< الجامِعَة 2 >

فَنَاجَيْتُ نَفْسِي: تَعَالَيِ الآنَ أَمْتَحِنُكِ بِالْفَرَحِ، فَأَسْتَمْتِعَ بِاللَّذَّةِ! وَإِذَا هَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ. ١ 1
मैंने अपने दिल से कहा, आ, मैं तुझ को ख़ुशी में आज़माऊँगा, इसलिए 'इश्रत कर ले, लो ये भी बेकार है।
قُلْتُ عَنِ الضَّحِكِ: هَذَا جُنُونٌ، وَعَنِ اللَّذَّةِ مَا جَدْوَاهَا. ٢ 2
मैंने हँसी को “दीवाना” कहा और ख़ुशी के बारे में कहा, “इससे क्या हासिल?”
وَبَعْدَ أَنْ فَحَصْتُ قَلْبِي، حَاوَلْتُ أَنْ أَشْرَحَ صَدْرِي بِالْخَمْرِ، مَعَ أَنَّ عَقْلِي مَازَالَ يُرْشِدُنِي بِالْحِكْمَةِ، وَأَنْ أَخْتَبِرَ الْحَمَاقَةَ حَتَّى أَرَى مَا هُوَ صَالِحٌ لأَبْنَاءِ الْبَشَرِ فَيَصْنَعُوهُ تَحْتَ السَّمَاءِ طَوَالَ أَيَّامِ حَيَاتِهِمْ. ٣ 3
मैंने दिल में सोचा कि जिस्म को मयनोशी से क्यूँकर ताज़ा करूँ और अपने दिल को हिकमत की तरफ़ मायल रखूँ और क्यूँ कर हिमाक़त को पकड़े रहूँ, जब तक मा'लूम करूँ कि बनी आदम की बहबूदी किस बात में है कि वह आसमान के नीचे उम्र भर यही किया करे।
فَأَنْجَزْتُ أَعْمَالاً عَظِيمَةً، وَشَيَّدْتُ لِي بُيُوتاً وَغَرَسْتُ كُرُوماً. ٤ 4
मैंने बड़े — बड़े काम किए मैंने अपने लिए 'इमारतें बनाईं और मैंने अपने लिए ताकिस्तान लगाए।
وَأَنْشَأْتُ لِنَفْسِي جَنَّاتٍ وَبَسَاتِينَ غَرَسْتُهَا أَشْجَاراً مِنْ جَمِيعِ الأَصْنَافِ، ٥ 5
मैंने अपने लिए बाग़ीचे और बाग़ तैयार किए और उनमें हर क़िस्म के मेवादार दरख़्त लगाए।
وَحَفَرْتُ بِرَكَ مِيَاهٍ لأَرْوِيَ الأَشْجَارَ النَّامِيَةَ، ٦ 6
मैंने अपने लिए तालाब बनाए कि उनमें से बाग़ के दरख़्तों का ज़ख़ीरा सींचूँ।
وَاشْتَرَيْتُ عَبِيداً وَإِمَاءً، وَكَانَ لِي عَبِيدٌ مِمَّنْ وُلِدُوا فِي دَارِي، وَاقْتَنَيْتُ أَيْضاً قُطْعَانَ بَقَرٍ وَمَوَاشِي غَنَمٍ، حَتَّى فُقْتُ جَمِيعَ أَسْلاَفِي مِمَّنْ كَانُوا قَبْلِي فِي أُورُشَلِيمَ. ٧ 7
मैंने ग़ुलामों और लौंडियों को ख़रीदा और नौकर — चाकर मेरे घर में पैदा हुए, और जितने मुझ से पहले येरूशलेम में थे मैं उनसे कहीं ज़्यादा गाय — बैल और भेड़ — बकरियों का मालिक था।
وَاكْتَنَزْتُ لِنَفْسِي فِضَّةً وَذَهَباً، وَكُنُوزَ الْمُلُوكِ وَالأَقَالِيمِ، وَاتَّخَذْتُ لِنَفْسِي مُغَنِّينَ وَمُغَنِّيَاتٍ وَزَوْجَاتٍ وَسَرَارِي، وَكُلَّ مَا هُوَ مُتْعَةٌ لِقَلْبِ أَبْنَاءِ الْبَشَرِ. ٨ 8
मैंने सोना और चाँदी और बा'दशाहों और सूबों का ख़ास ख़ज़ाना अपने लिए जमा' किया; मैंने गानेवालों और गाने वालियों को रख्खा और बनी आदम के अस्बाब — ए — 'ऐश या'नी लौंडियों को अपने लिए कसरत से इकठ्ठा किया।
وَازْدَدْتُ عَظَمَةً حَتَّى فُقْتُ جَمِيعَ أَسْلاَفِي فِي أُورُشَلِيمَ، دُونَ أَنْ تُبَارِحَنِي الْحِكْمَةُ. ٩ 9
इसलिए मैं बुज़ुर्ग हुआ और उन सभों से जो मुझ से पहले येरूशलेम में थे ज़्यादा बढ़ गया। मेरी हिकमत भी मुझ में क़ायम रही।
وَلَمْ أَحْرِمْ عَيْنَيَّ مِمَّا اشْتَهَتَاهُ، وَلَمْ أَصُدَّ قَلْبِي عَنْ أَيَّةِ مُتْعَةٍ، فَابْتَهَجَ قَلْبِي لِكُلِّ تَعَبِي، وَكَانَ هَذَا ثَوَابِي عَنْ كُلِّ مَشَقَّتِي. ١٠ 10
और सब कुछ जो मेरी आँखें चाहती थीं मैंने उनसे बाज़ न रख्खा। मैंने अपने दिल को किसी तरह की ख़ुशी से न रोका, क्यूँकि मेरा दिल मेरी सारी मेहनत से ख़ुश हुआ और मेरी सारी मेहनत से मेरा हिस्सा यही था।
ثُمَّ تَأَمَّلْتُ كُلَّ مَا صَنَعَتْهُ يَدَايَ وَمَا كَابَدْتُهُ مِنْ تَعَبٍ فِي عَمَلِهِ، فَإِذَا الْجَمِيعُ بَاطِلٌ، وَكَمُلاَحَقَةِ الرِّيحِ، وَلاَ جَدْوَى مِنْ شَيْءٍ تَحْتَ الشَّمْسِ. ١١ 11
फिर मैंने उन सब कामों पर जो मेरे हाथों ने किए थे, और उस मशक़्क़त पर जो मैंने काम करने में खींची थी, नज़र की और देखा कि सब बेकार और हवा की चरान है, और दुनिया में कुछ फ़ायदा नहीं।
وَرَجَعْتُ أُمْعِنُ التَّفْكِيرَ فِي الْحِكْمَةِ وَالْجُنُونِ وَالْحَمَاقَةِ، إِذْ مَاذَا فِي وُسْعِ مَنْ يَخْلُفُ الْمَلِكَ أَنْ يَفْعَلَ أَكْثَرَ مِمَّا تَمَّ فِعْلُهُ؟ ١٢ 12
और मैं हिकमत और दीवानगी और हिमाक़त के देखने पर मुतवज्जिह हुआ, क्यूँकि वह शख़्स जो बा'दशाह के बाद आएगा क्या करेगा? वही जो होता चला आया है।
فَوَجَدْتُ أَنَّ الْحِكْمَةَ أَفْضَلُ مِنَ الْحَمَاقَةِ، تَمَاماً كَمَا أَنَّ النُّورَ خَيْرٌ مِنَ الظُّلْمَةِ، ١٣ 13
और मैंने देखा कि जैसी रोशनी को तारीकी पर फ़ज़ीलत है, वैसी ही हिकमत हिमाक़त से अफ़ज़ल है।
لأَنَّ عَيْنَيِ الْحَكِيمِ فِي رَأْسِهِ، أَمَّا الْجَاهِلُ فَيَمْشِي فِي الظُّلْمَةِ. لَكِنَّنِي أَدْرَكْتُ أَنَّهُمَا يُلاَقِيَانِ مَصِيراً وَاحِداً. ١٤ 14
'अक़्लमन्द अपनी आँखें अपने सिर में रखता है, लेकिन बेवक़ूफ़ अंधेरे में चलता है; तोभी मैं जान गया कि एक ही हादसा उन सब पर गुज़रता है।
ثُمَّ حَدَّثْتُ نَفْسِي: إِنَّ مَا يَحْدُثُ لِلْجَاهِلِ يَحْدُثُ لِي أَيْضاً، فَلِمَاذَا أَنَا أَوْفَرُ حِكْمَةً؟ فَنَاجَيْتُ قَلْبِي: وَهَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ، ١٥ 15
तब मैंने दिल में कहा, “जैसा बेवक़ूफ़ पर हादसा होता है, वैसा ही मुझ पर भी होगा; फिर मैं क्यूँ ज़्यादा 'अक़्लमन्द हुआ?” इसलिए मैंने दिल में कहा कि ये भी बेकार है।
فَإِنَّ الْحَكِيمَ كَالْجَاهِلِ، لَنْ يَكُونَ لَهُمَا ذِكْرٌ إِلَى الأَبَدِ، فَفِي الأَيَّامِ الْمُقْبِلَةِ سَيُصْبِحَانِ كِلاَهُمَا نَسْياً مَنْسِيّاً، إِذْ يَمُوتُ الْجَاهِلُ كَالْحَكِيمِ. ١٦ 16
क्यूँकि न 'अक़्लमन्द और न बेवक़ूफ़ की यादगार हमेशा तक रहेगी, इसलिए कि आने वाले दिनों में सब कुछ फ़रामोश हो चुकेगा और 'अक़्लमन्द क्यूँकर बेवक़ूफ़ की तरह मरता है!
فَكَرِهْتُ الْحَيَاةَ، لأَنَّ مَا تَمَّ صُنْعُهُ تَحْتَ الشَّمْسِ كَانَ مَثَارَ أَسىً لِي، فَكُلُّ شَيْءٍ بَاطِلٌ كَمُلاَحَقَةِ الرِّيحِ. ١٧ 17
फिर मैं ज़िन्दगी से बेज़ार हुआ, क्यूँकि जो काम दुनिया में किया जाता है मुझे बहुत बुरा मा'लूम हुआ; क्यूँकि सब बेकार और हवा की चरान है।
وَكَرِهْتُ كُلَّ مَا سَعَيْتُ مِنْ أَجْلِهِ تَحْتَ الشَّمْسِ، لأَنِّي سَأَتْرُكُهُ لِمَنْ يَخْلُفُنِي. ١٨ 18
बल्कि मैं अपनी सारी मेहनत से जो दुनिया में की थी बेज़ार हुआ, क्यूँकि ज़रूर है कि मैं उसे उस आदमी के लिए जो मेरे बाद आएगा छोड़ जाऊँ;
وَمَنْ يَدْرِي: أَيَكُونُ حَكِيماً أَمْ جَاهِلاً؟ وَمَعَ ذَلِكَ فَإِنَّهُ سَيَتَوَلَّى كُلَّ عَمَلِي الَّذِي بَذَلْتُ فِيهِ كُلَّ جَهْدِي وَحِكْمَتِي تَحْتَ الشَّمْسِ. وَهَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ. ١٩ 19
और कौन जानता है कि वह 'अक़्लमन्द होगा या बेवक़ूफ़? बहरहाल वह मेरी सारी मेहनत के काम पर, जो मैंने किया और जिसमें मैंने दुनिया में अपनी हिकमत ज़ाहिर की, ज़ाबित होगा। ये भी बेकार है।
فَتَحَوَّلْتُ وَأَسْلَمْتُ قَلْبِي لِلْيَأْسِ مِنْ كُلِّ مَا بَذَلْتُهُ مِنْ جَهْدٍ تَحْتَ الشَّمْسِ. ٢٠ 20
तब मैं फिरा कि अपने दिल को उस सारे काम से जो मैंने दुनिया' में किया था ना उम्मीद करूँ,
إِذْ قَدْ يَتْرُكُ الإِنْسَانُ كُلَّ مَا تَعِبَ فِيهِ بِحِكْمَةٍ وَمَعْرِفَةٍ وَحَذَاقَةٍ لِرَجُلٍ آخَرَ يَتَمَتَّعُ بِمَا لَمْ يَشْقَ بِهِ. هَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ وَشَرٌّ عَظِيمٌ. ٢١ 21
क्यूँकि ऐसा शख़्स भी है, जिसके काम हिकमत और दानाई और कामयाबी के साथ हैं, लेकिन वह उनको दूसरे आदमी के लिए जिसने उनमे कुछ मेहनत नहीं की उसकी मीरास के लिए छोड़ जाएगा। ये भी बेकार और बला — ए — 'अज़ीम है।
فَأَيُّ نَفْعٍ لِلإِنْسَانِ مِنْ جَمِيعِ تَعَبِهِ وَمُكَابَدَتِهِ الْعَنَاءَ الَّذِي قَاسَى مِنْهُ تَحْتَ الشَّمْسِ؟ ٢٢ 22
क्यूँकि आदमी को उसकी सारी मशक़्क़त और जानफ़िशानी से, जो उसने दुनिया' में की क्या हासिल है?
كُلُّ أَيَّامِ حَيَاتِهِ مُفْعَمَةٌ بِالْمَشَقَّةِ، وَعَمَلُهُ عَنَاءٌ. حَتَّى فِي اللَّيْلِ لاَ يَسْتَرِيحُ قَلْبُهُ. وَهَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ. ٢٣ 23
क्यूँकि उसके लिए उम्र भर ग़म है, और उसकी मेहनत मातम हैं; बल्कि उसका दिल रात को भी आराम नहीं पाता। ये भी बेकार है।
فَلَيْسَ أَفْضَلُ لِلإِنْسَانِ مِنْ أَنْ يَأْكُلَ وَيَشْرَبَ وَيَتَمَتَّعَ بِتَعَبِ يَدَيْهِ. وَهَذَا أَيْضاً، كَمَا أَرَى، هُوَ مِنْ يَدِ اللهِ. ٢٤ 24
फिर इंसान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं कि वह खाए और पिए और अपनी सारी मेहनत के बीच ख़ुश होकर अपना जी बहलाए। मैंने देखा ये भी ख़ुदा के हाथ से है;
إِذْ بِمَعْزِلٍ عَنْهُ مَنْ يَسْتَطِيعُ أَنْ يَأْكُلَ وَيَسْتَمْتِعَ؟ ٢٥ 25
इसलिए कि मुझ से ज़्यादा कौन खा सकता और कौन मज़ा उड़ा सकता है?
لأَنَّ الْمَرْءَ الَّذِي يَحْظَى بِرِضَى اللهِ يُنْعِمُ اللهُ عَلَيْهِ بِالْحِكْمَةِ وَالْمَعْرِفَةِ وَالْفَرَحِ. أَمَّا الْخَاطِئُ فَيَفْرِضُ عَلَيْهِ عَنَاءَ الْجَمْعِ وَالادِّخَارِ، لِيَكُونَ ذَلِكَ مِنْ نَصِيبِ مَنْ يُرْضِي اللهَ. وَهَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ كَمُلاَحَقَةِ الرِّيحِ. ٢٦ 26
क्यूँकि वह उस आदमी को जो उसके सामने अच्छा है, हिकमत और दानाई और ख़ुशी बख़्शता है; लेकिन गुनहगार को ज़हमत देता है कि वह जमा' करे और अम्बार लगाए, ताकि उसे दे जो ख़ुदा का पसंदीदा है। ये भी बेकार और हवा की चरान है।

< الجامِعَة 2 >