< المَزامِير 26 >

رَبُّ أَظْهِرْ بَرَاءَتِي لأَنِّي قَدْ سَلَكْتُ بِكَمَالِي، وَعَلَيْكَ تَوَكَّلْتُ فَلاَ أَتَزَعْزَعُ ١ 1
ऐ ख़ुदावन्द, मेरा इन्साफ़ कर, क्यूँकि मैं रास्ती से चलता रहा हूँ, और मैंने ख़ुदावन्द पर बे लग़ज़िश भरोसा किया है।
افْحَصْنِي أَيُّهَا الرَّبُّ وَاخْتَبِرْنِي. امْتَحِنْ دَخَائِلِي وَقَلْبِي، ٢ 2
ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जाँच और आज़मा; मेरे दिल — ओ — दिमाग़ को परख।
لأَنَّ رَحْمَتَكَ نُصْبَ عَيْنَيَّ، وَقَدْ سَلَكْتُ فِي حَقِّكَ. ٣ 3
क्यूँकि तेरी शफ़क़त मेरी आँखों के सामने है, और मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलता रहा हूँ।
لَمْ أُجَالِسْ أَهْلَ الْبَاطِلِ وَمَعَ الْمُنَافِقِينَ لاَ أَشْتَرِكُ. ٤ 4
मैं बेहूदा लोगों के साथ नहीं बैठा, मैं रियाकारों के साथ कहीं नहीं जाऊँगा।
بَلْ أَبْغَضْتُ مَعْشَرَ فَاعِلِي الإِثْمِ، وَلَمْ أَجْلِسْ مَعَ الأَشْرَارِ. ٥ 5
बदकिरदारों की जमा'अत से मुझे नफ़रत है, मैं शरीरों के साथ नहीं बैठूँगा।
أَغْسِلُ يَدَيَّ عُرْبُونَ بَرَاءَتِي وَأَنْضَمُّ إِلَى الْمُجْتَمِعِينَ حَوْلَ مَذْبَحِكَ يَارَبُّ. ٦ 6
मैं बेगुनाही में अपने हाथ धोऊँगा, और ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे मज़बह का तवाफ़ करूँगा;
مُتَرَنِّماً بِصَوْتِ الْحَمْدِ وَأُحَدِّثُ بِأَعْمَالِكَ الْعَجِيبَةِ كُلِّهَا. ٧ 7
ताकि शुक्रगुज़ारी की आवाज़ बुलन्द करूँ, और तेरे सब 'अजीब कामों को बयान करूँ।
رَبُّ، قَدْ أَحْبَبْتُ الإِقَامَةَ فِي بَيْتِكَ، حَيْثُ يَحِلُّ مَجْدُكَ. ٨ 8
ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी सकूनतगाह, और तेरे जलाल के ख़ेमे को 'अज़ीज़ रखता हूँ।
فَلاَ تَجْمَعْ نَفْسِي مَعَ الْخَاطِئِينَ، وَلاَ حَيَاتِي مَعَ سَافِكِي الدَّمِ، ٩ 9
मेरी जान को गुनहगारों के साथ, और मेरी ज़िन्दगी को ख़ूनी आदमियों के साथ न मिला।
الَّذِينَ أَيْدِيهِمْ مُلَوَّثَةٌ بِالسُّوءِ، وَيَمِينُهُمْ مَلأَى بِالرِّشْوَةِ. ١٠ 10
जिनके हाथों में शरारत है, और जिनका दहना हाथ रिश्वतों से भरा है।
أَمَّا أَنَا فَبِكَمَالِي أَسْلُكُ، فَافْدِنِي وَتَحَنَّنْ عَلَيَّ. ١١ 11
लेकिन मैं तो रास्ती से चलता रहूँगा। मुझे छुड़ा ले और मुझ पर रहम कर।
قَدَمَايَ مُنْتَصِبَتَانِ عَلَى طَرِيقٍ مُسْتَوِيَةٍ، وَأُرَنِّمُ لِلرَّبِّ جَهْراً فِي مَحَافِلِ الْعِبَادَةِ. ١٢ 12
मेरा पाँव हमवार जगह पर क़ाईम है। मैं जमा'अतों में ख़ुदावन्द को मुबारक कहूँगा।

< المَزامِير 26 >