< מִשְׁלֵי 15 >

מַֽעֲנֶה־רַּ֭ךְ יָשִׁ֣יב חֵמָ֑ה וּדְבַר־עֶ֝֗צֶב יַעֲלֶה־אָֽף׃ 1
कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध भड़क उठता है।
לְשֹׁ֣ון חֲ֭כָמִים תֵּיטִ֣יב דָּ֑עַת וּפִ֥י כְ֝סִילִ֗ים יַבִּ֥יעַ אִוֶּֽלֶת׃ 2
बुद्धिमान ज्ञान का ठीक बखान करते हैं, परन्तु मूर्खों के मुँह से मूर्खता उबल आती है।
בְּֽכָל־מָ֭קֹום עֵינֵ֣י יְהוָ֑ה צֹ֝פֹ֗ות רָעִ֥ים וטֹובִֽים׃ 3
यहोवा की आँखें सब स्थानों में लगी रहती हैं, वह बुरे भले दोनों को देखती रहती हैं।
מַרְפֵּ֣א לָ֭שֹׁון עֵ֣ץ חַיִּ֑ים וְסֶ֥לֶף בָּ֝֗הּ שֶׁ֣בֶר בְּרֽוּחַ׃ 4
शान्ति देनेवाली बात जीवन-वृक्ष है, परन्तु उलट-फेर की बात से आत्मा दुःखित होती है।
אֱוִ֗יל יִ֭נְאַץ מוּסַ֣ר אָבִ֑יו וְשֹׁמֵ֖ר תֹּוכַ֣חַת יַעְרִֽם׃ 5
मूर्ख अपने पिता की शिक्षा का तिरस्कार करता है, परन्तु जो डाँट को मानता, वह विवेकी हो जाता है।
בֵּ֣ית צַ֭דִּיק חֹ֣סֶן רָ֑ב וּבִתְבוּאַ֖ת רָשָׁ֣ע נֶעְכָּֽרֶת׃ 6
धर्मी के घर में बहुत धन रहता है, परन्तु दुष्ट के कमाई में दुःख रहता है।
שִׂפְתֵ֣י חֲ֭כָמִים יְזָ֣רוּ דָ֑עַת וְלֵ֖ב כְּסִילִ֣ים לֹא־כֵֽן׃ 7
बुद्धिमान लोग बातें करने से ज्ञान को फैलाते हैं, परन्तु मूर्खों का मन ठीक नहीं रहता।
זֶ֣בַח רְ֭שָׁעִים תֹּועֲבַ֣ת יְהוָ֑ה וּתְפִלַּ֖ת יְשָׁרִ֣ים רְצֹונֹֽו׃ 8
दुष्ट लोगों के बलिदान से यहोवा घृणा करता है, परन्तु वह सीधे लोगों की प्रार्थना से प्रसन्न होता है।
תֹּועֲבַ֣ת יְ֭הוָה דֶּ֣רֶךְ רָשָׁ֑ע וּמְרַדֵּ֖ף צְדָקָ֣ה יֶאֱהָֽב׃ 9
दुष्ट के चाल चलन से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु जो धर्म का पीछा करता उससे वह प्रेम रखता है।
מוּסָ֣ר רָ֭ע לְעֹזֵ֣ב אֹ֑רַח שֹׂונֵ֖א תֹוכַ֣חַת יָמֽוּת׃ 10
१०जो मार्ग को छोड़ देता, उसको बड़ी ताड़ना मिलती है, और जो डाँट से बैर रखता, वह अवश्य मर जाता है।
שְׁאֹ֣ול וַ֭אֲבַדֹּון נֶ֣גֶד יְהוָ֑ה אַ֝֗ף כִּֽי־לִבֹּ֥ות בְּֽנֵי־אָדָֽם׃ (Sheol h7585) 11
११जबकि अधोलोक और विनाशलोक यहोवा के सामने खुले रहते हैं, तो निश्चय मनुष्यों के मन भी। (Sheol h7585)
לֹ֣א יֶאֱהַב־לֵ֭ץ הֹוכֵ֣חַֽ לֹ֑ו אֶל־חֲ֝כָמִ֗ים לֹ֣א יֵלֵֽךְ׃ 12
१२ठट्ठा करनेवाला डाँटे जाने से प्रसन्न नहीं होता, और न वह बुद्धिमानों के पास जाता है।
לֵ֣ב שָׂ֭מֵחַ יֵיטִ֣ב פָּנִ֑ים וּבְעַצְּבַת־לֵ֝ב ר֣וּחַ נְכֵאָֽה׃ 13
१३मन आनन्दित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दुःख से आत्मा निराश होती है।
לֵ֣ב נָ֭בֹון יְבַקֶּשׁ־דָּ֑עַת וּפְנֵי (וּפִ֥י) כְ֝סִילִ֗ים יִרְעֶ֥ה אִוֶּֽלֶת׃ 14
१४समझनेवाले का मन ज्ञान की खोज में रहता है, परन्तु मूर्ख लोग मूर्खता से पेट भरते हैं।
כָּל־יְמֵ֣י עָנִ֣י רָעִ֑ים וְטֹֽוב־לֵ֝֗ב מִשְׁתֶּ֥ה תָמִֽיד׃ 15
१५दुःखियारे के सब दिन दुःख भरे रहते हैं, परन्तु जिसका मन प्रसन्न रहता है, वह मानो नित्य भोज में जाता है।
טֹוב־מְ֭עַט בְּיִרְאַ֣ת יְהוָ֑ה מֵאֹוצָ֥ר רָ֝֗ב וּמְה֥וּמָה בֹֽו׃ 16
१६घबराहट के साथ बहुत रखे हुए धन से, यहोवा के भय के साथ थोड़ा ही धन उत्तम है,
טֹ֤וב אֲרֻחַ֣ת יָ֭רָק וְאַהֲבָה־שָׁ֑ם מִשֹּׁ֥ור אָ֝ב֗וּס וְשִׂנְאָה־בֹֽו׃ 17
१७प्रेमवाले घर में सागपात का भोजन, बैरवाले घर में स्वादिष्ट माँस खाने से उत्तम है।
אִ֣ישׁ חֵ֭מָה יְגָרֶ֣ה מָדֹ֑ון וְאֶ֥רֶך אַ֝פַּ֗יִם יַשְׁקִ֥יט רִֽיב׃ 18
१८क्रोधी पुरुष झगड़ा मचाता है, परन्तु जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है, वह मुकद्दमों को दबा देता है।
דֶּ֣רֶךְ עָ֭צֵל כִּמְשֻׂ֣כַת חָ֑דֶק וְאֹ֖רַח יְשָׁרִ֣ים סְלֻלָֽה׃ 19
१९आलसी का मार्ग काँटों से रुन्धा हुआ होता है, परन्तु सीधे लोगों का मार्ग राजमार्ग ठहरता है।
בֵּ֣ן חָ֭כָם יְשַׂמַּח־אָ֑ב וּכְסִ֥יל אָ֝דָ֗ם בֹּוזֶ֥ה אִמֹּֽו׃ 20
२०बुद्धिमान पुत्र से पिता आनन्दित होता है, परन्तु मूर्ख अपनी माता को तुच्छ जानता है।
אִ֭וֶּלֶת שִׂמְחָ֣ה לַחֲסַר־לֵ֑ב וְאִ֥ישׁ תְּ֝בוּנָ֗ה יְיַשֶּׁר־לָֽכֶת׃ 21
२१निर्बुद्धि को मूर्खता से आनन्द होता है, परन्तु समझवाला मनुष्य सीधी चाल चलता है।
הָפֵ֣ר מַ֭חֲשָׁבֹות בְּאֵ֣ין סֹ֑וד וּבְרֹ֖ב יֹועֲצִ֣ים תָּקֽוּם׃ 22
२२बिना सम्मति की कल्पनाएँ निष्फल होती हैं, परन्तु बहुत से मंत्रियों की सम्मति से सफलता मिलती है।
שִׂמְחָ֣ה לָ֭אִישׁ בְּמַעֲנֵה־פִ֑יו וְדָבָ֖ר בְּעִתֹּ֣ו מַה־טֹּֽוב׃ 23
२३सज्जन उत्तर देने से आनन्दित होता है, और अवसर पर कहा हुआ वचन क्या ही भला होता है!
אֹ֣רַח חַ֭יִּים לְמַ֣עְלָה לְמַשְׂכִּ֑יל לְמַ֥עַן ס֝֗וּר מִשְּׁאֹ֥ול מָֽטָּה׃ (Sheol h7585) 24
२४विवेकी के लिये जीवन का मार्ग ऊपर की ओर जाता है, इस रीति से वह अधोलोक में पड़ने से बच जाता है। (Sheol h7585)
בֵּ֣ית גֵּ֭אִים יִסַּ֥ח ׀ יְהוָ֑ה וְ֝יַצֵּ֗ב גְּב֣וּל אַלְמָנָֽה׃ 25
२५यहोवा अहंकारियों के घर को ढा देता है, परन्तु विधवा की सीमाओं को अटल रखता है।
תֹּועֲבַ֣ת יְ֭הוָה מַחְשְׁבֹ֣ות רָ֑ע וּ֝טְהֹרִ֗ים אִמְרֵי־נֹֽעַם׃ 26
२६बुरी कल्पनाएँ यहोवा को घिनौनी लगती हैं, परन्तु शुद्ध जन के वचन मनभावने हैं।
עֹכֵ֣ר בֵּ֭יתֹו בֹּוצֵ֣עַ בָּ֑צַע וְשֹׂונֵ֖א מַתָּנֹ֣ת יִחְיֶֽה׃ 27
२७लालची अपने घराने को दुःख देता है, परन्तु घूस से घृणा करनेवाला जीवित रहता है।
לֵ֣ב צַ֭דִּיק יֶהְגֶּ֣ה לַעֲנֹ֑ות וּפִ֥י רְ֝שָׁעִ֗ים יַבִּ֥יעַ רָעֹֽות׃ 28
२८धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूँ, परन्तु दुष्टों के मुँह से बुरी बातें उबल आती हैं।
רָחֹ֣וק יְ֭הוָה מֵרְשָׁעִ֑ים וּתְפִלַּ֖ת צַדִּיקִ֣ים יִשְׁמָֽע׃ 29
२९यहोवा दुष्टों से दूर रहता है, परन्तु धर्मियों की प्रार्थना सुनता है।
מְֽאֹור־עֵ֭ינַיִם יְשַׂמַּֽח־לֵ֑ב שְׁמוּעָ֥ה טֹ֝ובָ֗ה תְּדַשֶּׁן־עָֽצֶם׃ 30
३०आँखों की चमक से मन को आनन्द होता है, और अच्छे समाचार से हड्डियाँ पुष्ट होती हैं।
אֹ֗זֶן שֹׁ֖מַעַת תֹּוכַ֣חַת חַיִּ֑ים בְּקֶ֖רֶב חֲכָמִ֣ים תָּלִֽין׃ 31
३१जो जीवनदायी डाँट कान लगाकर सुनता है, वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है।
פֹּורֵ֣עַ מ֖וּסָר מֹואֵ֣ס נַפְשֹׁ֑ו וְשֹׁומֵ֥עַ תֹּ֝וכַ֗חַת קֹ֣ונֶה לֵּֽב׃ 32
३२जो शिक्षा को अनसुनी करता, वह अपने प्राण को तुच्छ जानता है, परन्तु जो डाँट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है।
יִרְאַ֣ת יְ֭הוָה מוּסַ֣ר חָכְמָ֑ה וְלִפְנֵ֖י כָבֹ֣וד עֲנָוָֽה׃ 33
३३यहोवा के भय मानने से बुद्धि की शिक्षा प्राप्त होती है, और महिमा से पहले नम्रता आती है।

< מִשְׁלֵי 15 >