< אִיּוֹב 11 >

וַ֭יַּעַן צֹפַ֥ר הַֽנַּעֲמָתִ֗י וַיֹּאמַֽר׃ 1
इसके बाद नआमथवासी ज़ोफर ने कहना प्रारंभ किया:
הֲרֹ֣ב דְּ֭בָרִים לֹ֣א יֵעָנֶ֑ה וְאִם־אִ֖ישׁ שְׂפָתַ֣יִם יִצְדָּֽק׃ 2
“क्या मेरे इतने सारे शब्दों का उत्तर नहीं मिलेगा? क्या कोई वाचाल व्यक्ति दोष मुक्त माना जाएगा?
בַּ֭דֶּיךָ מְתִ֣ים יַחֲרִ֑ישׁו וַ֝תִּלְעַ֗ג וְאֵ֣ין מַכְלִֽם׃ 3
क्या तुम्हारी अहंकार की बातें लोगों को चुप कर पाएगी? क्या तुम उपहास करके भी कष्ट से मुक्त रहोगे?
וַ֭תֹּאמֶר זַ֣ךְ לִקְחִ֑י וּ֝בַ֗ר הָיִ֥יתִי בְעֵינֶֽיךָ׃ 4
क्योंकि तुमने तो कहा है, ‘मेरी शिक्षा निर्मल है तथा आपके आंकलन में मैं निर्दोष हूं,’
וְֽאוּלָ֗ם מִֽי־יִתֵּ֣ן אֱלֹ֣והַּ דַּבֵּ֑ר וְיִפְתַּ֖ח שְׂפָתָ֣יו עִמָּֽךְ׃ 5
किंतु यह संभव है कि परमेश्वर संवाद करने लगें तथा वह तुम्हारे विरुद्ध अपना निर्णय दें.
וְיַגֶּד־לְךָ֨ ׀ תַּֽעֲלֻמֹ֣ות חָכְמָה֮ כִּֽי־כִפְלַ֪יִם לְֽת֫וּשִׁיָּ֥ה וְדַ֡ע כִּֽי־יַשֶּׁ֥ה לְךָ֥ אֱ֝לֹ֗והַ מֵעֲוֹנֶֽךָ׃ 6
वह तुम पर ज्ञान का रहस्य प्रगट कर दें, क्योंकि सत्य ज्ञान के दो पक्ष हैं. तब यह समझ लो, कि परमेश्वर तुम्हारे अपराध के कुछ अंश को भूल जाते हैं.
הַחֵ֣קֶר אֱלֹ֣והַ תִּמְצָ֑א אִ֤ם עַד־תַּכְלִ֖ית שַׁדַּ֣י תִּמְצָֽא׃ 7
“क्या, परमेश्वर के रहस्य की गहराई को नापना तुम्हारे लिए संभव है? क्या तुम सर्वशक्तिमान की सीमाओं की जांच कर सकते हो?
גָּבְהֵ֣י שָׁ֭מַיִם מַה־תִּפְעָ֑ל עֲמֻקָּ֥ה מִ֝שְּׁאֹ֗ול מַה־תֵּדָֽע׃ (Sheol h7585) 8
क्या करोगे तुम? वे तो आकाश-समान उन्‍नत हैं. क्या मालूम कर सकोगे तुम? वे तो पाताल से भी अधिक अथाह हैं. (Sheol h7585)
אֲרֻכָּ֣ה מֵאֶ֣רֶץ מִדָּ֑הּ וּ֝רְחָבָ֗ה מִנִּי־יָֽם׃ 9
इसका विस्तार पृथ्वी से भी लंबा है तथा महासागर से भी अधिक व्यापक.
אִם־יַחֲלֹ֥ף וְיַסְגִּ֑יר וְ֝יַקְהִ֗יל וּמִ֣י יְשִׁיבֶֽנּוּ׃ 10
“यदि वह आएं तथा तुम्हें बंदी बना दें, तथा तुम्हारे लिए अदालत आयोजित कर दें, तो कौन उन्हें रोक सकता है?
כִּי־ה֭וּא יָדַ֣ע מְתֵי־שָׁ֑וְא וַיַּרְא־אָ֝֗וֶן וְלֹ֣א יִתְבֹּונָֽן׃ 11
वह तो पाखंडी को पहचान लेते हैं, उन्हें तो यह भी आवश्यकता नहीं; कि वह पापी के लिए विचार करें.
וְאִ֣ישׁ נָ֭בוּב יִלָּבֵ֑ב וְעַ֥יִר פֶּ֝֗רֶא אָדָ֥ם יִוָּלֵֽד׃ 12
जैसे जंगली गधे का बच्चा मनुष्य नहीं बन सकता, वैसे ही किसी मूर्ख को बुद्धिमान नहीं बनाया जा सकता.
אִם־אַ֭תָּ֗ה הֲכִינֹ֣ותָ לִבֶּ֑ךָ וּפָרַשְׂתָּ֖ אֵלָ֣יו כַּפֶּֽךָ׃ 13
“यदि तुम अपने हृदय को शुद्ध दिशा की ओर बढ़ाओ, तथा अपना हाथ परमेश्वर की ओर बढ़ाओ,
אִם־אָ֣וֶן בְּ֭יָדְךָ הַרְחִיקֵ֑הוּ וְאַל־תַּשְׁכֵּ֖ן בְּאֹהָלֶ֣יךָ עַוְלָֽה׃ 14
यदि तुम्हारे हाथ जिस पाप में फंसे है, तुम इसका परित्याग कर दो तथा अपने घरों में बुराई का प्रवेश न होने दो,
כִּי־אָ֤ז ׀ תִּשָּׂ֣א פָנֶ֣יךָ מִמּ֑וּם וְהָיִ֥יתָ מֻ֝צָ֗ק וְלֹ֣א תִירָֽא׃ 15
तो तुम निःसंकोच अपना सिर ऊंचा कर सकोगे तथा तुम निर्भय हो स्थिर खड़े रह सकोगे.
כִּי־אַ֭תָּה עָמָ֣ל תִּשְׁכָּ֑ח כְּמַ֖יִם עָבְר֣וּ תִזְכֹּֽר׃ 16
क्योंकि तुम्हें अपने कष्टों का स्मरण रहेगा, जैसे वह जल जो बह चुका है वैसी ही होगी तुम्हारी स्मृति.
וּֽ֭מִצָּהֳרַיִם יָק֣וּם חָ֑לֶד תָּ֝עֻ֗פָה כַּבֹּ֥קֶר תִּהְיֶֽה׃ 17
तब तुम्हारा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक प्रकाशमान हो जाएगा, अंधकार भी प्रभात-समान होगा.
וּֽ֭בָטַחְתָּ כִּי־יֵ֣שׁ תִּקְוָ֑ה וְ֝חָפַרְתָּ֗ לָבֶ֥טַח תִּשְׁכָּֽב׃ 18
तब तुम विश्वास करोगे, क्योंकि तब तुम्हारे सामने होगी एक आशा; तुम आस-पास निरीक्षण करोगे और फिर पूर्ण सुरक्षा में विश्राम करोगे.
וְֽ֭רָבַצְתָּ וְאֵ֣ין מַחֲרִ֑יד וְחִלּ֖וּ פָנֶ֣יךָ רַבִּֽים׃ 19
कोई भी तुम्हारी निद्रा में बाधा न डालेगा, अनेक तुम्हारे समर्थन की अपेक्षा करेंगे.
וְעֵינֵ֥י רְשָׁעִ֗ים תִּ֫כְלֶ֥ינָה וּ֭מָנֹוס אָבַ֣ד מִנְהֶ֑ם וְ֝תִקְוָתָ֗ם מַֽפַּח־נָֽפֶשׁ׃ פ 20
किंतु दुर्वृत्तों की दृष्टि शून्य हो जाएगी, उनके लिए निकास न हो सकेगा; उनके लिए एकमात्र आशा है मृत्यु.”

< אִיּוֹב 11 >