< المَزامِير 132 >
اذْكُرْ يَارَبُّ دَاوُدَ وَكُلَّ مُعَانَاتِهِ. | ١ 1 |
ऐ ख़ुदावन्द! दाऊद कि ख़ातिर उसकी सब मुसीबतों को याद कर;
اذْكُرْ كَيْفَ أَقْسَمَ لِلرَّبِّ وَنَذَرَ لإِلَهِ يَعْقُوبَ الْقَدِيرِ: | ٢ 2 |
कि उसने किस तरह ख़ुदावन्द से क़सम खाई, और या'क़ूब के क़ादिर के सामने मन्नत मानी,
«لَنْ أَدْخُلَ بَيْتَ سُكْنَايَ، وَلَنْ أَعْلُوَ فِرَاشِي، | ٣ 3 |
“यक़ीनन मैं न अपने घर में दाख़िल हूँगा, न अपने पलंग पर जाऊँगा;
وَلَنْ أُعْطِيَ عَيْنَيَّ نَوْماً وَلاَ أَجْفَانِي نُعَاساً، | ٤ 4 |
और न अपनी आँखों में नींद, न अपनी पलकों में झपकी आने दूँगा;
حَتَّى أَبْنِيَ مَقَاماً لِتَابُوتِ الرَّبِّ، وَمَسْكِناً لإِلَهِ يَعْقُوبَ الْقَدِيرِ». | ٥ 5 |
जब तक ख़ुदावन्द के लिए कोई जगह, और या'क़ूब के क़ादिर के लिए घर न हो।”
فِي أَفْرَاتَةَ سَمِعْنَا بِهِ، وَفِي حُقُولِ الْوَعْرِ وَجَدْنَاهُ، | ٦ 6 |
देखो, हम ने उसकी ख़बर इफ़्राता में सुनी; हमें यह जंगल के मैदान में मिली।
فَقُلْنَا: «لِنَدْخُلْ إِلَى بَيْتِ الرَّبِّ، وَلْنَسْجُدْ عِنْدَ مَوْطِئِ قَدَمَيْهِ». | ٧ 7 |
हम उसके घरों में दाखि़ल होंगे, हम उसके पाँव की चौकी के सामने सिजदा करेंगे!
عُدْ إِلَى هَيْكَلِكَ يَارَبُّ، أَنْتَ وَتَابُوتُ عِزَّتِكَ. | ٨ 8 |
उठ, ऐ ख़ुदावन्द! अपनी आरामगाह में दाखि़ल हो! तू और तेरी कु़दरत का संदूक़।
لِيَرْتَدِ كَهَنَتُكَ البِرَّ ثَوْباً، وَلِيَهْتِفْ أَتْقِيَاؤُكَ فَرَحاً. | ٩ 9 |
तेरे काहिन सदाक़त से मुलब्बस हों, और तेरे पाक ख़ुशी के नारे मारें।
مِنْ أَجْلِ دَاوُدَ عَبْدِكَ لاَ تَرْفُضْ طَلَبَ مَلِكِكَ الْمَمْسُوحِ. | ١٠ 10 |
अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, अपने मम्सूह की दुआ ना — मन्जूर न कर।
قَدْ أَقْسَمَ الرَّبُّ لِدَاوُدَ قَسَماً صَادِقاً لاَ يَرْجِعُ عَنْهُ: مِنْ ثَمَرَةِ بَطْنِكَ أُقِيمُ مَلِكاً عَلَى عَرْشِكَ. | ١١ 11 |
ख़ुदावन्द ने सच्चाई के साथ दाऊद से क़सम खाई है; वह उससे फिरने का नहीं: कि “मैं तेरी औलाद में से किसी को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।
إِذَا حَفِظَ بَنُوكَ عَهْدِي وَشَهَادَاتِي الَّتِي أُعَلِّمُهُمْ إِيَّاهَا، يَجْلِسُ بَنُوهُمْ أَيْضاً عَلَى عَرْشِكَ إِلَى الأَبَدِ. | ١٢ 12 |
अगर तेरे फ़र्ज़न्द मेरे 'अहद और मेरी शहादत पर, जो मैं उनको सिखाऊँगा 'अमल करें; तो उनके फ़र्ज़न्द भी हमेशा तेरे तख़्त पर बैठेगें।”
لأَنَّ الرَّبَّ قَدِ اخْتَارَ أُورُشَلِيمَ وَرَغِبَ أَن تَكُونَ لَهُ مَسْكِناً. | ١٣ 13 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को चुना है, उसने उसे अपने घर के लिए पसन्द किया है:
وَقَالَ: «هَذِهِ مَقَرُّ رَاحَتِي إِلَى الأَبَدِ، فِيهَا أَسْكُنُ لأَنِّي أَحْبَبْتُهَا». | ١٤ 14 |
“यह हमेशा के लिए मेरी आरामगाह है; मै यहीं रहूँगा क्यूँकि मैंने इसे पसंद किया है।
أُبَارِكُ غَلاَتِهَا بَرَكَةً جَزِيلَةً، وَأُشْبِعُ مَسَاكِينَهَا خُبْزاً. | ١٥ 15 |
मैं इसके रिज़क़ में ख़ूब बरकत दूँगा; मैं इसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा
أُلْبِسُ كَهَنَتَهَا ثَوْبَ الْخَلاَصِ، فَيَهْتِفُ قِدِّيسُوهَا مُتَرَنِّمِينَ. | ١٦ 16 |
इसके काहिनों को भी मैं नजात से मुलव्वस करूँगा और उसके पाक बुलन्द आवाज़ से ख़ुशी के नारे मारेंगे।
أُقِيمُ هُنَاكَ مَلِكاً عَظِيماً مِنْ أَصْلِ دَاوُدَ، وَأُعِدُّ سِرَاجاً مُنِيراً لِمَنْ أَمْسَحُهُ. | ١٧ 17 |
वहीं मैं दाऊद के लिए एक सींग निकालूँगा मैंने अपने मम्सूह के लिए चराग़ तैयार किया है।
أَكْسُو أَعْدَاءَهُ خِزْياً. أَمَّا هُوَ، فَعَلَى رَأْسِهِ يَتَأَلَّقُ تَاجُهُ». | ١٨ 18 |
मैं उसके दुश्मनों को शर्मिन्दगी का लिबास पहनाऊँगा, लेकिन उस पर उसी का ताज रोनक अफ़रोज़ होगा।”