲡⲉⲛϫⲟⲉⲓⲥ.
5 जिसके द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली कि उसके नाम के कारण सब जातियों के लोग विश्वास करके उसकी मानें,
ⲉ̅ⲡⲁⲓ̈ ⲉⲛⲧⲁⲛϫⲓ ⲛⲟⲩⲭⲁⲣⲓⲥ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲓⲧⲟⲟⲧϥ̅ ⲙⲛ̅ⲟⲩⲙⲛ̅ⲧⲁⲡⲟⲥⲧⲟⲗⲟⲥ ⲉⲡⲥⲱⲧⲙ̅ ⲛ̅ⲧⲡⲓⲥⲧⲓⲥ ϩⲛ̅ⲛ̅ϩⲉⲑⲛⲟⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ ϩⲁⲡⲉϥⲣⲁⲛ
6 जिनमें से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिये बुलाए गए हो।
ⲋ̅ⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲏⲡ ϩⲛ̅ⲛⲁⲓ̈ ϩⲱⲧⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲧⲁϩⲙ̅ ϩⲛ̅ⲓ̅ⲥ̅ ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅
7 उन सब के नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिये बुलाए गए हैं: हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
ⲍ̅ⲛⲉⲧϩⲛ̅ϩⲣⲱⲙⲏ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲙ̅ⲙⲉⲣⲓⲧ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲛⲉⲧⲧⲁϩⲙ̅ ⲉⲧⲟⲩⲁⲁⲃ. ⲧⲉⲭⲁⲣⲓⲥ ⲛⲏⲧⲛ̅ ⲙⲛ̅ϯⲣⲏⲛⲏ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲓⲧⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲡⲉⲛⲉⲓⲱⲧ ⲙⲛ̅ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲓ̅ⲥ̅ ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅·
8 पहले मैं तुम सब के लिये यीशु मसीह के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है।
ⲏ̅ϣⲟⲣⲡ̅ ⲙⲉⲛ ϯϣⲡ̅ϩⲙⲟⲧ ⲛⲧⲙ̅ⲡⲁⲛⲟⲩⲧⲉ ϩⲓⲧⲛ̅ⲓ̅ⲥ̅ ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅ ⲉⲧⲃⲉⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲧⲏⲣⲧⲛ̅ ϫⲉ ⲥⲉϯⲥⲟⲉⲓⲧ ⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲡⲓⲥⲧⲓⲥ ϩⲙ̅ⲡⲕⲟⲥⲙⲟⲥ ⲧⲏⲣϥ̅·
9 परमेश्वर जिसकी सेवा मैं अपनी आत्मा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूँ, वही मेरा गवाह है, कि मैं तुम्हें किस प्रकार लगातार स्मरण करता रहता हूँ,
ⲑ̅ⲡⲁⲙⲛ̅ⲧⲣⲉ ⲅⲁⲣ ⲡⲉ ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲡⲁⲓ̈ ⲉϯϣⲙ̅ϣⲉ ⲛⲁϥ ϩⲙ̅ⲡⲁⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ϩⲙ̅ⲡⲉⲩⲁⲅⲅⲉⲗⲓⲟⲛ ⲙ̅ⲡⲉϥϣⲏⲣⲉ ⲛ̅ⲑⲉ ⲁϫⲛ̅ⲱϫⲛ̅ ⲉⲓ̈ⲉⲓⲣⲉ ⲙ̅ⲡⲉⲧⲛ̅ⲙⲉⲉⲩⲉ
10 १० और नित्य अपनी प्रार्थनाओं में विनती करता हूँ, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आने को मेरी यात्रा परमेश्वर की इच्छा से सफल हो।
ⲓ̅ⲛ̅ⲟⲩⲟⲉⲓϣ ⲛⲓⲙ ϩⲛ̅ⲛⲁϣⲗⲏⲗ ⲉⲓ̈ⲥⲟⲡⲥ̅ ϫⲉ ⲉⲣⲉⲧⲁϩⲓⲏ ⲥⲟⲟⲩⲧⲛ̅ ϩⲙ̅ⲡⲟⲩⲱϣ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲉⲉⲓ ϣⲁⲣⲱⲧⲛ̅.
11 ११ क्योंकि मैं तुम से मिलने की लालसा करता हूँ, कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक वरदान दूँ जिससे तुम स्थिर हो जाओ,
ⲓ̅ⲁ̅ϯⲟⲩⲉϣⲛⲁⲩ ⲅⲁⲣ ⲉⲣⲱⲧⲛ̅ ϫⲉⲕⲁⲥ ⲉⲓ̈ⲉϯ ⲛⲏⲧⲛ̅ ⲛ̅ⲟⲩϩⲙⲟⲧ ⲙ̅ⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ⲧⲓⲕⲟⲛ ⲉⲡⲧⲁϫⲣⲉⲧⲏⲩⲧⲛ̅.
12 १२ अर्थात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पाऊँ।
ⲓ̅ⲃ̅ⲡⲁⲓ̈ ⲇⲉ ⲡⲉ ⲉⲧⲣⲉⲛⲥⲗ̅ⲥⲗ̅ⲛⲉⲛⲉⲣⲏⲩ ⲛ̅ϩⲏⲧⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ϩⲓⲧⲛ̅ⲧⲡⲓⲥⲧⲓⲥ ⲉⲧϩⲛ̅ⲛⲉⲛⲉⲣⲏⲩ ⲧⲱⲧⲛ̅ ⲙⲛ̅ⲧⲱⲓ̈·
13 १३ और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम इससे अनजान रहो कि मैंने बार बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियों में फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्तु अब तक रुका रहा।
ⲓ̅ⲅ̅ϯⲟⲩⲱϣ ⲅⲁⲣ ⲉⲧⲣⲉⲧⲛ̅ⲉⲓⲙⲉ ⲛⲁⲥⲛⲏⲩ ϫⲉ ⲁⲓ̈ⲕⲁⲁⲥ ϩⲁⲉⲓⲁⲧ ⲛ̅ϩⲁϩ ⲛ̅ⲥⲟⲡ ⲉⲉⲓ ϣⲁⲣⲱⲧⲛ̅. ⲁⲩⲱ ⲁⲩⲕⲱⲗⲩ ⲙ̅ⲙⲟⲓ̈ ϣⲁⲧⲉⲛⲟⲩ. ϫⲉⲕⲁⲁⲥ ⲉⲓ̈ⲉϫⲡⲟ ⲛ̅ⲟⲩⲕⲁⲣⲡⲟⲥ ⲛ̅ϩⲏⲧⲧⲏⲩⲧⲛ̅. ⲕⲁⲧⲁⲑⲉ ϩⲙ̅ⲡⲕⲉϣⲱϫⲡ̅ ⲛ̅ϩⲉⲑⲛⲟⲥ.
14 १४ मैं यूनानियों और अन्यभाषियों का, और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूँ।
ⲓ̅ⲇ̅ⲛ̅ϩⲉⲗⲗⲏⲛ ⲙⲛ̅ⲛ̅ⲃⲁⲣⲃⲁⲣⲟⲥ. ⲛ̅ⲥⲟⲫⲟⲥ ⲙⲛ̅ⲛ̅ⲁⲑⲏⲧ ⲉⲩⲛ̅ⲧⲁⲩ ⲉⲣⲟⲓ̈.
15 १५ इसलिए मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूँ।
ⲓ̅ⲉ̅ⲧⲁⲓ̈ ⲧⲉ ⲑⲉ ⲙ̅ⲡⲟⲩⲣⲟⲧ ⲉⲧⲛⲙ̅ⲙⲁⲓ̈ ⲉⲉⲩⲁⲅⲅⲉⲗⲓⲍⲉ ϩⲱⲧⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲛⲏⲧⲛ̅ ⲛⲉⲧϩⲛ̅ϩⲣⲱⲙⲏ·
16 १६ क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिए कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिये, पहले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये, उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ्य है।
ⲓ̅ⲋ̅ⲛ̅ϯϯϣⲓⲡⲉ ⲅⲁⲣ ⲁⲛ ⲙ̅ⲡⲉⲩⲁⲅⲅⲉⲗⲓⲟⲛ. ⲟⲩϭⲟⲙ ⲅⲁⲣ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲡⲉ ⲉⲩⲟⲩϫⲁⲓ̈ ⲛ̅ⲟⲩⲟⲛ ⲛⲓⲙ ⲉⲧⲡⲓⲥⲧⲉⲩⲉ ⲛ̅ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈ ⲙⲛ̅ⲛ̅ⲟⲩⲉⲓ̈ⲉⲛⲓⲛ.
17 १७ क्योंकि उसमें परमेश्वर की धार्मिकता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, “विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।”
ⲓ̅ⲍ̅ⲧⲇⲓⲕⲁⲓⲟⲥⲩⲛⲏ ⲅⲁⲣ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲛⲁϭⲱⲗⲡ̅ ⲉⲃⲟⲗ ⲛ̅ϩⲏⲧϥ̅ ϩⲛ̅ⲟⲩⲡⲓⲥⲧⲓⲥ ⲉⲩⲡⲓⲥⲧⲓⲥ. ⲕⲁⲧⲁⲑⲉ ⲉⲧⲥⲏϩ ϫⲉ ⲉⲣⲉⲡⲇⲓⲕⲁⲓⲟⲥ ⲛⲁⲱⲛϩ̅ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲛ̅ⲧⲡⲓⲥⲧⲓⲥ.
18 १८ परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।
ⲓ̅ⲏ̅ⲧⲟⲣⲅⲏ ⲅⲁⲣ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲛⲁϭⲱⲗⲡ̅ ⲉⲃⲟⲗ ϩⲛ̅ⲧⲡⲉ ⲉϫⲙ̅ⲙⲛ̅ⲧϣⲁϥⲧⲉ ⲛⲓⲙ. ⲁⲩⲱ ⲡϫⲓ ⲛ̅ϭⲟⲛⲥ̅ ⲛ̅ⲛ̅ⲣⲱⲙⲉ ⲛⲁⲓ̈ ⲉⲧⲁⲙⲁϩⲧⲉ ⲛ̅ⲧⲙⲉ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ϩⲛ̅ⲟⲩϫⲓ ⲛ̅ϭⲟⲛⲥ̅
19 १९ इसलिए कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उनके मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
ⲓ̅ⲑ̅ϫⲉ ⲡⲥⲟⲟⲩⲛ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲟⲩⲟⲛϩ̅ ⲉⲃⲟⲗ ⲛϩⲏⲧⲟⲩ. ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲅⲁⲣ ⲟⲩⲟⲛϩϥ̅ ⲛⲁⲩ ⲉⲃⲟⲗ.
20 २० क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्वरत्व, जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहाँ तक कि वे निरुत्तर हैं। (aïdios g126)
ⲕ̅ⲛⲉϥⲡⲉⲑⲏⲡ ⲅⲁⲣ ⲉⲑⲟⲗ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲛⲧ̅ ⲙ̅ⲡⲕⲟⲥⲙⲟⲥ. ϩⲛ̅ⲛⲉϥⲧⲁⲙⲓⲟ ⲉⲩⲛⲟⲓ̈ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ⲥⲉⲛⲁⲩ ⲉⲣⲟⲟⲩ ⲉⲧⲉⲧⲉϥϭⲟⲙ ⲧⲉ ⲛ̅ϣⲁⲉⲛⲉϩ ⲙⲛ̅ⲧⲉϥⲙⲛ̅ⲧⲛⲟⲩⲧⲉ. ⲉⲧⲣⲉⲩϣⲱⲡⲉ ⲉⲙⲛ̅ⲧⲟⲩϣⲁϫⲉ ⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲉϫⲱ. (aïdios g126)
21 २१ इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहाँ तक कि उनका निर्बुद्धि मन अंधेरा हो गया।
ⲕ̅ⲁ̅ϫⲉ ⲁⲩⲥⲟⲩⲛ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲙ̅ⲡⲟⲩϯⲉⲟⲟⲩ ⲛⲁϥ ϩⲱⲥ ⲛⲟⲩⲧⲉ. ⲁⲩⲱ ⲙ̅ⲡⲟⲩϣⲡ̅ϩⲙⲟⲧ ⲁⲗⲗⲁ ⲁⲩⲣⲡⲉⲧϣⲟⲩⲉⲓⲧ ϩⲛ̅ⲛⲉⲩⲙⲉⲉⲩⲉ. ⲁⲩⲱ ⲁⲡⲉⲩϩⲏⲧ ⲛ̅ⲁⲧⲥⲃⲱ ⲣ̅ⲕⲁⲕⲉ ⲉⲣⲟⲟⲩ.
22 २२ वे अपने आपको बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए,
ⲕ̅ⲃ̅ⲉⲩϫⲱ ⲙ̅ⲙⲟⲥ ϫⲉ ⲁⲛϩⲉⲛⲥⲁⲃⲉ ⲁⲩⲣ̅ⲥⲟϭ.
23 २३ और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशवान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।
ⲕ̅ⲅ̅ⲁⲩϣⲓⲃⲉ ⲙ̅ⲡⲉⲟⲟⲩ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲛ̅ⲁⲧⲧⲁⲕⲟ ϩⲛ̅ⲟⲩⲉⲓⲛⲉ ⲛ̅ϩⲓⲕⲱⲛ ⲛ̅ⲣⲱⲙⲉ ⲉϣⲁϥⲧⲁⲕⲟ ϩⲓϩⲁⲗⲏⲧ ϩⲓⲧⲃ̅ⲛⲏ. ϩⲓϫⲁⲧϥⲉ·
24 २४ इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उनके मन की अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।
ⲕ̅ⲇ̅ⲉⲧⲃⲉⲡⲁⲓ̈ ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲧⲁⲁⲩ ϩⲛ̅ⲛ̅ⲟⲩⲱϣ ⲛ̅ⲛⲉⲩϩⲏⲧ ⲉⲩⲁⲕⲁⲑⲁⲣⲥⲓⲁ ⲉⲧⲣⲉⲩⲥⲱϣ ⲛ̅ⲛⲉⲩⲥⲱⲙⲁ ϩⲣⲁⲓ̈ ⲛ̅ϩⲏⲧⲟⲩ.
25 २५ क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन। (aiōn g165)
ⲕ̅ⲉ̅ⲛⲁⲓ̈ ⲉⲛⲧⲁⲩϣⲓⲃⲉ ⲛ̅ⲧⲙⲉ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ϩⲙ̅ⲡϭⲟⲗ. ⲁⲩⲟⲩⲱϣⲧ̅. ⲁⲩⲱ ⲁⲩϣⲙ̅ϣⲉ ⲙ̅ⲡⲥⲱⲛⲧ̅ ⲡⲁⲣⲁⲡⲉⲛⲧⲁϥⲥⲱⲛⲧ ⲡⲁⲓ̈ ⲉⲧⲥⲙⲁⲙⲁⲁⲧ ϣⲁⲛⲓⲉⲛⲉϩ ϩⲁⲙⲏⲛ· (aiōn g165)
26 २६ इसलिए परमेश्वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहाँ तक कि उनकी स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को उससे जो स्वभाव के विरुद्ध है, बदल डाला।
ⲕ̅ⲋ̅ⲉⲧⲃⲉⲡⲁⲓ̈ ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲧⲁⲁⲩ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲉϩⲉⲛⲡⲁⲑⲟⲥ ⲉⲩⲥⲏϣ. ⲉⲓⲧⲉ ⲡⲁⲣ ⲛⲉⲩϩⲓⲟⲙⲉ ⲁⲩϣⲓⲃⲉ ⲙ̅ⲡϩⲱⲃ ⲛ̅ⲧⲉⲩⲫⲩⲥⲓⲥ ⲉⲩⲡⲁⲣⲁⲧⲉⲩⲫⲩⲥⲓⲥ.
27 २७ वैसे ही पुरुष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरुषों ने पुरुषों के साथ निर्लज्ज काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया।
ⲕ̅ⲍ̅ϩⲟⲙⲟⲓⲱⲥ ⲛⲉⲩⲕⲉϩⲟⲟⲩⲧ ⲁⲩⲕⲱ ⲛ̅ⲥⲱⲟⲩ ⲙ̅ⲡϩⲱⲃ ⲛ̅ⲧⲉⲫⲩⲥⲓⲥ ⲛ̅ⲧⲉⲥϩⲓⲙⲉ ⲁⲩⲙⲟⲩϩ ⲙ̅ⲡⲉⲩⲙⲉ ⲉϩⲟⲩⲛ ⲉⲛⲉⲩⲉⲣⲏⲩ. ϩⲉⲛϩⲟⲟⲩⲧ ⲙⲛ̅ϩⲉⲛϩⲟⲟⲩⲧ ⲉⲩⲣ̅ϩⲱⲃ ⲉⲧⲁⲥⲭⲩⲙⲟⲥⲩⲛⲏ. ⲁⲩⲱ ⲧϣⲃ̅ⲉⲓⲱ ⲙ̅ⲡⲃⲉⲕⲉ ⲛ̅ⲧⲉⲩⲡⲗⲁⲛⲏ ⲉⲧⲉϣϣⲉ ⲉⲩϫⲉⲓ ⲙ̅ⲙⲟϥ ϩⲣⲁⲓ̈ ⲛ̅ϩⲏⲧⲟⲩ.
28 २८ जब उन्होंने परमेश्वर को पहचानना न चाहा, तो परमेश्वर ने भी उन्हें उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।
ⲕ̅ⲏ̅ⲁⲩⲱ ⲕⲁⲧⲁⲑⲉ ⲉⲧⲉⲙ̅ⲡⲟⲩⲇⲟⲕⲓⲙⲁⲍⲉ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲉⲕⲁⲁϥ ⲛⲁⲩ ϩⲛ̅ⲟⲩⲥⲟⲟⲩⲛ. ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲧⲁⲁⲩ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ⲉⲩϩⲏⲧ ⲛ̅ϫⲟⲟⲩⲧ ⲉⲉⲓⲣⲉ ⲛ̅ⲛⲉⲧⲉⲙⲉϣϣⲉ.
29 २९ वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैर-भाव से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर,
ⲕ̅ⲑ̅ⲉⲩϫⲏⲕ ⲉⲃⲟⲗ ⲛ̅ϫⲓ ⲛ̅ϭⲟⲛⲥ̅ ⲛⲓⲙ. ϩⲓⲕⲁⲕⲓⲁ. ϩⲓⲡⲟⲛⲏⲣⲓⲁ ϩⲓⲙⲁⲓ̈ⲧⲟ ⲛ̅ϩⲟⲩⲟ. ⲉⲩⲙⲉϩ ⲛ̅ⲗⲁ ϩⲓϩⲱⲧⲃ̅. ϩⲓϯⲧⲱⲛ. ϩⲓⲕⲣⲟϥ. ⲛ̅ϩⲏⲧ ⲉϥϩⲟⲟⲩ.
30 ३० गपशप करनेवाले, निन्दा करनेवाले, परमेश्वर से घृणा करनेवाले, हिंसक, अभिमानी, डींगमार, बुरी-बुरी बातों के बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाले,
ⲗ̅ⲛ̅ⲣⲉϥⲕⲁⲥⲕⲥ̅. ⲛ̅ⲣⲉϥⲕⲁⲧⲁⲗⲁⲗⲉⲓ ⲙ̅ⲙⲁⲥⲧ̅ⲛⲟⲩⲧⲉ. ⲛ̅ⲣⲉϥⲥⲱϣ. ⲛ̅ϫⲁⲥⲓϩⲏⲧ. ⲛ̅ⲃⲁⲃⲉⲣⲱⲙⲉ. ⲛ̅ⲣⲉϥⲕⲱⲧⲉ ⲛ̅ⲥⲁⲡ̅ⲡⲉⲑⲟⲟⲩ. ⲉⲛⲥⲉⲥⲱⲧⲙ̅ ⲁⲛ ⲛ̅ⲥⲁⲛⲉⲩⲉⲓⲟⲧⲉ.
31 ३१ निर्बुद्धि, विश्वासघाती, स्वाभाविक व्यवहार रहित, कठोर और निर्दयी हो गए।
ⲗ̅ⲁ̅ⲛ̅ⲁⲑⲏⲧ. ⲛ̅ⲁⲧⲛⲁϩⲧⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲁϩⲓⲏⲧ ⲛ̅ⲁⲧⲛⲁ
32 ३२ वे तो परमेश्वर की यह विधि जानते हैं कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले मृत्यु के दण्ड के योग्य हैं, तो भी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं वरन् करनेवालों से प्रसन्न भी होते हैं।
ⲗ̅ⲃ̅ⲛⲁⲓ̈ ⲉⲧⲥⲟⲟⲩⲛ ⲙ̅ⲡⲇⲓⲕⲁⲓⲱⲙⲁ ⲙ̅ⲡⲛⲟⲩⲧⲉ. ϫⲉ ⲛⲉⲧⲉⲓⲣⲉ ⲛ̅ⲛⲁⲓ̈ ⲥⲉⲙ̅ⲡϣⲁ ⲙ̅ⲡⲙⲟⲩ. ⲟⲩⲙⲟⲛⲟⲛ ⲥⲉⲉⲓⲣⲉ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ. ⲁⲗⲗⲁ ⲥⲉⲥⲩⲛⲉⲩⲇⲟⲕⲓ ⲟⲛ ⲙⲛ̅ⲛⲉⲧⲉⲓⲣⲉ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ·

< रोमियों 1 >