< إرْمِيا 22 >

هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ: «انْحَدِرْ إِلَى قَصْرِ مَلِكِ يَهُوذَا وَأَعْلِنْ هُنَاكَ هَذَا الْقَضَاءَ: ١ 1
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “शाह — ए — यहूदाह के घर को जा, और वहाँ ये कलाम सुना
اسْمَعْ كَلِمَةَ الرَّبِّ يَامَلِكَ يَهُوذَا الْمُتَرَبِّعَ عَلَى عَرْشِ دَاوُدَ، أَنْتَ وَخُدَّامُكَ وَشَعْبُكَ الْمُجْتَازِينَ مِنْ هَذِهِ الْبَوَّابَاتِ: ٢ 2
और कह, 'ऐ शाह — ए — यहूदाह जो दाऊद के तख़्त पर बैठा है, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, तू और तेरे मुलाज़िम और तेरे लोग जो इन दरवाज़ों से दाख़िल होते हैं।
أَجْرُوا الْعَدْلَ وَأَنْقِذُوا الْمُغْتَصَبَ مِنْ يَدِ الْمُغْتَصِبِ، وَلاَ تَجُورُوا عَلَى الْغَرِيبِ وَالْيَتِيمِ وَالأَرْمَلَةِ، وَلاَ تَتَعَسَّفُوا عَلَيْهِمْ، وَلاَ تَسْفِكُوا دَماً بَرِيئاً فِي هَذَا الْمَوْضِعِ. ٣ 3
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: 'अदालत और सदाक़त के काम करो, और मज़लूम को ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ; और किसी से बदसुलूकी न करो, और मुसाफ़िर — ओ — यतीम और बेवा पर ज़ुल्म न करो, इस जगह बेगुनाह का ख़ून न बहाओ।
لأَنَّكُمْ إِنْ أَطَعْتُمْ هَذَا الْكَلاَمَ فَإِنَّ مُلُوكاً يَتَرَبَّعُونَ عَلَى عَرْشِ دَاوُدَ، رَاكِبيِنَ مَرْكَبَاتٍ وَخُيُولاً يَجْتَازُونَ هُمْ وَخُدَّامُهُمْ وَشَعْبُهُمْ بَوَّابَاتِ هَذَا الْقَصْرِ. ٤ 4
क्यूँकि अगर तुम इस पर 'अमल करोगे, तो दाऊद के जानशीन बादशाह रथों पर और घोड़ों पर सवार होकर इस घर के फाटकों से दाख़िल होंगे, बादशाह और उसके मुलाज़िम और उसके लोग।
وَلَكِنْ إِنْ عَصَيْتُمْ هَذِهِ الْوَصَايَا، فَقَدْ أَقْسَمْتُ بِنَفْسِي يَقُولُ الرَّبُّ، أَنْ يَتَحَوَّلَ هَذَا الْقَصْرُ إِلَى أَطْلاَلٍ». ٥ 5
लेकिन अगर तुम इन बातों को न सुनोगे, तो ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुझे अपनी ज़ात की क़सम यह घर वीरान हो जाएगा
لأَنَّهُ هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ عَنْ قَصْرِ مَلِكِ يَهُوذَا: «أَنْتَ عَزِيزٌ عَلَيَّ كَجِلْعَادَ وَكَرَأْسِ لُبْنَانَ، وَمَعَ ذَلِكَ فَإِنِّي سَأَجْعَلُكَ قَفْراً وَمُدُناً مَهْجُورَةً. ٦ 6
क्यूँकि शाह — ए — यहूदाह के घराने के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगरचे तू मेरे लिए जिल'आद है और लुबनान की चोटी, तो भी मैं यक़ीनन तुझे उजाड़ दूंगा और ग़ैर — आबाद शहर बनाऊँगा।
سَأُجَنِّدُ عَلَيْكَ مُهْلِكِينَ مُدَجَّجِينَ بِسِلاَحِهِمْ فَيَقْطَعُونَ نُخْبَةَ أَرْزِكَ وَيَطْرَحُونَهَا إِلَى النَّارِ. ٧ 7
और मैं तेरे ख़िलाफ़ ग़ारतगरों को मुक़र्रर करूँगा, हर एक को उसके हथियारों के साथ, और वह तेरे नफ़ीस देवदारों को काटेंगे और उनको आग में डालेंगे।
وَتَعْبُرُ فِي هَذِهِ الْمَدِينَةِ أُمَمٌ كَثِيرَةٌ، فَيَقُولُ كُلُّ وَاحِدٍ لِرَفِيقِهِ: لِمَاذَا صَنَعَ الرَّبُّ هَكَذَا بِهَذِهِ الْمَدِينَةِ الْعَظِيمَةِ؟ ٨ 8
और बहुत सी क़ौमें इस शहर की तरफ़ से गुज़रेंगी और उनमें से एक दूसरे से कहेगा कि 'ख़ुदावन्द ने इस बड़े शहर से ऐसा क्यूँ किया है?”
فَيُجِيبُونَ: لأَنَّهُمْ نَبَذُوا عَهْدَ الرَّبِّ إِلَهِهِمْ وَسَجَدُوا لِلأَوْثَانِ وَعَبَدُوهَا». ٩ 9
तब वह जवाब देंगे, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद को छोड़ दिया और ग़ैरमा'बूदों की इबादत और परस्तिश की।
لاَ تَنُوحُوا عَلَى الْمَيْتِ وَلاَ تَنْدُبُوهُ، إِنَّمَا ابْكُوا عَلَى الْمَنْفِيِّ الَّذِي لَنْ يَرْجِعَ وَلَنْ يَرَى أَرْضَ مَوْطِنِهِ ١٠ 10
मुर्दे पर न रो, न नौहा करो, मगर उस पर जो चला जाता है ज़ार — ज़ार नाला करो, क्यूँकि वह फिर न आएगा, न अपने वतन को देखेगा।
لأَنَّهُ هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ عَنْ شَلُّومَ بْنِ يُوشِيَّا مَلِكِ يَهُوذَا، الَّذِي تَوَلَّى الْعَرْشَ مَكَانَ أَبِيهِ، وَخَرَجَ مَنْفِيّاً مِنْ هَذَا الْمَكَانِ: «إِنَّهُ لَنْ يَرْجِعَ إِلَى هُنَا بَعْدُ. ١١ 11
क्यूँकि शाह — ए — यहूदाह सलूम — बिन — यूसियाह के बारे में जो अपने बाप यूसियाह का जानशीन हुआ और इस जगह से चला गया, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “वह फिर इस तरफ़ न आएगा;
بَلْ يَمُوتُ فِي مَنْفَاهُ الَّذِي سَبَوْهُ إِلَيْهِ وَلَنْ يَرْجِعَ لِيَرَى هَذِهِ الأَرْضَ ثَانِيَةً». ١٢ 12
बल्कि वह उसी जगह मरेगा, जहाँ उसे ग़ुलाम करके ले गए हैं और इस मुल्क को फिर न देखेगा।”
«وَيْلٌ لِمَنْ يَبْنِي بَيْتَهُ عَلَى الظُّلْمِ وَمَخَادِعَهُ الْعَالِيَةَ عَلَى الْجَوْرِ، الَّذِي يَسْتَخْدِمُ جَارَهُ مَجَّاناً وَلاَ يُوْفِيهِ أُجْرَةَ عَمَلِهِ، ١٣ 13
“उस पर अफ़सोस, जो अपने घर को बे — इन्साफ़ी से और अपने बालाख़ानों को ज़ुल्म से बनाता है; जो अपने पड़ोसी से बेगार लेता है, और उसकी मज़दूरी उसे नहीं देता;
الَّذِي يَقُولُ: «سَأَبْنِي لِنَفْسِي بَيْتاً رَحْباً وَغُرَفاً عَالِيةً فَسِيحَةً. وَأَفْتَحُ لَهُ كُوىً وَأُغَشِّيهِ بِأَلْوَاحِ الأَرْزِ وَأَدْهُنُهُ بِأَلْوَانٍ حَمْرَاءَ. ١٤ 14
जो कहता है, 'मैं अपने लिए बड़ा मकान और हवादार बालाख़ाना बनाऊँगा, और वह अपने लिए झांझरियाँ बनाता है और देवदार की लकड़ी की छत लगाता हैं और उसे शंगर्फ़ी करता है।
أَتَظُنُّ أَنَّكَ صِرْتَ مَلِكاً لأَنَّكَ بَنَيْتَ بَيْتَكَ مِنَ الأَرْزِ؟ أَمَا أَكَلَ أَبُوكَ وَشَرِبَ وَأَجْرَى عَدْلاً وَحَقّاً، فَتَمَتَّعَ بِالْخَيْرَاتِ؟ ١٥ 15
क्या तू इसीलिए सल्तनत करेगा कि तुझे देवदार के काम का शौक़ है? क्या तेरे बाप ने नहीं खाया — पिया और 'अदालत — ओ — सदाक़त नहीं की जिससे उसका भला हुआ?
قَدْ قَضَى بِالْعَدْلِ لِلْبَائِسِ وَالْمِسْكِينِ فَأَحْرَزَ خَيْراً. أَلَيْسَتْ هَذِهِ هِيَ مَعْرِفَتِي؟» يَقُولُ الرَّبُّ ١٦ 16
उसने ग़रीब और मुहताज का इन्साफ़ किया, इसी से उसका भला हुआ। क्या यही मेरा इरफ़ान न था? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
«أَمَّا أَنْتَ فَعَيْنَاكَ وَقَلْبُكَ مُتَهَافِتَةٌ عَلَى الرِّبْحِ الْحَرَامِ، وَعَلَى سَفْكِ الدَّمِ الْبَرِيءِ، وَعَلَى الظُّلْمِ وَالاِبْتِزَازِ». ١٧ 17
लेकिन तेरी आँखें और तेरा दिल, सिर्फ़ लालच और बेगुनाह का ख़ून बहाने और ज़ुल्म — ओ — सितम पर लगे हैं।”
لِذَلِكَ هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ عَنْ يَهُويَاقِيمَ بْنِ يُوشِيَّا، مَلِكِ يَهُوذَا: «لَنْ يَنْدُبَكَ أَحَدٌ قَائِلاً: آهِ يَاأَخِي أَوْ آهِ يَاأُخْتِي، أَوْ يَنْدُبُونَ عَلَيْهِ قَائِلِينَ: آوَّاهُ يَاسَيِّدِي، أَوْ آهِ عَلَى جَلاَلِهِ. ١٨ 18
इसीलिए ख़ुदावन्द यहूयक़ीम शाह — ए — यहूदाह — बिन — यूसियाह के बारे में यूँ फ़रमाता है कि “उस पर 'हाय मेरे भाई! या हाय बहन!' कह कर मातम नहीं करेंगे, उसके लिए 'हाय आक़ा! या हाय मालिक!' कह कर नौहा नहीं करेंगे।
بَلْ يُدْفَنُ دَفْنَ حِمَارٍ، مَجْرُوراً وَمَطْرُوحاً خَارِجَ بَوَّابَاتِ أُورُشَلِيمَ». ١٩ 19
उसका दफ़्न गधे के जैसा होगा, उसको घसीटकर येरूशलेम के फाटकों के बाहर फेंक देंगे।”
«اصْعَدِي يَاأُورُشَلِيمُ إِلَى لُبْنَانَ وَاصْرُخِي. أَطْلِقِي صَوْتَكِ فِي بَاشَانَ وَأَعْوِلِي مِنْ عَبَارِيمَ لأَنَّ جَمِيعَ مُحِبِّيكِ قَدْ سُحِقُوا. ٢٠ 20
“तू लुबनान पर चढ़ जा और चिल्ला, और बसन में अपनी आवाज़ बुलन्द कर; और 'अबारीम पर से फ़रियाद कर, क्यूँकि तेरे सब चाहने वाले मारे गए।
حَذَّرْتُكِ فِي أَثْنَاءِ عِزِّكِ فَقُلْتِ: لَنْ أَصْغِيَ. أَنْتِ مُتَمَرِّدَةٌ مُنْذُ صِبَاكِ لاَ تَسْمَعِينَ لِصَوْتِي. ٢١ 21
मैंने तेरी इक़बालमन्दी के दिनों में तुझ से कलाम किया, लेकिन तूने कहा, 'मैं न सुनूँगी। तेरी जवानी से तेरी यही चाल है कि तू मेरी आवाज़ को नहीं सुनती।
سَتَعْصِفُ الرِّيحُ بِكُلِّ رُعَاتِكِ، وَيَذْهَبُ مُحِبُّوكِ إِلَى السَّبْيِ. عِنْدَئِذٍ يَعْتَرِيكِ الْخِزْيُ وَالْعَارُ لِشَرِّكِ. ٢٢ 22
एक आँधी तेरे चरवाहों को उड़ा ले जाएगी, और तेरे आशिक़ ग़ुलामी में जाएँगे; तब तू अपनी सारी शरारत के लिए शर्मसार और पशेमान होगी।
يَاسَاكِنَةَ لُبْنَانَ الْمُعَشِّشَةَ فِي الأَرْزِ، لَشَدَّ مَا تَئِنِّينَ عِنْدَمَا تُفَاجِئُكِ الأَوْجَاعُ، فَتَكُونِينَ كَامْرَأَةٍ تُقَاسِي مِنَ الْمَخَاضِ». ٢٣ 23
ऐ लुबनान की बसनेवाली, जो अपना आशियाना देवदारों पर बनाती है, तू कैसी 'आजिज़ होगी, जब तू ज़च्चा की तरह पैदाइश के दर्द में मुब्तिला होगी।”
«حَيٌّ أَنَا» يَقُولُ الرَّبُّ، «لَوْ كَانَ كُنْيَاهُو بْنُ يَهُويَاقِيمَ مَلِكُ يَهُوذَا خَاتِماً فِي يَدِي الْيُمْنَى لَنَزَعْتُهُ مِنْهَا. ٢٤ 24
'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, अगरचे तू ऐ शाह — ए — यहूदाह कूनियाह — बिन — यहूयक़ीम मेरे दहने हाथ की अँगूठी होता, तो भी मैं तुझे निकाल फेंकता;
وَأَسْلَمْتُهُ لِطَالِبِي نَفْسِهِ، إِلَى أَيْدِي مَنْ يَفْزَعُ مِنْهُمْ، وَإِلَى قَبْضَةِ نَبُوخَذْنَاصَّرَ مَلِكِ بَابِلَ، وَإِلَى أَيْدِي الْكَلْدَانِيِّينَ. ٢٥ 25
और मैं तुझ को तेरे जानी दुश्मनों के जिनसे तू डरता है, या'नी शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र और कसदियों के हवाले करूँगा।
سَأُطَوِّحُ بِهِ وَبِأُمِّهِ الَّتِي حَمَلَتْهُ إِلَى أَرْضٍ أُخْرَى، لَمْ يُوْلَدَا فِيهَا، وَهُنَاكَ يَمُوتَانِ. ٢٦ 26
हाँ, मैं तुझे और तेरी माँ को जिससे तू पैदा हुआ, ग़ैर मुल्क में जो तुम्हारी ज़ादबूम नहीं है, हाँक दूँगा और तुम वहीं मरोगे।
وَلَنْ يَعُودَا قَطُّ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي يَتُوقَانِ إِلَى الرُّجُوعِ إِلَيْهَا». ٢٧ 27
जिस मुल्क में वह वापस आना चाहते हैं, हरगिज़ लौटकर न आएँगे।
هَذَا الرَّجُلُ كُنْيَاهُو وَعَاءٌ مَنْبُوذٌ مُحَطَّمٌ، وَإِنَاءٌ لاَ يَحْفِلُ بِهِ أَحَدٌ. لِمَاذَا طُوِّحَ بِهِ وَبِأَبْنَائِهِ إِلَى أَرْضٍ لاَ يَعْرِفُونَهَا؟ ٢٨ 28
क्या यह शख़्स कूनियाह, नाचीज़ टूटा बर्तन है या ऐसा बर्तन जिसे कोई नहीं पूछता? वह और उसकी औलाद क्यूँ निकाल दिए गए और ऐसे मुल्क में जिलावतन किए गए जिसे वह नहीं जानते?
يَاأَرْضُ! يَاأَرْضُ! يَاأَرْضُ! اسْمَعِي كَلِمَةَ الرَّبِّ: ٢٩ 29
ऐ ज़मीन, ज़मीन, ज़मीन! ख़ुदावन्द का कलाम सुन!
«سَجِّلُوا أَنَّ هَذَا الإِنْسَانَ عَقِيمٌ، رَجُلٌ لَنْ يُفْلِحَ فِي حَيَاتِهِ، وَلَنْ يَنْجَحَ أَحَدٌ مِنْ ذُرِّيَّتِهِ فِي الْجُلُوسِ عَلَى عَرْشِ دَاوُدَ وَتَوَلِّي مُلْكِ يَهُوذَا». ٣٠ 30
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “इस आदमी को बे — औलाद लिखो, जो अपने दिनों में इक़बालमन्दी का मुँह न देखेगा; क्यूँकि उसकी औलाद में से कभी कोई ऐसा इक़बालमन्द न होगा कि दाऊद के तख़्त पर बैठे और यहूदाह पर सल्तनत करे।”

< إرْمِيا 22 >