< יְשַׁעְיָהוּ 58 >

קְרָ֤א בְגָרֹון֙ אַל־תַּחְשֹׂ֔ךְ כַּשֹּׁופָ֖ר הָרֵ֣ם קֹולֶ֑ךָ וְהַגֵּ֤ד לְעַמִּי֙ פִּשְׁעָ֔ם וּלְבֵ֥ית יַעֲקֹ֖ב חַטֹּאתָֽם׃ 1
“गला खोलकर पुकार, कुछ न रख छोड़, नरसिंगे का सा ऊँचा शब्द कर; मेरी प्रजा को उसका अपराध अर्थात् याकूब के घराने को उसका पाप जता दे।
וְאֹותִ֗י יֹ֥ום יֹום֙ יִדְרֹשׁ֔וּן וְדַ֥עַת דְּרָכַ֖י יֶחְפָּצ֑וּן כְּגֹ֞וי אֲשֶׁר־צְדָקָ֣ה עָשָׂ֗ה וּמִשְׁפַּ֤ט אֱלֹהָיו֙ לֹ֣א עָזָ֔ב יִשְׁאָל֙וּנִי֙ מִשְׁפְּטֵי־צֶ֔דֶק קִרְבַ֥ת אֱלֹהִ֖ים יֶחְפָּצֽוּן׃ 2
वे प्रतिदिन मेरे पास आते और मेरी गति जानने की इच्छा ऐसी रखते हैं मानो वे धर्मी लोग हैं जिन्होंने अपने परमेश्वर के नियमों को नहीं टाला; वे मुझसे धर्म के नियम पूछते और परमेश्वर के निकट आने से प्रसन्न होते हैं।
לָ֤מָּה צַּ֙מְנוּ֙ וְלֹ֣א רָאִ֔יתָ עִנִּ֥ינוּ נַפְשֵׁ֖נוּ וְלֹ֣א תֵדָ֑ע הֵ֣ן בְּיֹ֤ום צֹֽמְכֶם֙ תִּמְצְאוּ־חֵ֔פֶץ וְכָל־עַצְּבֵיכֶ֖ם תִּנְגֹּֽשׂוּ׃ 3
वे कहते हैं, ‘क्या कारण है कि हमने तो उपवास रखा, परन्तु तूने इसकी सुधि नहीं ली? हमने दुःख उठाया, परन्तु तूने कुछ ध्यान नहीं दिया?’ सुनो, उपवास के दिन तुम अपनी ही इच्छा पूरी करते हो और अपने सेवकों से कठिन कामों को कराते हो।
הֵ֣ן לְרִ֤יב וּמַצָּה֙ תָּצ֔וּמוּ וּלְהַכֹּ֖ות בְּאֶגְרֹ֣ף רֶ֑שַׁע לֹא־תָצ֣וּמוּ כַיֹּ֔ום לְהַשְׁמִ֥יעַ בַּמָּרֹ֖ום קֹולְכֶֽם׃ 4
सुनो, तुम्हारे उपवास का फल यह होता है कि तुम आपस में लड़ते और झगड़ते और दुष्टता से घूँसे मारते हो। जैसा उपवास तुम आजकल रखते हो, उससे तुम्हारी प्रार्थना ऊपर नहीं सुनाई देगी।
הֲכָזֶ֗ה יִֽהְיֶה֙ צֹ֣ום אֶבְחָרֵ֔הוּ יֹ֛ום עַנֹּ֥ות אָדָ֖ם נַפְשֹׁ֑ו הֲלָכֹ֨ף כְּאַגְמֹ֜ן רֹאשֹׁ֗ו וְשַׂ֤ק וָאֵ֙פֶר֙ יַצִּ֔יעַ הֲלָזֶה֙ תִּקְרָא־צֹ֔ום וְיֹ֥ום רָצֹ֖ון לַיהוָֽה׃ 5
जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूँ अर्थात् जिसमें मनुष्य स्वयं को दीन करे, क्या तुम इस प्रकार करते हो? क्या सिर को झाऊ के समान झुकाना, अपने नीचे टाट बिछाना, और राख फैलाने ही को तुम उपवास और यहोवा को प्रसन्न करने का दिन कहते हो?
הֲלֹ֣וא זֶה֮ צֹ֣ום אֶבְחָרֵהוּ֒ פַּתֵּ֙חַ֙ חַרְצֻבֹּ֣ות רֶ֔שַׁע הַתֵּ֖ר אֲגֻדֹּ֣ות מֹוטָ֑ה וְשַׁלַּ֤ח רְצוּצִים֙ חָפְשִׁ֔ים וְכָל־מֹוטָ֖ה תְּנַתֵּֽקוּ׃ 6
“जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूँ, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अंधेर सहनेवालों का जूआ तोड़कर उनको छुड़ा लेना, और, सब जूओं को टुकड़े-टुकड़े कर देना?
הֲלֹ֨וא פָרֹ֤ס לָֽרָעֵב֙ לַחְמֶ֔ךָ וַעֲנִיִּ֥ים מְרוּדִ֖ים תָּ֣בִיא בָ֑יִת כִּֽי־תִרְאֶ֤ה עָרֹם֙ וְכִסִּיתֹ֔ו וּמִבְּשָׂרְךָ֖ לֹ֥א תִתְעַלָּֽם׃ 7
क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना?
אָ֣ז יִבָּקַ֤ע כַּשַּׁ֙חַר֙ אֹורֶ֔ךָ וַאֲרֻכָתְךָ֖ מְהֵרָ֣ה תִצְמָ֑ח וְהָלַ֤ךְ לְפָנֶ֙יךָ֙ צִדְקֶ֔ךָ כְּבֹ֥וד יְהוָ֖ה יַאַסְפֶֽךָ׃ 8
तब तेरा प्रकाश पौ फटने के समान चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरी धार्मिकता तेरे आगे-आगे चलेगी, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा।
אָ֤ז תִּקְרָא֙ וַיהוָ֣ה יַעֲנֶ֔ה תְּשַׁוַּ֖ע וְיֹאמַ֣ר הִנֵּ֑נִי אִם־תָּסִ֤יר מִתֹּֽוכְךָ֙ מֹוטָ֔ה שְׁלַ֥ח אֶצְבַּ֖ע וְדַבֶּר־אָֽוֶן׃ 9
तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दुहाई देगा और वह कहेगा, ‘मैं यहाँ हूँ।’ यदि तू अंधेर करना और उँगली उठाना, और, दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे,
וְתָפֵ֤ק לָֽרָעֵב֙ נַפְשֶׁ֔ךָ וְנֶ֥פֶשׁ נַעֲנָ֖ה תַּשְׂבִּ֑יעַ וְזָרַ֤ח בַּחֹ֙שֶׁךְ֙ אֹורֶ֔ךָ וַאֲפֵלָתְךָ֖ כַּֽצָּהֳרָֽיִם׃ 10
१०उदारता से भूखे की सहायता करे और दीन दुःखियों को सन्तुष्ट करे, तब अंधियारे में तेरा प्रकाश चमकेगा, और तेरा घोर अंधकार दोपहर का सा उजियाला हो जाएगा।
וְנָחֲךָ֣ יְהוָה֮ תָּמִיד֒ וְהִשְׂבִּ֤יעַ בְּצַחְצָחֹות֙ נַפְשֶׁ֔ךָ וְעַצְמֹתֶ֖יךָ יַחֲלִ֑יץ וְהָיִ֙יתָ֙ כְּגַ֣ן רָוֶ֔ה וּכְמֹוצָ֣א מַ֔יִם אֲשֶׁ֥ר לֹא־יְכַזְּב֖וּ מֵימָֽיו׃ 11
११यहोवा तुझे लगातार लिए चलेगा, और अकाल के समय तुझे तृप्त और तेरी हड्डियों को हरी भरी करेगा; और तू सींची हुई बारी और ऐसे सोते के समान होगा जिसका जल कभी नहीं सूखता।
וּבָנ֤וּ מִמְּךָ֙ חָרְבֹ֣ות עֹולָ֔ם מֹוסְדֵ֥י דֹור־וָדֹ֖ור תְּקֹומֵ֑ם וְקֹרָ֤א לְךָ֙ גֹּדֵ֣ר פֶּ֔רֶץ מְשֹׁבֵ֥ב נְתִיבֹ֖ות לָשָֽׁבֶת׃ 12
१२तेरे वंश के लोग बहुत काल के उजड़े हुए स्थानों को फिर बसाएँगे; तू पीढ़ी-पीढ़ी की पड़ी हुई नींव पर घर उठाएगा; तेरा नाम टूटे हुए बाड़े का सुधारक और पथों का ठीक करनेवाला पड़ेगा।
אִם־תָּשִׁ֤יב מִשַּׁבָּת֙ רַגְלֶ֔ךָ עֲשֹׂ֥ות חֲפָצֶ֖יךָ בְּיֹ֣ום קָדְשִׁ֑י וְקָרָ֨אתָ לַשַּׁבָּ֜ת עֹ֗נֶג לִקְדֹ֤ושׁ יְהוָה֙ מְכֻבָּ֔ד וְכִבַּדְתֹּו֙ מֵעֲשֹׂ֣ות דְּרָכֶ֔יךָ מִמְּצֹ֥וא חֶפְצְךָ֖ וְדַבֵּ֥ר דָּבָֽר׃ 13
१३“यदि तू विश्रामदिन को अशुद्ध न करे अर्थात् मेरे उस पवित्र दिन में अपनी इच्छा पूरी करने का यत्न न करे, और विश्रामदिन को आनन्द का दिन और यहोवा का पवित्र किया हुआ दिन समझकर माने; यदि तू उसका सम्मान करके उस दिन अपने मार्ग पर न चले, अपनी इच्छा पूरी न करे, और अपनी ही बातें न बोले,
אָ֗ז תִּתְעַנַּג֙ עַל־יְהוָ֔ה וְהִרְכַּבְתִּ֖יךָ עַל־בָּמֹותֵי (בָּ֣מֳתֵי) אָ֑רֶץ וְהַאֲכַלְתִּ֗יךָ נַחֲלַת֙ יַעֲקֹ֣ב אָבִ֔יךָ כִּ֛י פִּ֥י יְהוָ֖ה דִּבֵּֽר׃ ס 14
१४तो तू यहोवा के कारण सुखी होगा, और मैं तुझे देश के ऊँचे स्थानों पर चलने दूँगा; मैं तेरे मूलपुरुष याकूब के भाग की उपज में से तुझे खिलाऊँगा, क्योंकि यहोवा ही के मुख से यह वचन निकला है।”

< יְשַׁעְיָהוּ 58 >