< Kings IV 7 >
1 And Elisaie said, Hear you the word of the Lord; Thus says the Lord, As at this time, to-morrow a measure of fine flour [shall be sold] for a shekel, and two measures of barley for a shekel, in the gates of Samaria.
१तब एलीशा ने कहा, “यहोवा का वचन सुनो, यहोवा यह कहता है, ‘कल इसी समय सामरिया के फाटक में सआ भर मैदा एक शेकेल में और दो सआ जौ भी एक शेकेल में बिकेगा।’”
2 And the officer on whose hand the king rested, answered Elisaie, and said, Behold, [if] the Lord shall make flood-gates in heaven, might this thing be? and Elisaie said, Behold, you shall see with your eyes, but shall not eat thereof.
२तब उस सरदार ने जिसके हाथ पर राजा तकिया करता था, परमेश्वर के भक्त को उत्तर देकर कहा, “सुन, चाहे यहोवा आकाश के झरोखे खोले, तो भी क्या ऐसी बात हो सकेगी?” उसने कहा, “सुन, तू यह अपनी आँखों से तो देखेगा, परन्तु उस अन्न में से कुछ खाने न पाएगा।”
3 And there were four leprous men by the gate of the city: and one said to his neighbor, Why sit we here until we die?
३चार कोढ़ी फाटक के बाहर थे; वे आपस में कहने लगे, “हम क्यों यहाँ बैठे-बैठे मर जाएँ?
4 If we should say, Let us go into the city, then [there is] famine in the city, and we shall die there: and if we sit here, then we shall die. Now then come, and let us fall upon the camp of the Syrians: if they should take us alive, then we shall live; and if they should put us to death, then we shall [only] die.
४यदि हम कहें, ‘नगर में जाएँ,’ तो वहाँ मर जाएँगे; क्योंकि वहाँ अकाल पड़ा है, और यदि हम यहीं बैठे रहें, तो भी मर ही जाएँगे। तो आओ हम अराम की सेना में पकड़े जाएँ; यदि वे हमको जिलाए रखें तो हम जीवित रहेंगे, और यदि वे हमको मार डालें, तो भी हमको मरना ही है।”
5 And they rose up while it was yet night, to go into the camp of Syria; and they came into a part of the camp of Syria, and behold, there [was] no man there.
५तब वे साँझ को अराम की छावनी में जाने को चले, और अराम की छावनी की छोर पर पहुँचकर क्या देखा, कि वहाँ कोई नहीं है।
6 For the Lord had made the army of Syria to hear a sound of chariots, and a sound of horses, [even] the sound of a great host: and [each] man said to his fellow, Now has the king of Israel hired against us the kings of the Chettites, and the kings of Egypt, to come against us.
६क्योंकि प्रभु ने अराम की सेना को रथों और घोड़ों की और भारी सेना की सी आहट सुनाई थी, और वे आपस में कहने लगे थे, “सुनो, इस्राएल के राजा ने हित्ती और मिस्री राजाओं को वेतन पर बुलवाया है कि हम पर चढ़ाई करें।”
7 And they arose and fled while it was yet dark, and left their tents, and their horses, and their asses in the camp, as they were, and fled for their lives.
७इसलिए वे साँझ को उठकर ऐसे भाग गए, कि अपने डेरे, घोड़े, गदहे, और छावनी जैसी की तैसी छोड़कर अपना-अपना प्राण लेकर भाग गए।
8 And these lepers entered a little way into the camp, and went into one tent, and ate and drank, and took thence silver, and gold, and raiment; and they went and returned thence, and entered into another tent, and took thence, and went and hid [the spoil].
८जब वे कोढ़ी छावनी की छोर के डेरों के पास पहुँचे, तब एक डेरे में घुसकर खाया पिया, और उसमें से चाँदी, सोना और वस्त्र ले जाकर छिपा रखा; फिर लौटकर दूसरे डेरे में घुस गए और उसमें से भी ले जाकर छिपा रखा।
9 And [one] man said to his neighbor, We are not doing [well] thus: this day is a day of glad tidings, and we hold our peace, and are waiting till the morning light, and shall find mischief: now them come, and let us go into [the city], and report to the house of the king.
९तब वे आपस में कहने लगे, “जो हम कर रहे हैं वह अच्छा काम नहीं है, यह आनन्द के समाचार का दिन है, परन्तु हम किसी को नहीं बताते। जो हम पौ फटने तक ठहरे रहें तो हमको दण्ड मिलेगा; सो अब आओ हम राजा के घराने के पास जाकर यह बात बता दें।”
10 So they went and cried toward the gate of the city, and reported to them, saying, We went into the camp of Syria, and, behold, there is not there a man, nor voice of man, only horses tied and asses, and their tents as they were.
१०तब वे चले और नगर के चौकीदारों को बुलाकर बताया, “हम जो अराम की छावनी में गए, तो क्या देखा, कि वहाँ कोई नहीं है, और मनुष्य की कुछ आहट नहीं है, केवल बंधे हुए घोड़े और गदहे हैं, और डेरे जैसे के तैसे हैं।”
11 And the porters cried aloud, and reported to the house of the king within.
११तब चौकीदारों ने पुकारके राजभवन के भीतर समाचार दिया।
12 And the king rose up by night, and said to his servants, I will now tell you what the Syrians have done to us. They knew that we are hungry; and they have gone forth from the camp and hidden themselves in the field, saying, They will come out of the city, and we shall catch them alive, and go into the city.
१२तब राजा रात ही को उठा, और अपने कर्मचारियों से कहा, “मैं तुम्हें बताता हूँ कि अरामियों ने हम से क्या किया है? वे जानते हैं, कि हम लोग भूखे हैं इस कारण वे छावनी में से मैदान में छिपने को यह कहकर गए हैं, कि जब वे नगर से निकलेंगे, तब हम उनको जीवित ही पकड़कर नगर में घुसने पाएँगे।”
13 And one of his servants answered and said, Let them now take five of the horses that were left, which were left here; behold, they are the number left to all the multitude of Israel; and we will send there and see.
१३परन्तु राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा, “जो घोड़े नगर में बच रहे हैं उनमें से लोग पाँच घोड़े लें, और उनको भेजकर हम हाल जान लें। वे तो इस्राएल की सब भीड़ के समान हैं जो नगर में रह गई है वरन् इस्राएल की जो भीड़ मर मिट गई है वे उसी के समान हैं।”
14 So they took two horsemen; and the king of Israel sent after the king of Syria, saying, Go, and see.
१४अतः उन्होंने दो रथ और उनके घोड़े लिये, और राजा ने उनको अराम की सेना के पीछे भेजा; और कहा, “जाओ, देखो।”
15 And they went after them even to Jordan: and, behold, all the way was full of garments and vessels, which the Syrians had cast away in their panic. and the messengers returned, and brought word to the king.
१५तब वे यरदन तक उनके पीछे चले गए, और क्या देखा, कि पूरा मार्ग वस्त्रों और पात्रों से भरा पड़ा है, जिन्हें अरामियों ने उतावली के मारे फेंक दिया था; तब दूत लौट आए, और राजा से यह कह सुनाया।
16 And the people went out, and plundered the camp of Syria: and a measure of fine flour was sold for a shekel, according to the word of the Lord, and two measures of barley for a shekel.
१६तब लोगों ने निकलकर अराम के डेरों को लूट लिया; और यहोवा के वचन के अनुसार एक सआ मैदा एक शेकेल में, और दो सआ जौ एक शेकेल में बिकने लगा।
17 And the king appointed the officer on whose hand the king leaned [to have charge] over the gate: and the people trampled on him in the gate, and he died, as the man of God [had] said, who spoke when the messenger came down to him.
१७अब राजा ने उस सरदार को जिसके हाथ पर वह तकिया करता था फाटक का अधिकारी ठहराया; तब वह फाटक में लोगों के पाँवों के नीचे दबकर मर गया। यह परमेश्वर के भक्त के उस वचन के अनुसार हुआ जो उसने राजा से उसके यहाँ आने के समय कहा था।
18 So it came to pass as Elisaie had spoken to the king, saying, Two measures of barley [shall be sold] for a shekel, and a measure of fine flour for a shekel; and it shall be as at this time to-morrow in the gate of Samaria.
१८परमेश्वर के भक्त ने जैसा राजा से यह कहा था, “कल इसी समय सामरिया के फाटक में दो सआ जौ एक शेकेल में, और एक सआ मैदा एक शेकेल में बिकेगा,” वैसा ही हुआ।
19 And the officer answered Elisaie, and said, Behold, [if] the Lord makes flood-gates in heaven, shall this thing be? and Elisaie said, Behold, you shall see [it] with your eyes, but you shall not eat thereof.
१९और उस सरदार ने परमेश्वर के भक्त को, उत्तर देकर कहा था, “सुन चाहे यहोवा आकाश में झरोखे खोले तो भी क्या ऐसी बात हो सकेगी?” और उसने कहा था, “सुन, तू यह अपनी आँखों से तो देखेगा, परन्तु उस अन्न में से खाने न पाएगा।”
20 And it was so: for the people trampled on him in the gate, and he died.
२०अतः उसके साथ ठीक वैसा ही हुआ, अतएव वह फाटक में लोगों के पाँवों के नीचे दबकर मर गया।