< אִיּוֹב 39 >

הֲיָדַ֗עְתָּ עֵ֭ת לֶ֣דֶת יַעֲלֵי־סָ֑לַע חֹלֵ֖ל אַיָּלֹ֣ות תִּשְׁמֹֽר׃ 1
“क्या तुम्हें जानकारी है, कि पर्वतीय बकरियां किस समय बच्चों को जन्म देती हैं? क्या तुमने कभी हिरणी को अपने बच्‍चे को जन्म देते हुए देखा है?
תִּסְפֹּ֣ר יְרָחִ֣ים תְּמַלֶּ֑אנָה וְ֝יָדַ֗עְתָּ עֵ֣ת לִדְתָּֽנָה׃ 2
क्या तुम्हें यह मालूम है, कि उनकी गर्भावस्था कितने माह की होती है? अथवा किस समय वह उनका प्रसव करती है?
תִּ֭כְרַעְנָה יַלְדֵיהֶ֣ן תְּפַלַּ֑חְנָה חֶבְלֵיהֶ֥ם תְּשַׁלַּֽחְנָה׃ 3
प्रसव करते हुए वे झुक जाती हैं; तब प्रसव पीड़ा से मुक्त हो जाती हैं.
יַחְלְמ֣וּ בְ֭נֵיהֶם יִרְבּ֣וּ בַבָּ֑ר יָ֝צְא֗וּ וְלֹא־שָׁ֥בוּ לָֽמֹו׃ 4
उनकी सन्तति होती जाती हैं, खुले मैदानों में ही उनका विकास हो जाता है; विकसित होने पर वे अपनी माता की ओर नहीं लौटते.
מִֽי־שִׁלַּ֣ח פֶּ֣רֶא חָפְשִׁ֑י וּמֹסְרֹ֥ות עָ֝רֹ֗וד מִ֣י פִתֵּֽחַ׃ 5
“किसने वन्य गधों को ऐसी स्वतंत्रता प्रदान की है? किसने उस द्रुत गधे को बंधन मुक्त कर दिया है?
אֲשֶׁר־שַׂ֣מְתִּי עֲרָבָ֣ה בֵיתֹ֑ו וּֽמִשְׁכְּנֹותָ֥יו מְלֵֽחָה׃ 6
मैंने घर के लिए उसे रेगिस्तान प्रदान किया है तथा उसके निवास के रूप में नमकीन सतह.
יִ֭שְׂחַק לַהֲמֹ֣ון קִרְיָ֑ה תְּשֻׁאֹ֥ות נֹ֝וגֵ֗שׂ לֹ֣א יִשְׁמָֽע׃ 7
उसे तो नगरों के शोर से घृणा है; अपरिचित है वह नियंता की हांक से.
יְת֣וּר הָרִ֣ים מִרְעֵ֑הוּ וְאַחַ֖ר כָּל־יָרֹ֣וק יִדְרֹֽושׁ׃ 8
अपनी चराई जो पर्वतमाला में है, वह घूमा करता है तथा हर एक हरी वनस्पति की खोज में रहता है.
הֲיֹ֣אבֶה רֵּ֣ים עָבְדֶ֑ךָ אִם־יָ֝לִ֗ין עַל־אֲבוּסֶֽךָ׃ 9
“क्या कोई वन्य सांड़ तुम्हारी सेवा करने के लिए तैयार होगा? अथवा क्या वह तुम्हारी चरनी के निकट रात्रि में ठहरेगा?
הֲ‍ֽתִקְשָׁר־רֵ֭ים בְּתֶ֣לֶם עֲבֹתֹ֑ו אִם־יְשַׂדֵּ֖ד עֲמָקִ֣ים אַחֲרֶֽיךָ׃ 10
क्या तुम उसको रस्सियों से बांधकर हल में जोत सकते हो? अथवा क्या वह तुम्हारे खेतों में तुम्हारे पीछे-पीछे पाटा खींचेगा?
הֲ‌ֽתִבְטַח־בֹּ֖ו כִּי־רַ֣ב כֹּחֹ֑ו וְתַעֲזֹ֖ב אֵלָ֣יו יְגִיעֶֽךָ׃ 11
क्या तुम उस पर मात्र इसलिये भरोसा करोगे, कि वह अत्यंत शक्तिशाली है? तथा समस्त श्रम उसी के भरोसे पर छोड़ दोगे?
הֲתַאֲמִ֣ין בֹּ֖ו כִּי־יָשׁוּב (יָשִׁ֣יב) זַרְעֶ֑ךָ וְֽגָרְנְךָ֥ יֶאֱסֹֽף׃ 12
क्या तुम्हें उस पर ऐसा भरोसा हो जाएगा, कि वह तुम्हारी काटी गई उपज को घर तक पहुंचा देगा तथा फसल खलिहान तक सुरक्षित पहुंच जाएगी?
כְּנַף־רְנָנִ֥ים נֶעֱלָ֑סָה אִם־אֶ֝בְרָ֗ה חֲסִידָ֥ה וְנֹצָֽה׃ 13
“क्या शुतुरमुर्ग आनंद से अपने पंख फुलाती है, उसकी तुलना सारस के परों से की जा सकते है?
כִּֽי־תַעֲזֹ֣ב לָאָ֣רֶץ בֵּצֶ֑יהָ וְֽעַל־עָפָ֥ר תְּחַמֵּֽם׃ 14
शुतुरमुर्ग तो अपने अंडे भूमि पर रख उन्हें छोड़ देती है, मात्र भूमि की उष्णता ही रह जाती है.
וַ֭תִּשְׁכַּח כִּי־רֶ֣גֶל תְּזוּרֶ֑הָ וְחַיַּ֖ת הַשָּׂדֶ֣ה תְּדוּשֶֽׁהָ׃ 15
उसे तो इस सत्य का भी ध्यान नहीं रह जाता कि उन पर किसी का पैर भी पड़ सकता है अथवा कोई वन्य पशु उन्हें रौंद भी सकता है.
הִקְשִׁ֣יחַ בָּנֶ֣יהָ לְּלֹא־לָ֑הּ לְרִ֖יק יְגִיעָ֣הּ בְּלִי־פָֽחַד׃ 16
बच्चों के प्रति उसका व्यवहार क्रूर रहता है मानो उनसे उसका कोई संबंध नहीं है; उसे इस विषय की कोई चिंता नहीं रहती, कि इससे उसका श्रम निरर्थक रह जाएगा.
כִּֽי־הִשָּׁ֣הּ אֱלֹ֣והַּ חָכְמָ֑ה וְלֹא־חָ֥לַק לָ֝֗הּ בַּבִּינָֽה׃ 17
परमेश्वर ने ही उसे इस सीमा तक मूर्ख कर दिया है उसे ज़रा भी सामान्य बोध प्रदान नहीं किया गया है.
כָּ֭עֵת בַּמָּרֹ֣ום תַּמְרִ֑יא תִּֽשְׂחַ֥ק לַ֝סּ֗וּס וּלְרֹֽכְבֹֽו׃ 18
यह सब होने पर भी, यदि वह अपनी लंबी काया का प्रयोग करने लगती है, तब वह घोड़ा तथा घुड़सवार का उपहास बना छोड़ती है.
הֲתִתֵּ֣ן לַסּ֣וּס גְּבוּרָ֑ה הֲתַלְבִּ֖ישׁ צַוָּארֹ֣ו רַעְמָֽה׃ 19
“अय्योब, अब यह बताओ, क्या तुमने घोड़े को उसका साहस प्रदान किया है? क्या उसके गर्दन पर केसर तुम्हारी रचना है?
הְֽ֭תַרְעִישֶׁנּוּ כָּאַרְבֶּ֑ה הֹ֖וד נַחְרֹ֣ו אֵימָֽה׃ 20
क्या उसका टिड्डे-समान उछल जाना तुम्हारे द्वारा संभव हुआ है, उसका प्रभावशाली हिनहिनाना दूर-दूर तक आतंक प्रसारित कर देता है?
יַחְפְּר֣וּ בָ֭עֵמֶק וְיָשִׂ֣ישׂ בְּכֹ֑חַ יֵ֝צֵ֗א לִקְרַאת־נָֽשֶׁק׃ 21
वह अपने खुर से घाटी की भूमि को उछालता है तथा सशस्त्र शत्रु का सामना करने निकल पड़ता है.
יִשְׂחַ֣ק לְ֭פַחַד וְלֹ֣א יֵחָ֑ת וְלֹֽא־יָ֝שׁ֗וּב מִפְּנֵי־חָֽרֶב׃ 22
आतंक को देख वह हंस पड़ता है उसे किसी का भय नहीं होता; तलवार को देख वह पीछे नहीं हटता.
עָ֭לָיו תִּרְנֶ֣ה אַשְׁפָּ֑ה לַ֖הַב חֲנִ֣ית וְכִידֹֽון׃ 23
उसकी पीठ पर रखा तरकश खड़खड़ाता है, वहीं चमकती हुई बर्छी तथा भाला भी है.
בְּרַ֣עַשׁ וְ֭רֹגֶז יְגַמֶּא־אָ֑רֶץ וְלֹֽא־יַ֝אֲמִ֗ין כִּי־קֹ֥ול שֹׁופָֽר׃ 24
बड़ी ही रिस और क्रोध से वह लंबी दूरियां पार कर जाता है; तब वह नरसिंगे सुनकर भी नहीं रुकता.
בְּדֵ֤י שֹׁפָ֨ר ׀ יֹ֘אמַ֤ר הֶאָ֗ח וּֽ֭מֵרָחֹוק יָרִ֣יחַ מִלְחָמָ֑ה רַ֥עַם שָׂ֝רִים וּתְרוּעָֽה׃ 25
हर एक नरसिंग नाद पर वह प्रत्युत्तर देता है, ‘वाह!’ उसे तो दूर ही से युद्ध की गंध आ जाती है, वह सेना नायकों का गर्जन तथा आदेश पहचान लेता है.
הֲ‍ֽ֭מִבִּינָ֣תְךָ יַֽאֲבֶר־נֵ֑ץ יִפְרֹ֖שׂ כְּנָפֹו (כְּנָפָ֣יו) לְתֵימָֽן׃ 26
“अय्योब, क्या तुम्हारे परामर्श पर बाज आकाश में ऊंचा उठता है तथा अपने पंखों को दक्षिण दिशा की ओर फैलाता है?
אִם־עַל־פִּ֭יךָ יַגְבִּ֣יהַּ נָ֑שֶׁר וְ֝כִ֗י יָרִ֥ים קִנֹּֽו׃ 27
क्या तुम्हारे आदेश पर गरुड़ ऊपर उड़ता है तथा अपना घोंसला उच्च स्थान पर निर्माण करता है?
סֶ֣לַע יִ֭שְׁכֹּן וְיִתְלֹנָ֑ן עַֽל־שֶׁן־סֶ֝֗לַע וּמְצוּדָֽה׃ 28
चट्टान पर वह अपना आश्रय स्थापित करता है; चोटी पर, जो अगम्य है, वह बसेरा करता है.
מִשָּׁ֥ם חָֽפַר־אֹ֑כֶל לְ֝מֵרָחֹ֗וק עֵינָ֥יו יַבִּֽיטוּ׃ 29
उसी बिंदु से वह अपने आहार को खोज लेता है; ऐसी है उसकी सूक्ष्मदृष्टि कि वह इसे दूर से देख लेता है.
וְאֶפְרֹחֹו (וְאֶפְרֹחָ֥יו) יְעַלְעוּ־דָ֑ם וּבַאֲשֶׁ֥ר חֲ֝לָלִ֗ים שָׁ֣ם הֽוּא׃ פ 30
जहां कहीं शव होते हैं, वह वहीं पहुंच जाता है और उसके बच्‍चे रक्तपान करते हैं.”

< אִיּוֹב 39 >