< लैव्यव्यवस्था 26 >

1 “‘न तो तुम अपने लिए मूरतें बनाओगे और न ही किसी खुदी हुई मूरत अथवा पवित्र पत्थर बनाओगे और न ही उसके सामने झुकने के उद्देश्य से किसी पत्थर में से मूरत गढ़ोगे; क्योंकि मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं.
לֹֽא־תַעֲשׂ֨וּ לָכֶ֜ם אֱלִילִ֗ם וּפֶ֤סֶל וּמַצֵּבָה֙ לֹֽא־תָקִ֣ימוּ לָכֶ֔ם וְאֶ֣בֶן מַשְׂכִּ֗ית לֹ֤א תִתְּנוּ֙ בְּאַרְצְכֶ֔ם לְהִֽשְׁתַּחֲוֺ֖ת עָלֶ֑יהָ כִּ֛י אֲנִ֥י יְהוָ֖ה אֱלֹהֵיכֶֽם׃
2 “‘तुम मेरे शब्बाथों का पालन करो और मेरे पवित्र स्थान का सम्मान; मैं ही याहवेह हूं.
אֶת־שַׁבְּתֹתַ֣י תִּשְׁמֹ֔רוּ וּמִקְדָּשִׁ֖י תִּירָ֑אוּ אֲנִ֖י יְהוָֽה׃ ס
3 “‘यदि तुम मेरी विधियों का पालन करोगे और मेरी आज्ञाओं का पालन कर उन्हें व्यवहार में लाओगे,
אִם־בְּחֻקֹּתַ֖י תֵּלֵ֑כוּ וְאֶת־מִצְוֺתַ֣י תִּשְׁמְר֔וּ וַעֲשִׂיתֶ֖ם אֹתָֽם׃
4 तो मैं वर्षा ऋतु में तुम्हें बारिश दिया करूंगा, जिसके परिणामस्वरूप भूमि अपनी उपज और मैदान के वृक्ष फल उत्पन्‍न करेंगे.
וְנָתַתִּ֥י גִשְׁמֵיכֶ֖ם בְּעִתָּ֑ם וְנָתְנָ֤ה הָאָ֙רֶץ֙ יְבוּלָ֔הּ וְעֵ֥ץ הַשָּׂדֶ֖ה יִתֵּ֥ן פִּרְיֽוֹ׃
5 तुम्हारी दांवनी तुम्हारी अंगूर की उपज इकट्ठा करने तक चलेगी और तुम्हारी अंगूर की उपज, बीज बोने तक. इस प्रकार तुम भरपेट भोजन करोगे और इस प्रकार तुम इस देश में सुरक्षापूर्वक निवास कर सकोगे.
וְהִשִּׂ֨יג לָכֶ֥ם דַּ֙יִשׁ֙ אֶת־בָּצִ֔יר וּבָצִ֖יר יַשִּׂ֣יג אֶת־זָ֑רַע וַאֲכַלְתֶּ֤ם לַחְמְכֶם֙ לָשֹׂ֔בַע וִֽישַׁבְתֶּ֥ם לָבֶ֖טַח בְּאַרְצְכֶֽם׃
6 “‘देश में मेरे द्वारा दी गई शांति बसेगी, जिससे कि तुम आराम कर सको. कोई तुम्हें भयभीत न करेगा. मैं उस देश से हिंसक पशुओं को भी दूर कर दूंगा और तुम्हारे देश में कोई भी तलवार से मारा न जाएगा.
וְנָתַתִּ֤י שָׁלוֹם֙ בָּאָ֔רֶץ וּשְׁכַבְתֶּ֖ם וְאֵ֣ין מַחֲרִ֑יד וְהִשְׁבַּתִּ֞י חַיָּ֤ה רָעָה֙ מִן־הָאָ֔רֶץ וְחֶ֖רֶב לֹא־תַעֲבֹ֥ר בְּאַרְצְכֶֽם׃
7 किंतु तुम अपने शत्रुओं का पीछा करोगे और वे तलवार के वार से तुम्हारे सामने मारे जाएंगे;
וּרְדַפְתֶּ֖ם אֶת־אֹיְבֵיכֶ֑ם וְנָפְל֥וּ לִפְנֵיכֶ֖ם לֶחָֽרֶב
8 तुममें से पांच एक सौ को और एक सौ दस हज़ार को खदेड़ डालेंगे और तुम्हारे शत्रु तलवार के वार से तुम्हारे सामने मारे जाएंगे.
וְרָדְפ֨וּ מִכֶּ֤ם חֲמִשָּׁה֙ מֵאָ֔ה וּמֵאָ֥ה מִכֶּ֖ם רְבָבָ֣ה יִרְדֹּ֑פוּ וְנָפְל֧וּ אֹיְבֵיכֶ֛ם לִפְנֵיכֶ֖ם לֶחָֽרֶב׃
9 “‘फिर मैं तुम्हारी ओर कृपादृष्टि करूंगा और तुम्हें फलवंत कर तुम्हारी संख्या बहुत बढ़ाऊंगा और तुम्हारे साथ की गई मेरी वाचा को पूरी करूंगा.
וּפָנִ֣יתִי אֲלֵיכֶ֔ם וְהִפְרֵיתִ֣י אֶתְכֶ֔ם וְהִרְבֵּיתִ֖י אֶתְכֶ֑ם וַהֲקִימֹתִ֥י אֶת־בְּרִיתִ֖י אִתְּכֶֽם׃
10 तुम पुरानी उपज को खाओगे और नई उपज को स्थान देने के उद्देश्य से पुरानी को हटा दोगे.
וַאֲכַלְתֶּ֥ם יָשָׁ֖ן נוֹשָׁ֑ן וְיָשָׁ֕ן מִפְּנֵ֥י חָדָ֖שׁ תּוֹצִֽיאוּ׃
11 इसके अलावा मैं तुम्हारे बीच निवास करूंगा और मेरा प्राण तुमसे घृणा न करेगा.
וְנָתַתִּ֥י מִשְׁכָּנִ֖י בְּתוֹכְכֶ֑ם וְלֹֽא־תִגְעַ֥ל נַפְשִׁ֖י אֶתְכֶֽם׃
12 मैं तुम्हारे बीच चला फिरा भी करूंगा. मैं तुम्हारा परमेश्वर हो जाऊंगा और तुम मेरी प्रजा.
וְהִתְהַלַּכְתִּי֙ בְּת֣וֹכְכֶ֔ם וְהָיִ֥יתִי לָכֶ֖ם לֵֽאלֹהִ֑ים וְאַתֶּ֖ם תִּהְיוּ־לִ֥י לְעָֽם׃
13 मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हें मिस्र देश से निकालकर लाया है कि तुम मिस्रियों के दास न बने रह जाओ, मैंने तुम्हारे जूए की पट्टियों को तोड़ दिया है और तुम्हें सीधा होकर चलने में समर्थ किया है.
אֲנִ֞י יְהוָ֣ה אֱלֹֽהֵיכֶ֗ם אֲשֶׁ֨ר הוֹצֵ֤אתִי אֶתְכֶם֙ מֵאֶ֣רֶץ מִצְרַ֔יִם מִֽהְיֹ֥ת לָהֶ֖ם עֲבָדִ֑ים וָאֶשְׁבֹּר֙ מֹטֹ֣ת עֻלְּכֶ֔ם וָאוֹלֵ֥ךְ אֶתְכֶ֖ם קֽוֹמְמִיּֽוּת׃ פ
14 “‘किंतु यदि तुम मेरी न सुनोगे और इन सारी आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे,
וְאִם־לֹ֥א תִשְׁמְע֖וּ לִ֑י וְלֹ֣א תַעֲשׂ֔וּ אֵ֥ת כָּל־הַמִּצְוֺ֖ת הָאֵֽלֶּה׃
15 यदि तुम मेरी विधियों को नकार दोगे; तुम्हारे प्राण मेरे निर्णयों को इतना तुच्छ जानें कि तुम मेरी सारी आज्ञाओं का पालन करना ही छोड़ दो और इस प्रकार मेरी वाचा को तोड़ ही डालो,
וְאִם־בְּחֻקֹּתַ֣י תִּמְאָ֔סוּ וְאִ֥ם אֶת־מִשְׁפָּטַ֖י תִּגְעַ֣ל נַפְשְׁכֶ֑ם לְבִלְתִּ֤י עֲשׂוֹת֙ אֶת־כָּל־מִצְוֺתַ֔י לְהַפְרְכֶ֖ם אֶת־בְּרִיתִֽי׃
16 तो निश्चित ही मैं तुम्हारे साथ यह करूंगा कि मैं तुमको अचानक ही आतंक, क्षय रोग और ज्वर-पीड़ित कर दूंगा, जिसके कारण तुम्हारी आंखें धुंधली हो जाएंगी तथा तुम्हारे प्राण मुरझा जाएंगे, तुम्हारा बीजारोपण भी व्यर्थ ही होगा क्योंकि तुम्हारे शत्रु इसको खा लेंगे.
אַף־אֲנִ֞י אֶֽעֱשֶׂה־זֹּ֣את לָכֶ֗ם וְהִפְקַדְתִּ֨י עֲלֵיכֶ֤ם בֶּֽהָלָה֙ אֶת־הַשַּׁחֶ֣פֶת וְאֶת־הַקַּדַּ֔חַת מְכַלּ֥וֹת עֵינַ֖יִם וּמְדִיבֹ֣ת נָ֑פֶשׁ וּזְרַעְתֶּ֤ם לָרִיק֙ זַרְעֲכֶ֔ם וַאֲכָלֻ֖הוּ אֹיְבֵיכֶֽם׃
17 मैं तुम्हारे विरुद्ध हो जाऊंगा, जिससे तुम्हारे शत्रु तुम्हें हरा देंगे और जो तुमसे घृणा करते हैं, वे तुम पर शासन करेंगे. जब तुम्हारा पीछा कोई भी न कर रहा होगा, तब भी तुम भागते रहोगे.
וְנָתַתִּ֤י פָנַי֙ בָּכֶ֔ם וְנִגַּפְתֶּ֖ם לִפְנֵ֣י אֹיְבֵיכֶ֑ם וְרָד֤וּ בָכֶם֙ שֹֽׂנְאֵיכֶ֔ם וְנַסְתֶּ֖ם וְאֵין־רֹדֵ֥ף אֶתְכֶֽם׃ ס
18 “‘इतना सब होने पर भी यदि तुम मेरी आज्ञा नहीं मानोगे, तो मैं तुम्हें तुम्हारे पापों का सात गुणा दंड दूंगा.
וְאִ֨ם־עַד־אֵ֔לֶּה לֹ֥א תִשְׁמְע֖וּ לִ֑י וְיָסַפְתִּי֙ לְיַסְּרָ֣ה אֶתְכֶ֔ם שֶׁ֖בַע עַל־חַטֹּאתֵיכֶֽם׃
19 मैं तुम्हारे बल के घमण्ड़ को समाप्‍त कर दूंगा और तुम्हारे आकाश को लोहे के समान और तुम्हारी भूमि को कांसे के समान बना दूंगा.
וְשָׁבַרְתִּ֖י אֶת־גְּא֣וֹן עֻזְּכֶ֑ם וְנָתַתִּ֤י אֶת־שְׁמֵיכֶם֙ כַּבַּרְזֶ֔ל וְאֶֽת־אַרְצְכֶ֖ם כַּנְּחֻשָֽׁה׃
20 तुम्हारे द्वारा की गई मेहनत बेकार होगी क्योंकि तुम्हारी भूमि अपनी उपज पैदा न करेगी और न ही देश के वृक्ष अपना फल उत्पन्‍न करेंगे.
וְתַ֥ם לָרִ֖יק כֹּחֲכֶ֑ם וְלֹֽא־תִתֵּ֤ן אַרְצְכֶם֙ אֶת־יְבוּלָ֔הּ וְעֵ֣ץ הָאָ֔רֶץ לֹ֥א יִתֵּ֖ן פִּרְיֽוֹ׃
21 “‘इतना होने पर भी यदि तुम अपना स्वभाव मेरे विरुद्ध ही रखोगे और मेरी आज्ञा न मानोगे, तो मैं तुम्हारे पापों के अनुसार तुम पर महामारी में सात गुणा वृद्धि कर दूंगा.
וְאִם־תֵּֽלְכ֤וּ עִמִּי֙ קֶ֔רִי וְלֹ֥א תֹאב֖וּ לִשְׁמֹ֣עַֽ לִ֑י וְיָסַפְתִּ֤י עֲלֵיכֶם֙ מַכָּ֔ה שֶׁ֖בַע כְּחַטֹּאתֵיכֶֽם׃
22 मैं तुम पर जंगली जानवर भेज दूंगा, जो तुम्हें संतानहीन बना डालेंगे और तुम्हारे पशुओं को नष्ट कर डालेंगे. वे तुम्हारी संख्या इतनी कम कर देंगे, कि तुम्हारे रास्ते निर्जन रह जाएंगे.
וְהִשְׁלַחְתִּ֨י בָכֶ֜ם אֶת־חַיַּ֤ת הַשָּׂדֶה֙ וְשִׁכְּלָ֣ה אֶתְכֶ֔ם וְהִכְרִ֙יתָה֙ אֶת־בְּהֶמְתְּכֶ֔ם וְהִמְעִ֖יטָה אֶתְכֶ֑ם וְנָשַׁ֖מּוּ דַּרְכֵיכֶֽם׃
23 “‘यदि इस ताड़ना के बाद भी तुम मेरी ओर न मुड़े, बल्कि मेरे विरुद्ध शत्रुता भाव ही बनाए रखा,
וְאִ֨ם־בְּאֵ֔לֶּה לֹ֥א תִוָּסְר֖וּ לִ֑י וַהֲלַכְתֶּ֥ם עִמִּ֖י קֶֽרִי׃
24 तो मैं भी तुमसे शत्रुता भाव रखूंगा और मैं, हां मैं, तुम्हारे पापों के कारण तुम पर सात गुणा आक्रमण करूंगा.
וְהָלַכְתִּ֧י אַף־אֲנִ֛י עִמָּכֶ֖ם בְּקֶ֑רִי וְהִכֵּיתִ֤י אֶתְכֶם֙ גַּם־אָ֔נִי שֶׁ֖בַע עַל־חַטֹּאתֵיכֶֽם׃
25 मैं तुम पर एक तलवार भेजूंगा, जो वाचा को तोड़ने का पूरा बदला लेगी. जब तुम अपने नगरों में इकट्‍ठे होंगे, मैं तुम्हारे बीच महामारी भेजूंगा, और तुम शत्रुओं के अधीन कर दिए जाओ.
וְהֵבֵאתִ֨י עֲלֵיכֶ֜ם חֶ֗רֶב נֹקֶ֙מֶת֙ נְקַם־בְּרִ֔ית וְנֶאֱסַפְתֶּ֖ם אֶל־עָרֵיכֶ֑ם וְשִׁלַּ֤חְתִּי דֶ֙בֶר֙ בְּת֣וֹכְכֶ֔ם וְנִתַּתֶּ֖ם בְּיַד־אוֹיֵֽב׃
26 जब मैं तुम्हारे भोजन के आधार को दूर कर दूंगा, तब दस महिलाएं एक ही चूल्हे पर रोटी सेकेंगी और वे इन्हें तोल-तोल कर छोटी संख्या में बांट देंगी, कि तुम उनको खाओगे, परंतु तृप्‍त न होंगे.
בְּשִׁבְרִ֣י לָכֶם֮ מַטֵּה־לֶחֶם֒ וְ֠אָפוּ עֶ֣שֶׂר נָשִׁ֤ים לַחְמְכֶם֙ בְּתַנּ֣וּר אֶחָ֔ד וְהֵשִׁ֥יבוּ לַחְמְכֶ֖ם בַּמִּשְׁקָ֑ל וַאֲכַלְתֶּ֖ם וְלֹ֥א תִשְׂבָּֽעוּ׃ ס
27 “‘इतना सब होने पर भी यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करोगे, बल्कि मेरे विरुद्ध शत्रु सा व्यवहार ही बनाए रखोगे,
וְאִ֨ם־בְּזֹ֔את לֹ֥א תִשְׁמְע֖וּ לִ֑י וַהֲלַכְתֶּ֥ם עִמִּ֖י בְּקֶֽרִי׃
28 तब मैं अत्यंत क्रोधित होकर तुमसे शत्रुता रखूंगा और मैं, हां मैं, तुम्हारे पापों के लिए तुम्हें सात गुणा दंड दूंगा.
וְהָלַכְתִּ֥י עִמָּכֶ֖ם בַּחֲמַת־קֶ֑רִי וְיִסַּרְתִּ֤י אֶתְכֶם֙ אַף־אָ֔נִי שֶׁ֖בַע עַל־חַטֹּאתֵיכֶם׃
29 तुम अपने पुत्रों के मांस को खाओगे और हां, तुम अपनी पुत्रियों के मांस को खाओगे.
וַאֲכַלְתֶּ֖ם בְּשַׂ֣ר בְּנֵיכֶ֑ם וּבְשַׂ֥ר בְּנֹתֵיכֶ֖ם תֹּאכֵֽלוּ׃
30 मैं तुम्हारे ऊंचे पूजा स्थलों को नाश कर, तुम्हारी धूप वेदियों को तोड़ दूंगा, मैं तुम्हारे शवों को तुम्हारी मूर्तियों के ढेर पर फेंक दूंगा, और मेरा आत्मा तुमसे घृणा करेगा.
וְהִשְׁמַדְתִּ֞י אֶת־בָּמֹֽתֵיכֶ֗ם וְהִכְרַתִּי֙ אֶת־חַמָּ֣נֵיכֶ֔ם וְנָֽתַתִּי֙ אֶת־פִּגְרֵיכֶ֔ם עַל־פִּגְרֵ֖י גִּלּוּלֵיכֶ֑ם וְגָעֲלָ֥ה נַפְשִׁ֖י אֶתְכֶֽם׃
31 मैं तुम्हारे नगरों को भी उजाड़ दूंगा और तुम्हारे पवित्र स्थानों को सूना कर दूंगा, मैं तुम्हारी सुखद-सुगंध को स्वीकार नहीं करूंगा.
וְנָתַתִּ֤י אֶת־עָֽרֵיכֶם֙ חָרְבָּ֔ה וַהֲשִׁמּוֹתִ֖י אֶת־מִקְדְּשֵׁיכֶ֑ם וְלֹ֣א אָרִ֔יחַ בְּרֵ֖יחַ נִיחֹֽחֲכֶֽם׃
32 मैं तुम्हारे नगरों को सूना बना दूंगा जिससे कि तुम्हारे शत्रु जो वहां बसने आएंगे, इसे देख भयभीत हो जाएंगे.
וַהֲשִׁמֹּתִ֥י אֲנִ֖י אֶת־הָאָ֑רֶץ וְשָֽׁמְמ֤וּ עָלֶ֙יהָ֙ אֹֽיְבֵיכֶ֔ם הַיֹּשְׁבִ֖ים בָּֽהּ׃
33 तुम जाति-जाति के बीच बिखर जाओगे और तलवार तुम्हारा पीछा करेगी, तुम्हारा देश निर्जन और तुम्हारे नगर उजाड़ हो जाएंगे.
וְאֶתְכֶם֙ אֱזָרֶ֣ה בַגּוֹיִ֔ם וַהֲרִיקֹתִ֥י אַחֲרֵיכֶ֖ם חָ֑רֶב וְהָיְתָ֤ה אַרְצְכֶם֙ שְׁמָמָ֔ה וְעָרֵיכֶ֖ם יִהְי֥וּ חָרְבָּֽה׃
34 तुम्हारे इस भूमि पर निवास करने की स्थिति में, भूमि को जो विश्राम तुम्हारे शब्बाथों में प्राप्‍त नहीं हुआ था, वह उस विश्राम अब, इस पूरे खाली समय की अवधि में, प्राप्‍त होगा. इस प्रकार भूमि को अपने शब्बाथ प्राप्‍त हो जाएंगे. जब तुम अपने शत्रुओं के देश में जाओगे, तब सूनेपन की अवस्था में भूमि अपने शब्बाथों का आनंद उठाएगी.
אָז֩ תִּרְצֶ֨ה הָאָ֜רֶץ אֶת־שַׁבְּתֹתֶ֗יהָ כֹּ֚ל יְמֵ֣י הֳשַׁמָּ֔ה וְאַתֶּ֖ם בְּאֶ֣רֶץ אֹיְבֵיכֶ֑ם אָ֚ז תִּשְׁבַּ֣ת הָאָ֔רֶץ וְהִרְצָ֖ת אֶת־שַׁבְּתֹתֶֽיהָ׃
כָּל־יְמֵ֥י הָשַּׁמָּ֖ה תִּשְׁבֹּ֑ת אֵ֣ת אֲשֶׁ֧ר לֹֽא־שָׁבְתָ֛ה בְּשַׁבְּתֹתֵיכֶ֖ם בְּשִׁבְתְּכֶ֥ם עָלֶֽיהָ׃
36 “‘तुममें जो बचे रह गए होंगे, मैं उनके शत्रुओं के देश में उनका मनोबल इतना कमजोर कर दूंगा कि वे हवा के द्वारा छितराए पत्ते की खड़खड़ाहट सुनकर भाग खड़े होंगे. जब कोई उनका पीछा भी नहीं कर रहा होगा, तो भी वे भाग खड़े होंगे, मानो कोई तलवार लिए उनका पीछा कर रहा हो और वे गिर-गिर पड़ेंगे.
וְהַנִּשְׁאָרִ֣ים בָּכֶ֔ם וְהֵבֵ֤אתִי מֹ֙רֶךְ֙ בִּלְבָבָ֔ם בְּאַרְצֹ֖ת אֹיְבֵיהֶ֑ם וְרָדַ֣ף אֹתָ֗ם ק֚וֹל עָלֶ֣ה נִדָּ֔ף וְנָס֧וּ מְנֻֽסַת־חֶ֛רֶב וְנָפְל֖וּ וְאֵ֥ין רֹדֵֽף׃
37 वे लड़खड़ा कर एक दूसरे पर ऐसे गिरेंगे, मानो वे तलवार से भाग रहे हों, जबकि कोई भी उनका पीछा नहीं कर रहा होगा; तुम्हारे शत्रुओं के सामने खड़ा होने के लिए तुम्हारे अंदर शक्ति न बचेगी.
וְכָשְׁל֧וּ אִישׁ־בְּאָחִ֛יו כְּמִפְּנֵי־חֶ֖רֶב וְרֹדֵ֣ף אָ֑יִן וְלֹא־תִֽהְיֶ֤ה לָכֶם֙ תְּקוּמָ֔ה לִפְנֵ֖י אֹֽיְבֵיכֶֽם׃
38 तुम बंधुआई में देशों के बीच नाश हो जाओगे और तुम्हारे शत्रुओं का देश तुम्हें चट कर डालेगा;
וַאֲבַדְתֶּ֖ם בַּגּוֹיִ֑ם וְאָכְלָ֣ה אֶתְכֶ֔ם אֶ֖רֶץ אֹיְבֵיכֶֽם׃
39 तुममें से जो बचे रह जाएंगे, वे अपने और उनके पुरखों के अधर्म के कारण उनके शत्रुओं के देश में गल जाएंगे.
וְהַנִּשְׁאָרִ֣ים בָּכֶ֗ם יִמַּ֙קּוּ֙ בַּֽעֲוֺנָ֔ם בְּאַרְצֹ֖ת אֹיְבֵיכֶ֑ם וְאַ֛ף בַּעֲוֺנֹ֥ת אֲבֹתָ֖ם אִתָּ֥ם יִמָּֽקּוּ׃
40 “‘यदि वे अपनी और अपने पूर्वजों के उन अधर्मों को स्वीकार कर लेंगे, जो उन्होंने अपने विश्वासघात और मेरे विरुद्ध शत्रु के भाव की स्थिति में की थी,
וְהִתְוַדּ֤וּ אֶת־עֲוֺנָם֙ וְאֶת־עֲוֺ֣ן אֲבֹתָ֔ם בְּמַעֲלָ֖ם אֲשֶׁ֣ר מָֽעֲלוּ־בִ֑י וְאַ֕ף אֲשֶׁר־הָֽלְכ֥וּ עִמִּ֖י בְּקֶֽרִי׃
41 जिससे मैंने भी उनके विरुद्ध हो उन्हें उनके शत्रुओं के देश में बसा दिया; अथवा उनका खतना-रहित हृदय इस प्रकार दब जाए कि वे अपने अधर्मों के लिए प्रायश्चित्त कर लें,
אַף־אֲנִ֗י אֵלֵ֤ךְ עִמָּם֙ בְּקֶ֔רִי וְהֵבֵאתִ֣י אֹתָ֔ם בְּאֶ֖רֶץ אֹיְבֵיהֶ֑ם אוֹ־אָ֣ז יִכָּנַ֗ע לְבָבָם֙ הֶֽעָרֵ֔ל וְאָ֖ז יִרְצ֥וּ אֶת־עֲוֺנָֽם׃
42 तो मैं याकोब के साथ अपनी वाचा को, यित्सहाक के साथ अपनी वाचा को और अब्राहाम के साथ अपनी वाचा को, और इस देश को भी स्मरण करूंगा.
וְזָכַרְתִּ֖י אֶת־בְּרִיתִ֣י יַעֲק֑וֹב וְאַף֩ אֶת־בְּרִיתִ֨י יִצְחָ֜ק וְאַ֨ף אֶת־בְּרִיתִ֧י אַבְרָהָ֛ם אֶזְכֹּ֖ר וְהָאָ֥רֶץ אֶזְכֹּֽר׃
43 किंतु उनके निकल जाने के कारण यह देश सूना हो जाएगा, कि यह भूमि अपने शब्बाथों के नुकसान की पूर्ति कर ले. इसी अवधि में वे अपने अधर्मों के लिए प्रायश्चित करेंगे; क्योंकि उन्होंने मेरे नियमों को नकार दिया था और मेरी विधियों से घृणा की थी.
וְהָאָרֶץ֩ תֵּעָזֵ֨ב מֵהֶ֜ם וְתִ֣רֶץ אֶת־שַׁבְּתֹתֶ֗יהָ בָּהְשַׁמָּה֙ מֵהֶ֔ם וְהֵ֖ם יִרְצ֣וּ אֶת־עֲוֺנָ֑ם יַ֣עַן וּבְיַ֔עַן בְּמִשְׁפָּטַ֣י מָאָ֔סוּ וְאֶת־חֻקֹּתַ֖י גָּעֲלָ֥ה נַפְשָֽׁם׃
44 इतना होने पर भी, जब वे अपने शत्रुओं के देश में होंगे, तब भी मैं उनको नहीं छोडूंगा और न ही उनसे इतनी घृणा करूंगा कि मैं उनका नाश कर दूं और उनके साथ अपनी वाचा को भंग करूं. मैं ही याहवेह, उनका परमेश्वर हूं.
וְאַף־גַּם־זֹ֠את בִּֽהְיוֹתָ֞ם בְּאֶ֣רֶץ אֹֽיְבֵיהֶ֗ם לֹֽא־מְאַסְתִּ֤ים וְלֹֽא־גְעַלְתִּים֙ לְכַלֹּתָ֔ם לְהָפֵ֥ר בְּרִיתִ֖י אִתָּ֑ם כִּ֛י אֲנִ֥י יְהוָ֖ה אֱלֹהֵיהֶֽם׃
45 मैं उनके उन पूर्वजों से की गई वाचा को स्मरण करूंगा, जिन्हें मैं जातियों के देखते-देखते मिस्र से निकालकर लाया था कि मैं उनका परमेश्वर हो जाऊं. मैं ही याहवेह हूं.’”
וְזָכַרְתִּ֥י לָהֶ֖ם בְּרִ֣ית רִאשֹׁנִ֑ים אֲשֶׁ֣ר הוֹצֵֽאתִי־אֹתָם֩ מֵאֶ֨רֶץ מִצְרַ֜יִם לְעֵינֵ֣י הַגּוֹיִ֗ם לִהְיֹ֥ת לָהֶ֛ם לֵאלֹהִ֖ים אֲנִ֥י יְהוָֽה׃
46 यही वे विधियां, व्यवस्था और नियम हैं, जिन्हें याहवेह ने, मोशेह के द्वारा सीनायी पर्वत पर अपने और इस्राएल के घराने के बीच ठहराई.
אֵ֠לֶּה הַֽחֻקִּ֣ים וְהַמִּשְׁפָּטִים֮ וְהַתּוֹרֹת֒ אֲשֶׁר֙ נָתַ֣ן יְהוָ֔ה בֵּינ֕וֹ וּבֵ֖ין בְּנֵ֣י יִשְׂרָאֵ֑ל בְּהַ֥ר סִינַ֖י בְּיַד־מֹשֶֽׁה׃ פ

< लैव्यव्यवस्था 26 >