< תְהִלִּים 78 >

מַשְׂכִּ֗יל לְאָ֫סָ֥ף הַאֲזִ֣ינָה עַ֭מִּי תֹּורָתִ֑י הַטּ֥וּ אָ֝זְנְכֶ֗ם לְאִמְרֵי־פִֽי׃ 1
ऐ मेरे लोगों मेरी शरी'अत को सुनो मेरे मुँह की बातों पर कान लगाओ।
אֶפְתְּחָ֣ה בְמָשָׁ֣ל פִּ֑י אַבִּ֥יעָה חִ֝ידֹ֗ות מִנִּי־קֶֽדֶם׃ 2
मैं तम्सील में कलाम करूँगा, और पुराने पोशीदा राज़ कहूँगा,
אֲשֶׁ֣ר שָׁ֭מַעְנוּ וַנֵּדָעֵ֑ם וַ֝אֲבֹותֵ֗ינוּ סִפְּרוּ־לָֽנוּ׃ 3
जिनको हम ने सुना और जान लिया, और हमारे बाप — दादा ने हम को बताया।
לֹ֤א נְכַחֵ֨ד ׀ מִבְּנֵיהֶ֗ם לְדֹ֥ור אַחֲרֹ֗ון מְֽ֭סַפְּרִים תְּהִלֹּ֣ות יְהוָ֑ה וֶעֱזוּזֹ֥ו וְ֝נִפְלְאֹותָ֗יו אֲשֶׁ֣ר עָשָֽׂה׃ 4
और जिनको हम उनकी औलाद से पोशीदा नहीं रख्खेंगे; बल्कि आइंदा नसल को भी ख़ुदावन्द की ता'रीफ़, और उसकी कु़दरत और 'अजाईब जो उसने किए बताएँगे।
וַיָּ֤קֶם עֵד֨וּת ׀ בְּֽיַעֲקֹ֗ב וְתֹורָה֮ שָׂ֤ם בְּיִשְׂרָ֫אֵ֥ל אֲשֶׁ֣ר צִ֭וָּה אֶת־אֲבֹותֵ֑ינוּ לְ֝הֹודִיעָ֗ם לִבְנֵיהֶֽם׃ 5
क्यूँकि उसने या'कू़ब में एक शहादत क़ाईम की, और इस्राईल में शरी'अत मुक़र्रर की, जिनके बारे में उसने हमारे बाप दादा को हुक्म दिया, कि वह अपनी औलाद को उनकी ता'लीम दें,
לְמַ֤עַן יֵדְע֨וּ ׀ דֹּ֣ור אַ֭חֲרֹון בָּנִ֣ים יִוָּלֵ֑דוּ יָ֝קֻ֗מוּ וִֽיסַפְּר֥וּ לִבְנֵיהֶֽם׃ 6
ताकि आइंदा नसल, या'नी वह फ़र्ज़न्द जो पैदा होंगे, उनको जान लें: और वह बड़े होकर अपनी औलाद को सिखाएँ,
וְיָשִׂ֥ימוּ בֵֽאלֹהִ֗ים כִּ֫סְלָ֥ם וְלֹ֣א יִ֭שְׁכְּחוּ מַֽעַלְלֵי־אֵ֑ל וּמִצְוֹתָ֥יו יִנְצֹֽרוּ׃ 7
कि वह ख़ुदा पर उम्मीद रखें, और उसके कामों को भूल न जाएँ, बल्कि उसके हुक्मों पर 'अमल करें;
וְלֹ֤א יִהְי֨וּ ׀ כַּאֲבֹותָ֗ם דֹּור֮ סֹורֵ֪ר וּמֹ֫רֶ֥ה דֹּ֭ור לֹא־הֵכִ֣ין לִבֹּ֑ו וְלֹא־נֶאֶמְנָ֖ה אֶת־אֵ֣ל רוּחֹֽו׃ 8
और अपने बाप — दादा की तरह, सरकश और बाग़ी नसल न बनें: ऐसी नसल जिसने अपना दिल दुरुस्त न किया और जिसकी रूह ख़ुदा के सामने वफ़ादार न रही।
בְּֽנֵי־אֶפְרַ֗יִם נֹושְׁקֵ֥י רֹומֵי־קָ֑שֶׁת הָ֝פְכ֗וּ בְּיֹ֣ום קְרָֽב׃ 9
बनी इफ़्राईम हथियार बन्द होकर और कमाने रखते हुए लड़ाई के दिन फिर गए।
לֹ֣א שָׁ֭מְרוּ בְּרִ֣ית אֱלֹהִ֑ים וּ֝בְתֹורָתֹ֗ו מֵאֲנ֥וּ לָלֶֽכֶת׃ 10
उन्होंने ख़ुदा के 'अहद को क़ाईम न रख्खा, और उसकी शरी'अत पर चलने से इन्कार किया।
וַיִּשְׁכְּח֥וּ עֲלִילֹותָ֑יו וְ֝נִפְלְאֹותָ֗יו אֲשֶׁ֣ר הֶרְאָֽם׃ 11
और उसके कामों को और उसके'अजायब को, जो उसने उनको दिखाए थे भूल गए।
נֶ֣גֶד אֲ֭בֹותָם עָ֣שָׂה פֶ֑לֶא בְּאֶ֖רֶץ מִצְרַ֣יִם שְׂדֵה־צֹֽעַן׃ 12
उसने मुल्क — ए — मिस्र में जुअन के इलाके में, उनके बाप — दादा के सामने 'अजीब — ओ — ग़रीब काम किए।
בָּ֣קַע יָ֭ם וַיַּֽעֲבִירֵ֑ם וַֽיַּצֶּב־מַ֥יִם כְּמֹו־נֵֽד׃ 13
उसने समुन्दर के दो हिस्से करके उनको पार उतारा, और पानी को तूदे की तरह खड़ा कर दिया।
וַיַּנְחֵ֣ם בֶּעָנָ֣ן יֹומָ֑ם וְכָל־הַ֝לַּ֗יְלָה בְּאֹ֣ור אֵֽשׁ׃ 14
उसने दिन को बादल से उनकी रहबरी की, और रात भर आग की रोशनी से।
יְבַקַּ֣ע צֻ֭רִים בַּמִּדְבָּ֑ר וַ֝יַּ֗שְׁקְ כִּתְהֹמֹ֥ות רַבָּֽה׃ 15
उसने वीरान में चट्टानों को चीरा, और उनको जैसे बहर से खू़ब पिलाया।
וַיֹּוצִ֣א נֹוזְלִ֣ים מִסָּ֑לַע וַיֹּ֖ורֶד כַּנְּהָרֹ֣ות מָֽיִם׃ 16
उसने चट्टान में से नदियाँ जारी कीं, और दरियाओं की तरह पानी बहाया।
וַיֹּוסִ֣יפוּ עֹ֖וד לַחֲטֹא־לֹ֑ו לַֽמְרֹ֥ות עֶ֝לְיֹ֗ון בַּצִּיָּֽה׃ 17
तोभी वह उसके ख़िलाफ़ गुनाह करते ही गए, और वीरान में हक़ता'ला से सरकशी करते रहे।
וַיְנַסּוּ־אֵ֥ל בִּלְבָבָ֑ם לִֽשְׁאָל־אֹ֥כֶל לְנַפְשָֽׁם׃ 18
और उन्होंने अपनी ख़्वाहिश के मुताबिक़ खाना मांग कर अपने दिल में ख़ुदा को आज़माया।
וַֽיְדַבְּר֗וּ בֵּֽאלֹ֫הִ֥ים אָ֭מְרוּ הֲי֣וּכַל אֵ֑ל לַעֲרֹ֥ךְ שֻׁ֝לְחָ֗ן בַּמִּדְבָּֽר׃ 19
बल्कि वह ख़ुदा के खि़लाफ़ बकने लगे, और कहा, “क्या ख़ुदा वीरान में दस्तरख़्वान बिछा सकता है?
הֵ֤ן הִכָּה־צ֨וּר ׀ וַיָּז֣וּבוּ מַיִם֮ וּנְחָלִ֪ים יִ֫שְׁטֹ֥פוּ הֲגַם־לֶ֭חֶם י֣וּכַל תֵּ֑ת אִם־יָכִ֖ין שְׁאֵ֣ר לְעַמֹּֽו׃ 20
देखो, उसने चट्टान को मारा तो पानी फूट निकला, और नदियाँ बहने लगीं क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपने लोगों के लिए गोश्त मुहय्या कर देगा?”
לָכֵ֤ן ׀ שָׁמַ֥ע יְהוָ֗ה וַֽיִּתְעַבָּ֥ר וְ֭אֵשׁ נִשְּׂקָ֣ה בְיַעֲקֹ֑ב וְגַם־אַ֝֗ף עָלָ֥ה בְיִשְׂרָאֵֽל׃ 21
तब ख़ुदावन्द सुन कर गज़बनाक हुआ, और या'कू़ब के ख़िलाफ़ आग भड़क उठी, और इस्राईल पर क़हर टूट पड़ा;
כִּ֤י לֹ֣א הֶ֭אֱמִינוּ בֵּאלֹהִ֑ים וְלֹ֥א בָ֝טְח֗וּ בִּֽישׁוּעָתֹֽו׃ 22
इसलिए कि वह ख़ुदा पर ईमान न लाए, और उसकी नजात पर भरोसा न किया।
וַיְצַ֣ו שְׁחָקִ֣ים מִמָּ֑עַל וְדַלְתֵ֖י שָׁמַ֣יִם פָּתָֽח׃ 23
तोभी उसने आसमानों को हुक्म दिया, और आसमान के दरवाज़े खोले:
וַיַּמְטֵ֬ר עֲלֵיהֶ֣ם מָ֣ן לֶאֱכֹ֑ל וּדְגַן־שָׁ֝מַ֗יִם נָ֣תַן לָֽמֹו׃ 24
और खाने के लिए उन पर मन्न बरसाया, और उनको आसमानी खू़राक बख़्शी।
לֶ֣חֶם אַ֭בִּירִים אָ֣כַל אִ֑ישׁ צֵידָ֬ה שָׁלַ֖ח לָהֶ֣ם לָשֹֽׂבַע׃ 25
इंसान ने फ़रिश्तों की गिज़ा खाई: उसने खाना भेजकर उनको आसूदा किया।
יַסַּ֣ע קָ֭דִים בַּשָּׁמָ֑יִם וַיְנַהֵ֖ג בְּעֻזֹּ֣ו תֵימָֽן׃ 26
उसने आसमान में पुर्वा चलाई, और अपनी कु़दरत से दखना बहाई।
וַיַּמְטֵ֬ר עֲלֵיהֶ֣ם כֶּעָפָ֣ר שְׁאֵ֑ר וּֽכְחֹ֥ול יַ֝מִּ֗ים עֹ֣וף כָּנָֽף׃ 27
उसने उन पर गोश्त को ख़ाक की तरह बरसाया, और परिन्दों को समन्दर की रेत की तरह;
וַ֭יַּפֵּל בְּקֶ֣רֶב מַחֲנֵ֑הוּ סָ֝בִ֗יב לְמִשְׁכְּנֹתָֽיו׃ 28
जिनको उसने उनकी खे़मागाह में, उनके घरों के आसपास गिराया।
וַיֹּאכְל֣וּ וַיִּשְׂבְּע֣וּ מְאֹ֑ד וְ֝תַֽאֲוָתָ֗ם יָבִ֥א לָהֶֽם׃ 29
तब वह खाकर खू़ब सेर हुए, और उसने उनकी ख़्वाहिश पूरी की।
לֹא־זָר֥וּ מִתַּאֲוָתָ֑ם עֹ֝֗וד אָכְלָ֥ם בְּפִיהֶֽם׃ 30
वह अपनी ख्वाहिश से बाज़ न आए, और उनका खाना उनके मुँह ही में था।
וְאַ֤ף אֱלֹהִ֨ים ׀ עָ֘לָ֤ה בָהֶ֗ם וַֽ֭יַּהֲרֹג בְּמִשְׁמַנֵּיהֶ֑ם וּבַחוּרֵ֖י יִשְׂרָאֵ֣ל הִכְרִֽיעַ׃ 31
कि ख़ुदा का ग़ज़ब उन पर टूट पड़ा, और उनके सबसे मोटे ताज़े आदमी क़त्ल किए, और इस्राईली जवानों को मार गिराया।
בְּכָל־זֹ֭את חָֽטְאוּ־עֹ֑וד וְלֹֽא־הֶ֝אֱמִ֗ינוּ בְּנִפְלְאֹותָֽיו׃ 32
बावुजूद इन सब बातों कि वह गुनाह करते ही रहे; और उसके 'अजीब — ओ — ग़रीब कामों पर ईमान न लाए।
וַיְכַל־בַּהֶ֥בֶל יְמֵיהֶ֑ם וּ֝שְׁנֹותָ֗ם בַּבֶּהָלָֽה׃ 33
इसलिए उसने उनके दिनों को बतालत से, और उनके बरसों को दहशत से तमाम कर दिया।
אִם־הֲרָגָ֥ם וּדְרָשׁ֑וּהוּ וְ֝שָׁ֗בוּ וְשִֽׁחֲרוּ־אֵֽל׃ 34
जब वह उनको कत्ल करने लगा, तो वह उसके तालिब हुए; और रुजू होकर दिल — ओ — जान से ख़ुदा को ढूंडने लगे।
וַֽ֭יִּזְכְּרוּ כִּֽי־אֱלֹהִ֣ים צוּרָ֑ם וְאֵ֥ל עֶ֝לְיֹון גֹּאֲלָֽם׃ 35
और उनको याद आया कि ख़ुदा उनकी चट्टान, और ख़ुदा ता'ला उनका फ़िदिया देने वाला है।
וַיְפַתּ֥וּהוּ בְּפִיהֶ֑ם וּ֝בִלְשֹׁונָ֗ם יְכַזְּבוּ־לֹֽו׃ 36
लेकिन उन्होंने अपने मुँह से उसकी ख़ुशामद की, और अपनी ज़बान से उससे झूट बोला।
וְ֭לִבָּם לֹא־נָכֹ֣ון עִמֹּ֑ו וְלֹ֥א נֶ֝אֶמְנ֗וּ בִּבְרִיתֹֽו׃ 37
क्यूँकि उनका दिल उसके सामने दुरुस्त और वह उसके 'अहद में वफ़ादार न निकले।
וְה֤וּא רַח֨וּם ׀ יְכַפֵּ֥ר עָוֹן֮ וְֽלֹא־יַ֫שְׁחִ֥ית וְ֭הִרְבָּה לְהָשִׁ֣יב אַפֹּ֑ו וְלֹֽא־יָ֝עִיר כָּל־חֲמָתֹֽו׃ 38
लेकिन वह रहीम होकर बदकारी मु'आफ़ करता है, और हलाक नहीं करता; बल्कि बारहा अपने क़हर को रोक लेता है, और अपने पूरे ग़ज़ब को भड़कने नहीं देता।
וַ֭יִּזְכֹּר כִּי־בָשָׂ֣ר הֵ֑מָּה ר֥וּחַ הֹ֝ולֵ֗ךְ וְלֹ֣א יָשֽׁוּב׃ 39
और उसे याद रहता है कि यह महज़ बशर है। या'नी हवा जो चली जाती है और फिर नहीं आती।
כַּ֭מָּה יַמְר֣וּהוּ בַמִּדְבָּ֑ר יַ֝עֲצִיב֗וּהוּ בִּֽישִׁימֹֽון׃ 40
कितनी बार उन्होंने वीरान में उससे सरकशी की और सेहरा में उसे दुख किया।
וַיָּשׁ֣וּבוּ וַיְנַסּ֣וּ אֵ֑ל וּקְדֹ֖ושׁ יִשְׂרָאֵ֣ל הִתְווּ׃ 41
और वह फिर ख़ुदा को आज़माने लगे और उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा को नाराज़ किया।
לֹא־זָכְר֥וּ אֶת־יָדֹ֑ו יֹ֝֗ום אֲ‍ֽשֶׁר־פָּדָ֥ם מִנִּי־צָֽר׃ 42
उन्होंने उसके हाथ को याद न रखा, न उस दिन की जब उसने फ़िदिया देकर उनको मुख़ालिफ़ से रिहाई बख़्शी।
אֲשֶׁר־שָׂ֣ם בְּ֭מִצְרַיִם אֹֽתֹותָ֑יו וּ֝מֹופְתָ֗יו בִּשְׂדֵה־צֹֽעַן׃ 43
उसने मिस्र में अपने निशान दिखाए, और जुअन के 'इलाके में अपने अजायब।
וַיַּהֲפֹ֣ךְ לְ֭דָם יְאֹרֵיהֶ֑ם וְ֝נֹזְלֵיהֶ֗ם בַּל־יִשְׁתָּיֽוּן׃ 44
और उनके दरियाओं को खू़न बना दिया और वह अपनी नदियों से पी न सके।
יְשַׁלַּ֬ח בָּהֶ֣ם עָ֭רֹב וַיֹּאכְלֵ֑ם וּ֝צְפַרְדֵּ֗עַ וַתַּשְׁחִיתֵֽם׃ 45
उसने उन पर मच्छरों के ग़ोल भेजे जो उनको खा गए और मेंढ़क जिन्होंने उनको तबाह कर दिया।
וַיִּתֵּ֣ן לֶחָסִ֣יל יְבוּלָ֑ם וִֽ֝יגִיעָ֗ם לָאַרְבֶּֽה׃ 46
उसने उनकी पैदावार कीड़ों को और उनकी मेहनत का फल टिड्डियों को दे दिया।
יַהֲרֹ֣ג בַּבָּרָ֣ד גַּפְנָ֑ם וְ֝שִׁקְמֹותָ֗ם בַּֽחֲנָמַֽל׃ 47
उसने उनकी ताकों को ओलों से और उनके गूलर के दरख़्तों को पाले से मारा।
וַיַּסְגֵּ֣ר לַבָּרָ֣ד בְּעִירָ֑ם וּ֝מִקְנֵיהֶ֗ם לָרְשָׁפִֽים׃ 48
उसने उनके चौपायों को ओलों के हवाले किया, और उनकी भेड़ बकरियों को बिजली के।
יְשַׁלַּח־בָּ֨ם ׀ חֲרֹ֬ון אַפֹּ֗ו עֶבְרָ֣ה וָזַ֣עַם וְצָרָ֑ה מִ֝שְׁלַ֗חַת מַלְאֲכֵ֥י רָעִֽים׃ 49
उसने 'ऐज़ाब के फ़रिश्तों की फ़ौज भेज कर अपनी क़हर की शिद्दत ग़ैज़ — ओ — ग़जब और बला को उन पर नाज़िल किया।
יְפַלֵּ֥ס נָתִ֗יב לְאַ֫פֹּ֥ו לֹא־חָשַׂ֣ךְ מִמָּ֣וֶת נַפְשָׁ֑ם וְ֝חַיָּתָ֗ם לַדֶּ֥בֶר הִסְגִּֽיר׃ 50
उसने अपने क़हर के लिए रास्ता बनाया, और उनकी जान मौत से न बचाई, बल्कि उनकी ज़िन्दगी वबा के हवाले की।
וַיַּ֣ךְ כָּל־בְּכֹ֣ור בְּמִצְרָ֑יִם רֵאשִׁ֥ית אֹ֝ונִ֗ים בְּאָהֳלֵי־חָֽם׃ 51
उसने मिस्र के सब पहलौठों को, या'नी हाम के घरों में उनकी ताक़त के पहले फल को मारा:
וַיַּסַּ֣ע כַּצֹּ֣אן עַמֹּ֑ו וַֽיְנַהֲגֵ֥ם כַּ֝עֵ֗דֶר בַּמִּדְבָּֽר׃ 52
लेकिन वह अपने लोगों को भेड़ों की तरह ले चला, और वीरान में ग़ल्ले की तरह उनकी रहनुमाई की।
וַיַּנְחֵ֣ם לָ֭בֶטַח וְלֹ֣א פָחָ֑דוּ וְאֶת־אֹ֝ויְבֵיהֶ֗ם כִּסָּ֥ה הַיָּֽם׃ 53
और वह उनको सलामत ले गया और वह न डरे, लेकिन उनके दुश्मनों को समन्दर ने छिपा लिया।
וַ֭יְבִיאֵם אֶל־גְּב֣וּל קָדְשֹׁ֑ו הַר־זֶ֝֗ה קָנְתָ֥ה יְמִינֹֽו׃ 54
और वह उनको अपने मक़दिस की सरहद तक लाया, या'नी उस पहाड़ तक जिसे उसके दहने हाथ ने हासिल किया था।
וַיְגָ֤רֶשׁ מִפְּנֵיהֶ֨ם ׀ גֹּויִ֗ם וַֽ֭יַּפִּילֵם בְּחֶ֣בֶל נַחֲלָ֑ה וַיַּשְׁכֵּ֥ן בְּ֝אָהֳלֵיהֶ֗ם שִׁבְטֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃ 55
उसने और क़ौमों को उनके सामने से निकाल दिया; जिनकी मीरास जरीब डाल कर उनको बाँट दी; और जिनके खे़मों में इस्राईल के क़बीलों को बसाया।
וַיְנַסּ֣וּ וַ֭יַּמְרוּ אֶת־אֱלֹהִ֣ים עֶלְיֹ֑ון וְ֝עֵדֹותָ֗יו לֹ֣א שָׁמָֽרוּ׃ 56
तोभी उन्होंने ख़ुदाता'ला को आज़मायाऔर उससे सरकशी की, और उसकी शहादतों को न माना;
וַיִּסֹּ֣גוּ וַֽ֭יִּבְגְּדוּ כַּאֲבֹותָ֑ם נֶ֝הְפְּכ֗וּ כְּקֶ֣שֶׁת רְמִיָּֽה׃ 57
बल्कि नाफ़रमान होकर अपने बाप दादा की तरह बेवफ़ाई की और धोका देने वाली कमान की तरह एक तरफ़ को झुक गए।
וַיַּכְעִיס֥וּהוּ בְּבָמֹותָ֑ם וּ֝בִפְסִילֵיהֶ֗ם יַקְנִיאֽוּהוּ׃ 58
क्यूँकि उन्होंने अपने ऊँचे मक़ामों के वजह से उसका क़हर भड़काया, और अपनी खोदी हुई मूरतों से उसे गै़रत दिलाई।
שָׁמַ֣ע אֱ֭לֹהִים וַֽיִּתְעַבָּ֑ר וַיִּמְאַ֥ס מְ֝אֹ֗ד בְּיִשְׂרָאֵֽל׃ 59
ख़ुदा यह सुनकर गज़बनाक हुआ, और इस्राईल से सख़्त नफ़रत की।
וַ֭יִּטֹּשׁ מִשְׁכַּ֣ן שִׁלֹ֑ו אֹ֝֗הֶל שִׁכֵּ֥ן בָּאָדָֽם׃ 60
फिर उसने शीलोह के घर को छोड़ दिया, या'नी उस खे़मे को जो बनी आदम के बीच खड़ा किया था।
וַיִּתֵּ֣ן לַשְּׁבִ֣י עֻזֹּ֑ו וְֽתִפְאַרְתֹּ֥ו בְיַד־צָֽר׃ 61
और उसने अपनी ताक़त को ग़ुलामी में, और अपनी हश्मत को मुख़ालिफ़ के हाथ में दे दिया।
וַיַּסְגֵּ֣ר לַחֶ֣רֶב עַמֹּ֑ו וּ֝בְנַחֲלָתֹ֗ו הִתְעַבָּֽר׃ 62
उसने अपने लोगों को तलवार के हवाले कर दिया, और वह अपनी मीरास से ग़ज़बनाक हो गया।
בַּחוּרָ֥יו אָֽכְלָה־אֵ֑שׁ וּ֝בְתוּלֹתָ֗יו לֹ֣א הוּלָּֽלוּ׃ 63
आग उनके जवानों को खा गई, और उनकी कुँवारियों के सुहाग न गाए गए।
כֹּ֭הֲנָיו בַּחֶ֣רֶב נָפָ֑לוּ וְ֝אַלְמְנֹתָ֗יו לֹ֣א תִבְכֶּֽינָה׃ 64
उनके काहिन तलवार से मारे गए, और उनकी बेवाओं ने नौहा न किया।
וַיִּקַ֖ץ כְּיָשֵׁ֥ן ׀ אֲדֹנָ֑י כְּ֝גִבֹּ֗ור מִתְרֹונֵ֥ן מִיָּֽיִן׃ 65
तब ख़ुदावन्द जैसे नींद से जाग उठा, उस ज़बरदस्त आदमी की तरह जो मय की वजह से ललकारता हो।
וַיַּךְ־צָרָ֥יו אָחֹ֑ור חֶרְפַּ֥ת עֹ֝ולָ֗ם נָ֣תַן לָֽמֹו׃ 66
और उसने अपने मुख़ालिफ़ों को मार कर पस्पा कर दिया; उसने उनको हमेशा के लिए रुस्वा किया।
וַ֭יִּמְאַס בְּאֹ֣הֶל יֹוסֵ֑ף וּֽבְשֵׁ֥בֶט אֶ֝פְרַ֗יִם לֹ֣א בָחָֽר׃ 67
और उसने यूसुफ़ के ख़मे को छोड़ दिया; और इफ़्राईम के क़बीले को न चुना;
וַ֭יִּבְחַר אֶת־שֵׁ֣בֶט יְהוּדָ֑ה אֶֽת־הַ֥ר צִ֝יֹּ֗ון אֲשֶׁ֣ר אָהֵֽב׃ 68
बल्कि यहूदाह के क़बीले को चुना! उसी कोह — ए — सिय्यून को जिससे उसको मुहब्बत थी।
וַיִּ֣בֶן כְּמֹו־רָ֭מִים מִקְדָּשֹׁ֑ו כְּ֝אֶ֗רֶץ יְסָדָ֥הּ לְעֹולָֽם׃ 69
और अपने मक़दिस को पहाड़ों की तरह तामीर किया, और ज़मीन की तरह जिसे उसने हमेशा के लिए क़ाईम किया है।
וַ֭יִּבְחַר בְּדָוִ֣ד עַבְדֹּ֑ו וַ֝יִּקָּחֵ֗הוּ מִֽמִּכְלְאֹ֥ת צֹֽאן׃ 70
उसने अपने बन्दे दाऊद को भी चुना, और भेड़सालों में से उसे ले लिया;
מֵאַחַ֥ר עָלֹ֗ות הֱ֫בִיאֹ֥ו לִ֭רְעֹות בְּיַעֲקֹ֣ב עַמֹּ֑ו וּ֝בְיִשְׂרָאֵ֗ל נַחֲלָתֹֽו׃ 71
वह उसे बच्चे वाली भेड़ों की चौपानी से हटा लाया, ताकि उसकी क़ौम या'कू़ब और उसकी मीरास इस्राईल की ग़ल्लेबानी करे।
וַ֭יִּרְעֵם כְּתֹ֣ם לְבָבֹ֑ו וּבִתְבוּנֹ֖ות כַּפָּ֣יו יַנְחֵֽם׃ 72
फिर उसने ख़ुलूस — ए — दिल से उनकी पासबानी की और अपने माहिर हाथों से उनकी रहनुमाई करता रहा।

< תְהִלִּים 78 >