< בְּרֵאשִׁית 31 >

וַיִּשְׁמַ֗ע אֶת־דִּבְרֵ֤י בְנֵֽי־לָבָן֙ לֵאמֹ֔ר לָקַ֣ח יַעֲקֹ֔ב אֵ֖ת כָּל־אֲשֶׁ֣ר לְאָבִ֑ינוּ וּמֵאֲשֶׁ֣ר לְאָבִ֔ינוּ עָשָׂ֕ה אֵ֥ת כָּל־הַכָּבֹ֖ד הַזֶּֽה׃ 1
फिर लाबान के पुत्रों की ये बातें याकूब के सुनने में आईं, “याकूब ने हमारे पिता का सब कुछ छीन लिया है, और हमारे पिता के धन के कारण उसकी यह प्रतिष्ठा है।”
וַיַּ֥רְא יַעֲקֹ֖ב אֶת־פְּנֵ֣י לָבָ֑ן וְהִנֵּ֥ה אֵינֶנּ֛וּ עִמֹּ֖ו כִּתְמֹ֥ול שִׁלְשֹֽׁום׃ 2
और याकूब ने लाबान के चेहरे पर दृष्टि की और ताड़ लिया, कि वह उसके प्रति पहले के समान नहीं है।
וַיֹּ֤אמֶר יְהוָה֙ אֶֽל־יַעֲקֹ֔ב שׁ֛וּב אֶל־אֶ֥רֶץ אֲבֹותֶ֖יךָ וּלְמֹולַדְתֶּ֑ךָ וְאֶֽהְיֶ֖ה עִמָּֽךְ׃ 3
तब यहोवा ने याकूब से कहा, “अपने पितरों के देश और अपनी जन्म-भूमि को लौट जा, और मैं तेरे संग रहूँगा।”
וַיִּשְׁלַ֣ח יַעֲקֹ֔ב וַיִּקְרָ֖א לְרָחֵ֣ל וּלְלֵאָ֑ה הַשָּׂדֶ֖ה אֶל־צֹאנֹֽו׃ 4
तब याकूब ने राहेल और लिआ को, मैदान में अपनी भेड़-बकरियों के पास बुलवाकर कहा,
וַיֹּ֣אמֶר לָהֶ֗ן רֹאֶ֤ה אָנֹכִי֙ אֶת־פְּנֵ֣י אֲבִיכֶ֔ן כִּֽי־אֵינֶ֥נּוּ אֵלַ֖י כִּתְמֹ֣ל שִׁלְשֹׁ֑ם וֽ͏ֵאלֹהֵ֣י אָבִ֔י הָיָ֖ה עִמָּדִֽי׃ 5
“तुम्हारे पिता के चेहरे से मुझे समझ पड़ता है, कि वह तो मुझे पहले के समान अब नहीं देखता; पर मेरे पिता का परमेश्वर मेरे संग है।
וְאַתֵּ֖נָה יְדַעְתֶּ֑ן כִּ֚י בְּכָל־כֹּחִ֔י עָבַ֖דְתִּי אֶת־אֲבִיכֶֽן׃ 6
और तुम भी जानती हो, कि मैंने तुम्हारे पिता की सेवा शक्ति भर की है।
וַאֲבִיכֶן֙ הֵ֣תֶל בִּ֔י וְהֶחֱלִ֥ף אֶת־מַשְׂכֻּרְתִּ֖י עֲשֶׂ֣רֶת מֹנִ֑ים וְלֹֽא־נְתָנֹ֣ו אֱלֹהִ֔ים לְהָרַ֖ע עִמָּדִֽי׃ 7
फिर भी तुम्हारे पिता ने मुझसे छल करके मेरी मजदूरी को दस बार बदल दिया; परन्तु परमेश्वर ने उसको मेरी हानि करने नहीं दिया।
אִם־כֹּ֣ה יֹאמַ֗ר נְקֻדִּים֙ יִהְיֶ֣ה שְׂכָרֶ֔ךָ וְיָלְד֥וּ כָל־הַצֹּ֖אן נְקֻדִּ֑ים וְאִם־כֹּ֣ה יֹאמַ֗ר עֲקֻדִּים֙ יִהְיֶ֣ה שְׂכָרֶ֔ךָ וְיָלְד֥וּ כָל־הַצֹּ֖אן עֲקֻדִּֽים׃ 8
जब उसने कहा, ‘चित्तीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे,’ तब सब भेड़-बकरियाँ चित्तीवाले ही जनने लगीं, और जब उसने कहा, ‘धारीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे,’ तब सब भेड़-बकरियाँ धारीवाले जनने लगीं।
וַיַּצֵּ֧ל אֱלֹהִ֛ים אֶת־מִקְנֵ֥ה אֲבִיכֶ֖ם וַיִּתֶּן־לִֽי׃ 9
इस रीति से परमेश्वर ने तुम्हारे पिता के पशु लेकर मुझ को दे दिए।
וַיְהִ֗י בְּעֵת֙ יַחֵ֣ם הַצֹּ֔אן וָאֶשָּׂ֥א עֵינַ֛י וָאֵ֖רֶא בַּחֲלֹ֑ום וְהִנֵּ֤ה הָֽעַתֻּדִים֙ הָעֹלִ֣ים עַל־הַצֹּ֔אן עֲקֻדִּ֥ים נְקֻדִּ֖ים וּבְרֻדִּֽים׃ 10
१०भेड़-बकरियों के गाभिन होने के समय मैंने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं, वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं।
וַיֹּ֨אמֶר אֵלַ֜י מַלְאַ֧ךְ הָאֱלֹהִ֛ים בַּחֲלֹ֖ום יֽ͏ַעֲקֹ֑ב וָאֹמַ֖ר הִנֵּֽנִי׃ 11
११तब परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझसे कहा, ‘हे याकूब,’ मैंने कहा, ‘क्या आज्ञा।’
וַיֹּ֗אמֶר שָׂא־נָ֨א עֵינֶ֤יךָ וּרְאֵה֙ כָּל־הָֽעַתֻּדִים֙ הָעֹלִ֣ים עַל־הַצֹּ֔אן עֲקֻדִּ֥ים נְקֻדִּ֖ים וּבְרֻדִּ֑ים כִּ֣י רָאִ֔יתִי אֵ֛ת כָּל־אֲשֶׁ֥ר לָבָ֖ן עֹ֥שֶׂה לָּֽךְ׃ 12
१२उसने कहा, ‘आँखें उठाकर उन सब बकरों को जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, वह मैंने देखा है।
אָנֹכִ֤י הָאֵל֙ בֵּֽית־אֵ֔ל אֲשֶׁ֨ר מָשַׁ֤חְתָּ שָּׁם֙ מַצֵּבָ֔ה אֲשֶׁ֨ר נָדַ֥רְתָּ לִּ֛י שָׁ֖ם נֶ֑דֶר עַתָּ֗ה ק֥וּם צֵא֙ מִן־הָאָ֣רֶץ הַזֹּ֔את וְשׁ֖וּב אֶל־אֶ֥רֶץ מֹולַדְתֶּֽךָ׃ 13
१३मैं उस बेतेल का परमेश्वर हूँ, जहाँ तूने एक खम्भे पर तेल डाल दिया था और मेरी मन्नत मानी थी। अब चल, इस देश से निकलकर अपनी जन्म-भूमि को लौट जा।’”
וַתַּ֤עַן רָחֵל֙ וְלֵאָ֔ה וַתֹּאמַ֖רְנָה לֹ֑ו הַעֹ֥וד לָ֛נוּ חֵ֥לֶק וְנַחֲלָ֖ה בְּבֵ֥ית אָבִֽינוּ׃ 14
१४तब राहेल और लिआ ने उससे कहा, “क्या हमारे पिता के घर में अब भी हमारा कुछ भाग या अंश बचा है?
הֲלֹ֧וא נָכְרִיֹּ֛ות נֶחְשַׁ֥בְנוּ לֹ֖ו כִּ֣י מְכָרָ֑נוּ וַיֹּ֥אכַל גַּם־אָכֹ֖ול אֶת־כַּסְפֵּֽנוּ׃ 15
१५क्या हम उसकी दृष्टि में पराए न ठहरीं? देख, उसने हमको तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है।
כִּ֣י כָל־הָעֹ֗שֶׁר אֲשֶׁ֨ר הִצִּ֤יל אֱלֹהִים֙ מֵֽאָבִ֔ינוּ לָ֥נוּ ה֖וּא וּלְבָנֵ֑ינוּ וְעַתָּ֗ה כֹּל֩ אֲשֶׁ֨ר אָמַ֧ר אֱלֹהִ֛ים אֵלֶ֖יךָ עֲשֵֽׂה׃ 16
१६इसलिए परमेश्वर ने हमारे पिता का जितना धन ले लिया है, वह हमारा, और हमारे बच्चों का है; अब जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा है, वही कर।”
וַיָּ֖קָם יַעֲקֹ֑ב וַיִּשָּׂ֛א אֶת־בָּנָ֥יו וְאֶת־נָשָׁ֖יו עַל־הַגְּמַלִּֽים׃ 17
१७तब याकूब ने अपने बच्चों और स्त्रियों को ऊँटों पर चढ़ाया;
וַיִּנְהַ֣ג אֶת־כָּל־מִקְנֵ֗הוּ וְאֶת־כָּל־רְכֻשֹׁו֙ אֲשֶׁ֣ר רָכָ֔שׁ מִקְנֵה֙ קִנְיָנֹ֔ו אֲשֶׁ֥ר רָכַ֖שׁ בְּפַדַּ֣ן אֲרָ֑ם לָבֹ֛וא אֶל־יִצְחָ֥ק אָבִ֖יו אַ֥רְצָה כְּנָֽעַן׃ 18
१८और जितने पशुओं को वह पद्दनराम में इकट्ठा करके धनाढ्य हो गया था, सब को कनान में अपने पिता इसहाक के पास जाने की मनसा से, साथ ले गया।
וְלָבָ֣ן הָלַ֔ךְ לִגְזֹ֖ז אֶת־צֹאנֹ֑ו וַתִּגְנֹ֣ב רָחֵ֔ל אֶת־הַתְּרָפִ֖ים אֲשֶׁ֥ר לְאָבִֽיהָ׃ 19
१९लाबान तो अपनी भेड़ों का ऊन कतरने के लिये चला गया था, और राहेल अपने पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई।
וַיִּגְנֹ֣ב יַעֲקֹ֔ב אֶת־לֵ֥ב לָבָ֖ן הָאֲרַמִּ֑י עַל־בְּלִי֙ הִגִּ֣יד לֹ֔ו כִּ֥י בֹרֵ֖חַ הֽוּא׃ 20
२०अतः याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया, उसको न बताया कि मैं भागा जाता हूँ।
וַיִּבְרַ֥ח הוּא֙ וְכָל־אֲשֶׁר־לֹ֔ו וַיָּ֖קָם וַיַּעֲבֹ֣ר אֶת־הַנָּהָ֑ר וַיָּ֥שֶׂם אֶת־פָּנָ֖יו הַ֥ר הַגִּלְעָֽד׃ 21
२१वह अपना सब कुछ लेकर भागा, और महानद के पार उतरकर अपना मुँह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया।
וַיֻּגַּ֥ד לְלָבָ֖ן בַּיֹּ֣ום הַשְּׁלִישִׁ֑י כִּ֥י בָרַ֖ח יַעֲקֹֽב׃ 22
२२तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला कि याकूब भाग गया है।
וַיִּקַּ֤ח אֶת־אֶחָיו֙ עִמֹּ֔ו וַיִּרְדֹּ֣ף אַחֲרָ֔יו דֶּ֖רֶךְ שִׁבְעַ֣ת יָמִ֑ים וַיַּדְבֵּ֥ק אֹתֹ֖ו בְּהַ֥ר הַגִּלְעָֽד׃ 23
२३इसलिए उसने अपने भाइयों को साथ लेकर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा।
וַיָּבֹ֧א אֱלֹהִ֛ים אֶל־לָבָ֥ן הָאֲרַמִּ֖י בַּחֲלֹ֣ם הַלָּ֑יְלָה וַיֹּ֣אמֶר לֹ֗ו הִשָּׁ֧מֶר לְךָ֛ פֶּן־תְּדַבֵּ֥ר עִֽם־יַעֲקֹ֖ב מִטֹּ֥וב עַד־רָֽע׃ 24
२४तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में अरामी लाबान के पास आकर कहा, “सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।”
וַיַּשֵּׂ֥ג לָבָ֖ן אֶֽת־יַעֲקֹ֑ב וְיַעֲקֹ֗ב תָּקַ֤ע אֶֽת־אָהֳלֹו֙ בָּהָ֔ר וְלָבָ֛ן תָּקַ֥ע אֶת־אֶחָ֖יו בְּהַ֥ר הַגִּלְעָֽד׃ 25
२५और लाबान याकूब के पास पहुँच गया। याकूब अपना तम्बू गिलाद नामक पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा था; और लाबान ने भी अपने भाइयों के साथ अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया।
וַיֹּ֤אמֶר לָבָן֙ לְיַעֲקֹ֔ב מֶ֣ה עָשִׂ֔יתָ וַתִּגְנֹ֖ב אֶת־לְבָבִ֑י וַתְּנַהֵג֙ אֶת־בְּנֹתַ֔י כִּשְׁבֻיֹ֖ות חָֽרֶב׃ 26
२६तब लाबान याकूब से कहने लगा, “तूने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाई गई हों?
לָ֤מָּה נַחְבֵּ֙אתָ֙ לִבְרֹ֔חַ וַתִּגְנֹ֖ב אֹתִ֑י וְלֹא־הִגַּ֣דְתָּ לִּ֔י וָֽאֲשַׁלֵּחֲךָ֛ בְּשִׂמְחָ֥ה וּבְשִׁרִ֖ים בְּתֹ֥ף וּבְכִנֹּֽור׃ 27
२७तू क्यों चुपके से भाग आया, और मुझसे बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साथ मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता?
וְלֹ֣א נְטַשְׁתַּ֔נִי לְנַשֵּׁ֥ק לְבָנַ֖י וְלִבְנֹתָ֑י עַתָּ֖ה הִסְכַּ֥לְתָּֽ עֲשֹֽׂו׃ 28
२८तूने तो मुझे अपने बेटे-बेटियों को चूमने तक न दिया? तूने मूर्खता की है।
יֶשׁ־לְאֵ֣ל יָדִ֔י לַעֲשֹׂ֥ות עִמָּכֶ֖ם רָ֑ע וֽ͏ֵאלֹהֵ֨י אֲבִיכֶ֜ם אֶ֣מֶשׁ ׀ אָמַ֧ר אֵלַ֣י לֵאמֹ֗ר הִשָּׁ֧מֶר לְךָ֛ מִדַּבֵּ֥ר עִֽם־יַעֲקֹ֖ב מִטֹּ֥וב עַד־רָֽע׃ 29
२९तुम लोगों की हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझसे बीती हुई रात में कहा, ‘सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।’
וְעַתָּה֙ הָלֹ֣ךְ הָלַ֔כְתָּ כִּֽי־נִכְסֹ֥ף נִכְסַ֖פְתָּה לְבֵ֣ית אָבִ֑יךָ לָ֥מָּה גָנַ֖בְתָּ אֶת־אֱלֹהָֽי׃ 30
३०भला, अब तू अपने पिता के घर का बड़ा अभिलाषी होकर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्यों चुरा ले आया है?”
וַיַּ֥עַן יַעֲקֹ֖ב וַיֹּ֣אמֶר לְלָבָ֑ן כִּ֣י יָרֵ֔אתִי כִּ֣י אָמַ֔רְתִּי פֶּן־תִּגְזֹ֥ל אֶת־בְּנֹותֶ֖יךָ מֵעִמִּֽי׃ 31
३१याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, “मैं यह सोचकर डर गया था कि कहीं तू अपनी बेटियों को मुझसे छीन न ले।
עִ֠ם אֲשֶׁ֨ר תִּמְצָ֣א אֶת־אֱלֹהֶיךָ֮ לֹ֣א יִֽחְיֶה֒ נֶ֣גֶד אַחֵ֧ינוּ הַֽכֶּר־לְךָ֛ מָ֥ה עִמָּדִ֖י וְקַֽח־לָ֑ךְ וְלֹֽא־יָדַ֣ע יַעֲקֹ֔ב כִּ֥י רָחֵ֖ל גְּנָבָֽתַם׃ 32
३२जिस किसी के पास तू अपने देवताओं को पाए, वह जीवित न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, उसे भाई-बन्धुओं के सामने पहचानकर ले ले।” क्योंकि याकूब न जानता था कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है।
וַיָּבֹ֨א לָבָ֜ן בְּאֹ֥הֶל יַעֲקֹ֣ב ׀ וּבְאֹ֣הֶל לֵאָ֗ה וּבְאֹ֛הֶל שְׁתֵּ֥י הָאֲמָהֹ֖ת וְלֹ֣א מָצָ֑א וַיֵּצֵא֙ מֵאֹ֣הֶל לֵאָ֔ה וַיָּבֹ֖א בְּאֹ֥הֶל רָחֵֽל׃ 33
३३यह सुनकर लाबान, याकूब और लिआ और दोनों दासियों के तम्बुओं में गया; और कुछ न मिला। तब लिआ के तम्बू में से निकलकर राहेल के तम्बू में गया।
וְרָחֵ֞ל לָקְחָ֣ה אֶת־הַתְּרָפִ֗ים וַתְּשִׂמֵ֛ם בְּכַ֥ר הַגָּמָ֖ל וַתֵּ֣שֶׁב עֲלֵיהֶ֑ם וַיְמַשֵּׁ֥שׁ לָבָ֛ן אֶת־כָּל־הָאֹ֖הֶל וְלֹ֥א מָצָֽא׃ 34
३४राहेल तो गृहदेवताओं को ऊँट की काठी में रखकर उन पर बैठी थी। लाबान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया।
וַתֹּ֣אמֶר אֶל־אָבִ֗יהָ אַל־יִ֙חַר֙ בְּעֵינֵ֣י אֲדֹנִ֔י כִּ֣י לֹ֤וא אוּכַל֙ לָק֣וּם מִפָּנֶ֔יךָ כִּי־דֶ֥רֶךְ נָשִׁ֖ים לִ֑י וַיְחַפֵּ֕שׂ וְלֹ֥א מָצָ֖א אֶת־הַתְּרָפִֽים׃ 35
३५राहेल ने अपने पिता से कहा, “हे मेरे प्रभु; इससे अप्रसन्न न हो, कि मैं तेरे सामने नहीं उठी; क्योंकि मैं मासिक धर्म से हूँ।” अतः उसके ढूँढ़-ढाँढ़ करने पर भी गृहदेवता उसको न मिले।
וַיִּ֥חַר לְיַעֲקֹ֖ב וַיָּ֣רֶב בְּלָבָ֑ן וַיַּ֤עַן יַעֲקֹב֙ וַיֹּ֣אמֶר לְלָבָ֔ן מַה־פִּשְׁעִי֙ מַ֣ה חַטָּאתִ֔י כִּ֥י דָלַ֖קְתָּ אַחֲרָֽי׃ 36
३६तब याकूब क्रोधित होकर लाबान से झगड़ने लगा, और कहा, “मेरा क्या अपराध है? मेरा क्या पाप है, कि तूने इतना क्रोधित होकर मेरा पीछा किया है?
כִּֽי־מִשַּׁ֣שְׁתָּ אֶת־כָּל־כֵּלַ֗י מַה־מָּצָ֙אתָ֙ מִכֹּ֣ל כְּלֵי־בֵיתֶ֔ךָ שִׂ֣ים כֹּ֔ה נֶ֥גֶד אַחַ֖י וְאַחֶ֑יךָ וְיֹוכִ֖יחוּ בֵּ֥ין שְׁנֵֽינוּ׃ 37
३७तूने जो मेरी सारी सामग्री को टटोलकर देखा, तो तुझको अपने घर की सारी सामग्री में से क्या मिला? कुछ मिला हो तो उसको यहाँ अपने और मेरे भाइयों के सामने रख दे, और वे हम दोनों के बीच न्याय करें।
זֶה֩ עֶשְׂרִ֨ים שָׁנָ֤ה אָנֹכִי֙ עִמָּ֔ךְ רְחֵלֶ֥יךָ וְעִזֶּ֖יךָ לֹ֣א שִׁכֵּ֑לוּ וְאֵילֵ֥י צֹאנְךָ֖ לֹ֥א אָכָֽלְתִּי׃ 38
३८इन बीस वर्षों से मैं तेरे पास रहा; इनमें न तो तेरी भेड़-बकरियों के गर्भ गिरे, और न तेरे मेढ़ों का माँस मैंने कभी खाया।
טְרֵפָה֙ לֹא־הֵבֵ֣אתִי אֵלֶ֔יךָ אָנֹכִ֣י אֲחַטֶּ֔נָּה מִיָּדִ֖י תְּבַקְשֶׁ֑נָּה גְּנֻֽבְתִ֣י יֹ֔ום וּגְנֻֽבְתִ֖י לָֽיְלָה׃ 39
३९जिसे जंगली जन्तुओं ने फाड़ डाला उसको मैं तेरे पास न लाता था, उसकी हानि मैं ही उठाता था; चाहे दिन को चोरी जाता चाहे रात को, तू मुझ ही से उसको ले लेता था।
הָיִ֧יתִי בַיֹּ֛ום אֲכָלַ֥נִי חֹ֖רֶב וְקֶ֣רַח בַּלָּ֑יְלָה וַתִּדַּ֥ד שְׁנָתִ֖י מֵֽעֵינָֽי׃ 40
४०मेरी तो यह दशा थी कि दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया; और नींद मेरी आँखों से भाग जाती थी।
זֶה־לִּ֞י עֶשְׂרִ֣ים שָׁנָה֮ בְּבֵיתֶךָ֒ עֲבַדְתִּ֜יךָ אַרְבַּֽע־עֶשְׂרֵ֤ה שָׁנָה֙ בִּשְׁתֵּ֣י בְנֹתֶ֔יךָ וְשֵׁ֥שׁ שָׁנִ֖ים בְּצֹאנֶ֑ךָ וַתַּחֲלֵ֥ף אֶת־מַשְׂכֻּרְתִּ֖י עֲשֶׂ֥רֶת מֹנִֽים׃ 41
४१बीस वर्ष तक मैं तेरे घर में रहा; चौदह वर्ष तो मैंने तेरी दोनों बेटियों के लिये, और छः वर्ष तेरी भेड़-बकरियों के लिये सेवा की; और तूने मेरी मजदूरी को दस बार बदल डाला।
לוּלֵ֡י אֱלֹהֵ֣י אָבִי֩ אֱלֹהֵ֨י אַבְרָהָ֜ם וּפַ֤חַד יִצְחָק֙ הָ֣יָה לִ֔י כִּ֥י עַתָּ֖ה רֵיקָ֣ם שִׁלַּחְתָּ֑נִי אֶת־עָנְיִ֞י וְאֶת־יְגִ֧יעַ כַּפַּ֛י רָאָ֥ה אֱלֹהִ֖ים וַיֹּ֥וכַח אָֽמֶשׁ׃ 42
४२मेरे पिता का परमेश्वर अर्थात् अब्राहम का परमेश्वर, जिसका भय इसहाक भी मानता है, यदि मेरी ओर न होता, तो निश्चय तू अब मुझे खाली हाथ जाने देता। मेरे दुःख और मेरे हाथों के परिश्रम को देखकर परमेश्वर ने बीती हुई रात में तुझे डाँटा।”
וַיַּ֨עַן לָבָ֜ן וַיֹּ֣אמֶר אֶֽל־יַעֲקֹ֗ב הַבָּנֹ֨ות בְּנֹתַ֜י וְהַבָּנִ֤ים בָּנַי֙ וְהַצֹּ֣אן צֹאנִ֔י וְכֹ֛ל אֲשֶׁר־אַתָּ֥ה רֹאֶ֖ה לִי־ה֑וּא וְלִבְנֹתַ֞י מָֽה־אֽ͏ֶעֱשֶׂ֤ה לָאֵ֙לֶּה֙ הַיֹּ֔ום אֹ֥ו לִבְנֵיהֶ֖ן אֲשֶׁ֥ר יָלָֽדוּ׃ 43
४३लाबान ने याकूब से कहा, “ये बेटियाँ तो मेरी ही हैं, और ये पुत्र भी मेरे ही हैं, और ये भेड़-बकरियाँ भी मेरे ही हैं, और जो कुछ तुझे देख पड़ता है वह सब मेरा ही है परन्तु अब मैं अपनी इन बेटियों और इनकी सन्तान से क्या कर सकता हूँ?
וְעַתָּ֗ה לְכָ֛ה נִכְרְתָ֥ה בְרִ֖ית אֲנִ֣י וָאָ֑תָּה וְהָיָ֥ה לְעֵ֖ד בֵּינִ֥י וּבֵינֶֽךָ׃ 44
४४अब आ, मैं और तू दोनों आपस में वाचा बाँधें, और वह मेरे और तेरे बीच साक्षी ठहरी रहे।”
וַיִּקַּ֥ח יַעֲקֹ֖ב אָ֑בֶן וַיְרִימֶ֖הָ מַצֵּבָֽה׃ 45
४५तब याकूब ने एक पत्थर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया।
וַיֹּ֨אמֶר יַעֲקֹ֤ב לְאֶחָיו֙ לִקְט֣וּ אֲבָנִ֔ים וַיִּקְח֥וּ אֲבָנִ֖ים וַיַּֽעֲשׂוּ־גָ֑ל וַיֹּ֥אכְלוּ שָׁ֖ם עַל־הַגָּֽל׃ 46
४६तब याकूब ने अपने भाई-बन्धुओं से कहा, “पत्थर इकट्ठा करो,” यह सुनकर उन्होंने पत्थर इकट्ठा करके एक ढेर लगाया और वहीं ढेर के पास उन्होंने भोजन किया।
וַיִּקְרָא־לֹ֣ו לָבָ֔ן יְגַ֖ר שָׂהֲדוּתָ֑א וְיַֽעֲקֹ֔ב קָ֥רָא לֹ֖ו גַּלְעֵֽד׃ 47
४७उस ढेर का नाम लाबान ने तो जैगर सहादुथा, पर याकूब ने गिलियाद रखा।
וַיֹּ֣אמֶר לָבָ֔ן הַגַּ֨ל הַזֶּ֥ה עֵ֛ד בֵּינִ֥י וּבֵינְךָ֖ הַיֹּ֑ום עַל־כֵּ֥ן קָרָֽא־שְׁמֹ֖ו גַּלְעֵֽד׃ 48
४८लाबान ने कहा, “यह ढेर आज से मेरे और तेरे बीच साक्षी रहेगा।” इस कारण उसका नाम गिलियाद रखा गया,
וְהַמִּצְפָּה֙ אֲשֶׁ֣ר אָמַ֔ר יִ֥צֶף יְהוָ֖ה בֵּינִ֣י וּבֵינֶ֑ךָ כִּ֥י נִסָּתֵ֖ר אִ֥ישׁ מֵרֵעֵֽהוּ׃ 49
४९और मिस्पा भी; क्योंकि उसने कहा, “जब हम एक दूसरे से दूर रहें तब यहोवा मेरी और तेरी देख-भाल करता रहे।
אִם־תְּעַנֶּ֣ה אֶת־בְּנֹתַ֗י וְאִם־תִּקַּ֤ח נָשִׁים֙ עַל־בְּנֹתַ֔י אֵ֥ין אִ֖ישׁ עִמָּ֑נוּ רְאֵ֕ה אֱלֹהִ֥ים עֵ֖ד בֵּינִ֥י וּבֵינֶֽךָ׃ 50
५०यदि तू मेरी बेटियों को दुःख दे, या उनके सिवाय और स्त्रियाँ ब्याह ले, तो हमारे साथ कोई मनुष्य तो न रहेगा; पर देख मेरे तेरे बीच में परमेश्वर साक्षी रहेगा।”
וַיֹּ֥אמֶר לָבָ֖ן לְיַעֲקֹ֑ב הִנֵּ֣ה ׀ הַגַּ֣ל הַזֶּ֗ה וְהִנֵּה֙ הַמַצֵּבָ֔ה אֲשֶׁ֥ר יָרִ֖יתִי בֵּינִ֥י וּבֵינֶֽךָ׃ 51
५१फिर लाबान ने याकूब से कहा, “इस ढेर को देख और इस खम्भे को भी देख, जिनको मैंने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है।
עֵ֚ד הַגַּ֣ל הַזֶּ֔ה וְעֵדָ֖ה הַמַּצֵּבָ֑ה אִם־אָ֗נִי לֹֽא־אֽ͏ֶעֱבֹ֤ר אֵלֶ֙יךָ֙ אֶת־הַגַּ֣ל הַזֶּ֔ה וְאִם־אַ֠תָּה לֹא־תַעֲבֹ֨ר אֵלַ֜י אֶת־הַגַּ֥ל הַזֶּ֛ה וְאֶת־הַמַּצֵּבָ֥ה הַזֹּ֖את לְרָעָֽה׃ 52
५२यह ढेर और यह खम्भा दोनों इस बात के साक्षी रहें कि हानि करने की मनसा से न तो मैं इस ढेर को लाँघकर तेरे पास जाऊँगा, न तू इस ढेर और इस खम्भे को लाँघकर मेरे पास आएगा।
אֱלֹהֵ֨י אַבְרָהָ֜ם וֵֽאלֹהֵ֤י נָחֹור֙ יִשְׁפְּט֣וּ בֵינֵ֔ינוּ אֱלֹהֵ֖י אֲבִיהֶ֑ם וַיִּשָּׁבַ֣ע יַעֲקֹ֔ב בְּפַ֖חַד אָבִ֥יו יִצְחָֽק׃ 53
५३अब्राहम और नाहोर और उनके पिता; तीनों का जो परमेश्वर है, वही हम दोनों के बीच न्याय करे।” तब याकूब ने उसकी शपथ खाई जिसका भय उसका पिता इसहाक मानता था।
וַיִּזְבַּ֨ח יַעֲקֹ֥ב זֶ֙בַח֙ בָּהָ֔ר וַיִּקְרָ֥א לְאֶחָ֖יו לֶאֱכָל־לָ֑חֶם וַיֹּ֣אכְלוּ לֶ֔חֶם וַיָּלִ֖ינוּ בָּהָֽר׃ 54
५४और याकूब ने उस पहाड़ पर बलि चढ़ाया, और अपने भाई-बन्धुओं को भोजन करने के लिये बुलाया, तब उन्होंने भोजन करके पहाड़ पर रात बिताई।
וַיַּשְׁכֵּ֨ם לָבָ֜ן בַּבֹּ֗קֶר וַיְנַשֵּׁ֧ק לְבָנָ֛יו וְלִבְנֹותָ֖יו וַיְבָ֣רֶךְ אֶתְהֶ֑ם וַיֵּ֛לֶךְ וַיָּ֥שָׁב לָבָ֖ן לִמְקֹמֹֽו׃ 55
५५भोर को लाबान उठा, और अपने बेटे-बेटियों को चूमकर और आशीर्वाद देकर चल दिया, और अपने स्थान को लौट गया।

< בְּרֵאשִׁית 31 >