< אֵיכָה 2 >

אֵיכָה֩ יָעִ֨יב בְּאַפֹּ֤ו ׀ אֲדֹנָי֙ אֶת־בַּת־צִיֹּ֔ון הִשְׁלִ֤יךְ מִשָּׁמַ֙יִם֙ אֶ֔רֶץ תִּפְאֶ֖רֶת יִשְׂרָאֵ֑ל וְלֹא־זָכַ֥ר הֲדֹם־רַגְלָ֖יו בְּיֹ֥ום אַפֹּֽו׃ ס 1
यहोवा ने सिय्योन की पुत्री को किस प्रकार अपने कोप के बादलों से ढाँप दिया है! उसने इस्राएल की शोभा को आकाश से धरती पर पटक दिया; और कोप के दिन अपने पाँवों की चौकी को स्मरण नहीं किया।
בִּלַּ֨ע אֲדֹנָ֜י לֹא (וְלֹ֣א) חָמַ֗ל אֵ֚ת כָּל־נְאֹ֣ות יַעֲקֹ֔ב הָרַ֧ס בְּעֶבְרָתֹ֛ו מִבְצְרֵ֥י בַת־יְהוּדָ֖ה הִגִּ֣יעַ לָאָ֑רֶץ חִלֵּ֥ל מַמְלָכָ֖ה וְשָׂרֶֽיהָ׃ ס 2
यहोवा ने याकूब की सब बस्तियों को निष्ठुरता से नष्ट किया है; उसने रोष में आकर यहूदा की पुत्री के दृढ़ गढ़ों को ढाकर मिट्टी में मिला दिया है; उसने हाकिमों समेत राज्य को अपवित्र ठहराया है।
גָּדַ֣ע בָּֽחֳרִי־אַ֗ף כֹּ֚ל קֶ֣רֶן יִשְׂרָאֵ֔ל הֵשִׁ֥יב אָחֹ֛ור יְמִינֹ֖ו מִפְּנֵ֣י אֹויֵ֑ב וַיִּבְעַ֤ר בְּיַעֲקֹב֙ כְּאֵ֣שׁ לֶֽהָבָ֔ה אָכְלָ֖ה סָבִֽיב׃ ס 3
उसने क्रोध में आकर इस्राएल के सींग को जड़ से काट डाला है; उसने शत्रु के सामने उनकी सहायता करने से अपना दाहिना हाथ खींच लिया है; उसने चारों ओर भस्म करती हुई लौ के समान याकूब को जला दिया है।
דָּרַ֨ךְ קַשְׁתֹּ֜ו כְּאֹויֵ֗ב נִצָּ֤ב יְמִינֹו֙ כְּצָ֔ר וַֽיַּהֲרֹ֔ג כֹּ֖ל מַחֲמַדֵּי־עָ֑יִן בְּאֹ֙הֶל֙ בַּת־צִיֹּ֔ון שָׁפַ֥ךְ כָּאֵ֖שׁ חֲמָתֹֽו׃ ס 4
उसने शत्रु बनकर धनुष चढ़ाया, और बैरी बनकर दाहिना हाथ बढ़ाए हुए खड़ा है; और जितने देखने में मनभावने थे, उन सब को उसने घात किया; सिय्योन की पुत्री के तम्बू पर उसने आग के समान अपनी जलजलाहट भड़का दी है।
הָיָ֨ה אֲדֹנָ֤י ׀ כְּאֹויֵב֙ בִּלַּ֣ע יִשְׂרָאֵ֔ל בִּלַּע֙ כָּל־אַרְמְנֹותֶ֔יהָ שִׁחֵ֖ת מִבְצָרָ֑יו וַיֶּ֙רֶב֙ בְּבַת־יְהוּדָ֔ה תַּאֲנִיָּ֖ה וַאֲנִיָּֽה׃ ס 5
यहोवा शत्रु बन गया, उसने इस्राएल को निगल लिया; उसके सारे भवनों को उसने मिटा दिया, और उसके दृढ़ गढ़ों को नष्ट कर डाला है; और यहूदा की पुत्री का रोना-पीटना बहुत बढ़ाया है।
וַיַּחְמֹ֤ס כַּגַּן֙ שֻׂכֹּ֔ו שִׁחֵ֖ת מֹועֲדֹ֑ו שִׁכַּ֨ח יְהוָ֤ה ׀ בְּצִיֹּון֙ מֹועֵ֣ד וְשַׁבָּ֔ת וַיִּנְאַ֥ץ בְּזַֽעַם־אַפֹּ֖ו מֶ֥לֶךְ וְכֹהֵֽן׃ ס 6
उसने अपना मण्डप बारी के मचान के समान अचानक गिरा दिया, अपने मिलाप-स्थान को उसने नाश किया है; यहोवा ने सिय्योन में नियत पर्व और विश्रामदिन दोनों को भुला दिया है, और अपने भड़के हुए कोप से राजा और याजक दोनों का तिरस्कार किया है।
זָנַ֨ח אֲדֹנָ֤י ׀ מִזְבְּחֹו֙ נִאֵ֣ר מִקְדָּשֹׁ֔ו הִסְגִּיר֙ בְּיַד־אֹויֵ֔ב חֹומֹ֖ת אַרְמְנֹותֶ֑יהָ קֹ֛ול נָתְנ֥וּ בְּבֵית־יְהוָ֖ה כְּיֹ֥ום מֹועֵֽד׃ ס 7
यहोवा ने अपनी वेदी मन से उतार दी, और अपना पवित्रस्थान अपमान के साथ तज दिया है; उसके भवनों की दीवारों को उसने शत्रुओं के वश में कर दिया; यहोवा के भवन में उन्होंने ऐसा कोलाहल मचाया कि मानो नियत पर्व का दिन हो।
חָשַׁ֨ב יְהוָ֤ה ׀ לְהַשְׁחִית֙ חֹומַ֣ת בַּת־צִיֹּ֔ון נָ֣טָה קָ֔ו לֹא־הֵשִׁ֥יב יָדֹ֖ו מִבַּלֵּ֑עַ וַיּֽ͏ַאֲבֶל־חֵ֥ל וְחֹומָ֖ה יַחְדָּ֥ו אֻמְלָֽלוּ׃ ס 8
यहोवा ने सिय्योन की कुमारी की शहरपनाह तोड़ डालने की ठानी थी: उसने डोरी डाली और अपना हाथ उसे नाश करने से नहीं खींचा; उसने किले और शहरपनाह दोनों से विलाप करवाया, वे दोनों एक साथ गिराए गए हैं।
טָבְע֤וּ בָאָ֙רֶץ֙ שְׁעָרֶ֔יהָ אִבַּ֥ד וְשִׁבַּ֖ר בְּרִיחֶ֑יהָ מַלְכָּ֨הּ וְשָׂרֶ֤יהָ בַגֹּויִם֙ אֵ֣ין תֹּורָ֔ה גַּם־נְבִיאֶ֕יהָ לֹא־מָצְא֥וּ חָזֹ֖ון מֵיְהוָֽה׃ ס 9
उसके फाटक भूमि में धस गए हैं, उनके बेंड़ों को उसने तोड़कर नाश किया। उसके राजा और हाकिम अन्यजातियों में रहने के कारण व्यवस्थारहित हो गए हैं, और उसके भविष्यद्वक्ता यहोवा से दर्शन नहीं पाते हैं।
יֵשְׁב֨וּ לָאָ֤רֶץ יִדְּמוּ֙ זִקְנֵ֣י בַת־צִיֹּ֔ון הֶֽעֱל֤וּ עָפָר֙ עַל־רֹאשָׁ֔ם חָגְר֖וּ שַׂקִּ֑ים הֹורִ֤ידוּ לָאָ֙רֶץ֙ רֹאשָׁ֔ן בְּתוּלֹ֖ת יְרוּשָׁלָֽ͏ִם׃ ס 10
१०सिय्योन की पुत्री के पुरनिये भूमि पर चुपचाप बैठे हैं; उन्होंने अपने सिर पर धूल उड़ाई और टाट का फेंटा बाँधा है; यरूशलेम की कुमारियों ने अपना-अपना सिर भूमि तक झुकाया है।
כָּל֨וּ בַדְּמָעֹ֤ות עֵינַי֙ חֳמַרְמְר֣וּ מֵעַ֔י נִשְׁפַּ֤ךְ לָאָ֙רֶץ֙ כְּבֵדִ֔י עַל־שֶׁ֖בֶר בַּת־עַמִּ֑י בֵּֽעָטֵ֤ף עֹולֵל֙ וְיֹונֵ֔ק בִּרְחֹבֹ֖ות קִרְיָֽה׃ ס 11
११मेरी आँखें आँसू बहाते-बहाते धुँधली पड़ गई हैं; मेरी अंतड़ियाँ ऐंठी जाती हैं; मेरे लोगों की पुत्री के विनाश के कारण मेरा कलेजा फट गया है, क्योंकि बच्चे वरन् दूध-पीते बच्चे भी नगर के चौकों में मूर्छित होते हैं।
לְאִמֹּתָם֙ יֹֽאמְר֔וּ אַיֵּ֖ה דָּגָ֣ן וָיָ֑יִן בְּהִֽתְעַטְּפָ֤ם כֶּֽחָלָל֙ בִּרְחֹבֹ֣ות עִ֔יר בְּהִשְׁתַּפֵּ֣ךְ נַפְשָׁ֔ם אֶל־חֵ֖יק אִמֹּתָֽם׃ ס 12
१२वे अपनी-अपनी माता से रोकर कहते हैं, अन्न और दाखमधु कहाँ हैं? वे नगर के चौकों में घायल किए हुए मनुष्य के समान मूर्छित होकर अपने प्राण अपनी-अपनी माता की गोद में छोड़ते हैं।
מָֽה־אֲעִידֵ֞ךְ מָ֣ה אֲדַמֶּה־לָּ֗ךְ הַבַּת֙ יְר֣וּשָׁלַ֔͏ִם מָ֤ה אַשְׁוֶה־לָּךְ֙ וַאֲנַֽחֲמֵ֔ךְ בְּתוּלַ֖ת בַּת־צִיֹּ֑ון כִּֽי־גָדֹ֥ול כַּיָּ֛ם שִׁבְרֵ֖ךְ מִ֥י יִרְפָּא־לָֽךְ׃ ס 13
१३हे यरूशलेम की पुत्री, मैं तुझ से क्या कहूँ? मैं तेरी उपमा किस से दूँ? हे सिय्योन की कुमारी कन्या, मैं कौन सी वस्तु तेरे समान ठहराकर तुझे शान्ति दूँ? क्योंकि तेरा दुःख समुद्र सा अपार है; तुझे कौन चंगा कर सकता है?
נְבִיאַ֗יִךְ חָ֤זוּ לָךְ֙ שָׁ֣וְא וְתָפֵ֔ל וְלֹֽא־גִלּ֥וּ עַל־עֲוֹנֵ֖ךְ לְהָשִׁ֣יב שְׁבִיתֵךְ (שְׁבוּתֵ֑ךְ) וַיֶּ֣חֱזוּ לָ֔ךְ מַשְׂאֹ֥ות שָׁ֖וְא וּמַדּוּחִֽים׃ ס 14
१४तेरे भविष्यद्वक्ताओं ने दर्शन का दावा करके तुझ से व्यर्थ और मूर्खता की बातें कही हैं; उन्होंने तेरा अधर्म प्रगट नहीं किया, नहीं तो तेरी बँधुआई न होने पाती; परन्तु उन्होंने तुझे व्यर्थ के और झूठे वचन बताए। जो तेरे लिये देश से निकाल दिए जाने का कारण हुए।
סָֽפְק֨וּ עָלַ֤יִךְ כַּפַּ֙יִם֙ כָּל־עֹ֣בְרֵי דֶ֔רֶךְ שָֽׁרְקוּ֙ וַיָּנִ֣עוּ רֹאשָׁ֔ם עַל־בַּ֖ת יְרוּשָׁלָ֑͏ִם הֲזֹ֣את הָעִ֗יר שֶׁיֹּֽאמְרוּ֙ כְּלִ֣ילַת יֹ֔פִי מָשֹׂ֖ושׂ לְכָל־הָאָֽרֶץ׃ ס 15
१५सब बटोही तुझ पर ताली बजाते हैं; वे यरूशलेम की पुत्री पर यह कहकर ताली बजाते और सिर हिलाते हैं, क्या यह वही नगरी है जिसे परम सुन्दरी और सारी पृथ्वी के हर्ष का कारण कहते थे?
פָּצ֨וּ עָלַ֤יִךְ פִּיהֶם֙ כָּל־אֹ֣ויְבַ֔יִךְ שָֽׁרְקוּ֙ וַיַּֽחַרְקוּ־שֵׁ֔ן אָמְר֖וּ בִּלָּ֑עְנוּ אַ֣ךְ זֶ֥ה הַיֹּ֛ום שֶׁקִּוִּינֻ֖הוּ מָצָ֥אנוּ רָאִֽינוּ׃ ס 16
१६तेरे सब शत्रुओं ने तुझ पर मुँह पसारा है, वे ताली बजाते और दाँत पीसते हैं, वे कहते हैं, हम उसे निगल गए हैं! जिस दिन की बाट हम जोहते थे, वह यही है, वह हमको मिल गया, हम उसको देख चुके हैं!
עָשָׂ֨ה יְהוָ֜ה אֲשֶׁ֣ר זָמָ֗ם בִּצַּ֤ע אֶמְרָתֹו֙ אֲשֶׁ֣ר צִוָּ֣ה מִֽימֵי־קֶ֔דֶם הָרַ֖ס וְלֹ֣א חָמָ֑ל וַיְשַׂמַּ֤ח עָלַ֙יִךְ֙ אֹויֵ֔ב הֵרִ֖ים קֶ֥רֶן צָרָֽיִךְ׃ ס 17
१७यहोवा ने जो कुछ ठाना था वही किया भी है, जो वचन वह प्राचीनकाल से कहता आया है वही उसने पूरा भी किया है; उसने निष्ठुरता से तुझे ढा दिया है, उसने शत्रुओं को तुझ पर आनन्दित किया, और तेरे द्रोहियों के सींग को ऊँचा किया है।
צָעַ֥ק לִבָּ֖ם אֶל־אֲדֹנָ֑י חֹומַ֣ת בַּת־צִ֠יֹּון הֹורִ֨ידִי כַנַּ֤חַל דִּמְעָה֙ יֹומָ֣ם וָלַ֔יְלָה אַֽל־תִּתְּנִ֤י פוּגַת֙ לָ֔ךְ אַל־תִּדֹּ֖ם בַּת־עֵינֵֽךְ׃ ס 18
१८वे प्रभु की ओर तन मन से पुकारते हैं! हे सिय्योन की कुमारी की शहरपनाह, अपने आँसू रात दिन नदी के समान बहाती रह! तनिक भी विश्राम न ले, न तेरी आँख की पुतली चैन ले!
ק֣וּמִי ׀ רֹ֣נִּי בַלַּיִל (בַלַּ֗יְלָה) לְרֹאשׁ֙ אַשְׁמֻרֹ֔ות שִׁפְכִ֤י כַמַּ֙יִם֙ לִבֵּ֔ךְ נֹ֖כַח פְּנֵ֣י אֲדֹנָ֑י שְׂאִ֧י אֵלָ֣יו כַּפַּ֗יִךְ עַל־נֶ֙פֶשׁ֙ עֹֽולָלַ֔יִךְ הָעֲטוּפִ֥ים בְּרָעָ֖ב בְּרֹ֥אשׁ כָּל־חוּצֹֽות׃ ס 19
१९रात के हर पहर के आरम्भ में उठकर चिल्लाया कर! प्रभु के सम्मुख अपने मन की बातों को धारा के समान उण्डेल! तेरे बाल-बच्चे जो हर एक सड़क के सिरे पर भूख के कारण मूर्छित हो रहे हैं, उनके प्राण के निमित्त अपने हाथ उसकी ओर फैला।
רְאֵ֤ה יְהוָה֙ וְֽהַבִּ֔יטָה לְמִ֖י עֹולַ֣לְתָּ כֹּ֑ה אִם־תֹּאכַ֨לְנָה נָשִׁ֤ים פִּרְיָם֙ עֹלֲלֵ֣י טִפֻּחִ֔ים אִם־יֵהָרֵ֛ג בְּמִקְדַּ֥שׁ אֲדֹנָ֖י כֹּהֵ֥ן וְנָבִֽיא׃ ס 20
२०हे यहोवा दृष्टि कर, और ध्यान से देख कि तूने यह सब दुःख किसको दिया है? क्या स्त्रियाँ अपना फल अर्थात् अपनी गोद के बच्चों को खा डालें? हे प्रभु, क्या याजक और भविष्यद्वक्ता तेरे पवित्रस्थान में घात किए जाएँ?
שָׁכְב֨וּ לָאָ֤רֶץ חוּצֹות֙ נַ֣עַר וְזָקֵ֔ן בְּתוּלֹתַ֥י וּבַחוּרַ֖י נָפְל֣וּ בֶחָ֑רֶב הָרַ֙גְתָּ֙ בְּיֹ֣ום אַפֶּ֔ךָ טָבַ֖חְתָּ לֹ֥א חָמָֽלְתָּ׃ ס 21
२१सड़कों में लड़के और बूढ़े दोनों भूमि पर पड़े हैं; मेरी कुमारियाँ और जवान लोग तलवार से गिर गए हैं; तूने कोप करने के दिन उन्हें घात किया; तूने निष्ठुरता के साथ उनका वध किया है।
תִּקְרָא֩ כְיֹ֨ום מֹועֵ֤ד מְגוּרַי֙ מִסָּבִ֔יב וְלֹ֥א הָיָ֛ה בְּיֹ֥ום אַף־יְהוָ֖ה פָּלִ֣יט וְשָׂרִ֑יד אֲשֶׁר־טִפַּ֥חְתִּי וְרִבִּ֖יתִי אֹיְבִ֥י כִלָּֽם׃ פ 22
२२तूने मेरे भय के कारणों को नियत पर्व की भीड़ के समान चारों ओर से बुलाया है; और यहोवा के कोप के दिन न तो कोई भाग निकला और न कोई बच रहा है; जिनको मैंने गोद में लिया और पाल-पोसकर बढ़ाया था, मेरे शत्रु ने उनका अन्त कर डाला है।

< אֵיכָה 2 >