< בְּרֵאשִׁית 19 >

וַ֠יָּבֹאוּ שְׁנֵ֨י הַמַּלְאָכִ֤ים סְדֹ֙מָה֙ בָּעֶ֔רֶב וְלֹ֖וט יֹשֵׁ֣ב בְּשַֽׁעַר־סְדֹ֑ם וַיַּרְא־לֹוט֙ וַיָּ֣קָם לִקְרָאתָ֔ם וַיִּשְׁתַּ֥חוּ אַפַּ֖יִם אָֽרְצָה׃ 1
संध्या होते-होते वे दो स्वर्गदूत सोदोम पहुंचे. इस समय लोत सोदोम के प्रवेश द्वार पर ही बैठे हुए थे. स्वर्गदूतों पर दृष्टि पड़ते ही लोत उनसे भेंटकरने के लिए खड़े हुए और उनको झुककर दंडवत किया.
וַיֹּ֜אמֶר הִנֶּ֣ה נָּא־אֲדֹנַ֗י ס֣וּרוּ נָ֠א אֶל־בֵּ֨ית עַבְדְּכֶ֤ם וְלִ֙ינוּ֙ וְרַחֲצ֣וּ רַגְלֵיכֶ֔ם וְהִשְׁכַּמְתֶּ֖ם וַהֲלַכְתֶּ֣ם לְדַרְכְּכֶ֑ם וַיֹּאמְר֣וּ לֹּ֔א כִּ֥י בָרְחֹ֖וב נָלִֽין׃ 2
और कहा, “हे मेरे प्रभुओ, आप अपने सेवक के घर पर आएं. आप अपने पैर धोकर रात्रि यहां ठहरें और तड़के सुबह अपनी यात्रा पर आगे जाएं.” किंतु उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं, रात तो हम यहां नगर के चौक में व्यतीत करेंगे.”
וַיִּפְצַר־בָּ֣ם מְאֹ֔ד וַיָּסֻ֣רוּ אֵלָ֔יו וַיָּבֹ֖אוּ אֶל־בֵּיתֹ֑ו וַיַּ֤עַשׂ לָהֶם֙ מִשְׁתֶּ֔ה וּמַצֹּ֥ות אָפָ֖ה וַיֹּאכֵֽלוּ׃ 3
किंतु लोत उनसे विनतीपूर्वक आग्रह करते रहे. तब वे लोत के आग्रह को स्वीकार कर उसके साथ उसके घर में चले गए. लोत ने उनके लिए भोजन, खमीर रहित रोटी, तैयार की और उन्होंने भोजन किया.
טֶרֶם֮ יִשְׁכָּבוּ֒ וְאַנְשֵׁ֨י הָעִ֜יר אַנְשֵׁ֤י סְדֹם֙ נָסַ֣בּוּ עַל־הַבַּ֔יִת מִנַּ֖עַר וְעַד־זָקֵ֑ן כָּל־הָעָ֖ם מִקָּצֶֽה׃ 4
इसके पूर्व वे बिछौने पर जाते, नगर के पुरुष, सोदोम के लोगों ने आकर लोत के आवास को घेर लिया, ये सभी युवा एवं वृद्ध नगर के हर एक भाग से आए थे.
וַיִּקְרְא֤וּ אֶל־לֹוט֙ וַיֹּ֣אמְרוּ לֹ֔ו אַיֵּ֧ה הָאֲנָשִׁ֛ים אֲשֶׁר־בָּ֥אוּ אֵלֶ֖יךָ הַלָּ֑יְלָה הֹוצִיאֵ֣ם אֵלֵ֔ינוּ וְנֵדְעָ֖ה אֹתָֽם׃ 5
वे ऊंची आवाज में पुकारकर लोत से कहने लगे, “कहां हैं वे पुरुष, जो आज रात्रि के लिए तुम्हारे यहां ठहरे हुए हैं? उन्हें बाहर ले आओ कि हम उनसे संभोग करें.”
וַיֵּצֵ֧א אֲלֵהֶ֛ם לֹ֖וט הַפֶּ֑תְחָה וְהַדֶּ֖לֶת סָגַ֥ר אַחֲרָֽיו׃ 6
लोत बाहर निकले और उन्होंने द्वार को बंद कर
וַיֹּאמַ֑ר אַל־נָ֥א אַחַ֖י תָּרֵֽעוּ׃ 7
उनसे निवेदन किया, “हे मेरे भाइयो, मेरा आग्रह है, ऐसा अनैतिक कार्य न करें.
הִנֵּה־נָ֨א לִ֜י שְׁתֵּ֣י בָנֹ֗ות אֲשֶׁ֤ר לֹֽא־יָדְעוּ֙ אִ֔ישׁ אֹוצִֽיאָה־נָּ֤א אֶתְהֶן֙ אֲלֵיכֶ֔ם וַעֲשׂ֣וּ לָהֶ֔ן כַּטֹּ֖וב בְּעֵינֵיכֶ֑ם רַ֠ק לָֽאֲנָשִׁ֤ים הָאֵל֙ אַל־תַּעֲשׂ֣וּ דָבָ֔ר כִּֽי־עַל־כֵּ֥ן בָּ֖אוּ בְּצֵ֥ל קֹרָתִֽי׃ 8
देखिए, मेरी दो बेटियां हैं, जिनका संसर्ग किसी पुरुष से नहीं हुआ है. मैं उन्हें यहां बाहर ले आता हूं. आप उनसे अपनी अभिलाषा पूरी कर लीजिए; बस, इन व्यक्तियों के साथ कुछ न कीजिए, क्योंकि वे मेरे अतिथि हैं.”
וַיֹּאמְר֣וּ ׀ גֶּשׁ־הָ֗לְאָה וַיֹּֽאמְרוּ֙ הָאֶחָ֤ד בָּֽא־לָגוּר֙ וַיִּשְׁפֹּ֣ט שָׁפֹ֔וט עַתָּ֕ה נָרַ֥ע לְךָ֖ מֵהֶ֑ם וַיִּפְצְר֨וּ בָאִ֤ישׁ בְּלֹוט֙ מְאֹ֔ד וַֽיִּגְּשׁ֖וּ לִשְׁבֹּ֥ר הַדָּֽלֶת׃ 9
किंतु वे चिल्लाने लगे, “पीछे हट! यह परदेशी हमारे मध्य आ बसा है और देखो, अब हमारा शासक बनना चाहता है! हम तुम्हारी स्थिति उन लोगों से भी अधिक दयनीय बना देंगे.” वे लोत पर दबाव डालने लगे और दरवाजे को तोड़ने के लिये आगे बढ़ने लगे.
וַיִּשְׁלְח֤וּ הֽ͏ָאֲנָשִׁים֙ אֶת־יָדָ֔ם וַיָּבִ֧יאוּ אֶת־לֹ֛וט אֲלֵיהֶ֖ם הַבָּ֑יְתָה וְאֶת־הַדֶּ֖לֶת סָגָֽרוּ׃ 10
पर उन अतिथियों ने हाथ बढ़ाकर लोत को आवास के भीतर खींच लिया और द्वार बंद कर दिया.
וְֽאֶת־הָאֲנָשִׁ֞ים אֲשֶׁר־פֶּ֣תַח הַבַּ֗יִת הִכּוּ֙ בַּסַּנְוֵרִ֔ים מִקָּטֹ֖ן וְעַד־גָּדֹ֑ול וַיִּלְא֖וּ לִמְצֹ֥א הַפָּֽתַח׃ 11
उन अतिथियों ने उन सभी को, जो द्वार पर थे, छोटे से लेकर बड़े तक, अंधा कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि द्वार को खोजते-खोजते वे थक गए.
וַיֹּאמְר֨וּ הָאֲנָשִׁ֜ים אֶל־לֹ֗וט עֹ֚ד מִֽי־לְךָ֣ פֹ֔ה חָתָן֙ וּבָנֶ֣יךָ וּבְנֹתֶ֔יךָ וְכֹ֥ל אֲשֶׁר־לְךָ֖ בָּעִ֑יר הֹוצֵ֖א מִן־הַמָּקֹֽום׃ 12
तब उन दो अतिथियों ने लोत से कहा, “यहां तुम्हारे और कौन-कौन संबंधी हैं? दामाद, पुत्र तथा तुम्हारी पुत्रियां अथवा इस नगर में तुम्हारे कोई भी रिश्तेदार हो, उन्हें इस स्थान से बाहर ले जाओ,
כִּֽי־מַשְׁחִתִ֣ים אֲנַ֔חְנוּ אֶת־הַמָּקֹ֖ום הַזֶּ֑ה כִּֽי־גֽ͏ָדְלָ֤ה צַעֲקָתָם֙ אֶת־פְּנֵ֣י יְהוָ֔ה וַיְשַׁלְּחֵ֥נוּ יְהוָ֖ה לְשַׁחֲתָֽהּ׃ 13
क्योंकि हम इस स्थान को नष्ट करने पर हैं. याहवेह के समक्ष उसके लोगों के विरुद्ध चिल्लाहट इतनी ज्यादा हो गई है कि याहवेह ने हमें इसका सर्वनाश करने के लिए भेजा है.”
וַיֵּצֵ֨א לֹ֜וט וַיְדַבֵּ֣ר ׀ אֶל־חֲתָנָ֣יו ׀ לֹקְחֵ֣י בְנֹתָ֗יו וַיֹּ֙אמֶר֙ ק֤וּמוּ צְּאוּ֙ מִן־הַמָּקֹ֣ום הַזֶּ֔ה כִּֽי־מַשְׁחִ֥ית יְהוָ֖ה אֶת־הָעִ֑יר וַיְהִ֥י כִמְצַחֵ֖ק בְּעֵינֵ֥י חֲתָנָֽיו׃ 14
लोत ने जाकर अपने होनेवाले उन दामादों से बात की, जिनसे उनकी बेटियों की सगाई हो गई थी. उन्होंने कहा, “उठो, यहां से निकल चलो, याहवेह इस नगर का सर्वनाश करने पर हैं!” किंतु लोत के दामादों ने समझा कि वे मजाक कर रहे हैं.
וּכְמֹו֙ הַשַּׁ֣חַר עָלָ֔ה וַיָּאִ֥יצוּ הַמַּלְאָכִ֖ים בְּלֹ֣וט לֵאמֹ֑ר קוּם֩ קַ֨ח אֶֽת־אִשְׁתְּךָ֜ וְאֶת־שְׁתֵּ֤י בְנֹתֶ֙יךָ֙ הַנִּמְצָאֹ֔ת פֶּן־תִּסָּפֶ֖ה בַּעֲוֹ֥ן הָעִֽיר׃ 15
जब पौ फटने लगी, तब उन स्वर्गदूतों ने लोत से आग्रह किया, “उठो! अपनी पत्नी एवं अपनी दोनों पुत्रियों को, जो इस समय यहां हैं, अपने साथ ले लो, कहीं तुम भी नगर के साथ उसके दंड की चपेट में न आ जाओ.”
וֽ͏ַיִּתְמַהְמָ֓הּ ׀ וַיַּחֲזִ֨קוּ הָאֲנָשִׁ֜ים בְּיָדֹ֣ו וּבְיַד־אִשְׁתֹּ֗ו וּבְיַד֙ שְׁתֵּ֣י בְנֹתָ֔יו בְּחֶמְלַ֥ת יְהוָ֖ה עָלָ֑יו וַיֹּצִאֻ֥הוּ וַיַּנִּחֻ֖הוּ מִח֥וּץ לָעִֽיר׃ 16
किंतु लोत विलंब करते रहे. तब उन अतिथियों ने उनका, उनकी पत्नी तथा उनकी दोनों पुत्रियों का हाथ पकड़कर उन्हें सुरक्षित बाहर ले गये, क्योंकि याहवेह की दया उन पर थी.
וַיְהִי֩ כְהֹוצִיאָ֨ם אֹתָ֜ם הַח֗וּצָה וַיֹּ֙אמֶר֙ הִמָּלֵ֣ט עַל־נַפְשֶׁ֔ךָ אַל־תַּבִּ֣יט אַחֲרֶ֔יךָ וְאַֽל־תַּעֲמֹ֖ד בְּכָל־הַכִּכָּ֑ר הָהָ֥רָה הִמָּלֵ֖ט פֶּן־תִּסָּפֶֽה׃ 17
जब वे उन्हें बाहर ले आए, तो उनमें से एक ने उन्हें आदेश दिया, “अपने प्राण बचाकर भागो! पलट कर मत देखना तथा मैदान में कहीं मत रुकना! पहाड़ों पर चले जाओ, अन्यथा तुम सभी इसकी चपेट में आ जाओगे.”
וַיֹּ֥אמֶר לֹ֖וט אֲלֵהֶ֑ם אַל־נָ֖א אֲדֹנָֽי׃ 18
किंतु लोत ने उनसे आग्रह किया, “हे मेरे प्रभुओ, ऐसा न करें!
הִנֵּה־נָ֠א מָצָ֨א עַבְדְּךָ֣ חֵן֮ בְּעֵינֶיךָ֒ וַתַּגְדֵּ֣ל חַסְדְּךָ֗ אֲשֶׁ֤ר עָשִׂ֙יתָ֙ עִמָּדִ֔י לְהַחֲיֹ֖ות אֶת־נַפְשִׁ֑י וְאָנֹכִ֗י לֹ֤א אוּכַל֙ לְהִמָּלֵ֣ט הָהָ֔רָה פֶּן־תִּדְבָּקַ֥נִי הָרָעָ֖ה וָמַֽתִּי׃ 19
जब आपके सेवक ने आपकी कृपादृष्टि प्राप्‍त कर ही ली है और आपने मेरे जीवन को सुरक्षा प्रदान करने के द्वारा अपनी प्रेममय कृपा को बढ़ाया है; तो पर्वतों में जा छिपना मेरे लिए संभव न होगा, क्योंकि इसमें इस महाविनाश से हमारा घिर जाना निश्चित ही है तथा मेरी मृत्यु हो जाएगी.
הִנֵּה־נָ֠א הָעִ֨יר הַזֹּ֧את קְרֹבָ֛ה לָנ֥וּס שָׁ֖מָּה וְהִ֣יא מִצְעָ֑ר אִמָּלְטָ֨ה נָּ֜א שָׁ֗מָּה הֲלֹ֥א מִצְעָ֛ר הִ֖וא וּתְחִ֥י נַפְשִֽׁי׃ 20
तब देखिए, यहां पास में एक नगर है, जहां दौड़कर जाया जा सकता है और यह छोटा है. कृपया मुझे वहीं जाने की अनुमति दे दीजिए. यह बहुत छोटा नगर भी है. तब मेरा जीवन सुरक्षित रहेगा.”
וַיֹּ֣אמֶר אֵלָ֔יו הִנֵּה֙ נָשָׂ֣אתִי פָנֶ֔יךָ גַּ֖ם לַדָּבָ֣ר הַזֶּ֑ה לְבִלְתִּ֛י הָפְכִּ֥י אֶת־הָעִ֖יר אֲשֶׁ֥ר דִּבַּֽרְתָּ׃ 21
उन्होंने लोत से कहा, “चलो, मैं तुम्हारा यह अनुरोध भी मान लेता हूं; मैं इस नगर को, जिसका तुम उल्लेख कर रहे हो, नष्ट नहीं करूंगा.
מַהֵר֙ הִמָּלֵ֣ט שָׁ֔מָּה כִּ֣י לֹ֤א אוּכַל֙ לַעֲשֹׂ֣ות דָּבָ֔ר עַד־בֹּאֲךָ֖ שָׁ֑מָּה עַל־כֵּ֛ן קָרָ֥א שֵׁם־הָעִ֖יר צֹֽועַר׃ 22
किंतु बिना देर किए, भागकर वहां चले जाओ, क्योंकि जब तक तुम वहां पहुंच न जाओ, तब तक मैं कुछ नहीं कर सकूंगा.” (इसी कारण उस नगर का नाम ज़ोअर पड़ा.)
הַשֶּׁ֖מֶשׁ יָצָ֣א עַל־הָאָ֑רֶץ וְלֹ֖וט בָּ֥א צֹֽעֲרָה׃ 23
लोत के ज़ोअर पहुंचते-पहुंचते सूर्योदय हो चुका था.
וֽ͏ַיהוָ֗ה הִמְטִ֧יר עַל־סְדֹ֛ם וְעַל־עֲמֹרָ֖ה גָּפְרִ֣ית וָאֵ֑שׁ מֵאֵ֥ת יְהוָ֖ה מִן־הַשָּׁמָֽיִם׃ 24
तब याहवेह ने सोदोम तथा अमोराह पर आकाश से गंधक एवं आग की बारिश की.
וֽ͏ַיַּהֲפֹךְ֙ אֶת־הֶעָרִ֣ים הָאֵ֔ל וְאֵ֖ת כָּל־הַכִּכָּ֑ר וְאֵת֙ כָּל־יֹשְׁבֵ֣י הֶעָרִ֔ים וְצֶ֖מַח הָאֲדָמָֽה׃ 25
याहवेह ने उन नगरों को, उस संपूर्ण मैदान, भूमि के सभी उत्पादों तथा उन नगरों के सभी निवासियों को पूरी तरह नाश कर दिया.
וַתַּבֵּ֥ט אִשְׁתֹּ֖ו מֵאַחֲרָ֑יו וַתְּהִ֖י נְצִ֥יב מֶֽלַח׃ 26
परंतु लोत के पत्नी ने मुड़कर पीछे देखा और परिणामस्वरूप वह नमक का खंभा बन गई.
וַיַּשְׁכֵּ֥ם אַבְרָהָ֖ם בַּבֹּ֑קֶר אֶל־הַ֨מָּקֹ֔ום אֲשֶׁר־עָ֥מַד שָׁ֖ם אֶת־פְּנֵ֥י יְהוָֽה׃ 27
अगले दिन अब्राहाम बड़े सुबह उठे और उस जगह को गये, जहां वे याहवेह के सामने खड़े हुए थे.
וַיַּשְׁקֵ֗ף עַל־פְּנֵ֤י סְדֹם֙ וַעֲמֹרָ֔ה וְעַֽל־כָּל־פְּנֵ֖י אֶ֣רֶץ הַכִּכָּ֑ר וַיַּ֗רְא וְהִנֵּ֤ה עָלָה֙ קִיטֹ֣ר הָאָ֔רֶץ כְּקִיטֹ֖ר הַכִּבְשָֽׁן׃ 28
उन्होंने सोदोम, अमोराह तथा संपूर्ण मैदान की ओर दृष्टि की, तो उन्हें संपूर्ण प्रदेश से धुआं उठता दिखाई दिया, जो ऐसा उठ रहा था, जैसा भट्टी का धुआं.
וַיְהִ֗י בְּשַׁחֵ֤ת אֱלֹהִים֙ אֶת־עָרֵ֣י הַכִּכָּ֔ר וַיִּזְכֹּ֥ר אֱלֹהִ֖ים אֶת־אַבְרָהָ֑ם וַיְשַׁלַּ֤ח אֶת־לֹוט֙ מִתֹּ֣וךְ הַהֲפֵכָ֔ה בַּהֲפֹךְ֙ אֶת־הֶ֣עָרִ֔ים אֲשֶׁר־יָשַׁ֥ב בָּהֵ֖ן לֹֽוט׃ 29
जब परमेश्वर ने मैदान के नगरों का सर्वनाश किया, तो उन्होंने अब्राहाम को याद किया और उन्होंने लोत को उस विपदा में से सुरक्षित बाहर निकाल लिया, उन नगरों को नाश कर दिया, जहां लोत निवास करते थे.
וַיַּעַל֩ לֹ֨וט מִצֹּ֜ועַר וַיֵּ֣שֶׁב בָּהָ֗ר וּשְׁתֵּ֤י בְנֹתָיו֙ עִמֹּ֔ו כִּ֥י יָרֵ֖א לָשֶׁ֣בֶת בְּצֹ֑ועַר וַיֵּ֙שֶׁב֙ בַּמְּעָרָ֔ה ה֖וּא וּשְׁתֵּ֥י בְנֹתָֽיו׃ 30
लोत अपनी दोनों बेटियों के साथ ज़ोअर को छोड़कर पहाड़ों में रहने चले गये, क्योंकि वह ज़ोअर में रहने से डरते थे. वे और उनकी दोनों बेटियां गुफाओं में रहते थे.
וַתֹּ֧אמֶר הַבְּכִירָ֛ה אֶל־הַצְּעִירָ֖ה אָבִ֣ינוּ זָקֵ֑ן וְאִ֨ישׁ אֵ֤ין בָּאָ֙רֶץ֙ לָבֹ֣וא עָלֵ֔ינוּ כְּדֶ֖רֶךְ כָּל־הָאָֽרֶץ׃ 31
एक दिन बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, “हमारे पिता तो बूढ़े हो गये हैं और यहां आस-पास ऐसा कोई पुरुष नहीं है, जो हमें बच्चा दे सके—जैसे कि पूरी धरती पर यह रीति है.
לְכָ֨ה נַשְׁקֶ֧ה אֶת־אָבִ֛ינוּ יַ֖יִן וְנִשְׁכְּבָ֣ה עִמֹּ֑ו וּנְחַיֶּ֥ה מֵאָבִ֖ינוּ זָֽרַע׃ 32
इसलिये आ, हम अपने पिता को दाखमधु पिलाएं और उनके साथ संभोग करें और अपने पिता के द्वारा अपने परिवार के वंशक्रम आगे बढ़ाएं.”
וַתַּשְׁקֶ֧יןָ אֶת־אֲבִיהֶ֛ן יַ֖יִן בַּלַּ֣יְלָה ה֑וּא וַתָּבֹ֤א הַבְּכִירָה֙ וַתִּשְׁכַּ֣ב אֶת־אָבִ֔יהָ וְלֹֽא־יָדַ֥ע בְּשִׁכְבָ֖הּ וּבְקוּׄמָֽהּ׃ 33
उस रात उन्होंने अपने पिता को दाखमधु पिलाया, और बड़ी बेटी अपने पिता के पास गयी और उसके साथ सोई. लोत को यह पता न चला कि कब वह उसके साथ सोई और कब वह उठकर चली गई.
וֽ͏ַיְהִי֙ מִֽמָּחֳרָ֔ת וַתֹּ֤אמֶר הַבְּכִירָה֙ אֶל־הַצְּעִירָ֔ה הֵן־שָׁכַ֥בְתִּי אֶ֖מֶשׁ אֶת־אָבִ֑י נַשְׁקֶ֨נּוּ יַ֜יִן גַּם־הַלַּ֗יְלָה וּבֹ֙אִי֙ שִׁכְבִ֣י עִמֹּ֔ו וּנְחַיֶּ֥ה מֵאָבִ֖ינוּ זָֽרַע׃ 34
उसके दूसरे दिन बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, “कल रात मैं अपने पिता के साथ सोई थी. आ, आज रात उन्हें फिर दाखमधु पिलाएं, तब तुम जाकर उनके साथ सोना, ताकि हम अपने पिता के ज़रिये अपने परिवार के वंशक्रम को आगे बढ़ा सकें.”
וַתַּשְׁקֶ֜יןָ גַּ֣ם בַּלַּ֧יְלָה הַה֛וּא אֶת־אֲבִיהֶ֖ן יָ֑יִן וַתָּ֤קָם הַצְּעִירָה֙ וַתִּשְׁכַּ֣ב עִמֹּ֔ו וְלֹֽא־יָדַ֥ע בְּשִׁכְבָ֖הּ וּבְקֻמָֽהּ׃ 35
इसलिये उन्होंने उस रात भी अपने पिता को दाखमधु पिलाया और छोटी बेटी अपने पिता के पास गयी और उसके साथ सोई. लोत को फिर पता न चला कि कब वह उनके साथ सोई और कब वह उठकर चली गई.
וֽ͏ַתַּהֲרֶ֛יןָ שְׁתֵּ֥י בְנֹֽות־לֹ֖וט מֵאֲבִיהֶֽן׃ 36
इस प्रकार लोत की दोनों बेटियां अपने पिता से गर्भवती हुईं.
וַתֵּ֤לֶד הַבְּכִירָה֙ בֵּ֔ן וַתִּקְרָ֥א שְׁמֹ֖ו מֹואָ֑ב ה֥וּא אֲבִֽי־מֹואָ֖ב עַד־הַיֹּֽום׃ 37
बड़ी बेटी ने एक बेटे को जन्म दिया, और उसने उसका नाम मोआब रखा; वह आज के मोआबी जाति का गोत्रपिता है.
וְהַצְּעִירָ֤ה גַם־הִוא֙ יָ֣לְדָה בֵּ֔ן וַתִּקְרָ֥א שְׁמֹ֖ו בֶּן־עַמִּ֑י ה֛וּא אֲבִ֥י בְנֵֽי־עַמֹּ֖ון עַד־הַיֹּֽום׃ ס 38
छोटी बेटी का भी एक बेटा हुआ, और उसने उसका नाम बेन-अम्मी रखा; वह आज के अम्मोन जाति का गोत्रपिता है.

< בְּרֵאשִׁית 19 >