< אִיּוֹב 33 >

וְֽאוּלָ֗ם שְׁמַֽע־נָ֣א אִיֹּ֣וב מִלָּ֑י וְֽכָל־דְּבָרַ֥י הַאֲזִֽינָה׃ 1
“इसलिए अब, हे अय्यूब! मेरी बातें सुन ले, और मेरे सब वचनों पर कान लगा।
הִנֵּה־נָ֭א פָּתַ֣חְתִּי פִ֑י דִּבְּרָ֖ה לְשֹׁונִ֣י בְחִכִּֽי׃ 2
मैंने तो अपना मुँह खोला है, और मेरी जीभ मुँह में चुलबुला रही है।
יֹֽשֶׁר־לִבִּ֥י אֲמָרָ֑י וְדַ֥עַת שְׂ֝פָתַ֗י בָּר֥וּר מִלֵּֽלוּ׃ 3
मेरी बातें मेरे मन की सिधाई प्रगट करेंगी; जो ज्ञान मैं रखता हूँ उसे खराई के साथ कहूँगा।
רֽוּחַ־אֵ֥ל עָשָׂ֑תְנִי וְנִשְׁמַ֖ת שַׁדַּ֣י תְּחַיֵּֽנִי׃ 4
मुझे परमेश्वर की आत्मा ने बनाया है, और सर्वशक्तिमान की साँस से मुझे जीवन मिलता है।
אִם־תּוּכַ֥ל הֲשִׁיבֵ֑נִי עֶרְכָ֥ה לְ֝פָנַ֗י הִתְיַצָּֽבָה׃ 5
यदि तू मुझे उत्तर दे सके, तो दे; मेरे सामने अपनी बातें क्रम से रचकर खड़ा हो जा।
הֵן־אֲנִ֣י כְפִ֣יךָ לָאֵ֑ל מֵ֝חֹ֗מֶר קֹרַ֥צְתִּי גַם־אָֽנִי׃ 6
देख, मैं परमेश्वर के सन्मुख तेरे तुल्य हूँ; मैं भी मिट्टी का बना हुआ हूँ।
הִנֵּ֣ה אֵ֭מָתִי לֹ֣א תְבַעֲתֶ֑ךָּ וְ֝אַכְפִּ֗י עָלֶ֥יךָ לֹא־יִכְבָּֽד׃ 7
सुन, तुझे डर के मारे घबराना न पड़ेगा, और न तू मेरे बोझ से दबेगा।
אַ֭ךְ אָמַ֣רְתָּ בְאָזְנָ֑י וְקֹ֖ול מִלִּ֣ין אֶשְׁמָֽע׃ 8
“निःसन्देह तेरी ऐसी बात मेरे कानों में पड़ी है और मैंने तेरे वचन सुने हैं,
זַ֥ךְ אֲנִ֗י בְּֽלִ֫י פָ֥שַׁע חַ֥ף אָנֹכִ֑י וְלֹ֖א עָוֹ֣ן לִֽי׃ 9
‘मैं तो पवित्र और निरपराध और निष्कलंक हूँ; और मुझ में अधर्म नहीं है।
הֵ֣ן תְּ֭נוּאֹות עָלַ֣י יִמְצָ֑א יַחְשְׁבֵ֖נִי לְאֹויֵ֣ב לֹֽו׃ 10
१०देख, परमेश्वर मुझसे झगड़ने के दाँव ढूँढ़ता है, और मुझे अपना शत्रु समझता है;
יָשֵׂ֣ם בַּסַּ֣ד רַגְלָ֑י יִ֝שְׁמֹ֗ר כָּל־אָרְחֹתָֽי׃ 11
११वह मेरे दोनों पाँवों को काठ में ठोंक देता है, और मेरी सारी चाल पर दृष्टि रखता है।’
הֶן־זֹ֣את לֹא־צָדַ֣קְתָּ אֶעֱנֶ֑ךָּ כִּֽי־יִרְבֶּ֥ה אֱ֝לֹ֗והַ מֵאֱנֹֽושׁ׃ 12
१२“देख, मैं तुझे उत्तर देता हूँ, इस बात में तू सच्चा नहीं है। क्योंकि परमेश्वर मनुष्य से बड़ा है।
מַ֭דּוּעַ אֵלָ֣יו רִיבֹ֑ותָ כִּ֥י כָל־דְּ֝בָרָ֗יו לֹ֣א־יַעֲנֶֽה׃ 13
१३तू उससे क्यों झगड़ता है? क्योंकि वह अपनी किसी बात का लेखा नहीं देता।
כִּֽי־בְאַחַ֥ת יְדַבֶּר־אֵ֑ל וּ֝בִשְׁתַּ֗יִם לֹ֣א יְשׁוּרֶֽנָּה׃ 14
१४क्योंकि परमेश्वर तो एक क्या वरन् दो बार बोलता है, परन्तु लोग उस पर चित्त नहीं लगाते।
בַּחֲלֹ֤ום ׀ חֶזְיֹ֬ון לַ֗יְלָה בִּנְפֹ֣ל תַּ֭רְדֵּמָה עַל־אֲנָשִׁ֑ים בִּ֝תְנוּמֹ֗ות עֲלֵ֣י מִשְׁכָּֽב׃ 15
१५स्वप्न में, या रात को दिए हुए दर्शन में, जब मनुष्य घोर निद्रा में पड़े रहते हैं, या बिछौने पर सोते समय,
אָ֣ז יִ֭גְלֶה אֹ֣זֶן אֲנָשִׁ֑ים וּבְמֹ֖סָרָ֣ם יַחְתֹּֽם׃ 16
१६तब वह मनुष्यों के कान खोलता है, और उनकी शिक्षा पर मुहर लगाता है,
לְ֭הָסִיר אָדָ֣ם מַעֲשֶׂ֑ה וְגֵוָ֖ה מִגֶּ֣בֶר יְכַסֶּֽה׃ 17
१७जिससे वह मनुष्य को उसके संकल्प से रोके और गर्व को मनुष्य में से दूर करे।
יַחְשֹׂ֣ךְ נַ֭פְשֹׁו מִנִּי־שָׁ֑חַת וְ֝חַיָּתֹ֗ו מֵעֲבֹ֥ר בַּשָּֽׁלַח׃ 18
१८वह उसके प्राण को गड्ढे से बचाता है, और उसके जीवन को तलवार की मार से बचाता हे।
וְהוּכַ֣ח בְּ֭מַכְאֹוב עַל־מִשְׁכָּבֹ֑ו וְרִיב (וְרֹ֖וב) עֲצָמָ֣יו אֵתָֽן׃ 19
१९“उसकी ताड़ना भी होती है, कि वह अपने बिछौने पर पड़ा-पड़ा तड़पता है, और उसकी हड्डी-हड्डी में लगातार झगड़ा होता है
וְזִֽהֲמַ֣תּוּ חַיָּתֹ֣ו לָ֑חֶם וְ֝נַפְשֹׁ֗ו מַאֲכַ֥ל תַּאֲוָֽה׃ 20
२०यहाँ तक कि उसका प्राण रोटी से, और उसका मन स्वादिष्ट भोजन से घृणा करने लगता है।
יִ֣כֶל בְּשָׂרֹ֣ו מֵרֹ֑אִי וּשְׁפִי (וְשֻׁפּ֥וּ) עַ֝צְמֹותָ֗יו לֹ֣א רֻאּֽוּ׃ 21
२१उसका माँस ऐसा सूख जाता है कि दिखाई नहीं देता; और उसकी हड्डियाँ जो पहले दिखाई नहीं देती थीं निकल आती हैं।
וַתִּקְרַ֣ב לַשַּׁ֣חַת נַפְשֹׁ֑ו וְ֝חַיָּתֹ֗ו לַֽמְמִתִֽים׃ 22
२२तब वह कब्र के निकट पहुँचता है, और उसका जीवन नाश करनेवालों के वश में हो जाता है।
אִם־יֵ֤שׁ עָלָ֨יו ׀ מַלְאָ֗ךְ מֵלִ֗יץ אֶחָ֥ד מִנִּי־אָ֑לֶף לְהַגִּ֖יד לְאָדָ֣ם יָשְׁרֹֽו׃ 23
२३यदि उसके लिये कोई बिचवई स्वर्गदूत मिले, जो हजार में से एक ही हो, जो भावी कहे। और जो मनुष्य को बताए कि उसके लिये क्या ठीक है।
וַיְחֻנֶּ֗נּוּ וַיֹּ֗אמֶר פְּ֭דָעֵהוּ מֵרֶ֥דֶת שָׁ֗חַת מָצָ֥אתִי כֹֽפֶר׃ 24
२४तो वह उस पर अनुग्रह करके कहता है, ‘उसे गड्ढे में जाने से बचा ले, मुझे छुड़ौती मिली है।
רֻֽטֲפַ֣שׁ בְּשָׂרֹ֣ו מִנֹּ֑עַר יָ֝שׁ֗וּב לִימֵ֥י עֲלוּמָֽיו׃ 25
२५तब उस मनुष्य की देह बालक की देह से अधिक स्वस्थ और कोमल हो जाएगी; उसकी जवानी के दिन फिर लौट आएँगे।’
יֶעְתַּ֤ר אֶל־אֱלֹ֨והַּ ׀ וַיִּרְצֵ֗הוּ וַיַּ֣רְא פָּ֭נָיו בִּתְרוּעָ֑ה וַיָּ֥שֶׁב לֶ֝אֱנֹ֗ושׁ צִדְקָתֹֽו׃ 26
२६वह परमेश्वर से विनती करेगा, और वह उससे प्रसन्न होगा, वह आनन्द से परमेश्वर का दर्शन करेगा, और परमेश्वर मनुष्य को ज्यों का त्यों धर्मी कर देगा।
יָשֹׁ֤ר ׀ עַל־אֲנָשִׁ֗ים וַיֹּ֗אמֶר חָ֭טָאתִי וְיָשָׁ֥ר הֶעֱוֵ֗יתִי וְלֹא־שָׁ֥וָה לִֽי׃ 27
२७वह मनुष्यों के सामने गाने और कहने लगता है, ‘मैंने पाप किया, और सच्चाई को उलट-पुलट कर दिया, परन्तु उसका बदला मुझे दिया नहीं गया।
פָּדָ֣ה נַפְשִׁי (נַ֭פְשֹׁו) מֵעֲבֹ֣ר בַּשָּׁ֑חַת וְחַיָּתִי (וְ֝חַיָּתֹו) בָּאֹ֥ור תִּרְאֶֽה׃ 28
२८उसने मेरे प्राण कब्र में पड़ने से बचाया है, मेरा जीवन उजियाले को देखेगा।’
הֶן־כָּל־אֵ֭לֶּה יִפְעַל־אֵ֑ל פַּעֲמַ֖יִם שָׁלֹ֣ושׁ עִם־גָּֽבֶר׃ 29
२९“देख, ऐसे-ऐसे सब काम परमेश्वर मनुष्य के साथ दो बार क्या वरन् तीन बार भी करता है,
לְהָשִׁ֣יב נַ֭פְשֹׁו מִנִּי־שָׁ֑חַת לֵ֝אֹ֗ור בְּאֹ֣ור הַֽחַיִּים׃ 30
३०जिससे उसको कब्र से बचाए, और वह जीवनलोक के उजियाले का प्रकाश पाए।
הַקְשֵׁ֖ב אִיֹּ֥וב שְֽׁמַֽע־לִ֑י הַ֝חֲרֵ֗שׁ וְאָנֹכִ֥י אֲדַבֵּֽר׃ 31
३१हे अय्यूब! कान लगाकर मेरी सुन; चुप रह, मैं और बोलूँगा।
אִם־יֵשׁ־מִלִּ֥ין הֲשִׁיבֵ֑נִי דַּ֝בֵּ֗ר כִּֽי־חָפַ֥צְתִּי צַדְּקֶֽךָּ׃ 32
३२यदि तुझे बात कहनी हो, तो मुझे उत्तर दे; बोल, क्योंकि मैं तुझे निर्दोष ठहराना चाहता हूँ।
אִם־אַ֭יִן אַתָּ֥ה שְֽׁמַֽע־לִ֑י הַ֝חֲרֵ֗שׁ וַאֲאַלֶּפְךָ֥ חָכְמָֽה׃ ס 33
३३यदि नहीं, तो तू मेरी सुन; चुप रह, मैं तुझे बुद्धि की बात सिखाऊँगा।”

< אִיּוֹב 33 >