< اَلْمَزَامِيرُ 8 >
لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ عَلَى «ٱلْجَتِّيَّةِ». مَزْمُورٌ لِدَاوُدَ أَيُّهَا ٱلرَّبُّ سَيِّدُنَا، مَا أَمْجَدَ ٱسْمَكَ فِي كُلِّ ٱلْأَرْضِ! حَيْثُ جَعَلْتَ جَلَالَكَ فَوْقَ ٱلسَّمَاوَاتِ. | ١ 1 |
ऐ ख़ुदावन्द हमारे रब तेरा नाम तमाम ज़मीन पर कैसा बुज़ु़र्ग़ है! तूने अपना जलाल आसमान पर क़ाईम किया है।
مِنْ أَفْوَاهِ ٱلْأَطْفَالِ وَٱلرُّضَّعِ أَسَّسْتَ حَمْدًا بِسَبَبِ أَضْدَادِكَ، لِتَسْكِيتِ عَدُوٍّ وَمُنْتَقِمٍ. | ٢ 2 |
तूने अपने मुखालिफ़ों की वजह से बच्चों और शीरख़्वारों के मुँह से कु़दरत को क़ाईम किया, ताकि तू दुश्मन और इन्तक़ाम लेने वाले को ख़ामोश कर दे।
إِذَا أَرَى سَمَاوَاتِكَ عَمَلَ أَصَابِعِكَ، ٱلْقَمَرَ وَٱلنُّجُومَ ٱلَّتِي كَوَّنْتَهَا، | ٣ 3 |
जब मैं तेरे आसमान पर जो तेरी दस्तकारी है, और चाँद और सितारों पर जिनको तूने मुक़र्रर किया, ग़ौर करता हूँ।
فَمَنْ هُوَ ٱلْإِنْسَانُ حَتَّى تَذْكُرَهُ؟ وَٱبْنُ آدَمَ حَتَّى تَفْتَقِدَهُ؟ | ٤ 4 |
तो फिर इंसान क्या है कि तू उसे याद रख्खे, और बनी आदम क्या है कि तू उसकी ख़बर ले?
وَتَنْقُصَهُ قَلِيلًا عَنِ ٱلْمَلَائِكَةِ، وَبِمَجْدٍ وَبَهَاءٍ تُكَلِّلُهُ. | ٥ 5 |
क्यूँकि तूने उसे ख़ुदा से कुछ ही कमतर बनाया है, और जलाल और शौकत से उसे ताजदार करता है।
تُسَلِّطُهُ عَلَى أَعْمَالِ يَدَيْكَ. جَعَلْتَ كُلَّ شَيْءٍ تَحْتَ قَدَمَيْهِ: | ٦ 6 |
तूने उसे अपनी दस्तकारी पर इख़्तियार बख़्शा है; तूने सब कुछ उसके क़दमों के नीचे कर दिया है।
ٱلْغَنَمَ وَٱلْبَقَرَ جَمِيعًا، وَبَهَائِمَ ٱلْبَرِّ أَيْضًا، | ٧ 7 |
सब भेड़ — बकरियाँ, गाय — बैल बल्कि सब जंगली जानवर
وَطُيُورَ ٱلسَّمَاءِ، وَسَمَكَ ٱلْبَحْرِ ٱلسَّالِكَ فِي سُبُلِ ٱلْمِيَاهِ. | ٨ 8 |
हवा के परिन्दे और समन्दर की और जो कुछ समन्दरों के रास्ते में चलता फिरता है।
أَيُّهَا ٱلرَّبُّ سَيِّدُنَا، مَا أَمْجَدَ ٱسْمَكَ فِي كُلِّ ٱلْأَرْضِ! | ٩ 9 |
ऐ ख़ुदावन्द, हमारे रब्ब! तेरा नाम पूरी ज़मीन पर कैसा बुज़ु़र्ग़ है!