< נחמיה 5 >

וַתְּהִ֨י צַעֲקַ֥ת הָעָ֛ם וּנְשֵׁיהֶ֖ם גְּדֹולָ֑ה אֶל־אֲחֵיהֶ֖ם הַיְּהוּדִֽים׃ 1
तब लोग और उनकी स्त्रियों की ओर से उनके भाई यहूदियों के विरुद्ध बड़ी चिल्लाहट मची।
וְיֵשׁ֙ אֲשֶׁ֣ר אֹמְרִ֔ים בָּנֵ֥ינוּ וּבְנֹתֵ֖ינוּ אֲנַ֣חְנוּ רַבִּ֑ים וְנִקְחָ֥ה דָגָ֖ן וְנֹאכְלָ֥ה וְנִחְיֶֽה׃ 2
कुछ तो कहते थे, “हम अपने बेटे-बेटियों समेत बहुत प्राणी हैं, इसलिए हमें अन्न मिलना चाहिये कि उसे खाकर जीवित रहें।”
וְיֵשׁ֙ אֲשֶׁ֣ר אֹמְרִ֔ים שְׂדֹתֵ֛ינוּ וּכְרָמֵ֥ינוּ וּבָתֵּ֖ינוּ אֲנַ֣חְנוּ עֹרְבִ֑ים וְנִקְחָ֥ה דָגָ֖ן בָּרָעָֽב׃ 3
कुछ कहते थे, “हम अपने-अपने खेतों, दाख की बारियों और घरों को अकाल के कारण गिरवी रखते हैं, कि हमें अन्न मिले।”
וְיֵשׁ֙ אֲשֶׁ֣ר אֹמְרִ֔ים לָוִ֥ינוּ כֶ֖סֶף לְמִדַּ֣ת הַמֶּ֑לֶךְ שְׂדֹתֵ֖ינוּ וּכְרָמֵֽינוּ׃ 4
फिर कुछ यह कहते थे, “हमने राजा के कर के लिये अपने-अपने खेतों और दाख की बारियों पर रुपया उधार लिया।
וְעַתָּ֗ה כִּבְשַׂ֤ר אַחֵ֙ינוּ֙ בְּשָׂרֵ֔נוּ כִּבְנֵיהֶ֖ם בָּנֵ֑ינוּ וְהִנֵּ֣ה אֲנַ֣חְנוּ כֹ֠בְשִׁים אֶת־בָּנֵ֨ינוּ וְאֶת־בְּנֹתֵ֜ינוּ לַעֲבָדִ֗ים וְיֵ֨שׁ מִבְּנֹתֵ֤ינוּ נִכְבָּשֹׁות֙ וְאֵ֣ין לְאֵ֣ל יָדֵ֔נוּ וּשְׂדֹתֵ֥ינוּ וּכְרָמֵ֖ינוּ לַאֲחֵרִֽים׃ 5
परन्तु हमारा और हमारे भाइयों का शरीर और हमारे और उनके बच्चे एक ही समान हैं, तो भी हम अपने बेटे-बेटियों को दास बनाते हैं; वरन् हमारी कोई-कोई बेटी दासी भी हो चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं चलता, क्योंकि हमारे खेत और दाख की बारियाँ औरों के हाथ पड़ी हैं।”
וַיִּ֥חַר לִ֖י מְאֹ֑ד כַּאֲשֶׁ֤ר שָׁמַ֙עְתִּי֙ אֶת־זַֽעֲקָתָ֔ם וְאֵ֖ת הַדְּבָרִ֥ים הָאֵֽלֶּה׃ 6
यह चिल्लाहट और ये बातें सुनकर मैं बहुत क्रोधित हुआ।
וַיִּמָּלֵ֨ךְ לִבִּ֜י עָלַ֗י וָאָרִ֙יבָה֙ אֶת־הַחֹרִ֣ים וְאֶת־הַסְּגָנִ֔ים וָאֹמְרָ֣ה לָהֶ֔ם מַשָּׁ֥א אִישׁ־בְּאָחִ֖יו אַתֶּ֣ם נֹשִׁ֑אים וָאֶתֵּ֥ן עֲלֵיהֶ֖ם קְהִלָּ֥ה גְדֹולָֽה׃ 7
तब अपने मन में सोच विचार करके मैंने रईसों और हाकिमों को घुड़ककर कहा, “तुम अपने-अपने भाई से ब्याज लेते हो।” तब मैंने उनके विरुद्ध एक बड़ी सभा की।
וָאֹמְרָ֣ה לָהֶ֗ם אֲנַ֣חְנוּ קָ֠נִינוּ אֶת־אַחֵ֨ינוּ הַיְּהוּדִ֜ים הַנִּמְכָּרִ֤ים לַגֹּויִם֙ כְּדֵ֣י בָ֔נוּ וְגַם־אַתֶּ֛ם תִּמְכְּר֥וּ אֶת־אֲחֵיכֶ֖ם וְנִמְכְּרוּ־לָ֑נוּ וֽ͏ַיַּחֲרִ֔ישׁוּ וְלֹ֥א מָצְא֖וּ דָּבָֽר׃ ס 8
और मैंने उनसे कहा, “हम लोगों ने तो अपनी शक्ति भर अपने यहूदी भाइयों को जो अन्यजातियों के हाथ बिक गए थे, दाम देकर छुड़ाया है, फिर क्या तुम अपने भाइयों को बेचोगे? क्या वे हमारे हाथ बिकेंगे?” तब वे चुप रहे और कुछ न कह सके।
וַיֹּאמֶר (וָאֹומַ֕ר) לֹא־טֹ֥וב הַדָּבָ֖ר אֲשֶׁר־אַתֶּ֣ם עֹשִׂ֑ים הֲלֹ֞וא בְּיִרְאַ֤ת אֱלֹהֵ֙ינוּ֙ תֵּלֵ֔כוּ מֵחֶרְפַּ֖ת הַגֹּויִ֥ם אֹויְבֵֽינוּ׃ 9
फिर मैं कहता गया, “जो काम तुम करते हो वह अच्छा नहीं है; क्या तुम को इस कारण हमारे परमेश्वर का भय मानकर चलना न चाहिये कि हमारे शत्रु जो अन्यजाति हैं, वे हमारी नामधराई न करें?
וְגַם־אֲנִי֙ אַחַ֣י וּנְעָרַ֔י נֹשִׁ֥ים בָּהֶ֖ם כֶּ֣סֶף וְדָגָ֑ן נַֽעַזְבָה־נָּ֖א אֶת־הַמַּשָּׁ֥א הַזֶּֽה׃ 10
१०मैं भी और मेरे भाई और सेवक उनको रुपया और अनाज उधार देते हैं, परन्तु हम इसका ब्याज छोड़ दें।
הָשִׁיבוּ֩ נָ֨א לָהֶ֜ם כְּהַיֹּ֗ום שְׂדֹתֵיהֶ֛ם כַּרְמֵיהֶ֥ם זֵיתֵיהֶ֖ם וּבָתֵּיהֶ֑ם וּמְאַ֨ת הַכֶּ֤סֶף וְהַדָּגָן֙ הַתִּירֹ֣ושׁ וְהַיִּצְהָ֔ר אֲשֶׁ֥ר אַתֶּ֖ם נֹשִׁ֥ים בָּהֶֽם׃ 11
११आज ही उनको उनके खेत, और दाख, और जैतून की बारियाँ, और घर फेर दो; और जो रुपया, अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल तुम उनसे ले लेते हो, उसका सौवाँ भाग फेर दो?”
וַיֹּאמְר֣וּ נָשִׁ֗יב וּמֵהֶם֙ לֹ֣א נְבַקֵּ֔שׁ כֵּ֣ן נַעֲשֶׂ֔ה כַּאֲשֶׁ֖ר אַתָּ֣ה אֹומֵ֑ר וָאֶקְרָא֙ אֶת־הַכֹּ֣הֲנִ֔ים וָֽאַשְׁבִּיעֵ֔ם לַעֲשֹׂ֖ות כַּדָּבָ֥ר הַזֶּֽה׃ 12
१२उन्होंने कहा, “हम उन्हें फेर देंगे, और उनसे कुछ न लेंगे; जैसा तू कहता है, वैसा ही हम करेंगे।” तब मैंने याजकों को बुलाकर उन लोगों को यह शपथ खिलाई, कि वे इसी वचन के अनुसार करेंगे।
גַּם־חָצְנִ֣י נָעַ֗רְתִּי וָֽאֹמְרָ֡ה כָּ֣כָה יְנַעֵ֪ר הָֽאֱלֹהִ֟ים אֶת־כָּל־הָאִישׁ֩ אֲשֶׁ֨ר לֹֽא־יָקִ֜ים אֶת־הַדָּבָ֣ר הַזֶּ֗ה מִבֵּיתֹו֙ וּמִ֣יגִיעֹ֔ו וְכָ֛כָה יִהְיֶ֥ה נָע֖וּר וָרֵ֑ק וַיֹּאמְר֨וּ כָֽל־הַקָּהָ֜ל אָמֵ֗ן וַֽיְהַלְלוּ֙ אֶת־יְהוָ֔ה וַיַּ֥עַשׂ הָעָ֖ם כַּדָּבָ֥ר הַזֶּֽה׃ 13
१३फिर मैंने अपने कपड़े की छोर झाड़कर कहा, “इसी रीति से जो कोई इस वचन को पूरा न करे, उसको परमेश्वर झाड़कर, उसका घर और कमाई उससे छुड़ाए, और इसी रीति से वह झाड़ा जाए, और कंगाल हो जाए।” तब सारी सभा ने कहा, “आमीन!” और यहोवा की स्तुति की। और लोगों ने इस वचन के अनुसार काम किया।
גַּ֞ם מִיֹּ֣ום ׀ אֲשֶׁר־צִוָּ֣ה אֹתִ֗י לִהְיֹ֣ות פֶּחָם֮ בְּאֶ֣רֶץ יְהוּדָה֒ מִשְּׁנַ֣ת עֶשְׂרִ֗ים וְ֠עַד שְׁנַ֨ת שְׁלֹשִׁ֤ים וּשְׁתַּ֙יִם֙ לְאַרְתַּחְשַׁ֣סְתְּא הַמֶּ֔לֶךְ שָׁנִ֖ים שְׁתֵּ֣ים עֶשְׂרֵ֑ה אֲנִ֣י וְאַחַ֔י לֶ֥חֶם הַפֶּ֖חָה לֹ֥א אָכַֽלְתִּי׃ 14
१४फिर जब से मैं यहूदा देश में उनका अधिपति ठहराया गया, अर्थात् राजा अर्तक्षत्र के राज्य के बीसवें वर्ष से लेकर उसके बत्तीसवें वर्ष तक, अर्थात् बारह वर्ष तक मैं और मेरे भाइयों ने अधिपतियों के हक़ का भोजन नहीं खाया।
וְהַפַּחֹות֩ הָרִאשֹׁנִ֨ים אֲשֶׁר־לְפָנַ֜י הִכְבִּ֣ידוּ עַל־הָעָ֗ם וַיִּקְח֨וּ מֵהֶ֜ם בְּלֶ֤חֶם וָיַ֙יִן֙ אַחַר֙ כֶּֽסֶף־שְׁקָלִ֣ים אַרְבָּעִ֔ים גַּ֥ם נַעֲרֵיהֶ֖ם שָׁלְט֣וּ עַל־הָעָ֑ם וַאֲנִי֙ לֹא־עָשִׂ֣יתִי כֵ֔ן מִפְּנֵ֖י יִרְאַ֥ת אֱלֹהִֽים׃ 15
१५परन्तु पहले अधिपति जो मुझसे पहले थे, वे प्रजा पर भार डालते थे, और उनसे रोटी, और दाखमधु, और इसके साथ चालीस शेकेल चाँदी लेते थे, वरन् उनके सेवक भी प्रजा के ऊपर अधिकार जताते थे; परन्तु मैं ऐसा नहीं करता था, क्योंकि मैं यहोवा का भय मानता था।
וְ֠גַם בִּמְלֶ֜אכֶת הַחֹומָ֤ה הַזֹּאת֙ הֶחֱזַ֔קְתִּי וְשָׂדֶ֖ה לֹ֣א קָנִ֑ינוּ וְכָל־נְעָרַ֔י קְבוּצִ֥ים שָׁ֖ם עַל־הַמְּלָאכָֽה׃ 16
१६फिर मैं शहरपनाह के काम में लिपटा रहा, और हम लोगों ने कुछ भूमि मोल न ली; और मेरे सब सेवक काम करने के लिये वहाँ इकट्ठे रहते थे।
וְהַיְּהוּדִ֨ים וְהַסְּגָנִ֜ים מֵאָ֧ה וַחֲמִשִּׁ֣ים אִ֗ישׁ וְהַבָּאִ֥ים אֵלֵ֛ינוּ מִן־הַגֹּויִ֥ם אֲשֶׁר־סְבִיבֹתֵ֖ינוּ עַל־שֻׁלְחָנִֽי׃ 17
१७फिर मेरी मेज पर खानेवाले एक सौ पचास यहूदी और हाकिम और वे भी थे, जो चारों ओर की अन्यजातियों में से हमारे पास आए थे।
וַאֲשֶׁר֩ הָיָ֨ה נַעֲשֶׂ֜ה לְיֹ֣ום אֶחָ֗ד שֹׁ֣ור אֶחָ֞ד צֹ֠אן שֵׁשׁ־בְּרֻרֹ֤ות וְצִפֳּרִים֙ נַֽעֲשׂוּ־לִ֔י וּבֵ֨ין עֲשֶׂ֧רֶת יָמִ֛ים בְּכָל־יַ֖יִן לְהַרְבֵּ֑ה וְעִם־זֶ֗ה לֶ֤חֶם הַפֶּחָה֙ לֹ֣א בִקַּ֔שְׁתִּי כִּֽי־כָֽבְדָ֥ה הָעֲבֹדָ֖ה עַל־הָעָ֥ם הַזֶּֽה׃ 18
१८जो प्रतिदिन के लिये तैयार किया जाता था वह एक बैल, छः अच्छी-अच्छी भेड़ें व बकरियाँ थीं, और मेरे लिये चिड़ियें भी तैयार की जाती थीं; दस-दस दिन के बाद भाँति-भाँति का बहुत दाखमधु भी तैयार किया जाता था; परन्तु तो भी मैंने अधिपति के हक़ का भोज नहीं लिया,
זָכְרָה־לִּ֥י אֱלֹהַ֖י לְטֹובָ֑ה כֹּ֥ל אֲשֶׁר־עָשִׂ֖יתִי עַל־הָעָ֥ם הַזֶּֽה׃ פ 19
१९क्योंकि काम का भार प्रजा पर भारी था। हे मेरे परमेश्वर! जो कुछ मैंने इस प्रजा के लिये किया है, उसे तू मेरे हित के लिये स्मरण रख।

< נחמיה 5 >