< اَلتَّكْوِينُ 6 >
وَحَدَثَ لَمَّا ٱبْتَدَأَ ٱلنَّاسُ يَكْثُرُونَ عَلَى ٱلْأَرْضِ، وَوُلِدَ لَهُمْ بَنَاتٌ، | ١ 1 |
जब रु — ए — ज़मीन पर आदमी बहुत बढ़ने लगे और उनके बेटियाँ पैदा हुई।
أَنَّ أَبْنَاءَ ٱللهِ رَأَوْا بَنَاتِ ٱلنَّاسِ أَنَّهُنَّ حَسَنَاتٌ. فَٱتَّخَذُوا لِأَنْفُسِهِمْ نِسَاءً مِنْ كُلِّ مَا ٱخْتَارُوا. | ٢ 2 |
तो ख़ुदा के बेटों ने आदमी की बेटियों को देखा कि वह ख़ूबसूरत हैं; और जिनको उन्होंने चुना उनसे ब्याह कर लिया।
فَقَالَ ٱلرَّبُّ: «لَا يَدِينُ رُوحِي فِي ٱلْإِنْسَانِ إِلَى ٱلْأَبَدِ، لِزَيَغَانِهِ، هُوَ بَشَرٌ. وَتَكُونُ أَيَّامُهُ مِئَةً وَعِشْرِينَ سَنَةً». | ٣ 3 |
तब ख़ुदावन्द ने कहा कि मेरी रूह इंसान के साथ हमेशा मुज़ाहमत न करती रहेगी। क्यूँकि वह भी तो इंसान है; तो भी उसकी उम्र एक सौ बीस साल की होगी।
كَانَ فِي ٱلْأَرْضِ طُغَاةٌ فِي تِلْكَ ٱلْأَيَّامِ. وَبَعْدَ ذَلِكَ أَيْضًا إِذْ دَخَلَ بَنُو ٱللهِ عَلَى بَنَاتِ ٱلنَّاسِ وَوَلَدْنَ لَهُمْ أَوْلَادًا، هَؤُلَاءِ هُمُ ٱلْجَبَابِرَةُ ٱلَّذِينَ مُنْذُ ٱلدَّهْرِ ذَوُو ٱسْمٍ. | ٤ 4 |
उन दिनों में ज़मीन पर जब्बार थे, और बाद में जब ख़ुदा के बेटे इंसान की बेटियों के पास गए, तो उनके लिए उनसे औलाद हुई। यही पुराने ज़माने के सूर्मा हैं, जो बड़े नामवर हुए हैं।
وَرَأَى ٱلرَّبُّ أَنَّ شَرَّ ٱلْإِنْسَانِ قَدْ كَثُرَ فِي ٱلْأَرْضِ، وَأَنَّ كُلَّ تَصَوُّرِ أَفْكَارِ قَلْبِهِ إِنَّمَا هُوَ شِرِّيرٌ كُلَّ يَوْمٍ. | ٥ 5 |
और ख़ुदावन्द ने देखा कि ज़मीन पर इंसान की बदी बहुत बढ़ गई, और उसके दिल के तसव्वुर और ख़याल हमेशा बुरे ही होते हैं।
فَحَزِنَ ٱلرَّبُّ أَنَّهُ عَمِلَ ٱلْإِنْسَانَ فِي ٱلْأَرْضِ، وَتَأَسَّفَ فِي قَلْبِهِ. | ٦ 6 |
तब ख़ुदावन्द ज़मीन पर इंसान के पैदा करने से दुखी हुआ और दिल में ग़म किया।
فَقَالَ ٱلرَّبُّ: «أَمْحُو عَنْ وَجْهِ ٱلْأَرْضِ ٱلْإِنْسَانَ ٱلَّذِي خَلَقْتُهُ، ٱلْإِنْسَانَ مَعَ بَهَائِمَ وَدَبَّابَاتٍ وَطُيُورِ ٱلسَّمَاءِ، لِأَنِّي حَزِنْتُ أَنِّي عَمِلْتُهُمْ». | ٧ 7 |
और ख़ुदावन्द ने कहा कि मैं इंसान को जिसे मैंने पैदा किया, रू — ए — ज़मीन पर से मिटा डालूँगा; इंसान से लेकर हैवान और रेंगनेवाले जानदार और हवा के परिन्दों तक; क्यूँकि मैं उनके बनाने से दुखी हूँ।
وَأَمَّا نُوحٌ فَوَجَدَ نِعْمَةً فِي عَيْنَيِ ٱلرَّبِّ. | ٨ 8 |
मगर नूह ख़ुदावन्द की नज़र में मक़्बूल हुआ।
هَذِهِ مَوَالِيدُ نُوحٍ: كَانَ نُوحٌ رَجُلًا بَارًّا كَامِلًا فِي أَجْيَالِهِ. وَسَارَ نُوحٌ مَعَ ٱللهِ. | ٩ 9 |
नूह का नसबनामा यह है: नूह मर्द — ए — रास्तबाज़ और अपने ज़माने के लोगों में बे'ऐब था, और नूह ख़ुदा के साथ — साथ चलता रहा।
وَوَلَدَ نُوحٌ ثَلَاثَةَ بَنِينَ: سَامًا، وَحَامًا، وَيَافَثَ. | ١٠ 10 |
और उससे तीन बेटे सिम, हाम और याफ़त पैदा हुए।
وَفَسَدَتِ ٱلْأَرْضُ أَمَامَ ٱللهِ، وَٱمْتَلَأَتِ ٱلْأَرْضُ ظُلْمًا. | ١١ 11 |
लेकिन ज़मीन ख़ुदा के आगे नापाक हो गई थी, और वह ज़ुल्म से भरी थी।
وَرَأَى ٱللهُ ٱلْأَرْضَ فَإِذَا هِيَ قَدْ فَسَدَتْ، إِذْ كَانَ كُلُّ بَشَرٍ قَدْ أَفْسَدَ طَرِيقَهُ عَلَى ٱلْأَرْضِ. | ١٢ 12 |
और ख़ुदा ने ज़मीन पर नज़र की और देखा, कि वह नापाक हो गई है; क्यूँकि हर इंसान ने ज़मीन पर अपना तरीक़ा बिगाड़ लिया था।
فَقَالَ ٱللهُ لِنُوحٍ: «نِهَايَةُ كُلِّ بَشَرٍ قَدْ أَتَتْ أَمَامِي، لِأَنَّ ٱلْأَرْضَ ٱمْتَلَأَتْ ظُلْمًا مِنْهُمْ. فَهَا أَنَا مُهْلِكُهُمْ مَعَ ٱلْأَرْضِ. | ١٣ 13 |
और ख़ुदा ने नूह से कहा कि पूरे इंसान का ख़ातिमा मेरे सामने आ पहुँचा है; क्यूँकि उनकी वजह से ज़मीन जुल्म से भर गई, इसलिए देख, मैं ज़मीन के साथ उनको हलाक करूँगा।
اِصْنَعْ لِنَفْسِكَ فُلْكًا مِنْ خَشَبِ جُفْرٍ. تَجْعَلُ ٱلْفُلْكَ مَسَاكِنَ، وَتَطْلِيهِ مِنْ دَاخِلٍ وَمِنْ خَارِجٍ بِٱلْقَارِ. | ١٤ 14 |
तू गोफर की लकड़ी की एक कश्ती अपने लिए बना; उस कश्ती में कोठरियाँ तैयार करना और उसके अन्दर और बाहर राल लगाना।
وَهَكَذَا تَصْنَعُهُ: ثَلَاثَ مِئَةِ ذِرَاعٍ يَكُونُ طُولُ ٱلْفُلْكِ، وَخَمْسِينَ ذِرَاعًا عَرْضُهُ، وَثَلَاثِينَ ذِرَاعًا ٱرْتِفَاعُهُ. | ١٥ 15 |
और ऐसा करना कि कश्ती की लम्बाई तीन सौ हाथ, उसकी चौड़ाई पचास हाथ और उसकी ऊँचाई तीस हाथ हो।
وَتَصْنَعُ كَوًّا لِلْفُلْكِ، وَتُكَمِّلُهُ إِلَى حَدِّ ذِرَاعٍ مِنْ فَوْقُ. وَتَضَعُ بَابَ ٱلْفُلْكِ فِي جَانِبِهِ. مَسَاكِنَ سُفْلِيَّةً وَمُتَوَسِّطَةً وَعُلْوِيَّةً تَجْعَلُهُ. | ١٦ 16 |
और उस कश्ती में एक रौशनदान बनाना, और ऊपर से हाथ भर छोड़ कर उसे ख़त्म कर देना; और उस कश्ती का दरवाज़ा उसके पहलू में रखना; और उसमें तीन हिस्से बनाना निचला, दूसरा और तीसरा।
فَهَا أَنَا آتٍ بِطُوفَانِ ٱلْمَاءِ عَلَى ٱلْأَرْضِ لِأُهْلِكَ كُلَّ جَسَدٍ فِيهِ رُوحُ حَيَاةٍ مِنْ تَحْتِ ٱلسَّمَاءِ. كُلُّ مَا فِي ٱلْأَرْضِ يَمُوتُ. | ١٧ 17 |
और देख, मैं ख़ुद ज़मीन पर पानी का तूफ़ान लानेवाला हूँ, ताकि हर इंसान को जिसमें जिन्दगी की साँस है, दुनिया से हलाक कर डालूँ, और सब जो ज़मीन पर हैं मर जाएँगे।
وَلَكِنْ أُقِيمُ عَهْدِي مَعَكَ، فَتَدْخُلُ ٱلْفُلْكَ أَنْتَ وَبَنُوكَ وَٱمْرَأَتُكَ وَنِسَاءُ بَنِيكَ مَعَكَ. | ١٨ 18 |
लेकिन तेरे साथ मैं अपना 'अहद क़ाईम करूँगा; और तू कश्ती में जाना — तू और तेरे साथ तेरे बेटे और तेरी बीवी और तेरे बेटों की बीवियाँ।
وَمِنْ كُلِّ حَيٍّ مِنْ كُلِّ ذِي جَسَدٍ، ٱثْنَيْنِ مِنْ كُلٍّ تُدْخِلُ إِلَى ٱلْفُلْكِ لِٱسْتِبْقَائِهَا مَعَكَ. تَكُونُ ذَكَرًا وَأُنْثَى. | ١٩ 19 |
और जानवरों की हर क़िस्म में से दो — दो अपने साथ कश्ती में ले लेना, कि वह तेरे साथ जीते बचें, वह नर — ओ — मादा हों।
مِنَ ٱلطُّيُورِ كَأَجْنَاسِهَا، وَمِنَ ٱلْبَهَائِمِ كَأَجْنَاسِهَا، وَمِنْ كُلِّ دَبَّابَاتِ ٱلْأَرْضِ كَأَجْنَاسِهَا. ٱثْنَيْنِ مِنْ كُلٍّ تُدْخِلُ إِلَيْكَ لِٱسْتِبْقَائِهَا. | ٢٠ 20 |
और परिन्दों की हर क़िस्म में से, और चरिन्दों की हर क़िस्म में से, और ज़मीन पर रेंगने वालों की हर क़िस्म में से दो दो तेरे पास आएँ, ताकि वह जीते बचें।
وَأَنْتَ، فَخُذْ لِنَفْسِكَ مِنْ كُلِّ طَعَامٍ يُؤْكَلُ وَٱجْمَعْهُ عِنْدَكَ، فَيَكُونَ لَكَ وَلَهَا طَعَامًا». | ٢١ 21 |
और तू हर तरह की खाने की चीज़ लेकर अपने पास जमा' कर लेना, क्यूँकि यही तेरे और उनके खाने को होगा।
فَفَعَلَ نُوحٌ حَسَبَ كُلِّ مَا أَمَرَهُ بِهِ ٱللهُ. هَكَذَا فَعَلَ. | ٢٢ 22 |
और नूह ने ऐसा ही किया; जैसा ख़ुदा ने उसे हुक्म दिया था, वैसा ही 'अमल किया।