< مَتَّى 21 >

وَلَمَّا قَرُبُوا مِنْ أُورُشَلِيمَ وَجَاءُوا إِلَى بَيْتِ فَاجِي عِنْدَ جَبَلِ ٱلزَّيْتُونِ، حِينَئِذٍ أَرْسَلَ يَسُوعُ تِلْمِيذَيْنِ ١ 1
जब वे येरूशलेम नगर के पास पहुंचे और ज़ैतून पर्वत पर बैथफ़गे नामक स्थान पर आए, येशु ने दो चेलों को इस आज्ञा के साथ आगे भेजा,
قَائِلًا لَهُمَا: «اِذْهَبَا إِلَى ٱلْقَرْيَةِ ٱلَّتِي أَمَامَكُمَا، فَلِلْوَقْتِ تَجِدَانِ أَتَانًا مَرْبُوطَةً وَجَحْشًا مَعَهَا، فَحُلَّاهُمَا وَأْتِيَانِي بِهِمَا. ٢ 2
“सामने गांव में जाओ. वहां पहुंचते ही तुम्हें एक गधी बंधी हुई दिखाई देगी. उसके साथ उसका बच्चा भी होगा. उन्हें खोलकर मेरे पास ले आओ.
وَإِنْ قَالَ لَكُمَا أَحَدٌ شَيْئًا، فَقُولَا: ٱلرَّبُّ مُحْتَاجٌ إِلَيْهِمَا. فَلِلْوَقْتِ يُرْسِلُهُمَا». ٣ 3
यदि कोई तुमसे इस विषय में प्रश्न करे तो तुम उसे यह उत्तर देना, ‘प्रभु को इनकी ज़रूरत है.’ वह व्यक्ति तुम्हें आज्ञा दे देगा.”
فَكَانَ هَذَا كُلُّهُ لِكَيْ يَتِمَّ مَا قِيلَ بِٱلنَّبِيِّ ٱلْقَائِلِ: ٤ 4
यह घटना भविष्यवक्ता द्वारा की गई इस भविष्यवाणी की पूर्ति थी:
«قُولُوا لِٱبْنَةِ صِهْيَوْنَ: هُوَذَا مَلِكُكِ يَأْتِيكِ وَدِيعًا، رَاكِبًا عَلَى أَتَانٍ وَجَحْشٍ ٱبْنِ أَتَانٍ». ٥ 5
ज़ियोन की बेटी को यह सूचना दो: तुम्हारे पास तुम्हारा राजा आ रहा है; वह नम्र है और वह गधे पर बैठा हुआ है, हां, गधे के बच्‍चे पर, बोझ ढोनेवाले के बच्‍चे पर.
فَذَهَبَ ٱلتِّلْمِيذَانِ وَفَعَلَا كَمَا أَمَرَهُمَا يَسُوعُ، ٦ 6
शिष्यों ने येशु की आज्ञा का पूरी तरह पालन किया
وَأَتَيَا بِٱلْأَتَانِ وَٱلْجَحْشِ، وَوَضَعَا عَلَيْهِمَا ثِيَابَهُمَا فَجَلَسَ عَلَيْهِمَا. ٧ 7
और वे गधी और उसके बच्‍चे को ले आए, उन पर अपने बाहरी कपड़े बिछा दिए और येशु उन कपड़ो पर बैठ गए.
وَٱلْجَمْعُ ٱلْأَكْثَرُ فَرَشُوا ثِيَابَهُمْ فِي ٱلطَّرِيقِ. وَآخَرُونَ قَطَعُوا أَغْصَانًا مِنَ ٱلشَّجَرِ وَفَرَشُوهَا فِي ٱلطَّرِيقِ. ٨ 8
भीड़ में से अधिकांश ने मार्ग पर अपने बाहरी कपड़े बिछा दिए. कुछ अन्यों ने पेड़ों की टहनियां काटकर मार्ग पर बिछा दीं.
وَٱلْجُمُوعُ ٱلَّذِينَ تَقَدَّمُوا وَٱلَّذِينَ تَبِعُوا كَانُوا يَصْرَخُونَ قَائِلِينَ: «أُوصَنَّا لِٱبْنِ دَاوُدَ! مُبَارَكٌ ٱلْآتِي بِٱسْمِ ٱلرَّبِّ! أُوصَنَّا فِي ٱلْأَعَالِي!». ٩ 9
येशु के आगे-आगे जाती हुई तथा पीछे-पीछे आती हुई भीड़ ये नारे लगा रही थी “दावीद के पुत्र की होशान्‍ना!” “धन्य है, वह जो प्रभु के नाम में आ रहे हैं.” “सबसे ऊंचे स्थान में होशान्‍ना!”
وَلَمَّا دَخَلَ أُورُشَلِيمَ ٱرْتَجَّتِ ٱلْمَدِينَةُ كُلُّهَا قَائِلَةً: «مَنْ هَذَا؟». ١٠ 10
जब येशु ने येरूशलेम नगर में प्रवेश किया, पूरे नगर में हलचल मच गई. उनके आश्चर्य का विषय था: “कौन है यह?”
فَقَالَتِ ٱلْجُمُوعُ: «هَذَا يَسُوعُ ٱلنَّبِيُّ ٱلَّذِي مِنْ نَاصِرَةِ ٱلْجَلِيلِ». ١١ 11
भीड़ उन्हें उत्तर दे रही थी, “यही तो हैं वह भविष्यद्वक्ता—गलील के नाज़रेथ के येशु.”
وَدَخَلَ يَسُوعُ إِلَى هَيْكَلِ ٱللهِ وَأَخْرَجَ جَمِيعَ ٱلَّذِينَ كَانُوا يَبِيعُونَ وَيَشْتَرُونَ فِي ٱلْهَيْكَلِ، وَقَلَبَ مَوَائِدَ ٱلصَّيَارِفَةِ وَكَرَاسِيَّ بَاعَةِ ٱلْحَمَامِ ١٢ 12
येशु ने मंदिर में प्रवेश किया और उन सभी को मंदिर से बाहर निकाल दिया, जो वहां लेनदेन कर रहे थे. साथ ही येशु ने साहूकारों की चौकियां उलट दीं और कबूतर बेचने वालों के आसनों को पलट दिया.
وَقَالَ لَهُمْ: «مَكْتُوبٌ: بَيْتِي بَيْتَ ٱلصَّلَاةِ يُدْعَى. وَأَنْتُمْ جَعَلْتُمُوهُ مَغَارَةَ لُصُوصٍ!». ١٣ 13
येशु ने उन्हें फटकारते हुए कहा, “पवित्र शास्त्र का लेख है: मेरा मंदिर प्रार्थना का घर कहलाएगा किंतु तुम इसे डाकुओं की खोह बना रहे हो.”
وَتَقَدَّمَ إِلَيْهِ عُمْيٌ وَعُرْجٌ فِي ٱلْهَيْكَلِ فَشَفَاهُمْ. ١٤ 14
मंदिर में ही, येशु के पास अंधे और लंगड़े आए और येशु ने उन्हें स्वस्थ किया.
فَلَمَّا رَأَى رُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلْكَتَبَةِ ٱلْعَجَائِبَ ٱلَّتِي صَنَعَ، وَٱلْأَوْلَادَ يَصْرَخُونَ فِي ٱلْهَيْكَلِ وَيَقُولُونَ: «أُوصَنَّا لِٱبْنِ دَاوُدَ!». غَضِبُوا ١٥ 15
जब प्रधान पुरोहितों तथा शास्त्रियों ने देखा कि येशु ने अद्भुत काम किए हैं और बच्‍चे मंदिर में, “दावीद की संतान की होशान्‍ना” के नारे लगा रहे हैं, तो वे अत्यंत गुस्सा हुए.
وَقَالُوا لَهُ: «أَتَسْمَعُ مَا يَقُولُ هَؤُلَاءِ؟». فَقَالَ لَهُمْ يَسُوعُ: «نَعَمْ! أَمَا قَرَأْتُمْ قَطُّ: مِنْ أَفْوَاهِ ٱلْأَطْفَالِ وَٱلرُّضَّعِ هَيَّأْتَ تَسْبِيحًا؟». ١٦ 16
और येशु से बोले, “तुम सुन रहे हो न, ये बच्‍चे क्या नारे लगा रहे हैं?” येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “हां, क्या आपने पवित्र शास्त्र में कभी नहीं पढ़ा, बालकों और दूध पीते शिशुओं के मुख से आपने अपने लिए अपार स्तुति का प्रबंध किया है?”
ثُمَّ تَرَكَهُمْ وَخَرَجَ خَارِجَ ٱلْمَدِينَةِ إِلَى بَيْتِ عَنْيَا وَبَاتَ هُنَاكَ. ١٧ 17
येशु उन्हें छोड़कर नगर के बाहर चले गए तथा आराम के लिए बैथनियाह नामक गांव में ठहर गए.
وَفِي ٱلصُّبْحِ إِذْ كَانَ رَاجِعًا إِلَى ٱلْمَدِينَةِ جَاعَ، ١٨ 18
भोर को जब वह नगर में लौटकर आ रहे थे, उन्हें भूख लगी.
فَنَظَرَ شَجَرَةَ تِينٍ عَلَى ٱلطَّرِيقِ، وَجَاءَ إِلَيْهَا فَلَمْ يَجِدْ فِيهَا شَيْئًا إِلَّا وَرَقًا فَقَطْ. فَقَالَ لَهَا: «لَا يَكُنْ مِنْكِ ثَمَرٌ بَعْدُ إِلَى ٱلْأَبَدِ!». فَيَبِسَتِ ٱلتِّينَةُ فِي ٱلْحَالِ. (aiōn g165) ١٩ 19
मार्ग के किनारे एक अंजीर का पेड़ देखकर वह उसके पास गए किंतु उन्हें उसमें पत्तियों के अलावा कुछ नहीं मिला. इस पर येशु ने उस पेड़ को शाप दिया, “अब से तुझमें कभी कोई फल नहीं लगेगा.” तुरंत ही वह पेड़ मुरझा गया. (aiōn g165)
فَلَمَّا رَأَى ٱلتَّلَامِيذُ ذَلِكَ تَعَجَّبُوا قَائِلِينَ: «كَيْفَ يَبِسَتِ ٱلتِّينَةُ فِي ٱلْحَالِ؟». ٢٠ 20
यह देख शिष्य हैरान रह गए. उन्होंने प्रश्न किया, “अंजीर का यह पेड़ तुरंत ही कैसे मुरझा गया?”
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهُمْ: «اَلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنْ كَانَ لَكُمْ إِيمَانٌ وَلَا تَشُكُّونَ، فَلَا تَفْعَلُونَ أَمْرَ ٱلتِّينَةِ فَقَطْ، بَلْ إِنْ قُلْتُمْ أَيْضًا لِهَذَا ٱلْجَبَلِ: ٱنْتَقِلْ وَٱنْطَرِحْ فِي ٱلْبَحْرِ فَيَكُونُ. ٢١ 21
येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम इस सच्चाई को समझ लो: यदि तुम्हें विश्वास हो—संदेह तनिक भी न हो—तो तुम न केवल वह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ के साथ किया गया परंतु तुम यदि इस पर्वत को भी आज्ञा दोगे, ‘उखड़ जा और समुद्र में जा गिर!’ तो यह भी हो जाएगा.
وَكُلُّ مَا تَطْلُبُونَهُ فِي ٱلصَّلَاةِ مُؤْمِنِينَ تَنَالُونَهُ». ٢٢ 22
प्रार्थना में विश्वास से तुम जो भी विनती करोगे, तुम उसे प्राप्‍त करोगे.”
وَلَمَّا جَاءَ إِلَى ٱلْهَيْكَلِ تَقَدَّمَ إِلَيْهِ رُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ وَشُيُوخُ ٱلشَّعْبِ وَهُوَ يُعَلِّمُ، قَائِلِينَ: «بِأَيِّ سُلْطَانٍ تَفْعَلُ هَذَا؟ وَمَنْ أَعْطَاكَ هَذَا ٱلسُّلْطَانَ؟». ٢٣ 23
येशु ने मंदिर में प्रवेश किया और जब वह वहां शिक्षा दे ही रहे थे, प्रधान पुरोहित और पुरनिए उनके पास आए और उनसे पूछा, “किस अधिकार से तुम ये सब कर रहे हो? कौन है वह, जिसने तुम्हें इसका अधिकार दिया है?”
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهُمْ: «وَأَنَا أَيْضًا أَسْأَلُكُمْ كَلِمَةً وَاحِدَةً، فَإِنْ قُلْتُمْ لِي عَنْهَا أَقُولُ لَكُمْ أَنَا أَيْضًا بِأَيِّ سُلْطَانٍ أَفْعَلُ هَذَا: ٢٤ 24
येशु ने इसके उत्तर में कहा, “मैं भी आपसे एक प्रश्न करूंगा. यदि आप मुझे उसका उत्तर देंगे तो मैं भी आपके इस प्रश्न का उत्तर दूंगा कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूं:
مَعْمُودِيَّةُ يُوحَنَّا: مِنْ أَيْنَ كَانَتْ؟ مِنَ ٱلسَّمَاءِ أَمْ مِنَ ٱلنَّاسِ؟». فَفَكَّرُوا فِي أَنْفُسِهِمْ قَائِلِينَ: «إِنْ قُلْنَا: مِنَ ٱلسَّمَاءِ، يَقُولُ لَنَا: فَلِمَاذَا لَمْ تُؤْمِنُوا بِهِ؟ ٢٥ 25
योहन का बपतिस्मा किसकी ओर से था—स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से?” इस पर वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “यदि हम कहते हैं, ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह हमसे कहेगा, ‘तब आपने योहन में विश्वास क्यों नहीं किया?’
وَإِنْ قُلْنَا: مِنَ ٱلنَّاسِ، نَخَافُ مِنَ ٱلشَّعْبِ، لِأَنَّ يُوحَنَّا عِنْدَ ٱلْجَمِيعِ مِثْلُ نَبِيٍّ». ٢٦ 26
किंतु यदि हम कहते हैं, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तब हमें भीड़ से भय है; क्योंकि सभी योहन को भविष्यवक्ता मानते हैं.”
فَأَجَابُوا يَسُوعَ وَقَالُوا: «لَا نَعْلَمُ». فَقَالَ لَهُمْ هُوَ أَيْضًا: «وَلَا أَنَا أَقُولُ لَكُمْ بِأَيِّ سُلْطَانٍ أَفْعَلُ هَذَا. ٢٧ 27
उन्होंने आकर येशु से कहा, “आपके प्रश्न का उत्तर हमें मालूम नहीं.” येशु ने भी उन्हें उत्तर दिया, “मैं भी आपको नहीं बताऊंगा कि मैं किस अधिकार से ये सब करता हूं.
«مَاذَا تَظُنُّونَ؟ كَانَ لِإِنْسَانٍ ٱبْنَانِ، فَجَاءَ إِلَى ٱلْأَوَّلِ وَقَالَ: يا ٱبْنِي، ٱذْهَبِ ٱلْيَوْمَ ٱعْمَلْ فِي كَرْمِي. ٢٨ 28
“इस विषय में क्या विचार है आपका? एक व्यक्ति के दो पुत्र थे. उसने बड़े पुत्र से कहा, ‘हे पुत्र, आज जाकर दाख की बारी का काम देख लेना.’
فَأَجَابَ وَقَالَ: مَا أُرِيدُ. وَلَكِنَّهُ نَدِمَ أَخِيرًا وَمَضَى. ٢٩ 29
“उसने उत्तर दिया, ‘नहीं जाऊंगा.’ परंतु कुछ समय के बाद उसे पछतावा हुआ और वह दाख की बारी चला गया.
وَجَاءَ إِلَى ٱلثَّانِي وَقَالَ كَذَلِكَ. فَأَجَابَ وَقَالَ: هَا أَنَا يا سَيِّدُ. وَلَمْ يَمْضِ. ٣٠ 30
“पिता दूसरे पुत्र के पास गया और उससे भी यही कहा. उसने उत्तर दिया, ‘जी हां, अवश्य.’ किंतु वह गया नहीं.
فَأَيُّ ٱلِٱثْنَيْنِ عَمِلَ إِرَادَةَ ٱلْأَبِ؟». قَالُوا لَهُ: «ٱلْأَوَّلُ». قَالَ لَهُمْ يَسُوعُ: «ٱلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ ٱلْعَشَّارِينَ وَٱلزَّوَانِيَ يَسْبِقُونَكُمْ إِلَى مَلَكُوتِ ٱللهِ، ٣١ 31
“यह बताइए कि किस पुत्र ने अपने पिता की इच्छा पूरी की?” उन्होंने उत्तर दिया: “बड़े पुत्र ने.” येशु ने उनसे कहा, “सच यह है कि समाज से निकाले लोग तथा वेश्याएं आप लोगों से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर जाएंगे.
لِأَنَّ يُوحَنَّا جَاءَكُمْ فِي طَرِيقِ ٱلْحَقِّ فَلَمْ تُؤْمِنُوا بِهِ، وَأَمَّا ٱلْعَشَّارُونَ وَٱلزَّوَانِي فَآمَنُوا بِهِ. وَأَنْتُمْ إِذْ رَأَيْتُمْ لَمْ تَنْدَمُوا أَخِيرًا لِتُؤْمِنُوا بِهِ. ٣٢ 32
बपतिस्मा देनेवाले योहन आपको धर्म का मार्ग दिखाते हुए आए, किंतु आप लोगों ने उनका विश्वास ही न किया. किंतु समाज के बहिष्कृतों और वेश्याओं ने उनका विश्वास किया. यह सब देखने पर भी आपने उनमें विश्वास के लिए पश्चाताप न किया.
«اِسْمَعُوا مَثَلًا آخَرَ: كَانَ إِنْسَانٌ رَبُّ بَيْتٍ غَرَسَ كَرْمًا، وَأَحَاطَهُ بِسِيَاجٍ، وَحَفَرَ فِيهِ مَعْصَرَةً، وَبَنَى بُرْجًا، وَسَلَّمَهُ إِلَى كَرَّامِينَ وَسَافَرَ. ٣٣ 33
“एक और दृष्टांत सुनिए: एक गृहस्वामी था, जिसने एक दाख की बारी लगायी, चारदीवारी खड़ी की, रसकुंड बनाया तथा मचान भी. इसके बाद वह दाख की बारी किसानों को पट्टे पर देकर यात्रा पर चला गया.
وَلَمَّا قَرُبَ وَقْتُ ٱلْأَثْمَارِ أَرْسَلَ عَبِيدَهُ إِلَى ٱلْكَرَّامِينَ لِيَأْخُذَ أَثْمَارَهُ. ٣٤ 34
जब उपज तैयार होने का समय आया, तब उसने किसानों के पास अपने दास भेजे कि वे उनसे उपज का पहले से तय किया हुआ भाग इकट्ठा करें.
فَأَخَذَ ٱلْكَرَّامُونَ عَبِيدَهُ وَجَلَدُوا بَعْضًا وَقَتَلُوا بَعْضًا وَرَجَمُوا بَعْضًا. ٣٥ 35
“किसानों ने उसके दासों को पकड़ा, उनमें से एक की पिटाई की, एक की हत्या तथा एक का पथराव.
ثُمَّ أَرْسَلَ أَيْضًا عَبِيدًا آخَرِينَ أَكْثَرَ مِنَ ٱلْأَوَّلِينَ، فَفَعَلُوا بِهِمْ كَذَلِكَ. ٣٦ 36
अब गृहस्वामी ने पहले से अधिक संख्या में दास भेजे. इन दासों के साथ भी किसानों ने वही सब किया.
فَأَخِيرًا أَرْسَلَ إِلَيْهِمُ ٱبْنَهُ قَائِلًا: يَهَابُونَ ٱبْنِي! ٣٧ 37
इस पर यह सोचकर कि वे मेरे पुत्र का तो सम्मान करेंगे, उस गृहस्वामी ने अपने पुत्र को किसानों के पास भेजा.
وَأَمَّا ٱلْكَرَّامُونَ فَلَمَّا رَأَوْا ٱلِٱبْنَ قَالُوا فِيمَا بَيْنَهُمْ: هَذَا هُوَ ٱلْوَارِثُ! هَلُمُّوا نَقْتُلْهُ وَنَأْخُذْ مِيرَاثَهُ! ٣٨ 38
“किंतु जब किसानों ने पुत्र को देखा तो आपस में विचार किया, ‘सुनो! यह तो वारिस है, चलो, इसकी हत्या कर दें और पूरी संपत्ति हड़प लें.’
فَأَخَذُوهُ وَأَخْرَجُوهُ خَارِجَ ٱلْكَرْمِ وَقَتَلُوهُ. ٣٩ 39
इसलिये उन्होंने पुत्र को पकड़ा, उसे बारी के बाहर ले गए और उसकी हत्या कर दी.
فَمَتَى جَاءَ صَاحِبُ ٱلْكَرْمِ، مَاذَا يَفْعَلُ بِأُولَئِكَ ٱلْكَرَّامِينَ؟». ٤٠ 40
“इसलिये यह बताइए, जब दाख की बारी का स्वामी वहां आएगा, इन किसानों का क्या करेगा?”
قَالُوا لَهُ: «أُولَئِكَ ٱلْأَرْدِيَاءُ يُهْلِكُهُمْ هَلَاكًا رَدِيًّا، وَيُسَلِّمُ ٱلْكَرْمَ إِلَى كَرَّامِينَ آخَرِينَ يُعْطُونَهُ ٱلْأَثْمَارَ فِي أَوْقَاتِهَا». ٤١ 41
उन्होंने उत्तर दिया, “वह उन दुष्टों का सर्वनाश कर देगा तथा दाख की बारी ऐसे किसानों को पट्टे पर दे देगा, जो उसे सही समय पर उपज का भाग देंगे.”
قَالَ لَهُمْ يَسُوعُ: «أَمَا قَرَأْتُمْ قَطُّ فِي ٱلْكُتُبِ: ٱلْحَجَرُ ٱلَّذِي رَفَضَهُ ٱلْبَنَّاؤُونَ هُوَ قَدْ صَارَ رَأْسَ ٱلزَّاوِيَةِ؟ مِنْ قِبَلِ ٱلرَّبِّ كَانَ هَذَا وَهُوَ عَجِيبٌ فِي أَعْيُنِنَا! ٤٢ 42
येशु ने उनसे कहा, “क्या आपने पवित्र शास्त्र में कभी नहीं पढ़ा: “‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने अनुपयोगी घोषित कर दिया था, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया. यह प्रभु की ओर से हुआ और यह हमारी दृष्टि में अनूठा है’?
لِذَلِكَ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ مَلَكُوتَ ٱللهِ يُنْزَعُ مِنْكُمْ وَيُعْطَى لِأُمَّةٍ تَعْمَلُ أَثْمَارَهُ. ٤٣ 43
“इसलिये मैं आप सब पर यह सत्य प्रकाशित कर रहा हूं: परमेश्वर का राज्य आपसे छीन लिया जाएगा तथा उस राष्ट्र को सौंप दिया जाएगा, जो उपयुक्त फल लाएगा.
وَمَنْ سَقَطَ عَلَى هَذَا ٱلْحَجَرِ يَتَرَضَّضُ، وَمَنْ سَقَطَ هُوَ عَلَيْهِ يَسْحَقُهُ!». ٤٤ 44
वह, जो इस पत्थर पर गिरेगा, टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा किंतु जिस किसी पर यह पत्थर गिरेगा उसे कुचलकर चूर्ण बना देगा.”
وَلَمَّا سَمِعَ رُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلْفَرِّيسِيُّونَ أَمْثَالَهُ، عَرَفُوا أَنَّهُ تَكَلَّمَ عَلَيْهِمْ. ٤٥ 45
प्रधान पुरोहित और फ़रीसी यह दृष्टांत सुनकर यह समझ गए कि प्रभु येशु ने उन पर ही यह दृष्टांत कहा है.
وَإِذْ كَانُوا يَطْلُبُونَ أَنْ يُمْسِكُوهُ، خَافُوا مِنَ ٱلْجُمُوعِ، لِأَنَّهُ كَانَ عِنْدَهُمْ مِثْلَ نَبِيٍّ. ٤٦ 46
इसलिये उन्होंने येशु को पकड़ने की कोशिश तो की, किंतु उन्हें भीड़ का भय था, क्योंकि लोग येशु को भविष्यवक्ता मानते थे.

< مَتَّى 21 >