< يَعقُوب 3 >
لَا تَكُونُوا مُعَلِّمِينَ كَثِيرِينَ يَا إِخْوَتِي، عَالِمِينَ أَنَّنَا نَأْخُذُ دَيْنُونَةً أَعْظَمَ! | ١ 1 |
ऐ, मेरे भाइयों; तुम में से बहुत से उस्ताद न बनें क्यूँकि जानते हो कि हम जो उस्ताद हैं ज़्यादा सज़ा पाएँगे।
لِأَنَّنَا فِي أَشْيَاءَ كَثِيرَةٍ نَعْثُرُ جَمِيعُنَا. إِنْ كَانَ أَحَدٌ لَا يَعْثُرُ فِي ٱلْكَلَامِ فَذَاكَ رَجُلٌ كَامِلٌ، قَادِرٌ أَنْ يُلْجِمَ كُلَّ ٱلْجَسَدِ أَيْضًا. | ٢ 2 |
इसलिए कि हम सब के सब अक्सर ख़ता करते हैं; कामिल शख़्स वो है जो बातों में ख़ता न करे वो सारे बदन को भी क़ाबू में रख सकता है;
هُوَذَا ٱلْخَيْلُ، نَضَعُ ٱللُّجُمَ فِي أَفْوَاهِهَا لِكَيْ تُطَاوِعَنَا، فَنُدِيرَ جِسْمَهَا كُلَّهُ. | ٣ 3 |
देखो हम अपने क़ाबू में करने के लिए घोड़ों के मुँह में लगाम देते हैं तो उनके सारे बदन को भी घुमा सकते हैं।
هُوَذَا ٱلسُّفُنُ أَيْضًا، وَهِيَ عَظِيمَةٌ بِهَذَا ٱلْمِقْدَارِ، وَتَسُوقُهَا رِيَاحٌ عَاصِفَةٌ، تُدِيرُهَا دَفَّةٌ صَغِيرَةٌ جِدًّا إِلَى حَيْثُمَا شَاءَ قَصْدُ ٱلْمُدِيرِ. | ٤ 4 |
और जहाज़ भी अगरचे बड़े बड़े होते हैं और तेज़ हवाओं से चलाए जाते हैं तोभी एक निहायत छोटी सी पतवार के ज़रिए माँझी की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ घुमाए जाते हैं।
هَكَذَا ٱللِّسَانُ أَيْضًا، هُوَ عُضْوٌ صَغِيرٌ وَيَفْتَخِرُ مُتَعَظِّمًا. هُوَذَا نَارٌ قَلِيلَةٌ، أَيَّ وُقُودٍ تُحْرِقُ! | ٥ 5 |
इसी तरह ज़बान भी एक छोटा सा 'उज़्व है और बड़ी शेख़ी मारती है। देखो थोड़ी सी आग से कितने बड़े जंगल में आग लग जाती है।
فَٱللِّسَانُ نَارٌ! عَالَمُ ٱلْإِثْمِ. هَكَذَا جُعِلَ فِي أَعْضَائِنَا ٱللِّسَانُ، ٱلَّذِي يُدَنِّسُ ٱلْجِسْمَ كُلَّهُ، وَيُضْرِمُ دَائِرَةَ ٱلْكَوْنِ، وَيُضْرَمُ مِنْ جَهَنَّمَ. (Geenna ) | ٦ 6 |
ज़बान भी एक आग है ज़बान हमारे आज़ा में शरारत का एक आ'लम है और सारे जिस्म को दाग़ लगाती है और दाइरा दुनिया को आग लगा देती है और जहन्नुम की आग से जलती रहती है। (Geenna )
لِأَنَّ كُلَّ طَبْعٍ لِلْوُحُوشِ وَٱلطُّيُورِ وَٱلزَّحَّافَاتِ وَٱلْبَحْرِيَّاتِ يُذَلَّلُ، وَقَدْ تَذَلَّلَ لِلطَّبْعِ ٱلْبَشَرِيِّ. | ٧ 7 |
क्यूँकि हर क़िस्म के चौपाए और परिन्दे और कीड़े मकोड़े और दरियाई जानवर तो इंसान के क़ाबू में आ सकते हैं और आए भी हैं।
وَأَمَّا ٱللِّسَانُ، فَلَا يَسْتَطِيعُ أَحَدٌ مِنَ ٱلنَّاسِ أَنْ يُذَلِّلَهُ. هُوَ شَرٌّ لَا يُضْبَطُ، مَمْلُوٌّ سُمًّا مُمِيتًا. | ٨ 8 |
मगर ज़बान को कोई क़ाबू में नहीं कर सकता वो एक बला है जो कभी रुकती ही नहीं ज़हर — ए — क़ातिल से भरी हुई है।
بِهِ نُبَارِكُ ٱللهَ ٱلْآبَ، وَبِهِ نَلْعَنُ ٱلنَّاسَ ٱلَّذِينَ قَدْ تَكَوَّنُوا عَلَى شِبْهِ ٱللهِ. | ٩ 9 |
इसी से हम ख़ुदावन्द अपने बाप की हम्द करते हैं और इसी से आदमियों को जो ख़ुदा की सूरत पर पैदा हुए हैं बद्दुआ देते हैं।
مِنَ ٱلْفَمِ ٱلْوَاحِدِ تَخْرُجُ بَرَكَةٌ وَلَعْنَةٌ! لَا يَصْلُحُ يَا إِخْوَتِي أَنْ تَكُونَ هَذِهِ ٱلْأُمُورُ هَكَذَا! | ١٠ 10 |
एक ही मुँह से मुबारिक़ बाद और बद्दुआ निकलती है! ऐ मेरे भाइयों; ऐसा न होना चाहिए।
أَلَعَلَّ يَنْبُوعًا يُنْبِعُ مِنْ نَفْسِ عَيْنٍ وَاحِدَةٍ ٱلْعَذْبَ وَٱلْمُرَّ؟ | ١١ 11 |
क्या चश्मे के एक ही मुँह से मीठा और खारा पानी निकलता है।
هَلْ تَقْدِرُ يَا إِخْوَتِي تِينَةٌ أَنْ تَصْنَعَ زَيْتُونًا، أَوْ كَرْمَةٌ تِينًا؟ وَلَا كَذَلِكَ يَنْبُوعٌ يَصْنَعُ مَاءً مَالِحًا وَعَذْبًا! | ١٢ 12 |
ऐ, मेरे भाइयों! क्या अंजीर के दरख़्त में ज़ैतून और अँगूर में अंजीर पैदा हो सकते हैं? इसी तरह खारे चश्मे से मीठा पानी नहीं निकल सकता।
مَنْ هُوَ حَكِيمٌ وَعَالِمٌ بَيْنَكُمْ، فَلْيُرِ أَعْمَالَهُ بِٱلتَّصَرُّفِ ٱلْحَسَنِ فِي وَدَاعَةِ ٱلْحِكْمَةِ. | ١٣ 13 |
तुम में दाना और फ़हीम कौन है? जो ऐसा हो वो अपने कामों को नेक चाल चलन के वसीले से उस हलीमी के साथ ज़ाहिर करें जो हिक्मत से पैदा होता है।
وَلَكِنْ إِنْ كَانَ لَكُمْ غَيْرَةٌ مُرَّةٌ وَتَحَزُّبٌ فِي قُلُوبِكُمْ، فَلَا تَفْتَخِرُوا وَتَكْذِبُوا عَلَى ٱلْحَقِّ. | ١٤ 14 |
लेकिन अगर तुम अपने दिल में सख़्त हसद और तफ़्रक़े रखते हो तो हक़ के ख़िलाफ़ न शेख़ी मारो न झूठ बोलो।
لَيْسَتْ هَذِهِ ٱلْحِكْمَةُ نَازِلَةً مِنْ فَوْقُ، بَلْ هِيَ أَرْضِيَّةٌ نَفْسَانِيَّةٌ شَيْطَانِيَّةٌ. | ١٥ 15 |
ये हिक्मत वो नहीं जो ऊपर से उतरती है बल्कि दुनियावी और नफ़सानी और शैतानी है।
لِأَنَّهُ حَيْثُ ٱلْغَيْرَةُ وَٱلتَّحَزُّبُ، هُنَاكَ ٱلتَّشْوِيشُ وَكُلُّ أَمْرٍ رَدِيءٍ. | ١٦ 16 |
इसलिए कि जहाँ हसद और तफ़्रक़ा होता है फ़साद और हर तरह का बुरा काम भी होता है।
وَأَمَّا ٱلْحِكْمَةُ ٱلَّتِي مِنْ فَوْقُ فَهِيَ أَوَّلًا طَاهِرَةٌ، ثُمَّ مُسَالِمَةٌ، مُتَرَفِّقَةٌ، مُذْعِنَةٌ، مَمْلُوَّةٌ رَحْمَةً وَأَثْمَارًا صَالِحَةً، عَدِيمَةُ ٱلرَّيْبِ وَٱلرِّيَاءِ. | ١٧ 17 |
मगर जो हिक्मत ऊपर से आती है अव्वल तो वो पाक होती है फिर मिलनसार नर्मदिल और तरबियत पज़ीर रहम और अच्छे फलों से लदी हुई बेतरफ़दार और बे — रिया होती है।
وَثَمَرُ ٱلْبِرِّ يُزْرَعُ فِي ٱلسَّلَامِ مِنَ ٱلَّذِينَ يَفْعَلُونَ ٱلسَّلَامَ. | ١٨ 18 |
और सुलह करने वालों के लिए रास्तबाज़ी का फल सुलह के साथ बोया जाता है।