< يَعقُوب 1 >

يَعْقُوبُ، عَبْدُ ٱللهِ وَٱلرَّبِّ يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ، يُهْدِي ٱلسَّلَامَ إِلَى ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ سِبْطًا ٱلَّذِينَ فِي ٱلشَّتَاتِ. ١ 1
परमेश्वर के और प्रभु यीशु मसीह के दास याकूब की ओर से उन बारहों गोत्रों को जो तितर-बितर होकर रहते हैं नमस्कार पहुँचे।
اِحْسِبُوهُ كُلَّ فَرَحٍ يَا إِخْوَتِي حِينَمَا تَقَعُونَ فِي تَجَارِبَ مُتَنَوِّعَةٍ، ٢ 2
हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो,
عَالِمِينَ أَنَّ ٱمْتِحَانَ إِيمَانِكُمْ يُنْشِئُ صَبْرًا. ٣ 3
यह जानकर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है।
وَأَمَّا ٱلصَّبْرُ فَلْيَكُنْ لَهُ عَمَلٌ تَامٌّ، لِكَيْ تَكُونُوا تَامِّينَ وَكَامِلِينَ غَيْرَ نَاقِصِينَ فِي شَيْءٍ. ٤ 4
पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।
وَإِنَّمَا إِنْ كَانَ أَحَدُكُمْ تُعْوِزُهُ حِكْمَةٌ، فَلْيَطْلُبْ مِنَ ٱللهِ ٱلَّذِي يُعْطِي ٱلْجَمِيعَ بِسَخَاءٍ وَلَا يُعَيِّرُ، فَسَيُعْطَى لَهُ. ٥ 5
पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से माँगो, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उसको दी जाएगी।
وَلَكِنْ لِيَطْلُبْ بِإِيمَانٍ غَيْرَ مُرْتَابٍ ٱلْبَتَّةَ، لِأَنَّ ٱلْمُرْتَابَ يُشْبِهُ مَوْجًا مِنَ ٱلْبَحْرِ تَخْبِطُهُ ٱلرِّيحُ وَتَدْفَعُهُ. ٦ 6
पर विश्वास से माँगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है।
فَلَا يَظُنَّ ذَلِكَ ٱلْإِنْسَانُ أَنَّهُ يَنَالُ شَيْئًا مِنْ عِنْدِ ٱلرَّبِّ. ٧ 7
ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा,
رَجُلٌ ذُو رَأْيَيْنِ هُوَ مُتَقَلْقِلٌ فِي جَمِيعِ طُرُقِهِ. ٨ 8
वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।
وَلْيَفْتَخِرِ ٱلْأَخُ ٱلْمُتَّضِعُ بِٱرْتِفَاعِهِ، ٩ 9
दीन भाई अपने ऊँचे पद पर घमण्ड करे।
وَأَمَّا ٱلْغَنِيُّ فَبِٱتِّضَاعِهِ، لِأَنَّهُ كَزَهْرِ ٱلْعُشْبِ يَزُولُ. ١٠ 10
१०और धनवान अपनी नीच दशा पर; क्योंकि वह घास के फूल की तरह मिट जाएगा।
لِأَنَّ ٱلشَّمْسَ أَشْرَقَتْ بِٱلْحَرِّ، فَيَبَّسَتِ ٱلْعُشْبَ، فَسَقَطَ زَهْرُهُ وَفَنِيَ جَمَالُ مَنْظَرِهِ. هَكَذَا يَذْبُلُ ٱلْغَنِيُّ أَيْضًا فِي طُرُقِهِ. ١١ 11
११क्योंकि सूर्य उदय होते ही कड़ी धूप पड़ती है और घास को सुखा देती है, और उसका फूल झड़ जाता है, और उसकी शोभा मिटती जाती है; उसी प्रकार धनवान भी अपने कार्यों के मध्य में ही लोप हो जाएँगे।
طُوبَى لِلرَّجُلِ ٱلَّذِي يَحْتَمِلُ ٱلتَّجْرِبَةَ، لِأَنَّهُ إِذَا تَزَكَّى يَنَالُ «إِكْلِيلَ ٱلْحَيَاةِ» ٱلَّذِي وَعَدَ بِهِ ٱلرَّبُّ لِلَّذِينَ يُحِبُّونَهُ. ١٢ 12
१२धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करनेवालों को दी है।
لَا يَقُلْ أَحَدٌ إِذَا جُرِّبَ: «إِنِّي أُجَرَّبُ مِنْ قِبَلِ ٱللهِ»، لِأَنَّ ٱللهَ غَيْرُ مُجَرَّبٍ بِٱلشُّرُورِ، وَهُوَلَا يُجَرِّبُ أَحَدًا. ١٣ 13
१३जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।
وَلَكِنَّ كُلَّ وَاحِدٍ يُجَرَّبُ إِذَا ٱنْجَذَبَ وَٱنْخَدَعَ مِنْ شَهْوَتِهِ. ١٤ 14
१४परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंचकर, और फँसकर परीक्षा में पड़ता है।
ثُمَّ ٱلشَّهْوَةُ إِذَا حَبِلَتْ تَلِدُ خَطِيَّةً، وَٱلْخَطِيَّةُ إِذَا كَمَلَتْ تُنْتِجُ مَوْتًا. ١٥ 15
१५फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।
لَا تَضِلُّوا يَا إِخْوَتِي ٱلْأَحِبَّاءَ. ١٦ 16
१६हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ।
كُلُّ عَطِيَّةٍ صَالِحَةٍ وَكُلُّ مَوْهِبَةٍ تَامَّةٍ هِيَ مِنْ فَوْقُ، نَازِلَةٌ مِنْ عِنْدِ أَبِي ٱلْأَنْوَارِ، ٱلَّذِي لَيْسَ عِنْدَهُ تَغْيِيرٌ وَلَا ظِلُّ دَوَرَانٍ. ١٧ 17
१७क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिसमें न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, और न ही वह परछाई के समान बदलता है।
شَاءَ فَوَلَدَنَا بِكَلِمَةِ ٱلْحَقِّ لِكَيْ نَكُونَ بَاكُورَةً مِنْ خَلَائِقِهِ. ١٨ 18
१८उसने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उसकी सृष्टि किए हुए प्राणियों के बीच पहले फल के समान हो।
إِذًا يَا إِخْوَتِي ٱلْأَحِبَّاءَ، لِيَكُنْ كُلُّ إِنْسَانٍ مُسْرِعًا فِي ٱلِٱسْتِمَاعِ، مُبْطِئًا فِي ٱلتَّكَلُّمِ، مُبْطِئًا فِي ٱلْغَضَبِ، ١٩ 19
१९हे मेरे प्रिय भाइयों, यह बात तुम जान लो, हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो।
لِأَنَّ غَضَبَ ٱلْإِنْسَانِ لَا يَصْنَعُ بِرَّ ٱللهِ. ٢٠ 20
२०क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धार्मिकता का निर्वाह नहीं कर सकता है।
لِذَلِكَ ٱطْرَحُوا كُلَّ نَجَاسَةٍ وَكَثْرَةَ شَرٍّ، فَٱقْبَلُوا بِوَدَاعَةٍ ٱلْكَلِمَةَ ٱلْمَغْرُوسَةَ ٱلْقَادِرَةَ أَنْ تُخَلِّصَ نُفُوسَكُمْ. ٢١ 21
२१इसलिए सारी मलिनता और बैर-भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।
وَلَكِنْ كُونُوا عَامِلِينَ بِٱلْكَلِمَةِ، لَا سَامِعِينَ فَقَطْ خَادِعِينَ نُفُوسَكُمْ. ٢٢ 22
२२परन्तु वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आपको धोखा देते हैं।
لِأَنَّهُ إِنْ كَانَ أَحَدٌ سَامِعًا لِلْكَلِمَةِ وَلَيْسَ عَامِلًا، فَذَاكَ يُشْبِهُ رَجُلًا نَاظِرًا وَجْهَ خِلْقَتِهِ فِي مِرْآةٍ، ٢٣ 23
२३क्योंकि जो कोई वचन का सुननेवाला हो, और उस पर चलनेवाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुँह दर्पण में देखता है।
فَإِنَّهُ نَظَرَ ذَاتَهُ وَمَضَى، وَلِلْوَقْتِ نَسِيَ مَا هُوَ. ٢٤ 24
२४इसलिए कि वह अपने आपको देखकर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि वह कैसा था।
وَلَكِنْ مَنِ ٱطَّلَعَ عَلَى ٱلنَّامُوسِ ٱلْكَامِلِ - نَامُوسِ ٱلْحُرِّيَّةِ - وَثَبَتَ، وَصَارَ لَيْسَ سَامِعًا نَاسِيًا بَلْ عَامِلًا بِٱلْكَلِمَةِ، فَهَذَا يَكُونُ مَغْبُوطًا فِي عَمَلِهِ. ٢٥ 25
२५पर जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिए आशीष पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं, पर वैसा ही काम करता है।
إِنْ كَانَ أَحَدٌ فِيكُمْ يَظُنُّ أَنَّهُ دَيِّنٌ، وَهُوَ لَيْسَ يُلْجِمُ لِسَانَهُ، بَلْ يَخْدَعُ قَلْبَهُ، فَدِيَانَةُ هَذَا بَاطِلَةٌ. ٢٦ 26
२६यदि कोई अपने आपको भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उसकी भक्ति व्यर्थ है।
اَلدِّيَانَةُ ٱلطَّاهِرَةُ ٱلنَّقِيَّةُ عِنْدَ ٱللهِ ٱلْآبِ هِيَ هَذِهِ: ٱفْتِقَادُ ٱلْيَتَامَى وَٱلْأَرَامِلِ فِي ضِيقَتِهِمْ، وَحِفْظُ ٱلْإِنْسَانِ نَفْسَهُ بِلَا دَنَسٍ مِنَ ٱلْعَالَمِ. ٢٧ 27
२७हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उनकी सुधि लें, और अपने आपको संसार से निष्कलंक रखें।

< يَعقُوب 1 >