< يُونان 1 >

وَأَمَرَ الرَّبُّ يُونَانَ بْنَ أَمِتَّايَ: ١ 1
ख़ुदावन्द का कलाम यूनाह बिन अमितै पर नाज़िल हुआ।
«هَيَّا امْضِ إِلَى نِينَوَى الْمَدِينَةِ الْعَظِيمَةِ وَبَلِّغْ أَهْلَهَا قَضَائِي، لأَنَّ إِثْمَهُمْ قَدْ صَعِدَ إِلَيَّ». ٢ 2
कि उठ, उस बड़े शहर निनवे को जा और उसके ख़िलाफ़ 'ऐलान कर; क्यूँकि उनकी बुराई मेरे सामने पहुँची है।
غَيْرَ أَنَّ يُونَانَ تَأَهَّبَ لِيَهْرُبَ مِنَ الرَّبِّ إِلَى تَرْشِيشَ، فَانْحَدَرَ إِلَى مَدِينَةِ يَافَا حَيْثُ عَثَرَ عَلَى سَفِينَةٍ مُبْحِرَةٍ إِلَى تَرْشِيشَ، فَدَفَعَ أُجْرَتَهَا وَصَعِدَ إِلَيْهَا لِيَتَوَجَّهَ مَعَ بَحَّارَتِهَا إِلَى تَرْشِيشَ هَرَباً مِنَ الرَّبِّ. ٣ 3
लेकिन यूनाह ख़ुदावन्द के सामने से तरसीस को भागा, और याफ़ा में पहुँचा और वहाँ उसे तरसीस को जाने वाला जहाज़ मिला; और वह किराया देकर उसमे सवार हुआ ताकि ख़ुदावन्द के सामने से तरसीस को जहाज़ वालों के साथ जाए।
فَأَرْسَلَ الرَّبُّ رِيحاً عَاتِيَةً عَلَى الْبَحْرِ أَثَارَتْ إِعْصَاراً بَحْرِيّاً، حَتَّى أَشْرَفَتِ السَّفِينَةُ عَلَى الانْكِسَارِ. ٤ 4
लेकिन ख़ुदावन्द ने समन्दर पर बड़ी आँधी भेजी, और समन्दर में सख़्त तूफ़ान बर्पा हुआ, और अँदेशा था कि जहाज़ तबाह हो जाए।
فَفَزِعَ الْمَلاَّحُونَ وَاسْتَغَاثَ كُلُّ وَاحِدٍ مِنْهُمْ بِإِلَهِهِ، وَطَرَحُوا مَا فِي السَّفِينَةِ مِنْ أَمْتِعَةٍ لِيُخَفِّفُوا مِنْ حُمُولَتِهَا. أَمَّا يُونَانُ فَلَجَأَ إِلَى جَوْفِ السَّفِينَةِ وَرَقَدَ مُسْتَغْرِقاً فِي نَوْمٍ عَمِيقٍ. ٥ 5
तब मल्लाह हैरान हुए और हर एक ने अपने मा'बूद को पुकारा; और वह सामान जो जहाज़ में था समन्दर में डाल दिया ताकि उसे हल्का करें, लेकिन यूनाह जहाज़ के अन्दर पड़ा सो रहा था।
فَاقْتَرَبَ مِنْهُ الرَّبَّانُ وَقَالَ لَهُ: «مَا بَالُكَ مُسْتَغْرِقاً فِي النَّوْمِ؟ قُمْ وَتَضَرَّعْ إِلَى إِلَهِكَ لَعَلَّ اللهَ يَذْكُرُنَا فَلاَ نَهْلِكُ». ٦ 6
तब ना ख़ुदा उसके पास जाकर कहने लगा, “तू क्यों पड़ा सो रहा है? उठ अपने मा'बूद को पुकार! शायद हम को याद करे और हम हलाक न हों।”
ثُمَّ قَالَ كُلُّ وَاحِدٍ لِرَفِيقِهِ: «هَيَّا نُلْقِ قُرْعَةً لَعَلَّنَا نَعْرِفُ مَنْ جَرَّ عَلَيْنَا هَذَا الْبَلاَءَ». فَأَلْقَوْا الْقُرْعَةَ، فَوَقَعَتْ عَلَى يُونَانَ. ٧ 7
और उन्होंने आपस में कहा, “आओ, हम पर्ची डालकर देखें कि यह आफ़त हम पर किस की वजह से आई।” चुनाँचे उन्होंने पर्ची डाला, और यूनाह का नाम निकला।
فَقَالُوا لَهُ: «أَخْبِرْنَا لِمَاذَا جَرَى عَلَيْنَا هَذَا الْبَلاَءُ؟ وَمَا هِيَ حِرْفَتُكَ؟ وَمِنْ أَيْنَ أَقْبَلْتَ؟ وَمَا هِيَ بِلاَدُكَ؟ وَمَنْ هُمْ قَوْمُكَ؟» ٨ 8
तब उन्होंने उस से कहा, तू हम को बता कि यह आफ़त हम पर किस की वजह से आई है? तेरा क्या पेशा है, और तू कहाँ से आया है?, तेरा वतन कहाँ है, और तू किस क़ौम का है?,
فَأَجَابَهُمْ: «أَنَا عِبْرَانِيٌّ، وَأَنَا خَائِفٌ مِنَ الرَّبِّ إِلَهِ السَّمَاوَاتِ، صَانِعِ الْبَحْرِ وَالْبَرِّ». ٩ 9
उसने उनसे कहा, “मैं इब्रानी हूँ और ख़ुदावन्द आसमान के ख़ुदा बहर — ओ — बर्र के ख़ालिक़ से डरता हूँ।”
فَاعْتَرَى الْبَحَّارَةَ خَوْفٌ عَظِيمٌ وَقَالُوا لَهُ بَعْدَ أَنْ أَخْبَرَهُمْ أَنَّهُ هَارِبٌ مِنَ الرَّبِّ: «لِمَاذَا صَنَعْتَ هَذَا؟» ١٠ 10
तब वह ख़ौफ़ज़दा होकर उस से कहने लगे, तू ने यह क्या किया? क्यूँकि उनको मा'लूम था कि वह ख़ुदावन्द के सामने से भागा है, इसलिए कि उस ने ख़ुद उन से कहा था।
ثُمَّ تَسَاءَلُوا: «مَاذَا نَفْعَلُ بِكَ حَتَّى يَسْكُنَ الْبَحْرُ عَنَّا؟»؛ لأَنَّ الْبَحْرَ كَانَ يَزْدَادُ هِيَاجاً. ١١ 11
तब उन्होंने उस से पूछा, “हम तुझ से क्या करें कि समन्दर हमारे लिए ठहर जाए?” क्यूँकि समन्दर ज़्यादा तूफ़ानी होता जाता था
فَأَجَابَهُمْ: «خُذُونِي وَاطْرَحُونِي إِلَى الْبَحْرِ فَيَسْكُنَ، لأَنِّي مُوْقِنٌ أَنَّ هَذَا الإِعْصَارَ الْمُرِيعَ قَدْ هَاجَ عَلَيْكُمْ بِسَبَبِي». ١٢ 12
तब उस ने उन से कहा, “मुझे उठा कर समन्दर में फ़ेंक दो, तो तुम्हारे लिए समन्दर ठहर जाएगा; क्यूँकि मै जानता हूँ कि यह बड़ा तूफ़ान तुम पर मेरी ही वजह से आया है।”
وَلَكِنَّ الْبَحَّارَةَ شَرَعُوا يُجَذِّفُونَ لِيَرْجِعُوا إِلَى الشَّاطِئِ، فَأَخْفَقُوا لِتَفَاقُمِ هِيَاجِ الْبَحْرِ. ١٣ 13
तो भी मल्लाहों ने डंडा चलाने में बड़ी मेहनत की कि किनारे पर पहुँचें, लेकिन न पहुँच सके, क्यूँकि समन्दर उनके ख़िलाफ़ और भी ज़्यादा तूफ़ानी होता जाता था।
فَصَرَخُوا إِلَى الرَّبِّ قَائِلِينَ: «أَيُّهَا الرَّبُّ لاَ تُهْلِكْنَا مِنْ أَجْلِ حَيَاةِ هَذَا الرَّجُلِ، وَلاَ تُحَمِّلْنَا دَماً بَرِيئاً لأَنَّكَ يَارَبُّ فَعَلْتَ كَمَا شِئْتَ». ١٤ 14
तब उन्होंने ख़ुदावन्द के सामने गिड़गिड़ा कर कहा, ऐ ख़ुदावन्द हम तेरी मिन्नत करते हैं कि हम इस आदमी की जान की वजह से हलाक न हों, और तू ख़ून — ए — नाहक़ को हमारी गर्दन पर न डाले; क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, तूने जो चाहा वही किया।
ثُمَّ أَخَذُوا يُونَانَ وَقَذَفُوا بِهِ إِلَى الْبَحْرِ، فَسَادَ عَلَيْهِ الْهُدُوءُ وَسَكَنَتْ أَمْوَاجُهُ. ١٥ 15
और उन्होंने यूनाह को उठा कर समन्दर में फेंक दिया और समन्दर के मौजों का ज़ोर रुक गया।
فَانْتَابَ الرِّجَالَ خَوْفٌ عَظِيمٌ مِنَ الرَّبِّ، وَقَرَّبُوا لَهُ ذَبِيحَةً وَنَذَرُوا نُذُوراً. ١٦ 16
तब वह ख़ुदावन्द से बहुत डर गए, और उन्होंने उसके सामने क़ुर्बानी पेश कीं और नज़्रें मानीं
وَأَمَّا الرَّبُّ فَأَعَدَّ حُوتاً عَظِيماً ابْتَلَعَ يُونَانَ. فَمَكَثَ يُونَانُ فِي جَوْفِ الْحُوتِ ثَلاَثَةَ أَيَّامٍ وَثَلاَثَ لَيَالٍ. ١٧ 17
लेकिन ख़ुदावन्द ने एक बड़ी मछली मुक़र्रर कर रख्खी थी कि यूनाह को निगल जाए; और यूनाह तीन दिन रात मछली के पेट में रहा।

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