< सभोपदेशक 5 >

1 जब तू परमेश्वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना; सुनने के लिये समीप जाना मूर्खों के बलिदान चढ़ाने से अच्छा है; क्योंकि वे नहीं जानते कि बुरा करते हैं।
φύλαξον πόδα σου ἐν ᾧ ἐὰν πορεύῃ εἰς οἶκον τοῦ θεοῦ καὶ ἐγγὺς τοῦ ἀκούειν ὑπὲρ δόμα τῶν ἀφρόνων θυσία σου ὅτι οὔκ εἰσιν εἰδότες τοῦ ποιῆσαι κακόν
2 बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के सामने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं और तू पृथ्वी पर है; इसलिए तेरे वचन थोड़े ही हों।
μὴ σπεῦδε ἐπὶ στόματί σου καὶ καρδία σου μὴ ταχυνάτω τοῦ ἐξενέγκαι λόγον πρὸ προσώπου τοῦ θεοῦ ὅτι ὁ θεὸς ἐν τῷ οὐρανῷ καὶ σὺ ἐπὶ τῆς γῆς ἐπὶ τούτῳ ἔστωσαν οἱ λόγοι σου ὀλίγοι
3 क्योंकि जैसे कार्य की अधिकता के कारण स्वप्न देखा जाता है, वैसे ही बहुत सी बातों का बोलनेवाला मूर्ख ठहरता है।
ὅτι παραγίνεται ἐνύπνιον ἐν πλήθει περισπασμοῦ καὶ φωνὴ ἄφρονος ἐν πλήθει λόγων
4 जब तू परमेश्वर के लिये मन्नत माने, तब उसके पूरा करने में विलम्ब न करना; क्योंकि वह मूर्खों से प्रसन्न नहीं होता। जो मन्नत तूने मानी हो उसे पूरी करना।
καθὼς ἂν εὔξῃ εὐχὴν τῷ θεῷ μὴ χρονίσῃς τοῦ ἀποδοῦναι αὐτήν ὅτι οὐκ ἔστιν θέλημα ἐν ἄφροσιν σὺν ὅσα ἐὰν εὔξῃ ἀπόδος
5 मन्नत मानकर पूरी न करने से मन्नत का न मानना ही अच्छा है।
ἀγαθὸν τὸ μὴ εὔξασθαί σε ἢ τὸ εὔξασθαί σε καὶ μὴ ἀποδοῦναι
6 कोई वचन कहकर अपने को पाप में न फँसाना, और न परमेश्वर के दूत के सामने कहना कि यह भूल से हुआ; परमेश्वर क्यों तेरा बोल सुनकर क्रोधित हो, और तेरे हाथ के कार्यों को नष्ट करे?
μὴ δῷς τὸ στόμα σου τοῦ ἐξαμαρτῆσαι τὴν σάρκα σου καὶ μὴ εἴπῃς πρὸ προσώπου τοῦ θεοῦ ὅτι ἄγνοιά ἐστιν ἵνα μὴ ὀργισθῇ ὁ θεὸς ἐπὶ φωνῇ σου καὶ διαφθείρῃ τὰ ποιήματα χειρῶν σου
7 क्योंकि स्वप्नों की अधिकता से व्यर्थ बातों की बहुतायत होती है: परन्तु तू परमेश्वर का भय मानना।
ὅτι ἐν πλήθει ἐνυπνίων καὶ ματαιότητες καὶ λόγοι πολλοί ὅτι σὺν τὸν θεὸν φοβοῦ
8 यदि तू किसी प्रान्त में निर्धनों पर अंधेर और न्याय और धर्म को बिगड़ता देखे, तो इससे चकित न होना; क्योंकि एक अधिकारी से बड़ा दूसरा रहता है जिसे इन बातों की सुधि रहती है, और उनसे भी और अधिक बड़े रहते हैं।
ἐὰν συκοφαντίαν πένητος καὶ ἁρπαγὴν κρίματος καὶ δικαιοσύνης ἴδῃς ἐν χώρᾳ μὴ θαυμάσῃς ἐπὶ τῷ πράγματι ὅτι ὑψηλὸς ἐπάνω ὑψηλοῦ φυλάξαι καὶ ὑψηλοὶ ἐπ’ αὐτούς
9 भूमि की उपज सब के लिये है, वरन् खेती से राजा का भी काम निकलता है।
καὶ περισσεία γῆς ἐν παντί ἐστι βασιλεὺς τοῦ ἀγροῦ εἰργασμένου
10 १० जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से यह भी व्यर्थ है।
ἀγαπῶν ἀργύριον οὐ πλησθήσεται ἀργυρίου καὶ τίς ἠγάπησεν ἐν πλήθει αὐτῶν γένημα καί γε τοῦτο ματαιότης
11 ११ जब सम्पत्ति बढ़ती है, तो उसके खानेवाले भी बढ़ते हैं, तब उसके स्वामी को इसे छोड़ और क्या लाभ होता है कि उस सम्पत्ति को अपनी आँखों से देखे?
ἐν πλήθει τῆς ἀγαθωσύνης ἐπληθύνθησαν ἔσθοντες αὐτήν καὶ τί ἀνδρεία τῷ παρ’ αὐτῆς ὅτι ἀλλ’ ἢ τοῦ ὁρᾶν ὀφθαλμοῖς αὐτοῦ
12 १२ परिश्रम करनेवाला चाहे थोड़ा खाए, या बहुत, तो भी उसकी नींद सुखदाई होती है; परन्तु धनी के धन बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती।
γλυκὺς ὕπνος τοῦ δούλου εἰ ὀλίγον καὶ εἰ πολὺ φάγεται καὶ τῷ ἐμπλησθέντι τοῦ πλουτῆσαι οὐκ ἔστιν ἀφίων αὐτὸν τοῦ ὑπνῶσαι
13 १३ मैंने सूर्य के नीचे एक बड़ी बुरी बला देखी है; अर्थात् वह धन जिसे उसके मालिक ने अपनी ही हानि के लिये रखा हो,
ἔστιν ἀρρωστία ἣν εἶδον ὑπὸ τὸν ἥλιον πλοῦτον φυλασσόμενον τῷ παρ’ αὐτοῦ εἰς κακίαν αὐτοῦ
14 १४ और वह धन किसी बुरे काम में उड़ जाता है; और उसके घर में बेटा उत्पन्न होता है परन्तु उसके हाथ में कुछ नहीं रहता।
καὶ ἀπολεῖται ὁ πλοῦτος ἐκεῖνος ἐν περισπασμῷ πονηρῷ καὶ ἐγέννησεν υἱόν καὶ οὐκ ἔστιν ἐν χειρὶ αὐτοῦ οὐδέν
15 १५ जैसा वह माँ के पेट से निकला वैसा ही लौट जाएगा; नंगा ही, जैसा आया था, और अपने परिश्रम के बदले कुछ भी न पाएगा जिसे वह अपने हाथ में ले जा सके।
καθὼς ἐξῆλθεν ἀπὸ γαστρὸς μητρὸς αὐτοῦ γυμνός ἐπιστρέψει τοῦ πορευθῆναι ὡς ἥκει καὶ οὐδὲν οὐ λήμψεται ἐν μόχθῳ αὐτοῦ ἵνα πορευθῇ ἐν χειρὶ αὐτοῦ
16 १६ यह भी एक बड़ी बला है कि जैसा वह आया, ठीक वैसा ही वह जाएगा; उसे उस व्यर्थ परिश्रम से और क्या लाभ है?
καί γε τοῦτο πονηρὰ ἀρρωστία ὥσπερ γὰρ παρεγένετο οὕτως καὶ ἀπελεύσεται καὶ τίς περισσεία αὐτῷ ᾗ μοχθεῖ εἰς ἄνεμον
17 १७ केवल इसके कि उसने जीवन भर अंधकार में भोजन किया, और बहुत ही दुःखित और रोगी रहा और क्रोध भी करता रहा?
καί γε πᾶσαι αἱ ἡμέραι αὐτοῦ ἐν σκότει καὶ πένθει καὶ θυμῷ πολλῷ καὶ ἀρρωστίᾳ καὶ χόλῳ
18 १८ सुन, जो भली बात मैंने देखी है, वरन् जो उचित है, वह यह कि मनुष्य खाए और पीए और अपने परिश्रम से जो वह सूर्य के नीचे करता है, अपनी सारी आयु भर जो परमेश्वर ने उसे दी है, सुखी रहे क्योंकि उसका भाग यही है।
ἰδοὺ ὃ εἶδον ἐγὼ ἀγαθόν ὅ ἐστιν καλόν τοῦ φαγεῖν καὶ τοῦ πιεῖν καὶ τοῦ ἰδεῖν ἀγαθωσύνην ἐν παντὶ μόχθῳ αὐτοῦ ᾧ ἐὰν μοχθῇ ὑπὸ τὸν ἥλιον ἀριθμὸν ἡμερῶν ζωῆς αὐτοῦ ὧν ἔδωκεν αὐτῷ ὁ θεός ὅτι αὐτὸ μερὶς αὐτοῦ
19 १९ वरन् हर एक मनुष्य जिसे परमेश्वर ने धन-सम्पत्ति दी हो, और उनसे आनन्द भोगने और उसमें से अपना भाग लेने और परिश्रम करते हुए आनन्द करने को शक्ति भी दी हो यह परमेश्वर का वरदान है।
καί γε πᾶς ὁ ἄνθρωπος ᾧ ἔδωκεν αὐτῷ ὁ θεὸς πλοῦτον καὶ ὑπάρχοντα καὶ ἐξουσίασεν αὐτὸν τοῦ φαγεῖν ἀπ’ αὐτοῦ καὶ τοῦ λαβεῖν τὸ μέρος αὐτοῦ καὶ τοῦ εὐφρανθῆναι ἐν μόχθῳ αὐτοῦ τοῦτο δόμα θεοῦ ἐστιν
20 २० इस जीवन के दिन उसे बहुत स्मरण न रहेंगे, क्योंकि परमेश्वर उसकी सुन सुनकर उसके मन को आनन्दमय रखता है।
ὅτι οὐ πολλὰ μνησθήσεται τὰς ἡμέρας τῆς ζωῆς αὐτοῦ ὅτι ὁ θεὸς περισπᾷ αὐτὸν ἐν εὐφροσύνῃ καρδίας αὐτοῦ

< सभोपदेशक 5 >