< इस्त 28 >

1 और अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात को जांफिशानी से मान कर उसके इन सब हुक्मों पर, जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ, एहतियात से 'अमल करे तो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा दुनिया की सब क़ौमों से ज़्यादा तुझको सरफ़राज़ करेगा।
וְהָיָ֗ה אִם־שָׁמֹ֤ועַ תִּשְׁמַע֙ בְּקֹול֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ לִשְׁמֹ֤ר לַעֲשֹׂות֙ אֶת־כָּל־מִצְוֹתָ֔יו אֲשֶׁ֛ר אָנֹכִ֥י מְצַוְּךָ֖ הַיֹּ֑ום וּנְתָ֨נְךָ֜ יְהוָ֤ה אֱלֹהֶ֙יךָ֙ עֶלְיֹ֔ון עַ֖ל כָּל־גֹּויֵ֥י הָאָֽרֶץ׃
2 और अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुने तो यह सब बरकतें तुझ पर नाज़िल होंगी और तुझको मिलेंगी।
וּבָ֧אוּ עָלֶ֛יךָ כָּל־הַבְּרָכֹ֥ות הָאֵ֖לֶּה וְהִשִּׂיגֻ֑ךָ כִּ֣י תִשְׁמַ֔ע בְּקֹ֖ול יְהוָ֥ה אֱלֹהֶֽיךָ׃
3 शहर में भी तू मुबारक होगा, और खेत में भी मुबारक होगा।
בָּר֥וּךְ אַתָּ֖ה בָּעִ֑יר וּבָר֥וּךְ אַתָּ֖ה בַּשָּׂדֶֽה׃
4 तेरी औलाद, और तेरी ज़मीन की पैदावार, और तेरे चौपायों के बच्चे, या'नी गाय — बैल की बढ़ती और तेरी भेड़ — बकरियों के बच्चे मुबारक होंगे।
בָּר֧וּךְ פְּרִֽי־בִטְנְךָ֛ וּפְרִ֥י אַדְמָתְךָ֖ וּפְרִ֣י בְהֶמְתֶּ֑ךָ שְׁגַ֥ר אֲלָפֶ֖יךָ וְעַשְׁתְּרֹ֥ות צֹאנֶֽךָ׃
5 तेरा टोकरा और तेरी कठौती दोनों मुबारक होंगे।
בָּר֥וּךְ טַנְאֲךָ֖ וּמִשְׁאַרְתֶּֽךָ׃
6 और तू अन्दर आते वक़्त मुबारक होगा, और बाहर जाते वक़्त भी मुबारक होगा।
בָּר֥וּךְ אַתָּ֖ה בְּבֹאֶ֑ךָ וּבָר֥וּךְ אַתָּ֖ה בְּצֵאתֶֽךָ׃
7 ख़ुदावन्द तेरे दुश्मनों को जो तुझ पर हमला करें, तेरे सामने शिकस्त दिलाएगा; वह तेरे मुक़ाबले को तो एक ही रास्ते से आएँगे, लेकिन सात सात रास्तों से हो कर तेरे आगे से भागेंगे।
יִתֵּ֨ן יְהוָ֤ה אֶת־אֹיְבֶ֙יךָ֙ הַקָּמִ֣ים עָלֶ֔יךָ נִגָּפִ֖ים לְפָנֶ֑יךָ בְּדֶ֤רֶךְ אֶחָד֙ יֵצְא֣וּ אֵלֶ֔יךָ וּבְשִׁבְעָ֥ה דְרָכִ֖ים יָנ֥וּסוּ לְפָנֶֽיךָ׃
8 ख़ुदावन्द तेरे अम्बारख़ानों में और सब कामों में जिनमें तू हाथ लगाये बरकत का हुक्म देगा, और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में जिसे वह तुझको देता है तुझको बरकत बख़्शेगा।
יְצַ֨ו יְהוָ֤ה אִתְּךָ֙ אֶת־הַבְּרָכָ֔ה בַּאֲסָמֶ֕יךָ וּבְכֹ֖ל מִשְׁלַ֣ח יָדֶ֑ךָ וּבֵ֣רַכְךָ֔ בָּאָ֕רֶץ אֲשֶׁר־יְהוָ֥ה אֱלֹהֶ֖יךָ נֹתֵ֥ן לָֽךְ׃
9 अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को माने और उसकी राहों पर चले, तो ख़ुदावन्द अपनी उस क़सम के मुताबिक़ जो उसने तुझ से खाई तुझको अपनी पाक क़ौम बना कर क़ाईम रख्खेगा।
יְקֽ͏ִימְךָ֙ יְהוָ֥ה לֹו֙ לְעַ֣ם קָדֹ֔ושׁ כַּאֲשֶׁ֖ר נִֽשְׁבַּֽע־לָ֑ךְ כִּ֣י תִשְׁמֹ֗ר אֶת־מִצְוֹת֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ וְהָלַכְתָּ֖ בִּדְרָכָֽיו׃
10 और दुनिया की सब क़ौमें यह देखकर कि तू ख़ुदावन्द के नाम से कहलाता है, तुझ से डर जाएँगी।
וְרָאוּ֙ כָּל־עַמֵּ֣י הָאָ֔רֶץ כִּ֛י שֵׁ֥ם יְהוָ֖ה נִקְרָ֣א עָלֶ֑יךָ וְיָֽרְא֖וּ מִמֶּֽךָּ׃
11 और जिस मुल्क को तुझको देने की क़सम ख़ुदावन्द ने तेरे बाप — दादा से खाई थी, उसमें ख़ुदावन्द तेरी औलाद को और तेरे चौपायों के बच्चों को और तेरी ज़मीन की पैदावार को ख़ूब बढ़ा कर तुझको बढ़ाएगा।
וְהֹותִרְךָ֤ יְהוָה֙ לְטֹובָ֔ה בִּפְרִ֧י בִטְנְךָ֛ וּבִפְרִ֥י בְהַמְתְּךָ֖ וּבִפְרִ֣י אַדְמָתֶ֑ךָ עַ֚ל הָאֲדָמָ֔ה אֲשֶׁ֨ר נִשְׁבַּ֧ע יְהוָ֛ה לַאֲבֹתֶ֖יךָ לָ֥תֶת לָֽךְ׃
12 ख़ुदावन्द आसमान को जो उसका अच्छा ख़ज़ाना है तेरे लिए खोल देगा कि तेरे मुल्क में वक़्त पर मेंह बरसाए, और वह तेरे सब कामों में जिनमें तू हाथ लगाए बरकत देगा; और तू बहुत सी क़ौमों को क़र्ज़ देगा, लेकिन ख़ुद क़र्ज़ नहीं लेगा।
יִפְתַּ֣ח יְהוָ֣ה ׀ לְ֠ךָ אֶת־אֹוצָרֹ֨ו הַטֹּ֜וב אֶת־הַשָּׁמַ֗יִם לָתֵ֤ת מְטַֽר־אַרְצְךָ֙ בְּעִתֹּ֔ו וּלְבָרֵ֕ךְ אֵ֖ת כָּל־מַעֲשֵׂ֣ה יָדֶ֑ךָ וְהִלְוִ֙יתָ֙ גֹּויִ֣ם רַבִּ֔ים וְאַתָּ֖ה לֹ֥א תִלְוֶֽה׃
13 और ख़ुदावन्द तुझको दुम नहीं बल्कि सिर ठहराएगा, और तू पस्त नहीं बल्कि सरफ़राज़ ही रहेगा; बशर्ते कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को, जो मैं तुझको आज के दिन देता हूँ, सुनो और एहतियात से उन पर 'अमल करो,
וּנְתֽ͏ָנְךָ֙ יְהוָ֤ה לְרֹאשׁ֙ וְלֹ֣א לְזָנָ֔ב וְהָיִ֙יתָ֙ רַ֣ק לְמַ֔עְלָה וְלֹ֥א תִהְיֶ֖ה לְמָ֑טָּה כִּֽי־תִשְׁמַ֞ע אֶל־מִצְוֹ֣ת ׀ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֗יךָ אֲשֶׁ֨ר אָנֹכִ֧י מְצַוְּךָ֛ הַיֹּ֖ום לִשְׁמֹ֥ר וְלַעֲשֹֽׂות׃
14 और जिन बातों का मैं आज के दिन तुझको हुक्म देता हूँ, उनमें से किसी से दहने या बाएँ हाथ मुड़ कर और मा'बूदों की पैरवी और इबादत न करे।
וְלֹ֣א תָס֗וּר מִכָּל־הַדְּבָרִים֙ אֲשֶׁ֨ר אָנֹכִ֜י מְצַוֶּ֥ה אֶתְכֶ֛ם הַיֹּ֖ום יָמִ֣ין וּשְׂמֹ֑אול לָלֶ֗כֶת אַחֲרֵ֛י אֱלֹהִ֥ים אֲחֵרִ֖ים לְעָבְדָֽם׃ ס
15 “लेकिन अगर तू ऐसा न करे, कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुनकर उसके सब अहकाम और आईन पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ एहतियात से 'अमल करे, तो यह सब ला'नतें तुझ पर नाज़िल होंगी और तुझको लगेंगी।
וְהָיָ֗ה אִם־לֹ֤א תִשְׁמַע֙ בְּקֹול֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ לִשְׁמֹ֤ר לַעֲשֹׂות֙ אֶת־כָּל־מִצְוֹתָ֣יו וְחֻקֹּתָ֔יו אֲשֶׁ֛ר אָנֹכִ֥י מְצַוְּךָ֖ הַיֹּ֑ום וּבָ֧אוּ עָלֶ֛יךָ כָּל־הַקְּלָלֹ֥ות הָאֵ֖לֶּה וְהִשִּׂיגֽוּךָ׃
16 शहर में भी तू ला'नती होगा, और खेत में भी ला'नती होगा।
אָר֥וּר אַתָּ֖ה בָּעִ֑יר וְאָר֥וּר אַתָּ֖ה בַּשָּׂדֶֽה׃
17 तेरा टोकरा और तेरी कठौती दोनों ला'नती ठहरेंगे।
אָר֥וּר טַנְאֲךָ֖ וּמִשְׁאַרְתֶּֽךָ׃
18 तेरी औलाद और तेरी ज़मीन की पैदावार, और तेरे गाय — बैल की बढ़ती और तेरी भेड़ — बकरियों के बच्चे ला'नती होंगे।
אָר֥וּר פְּרִֽי־בִטְנְךָ֖ וּפְרִ֣י אַדְמָתֶ֑ךָ שְׁגַ֥ר אֲלָפֶ֖יךָ וְעַשְׁתְּרֹ֥ות צֹאנֶֽךָ׃
19 तू अन्दर आते ला'नती ठहरेगा, और बाहर जाते भी ला'नती ठहरेगा।
אָר֥וּר אַתָּ֖ה בְּבֹאֶ֑ךָ וְאָר֥וּר אַתָּ֖ה בְּצֵאתֶֽךָ׃
20 ख़ुदावन्द उन सब कामों में जिनको तू हाथ लगाए, ला'नत और इज़तिराब और फटकार को तुझ पर नाज़िल करेगा जब तक कि तू हलाक होकर जल्द बर्बाद न हो जाए, यह तेरी उन बद'आमालियों की वजह से होगा जिनको करने की वजह से तू मुझको छोड़ देगा।
יְשַׁלַּ֣ח יְהוָ֣ה ׀ בְּ֠ךָ אֶת־הַמְּאֵרָ֤ה אֶת־הַמְּהוּמָה֙ וְאֶת־הַמִּגְעֶ֔רֶת בְּכָל־מִשְׁלַ֥ח יָדְךָ֖ אֲשֶׁ֣ר תַּעֲשֶׂ֑ה עַ֣ד הִשָּֽׁמֶדְךָ֤ וְעַד־אֲבָדְךָ֙ מַהֵ֔ר מִפְּנֵ֛י רֹ֥עַ מֽ͏ַעֲלָלֶ֖יךָ אֲשֶׁ֥ר עֲזַבְתָּֽנִי׃
21 ख़ुदावन्द ऐसा करेगा कि वबा तुझ से लिपटी रहेगी, जब तक कि वह तुझको उस मुल्क से जिस पर क़ब्ज़ा करने को तू वहाँ जा रहा है फ़ना न कर दे।
יַדְבֵּ֧ק יְהוָ֛ה בְּךָ֖ אֶת־הַדָּ֑בֶר עַ֚ד כַּלֹּתֹ֣ו אֹֽתְךָ֔ מֵעַל֙ הֽ͏ָאֲדָמָ֔ה אֲשֶׁר־אַתָּ֥ה בָא־שָׁ֖מָּה לְרִשְׁתָּֽהּ׃
22 ख़ुदावन्द तुझको तप — ए — दिक़ और बुख़ार और सोज़िश और शदीद हरारत और तलवार और बाद — ए — समूम और गेरूई से मारेगा, और यह तेरे पीछे पड़े रहेंगे जब तक कि तू फ़ना न हो जाये।
יַכְּכָ֣ה יְ֠הוָה בַּשַּׁחֶ֨פֶת וּבַקַּדַּ֜חַת וּבַדַּלֶּ֗קֶת וּבַֽחַרְחֻר֙ וּבַחֶ֔רֶב וּבַשִּׁדָּפֹ֖ון וּבַיֵּרָקֹ֑ון וּרְדָפ֖וּךָ עַ֥ד אָבְדֶֽךָ׃
23 और आसमान जो तेरे सिर पर है पीतल का, और ज़मीन जो तेरे नीचे है लोहे की हो जाएगी।
וְהָי֥וּ שָׁמֶ֛יךָ אֲשֶׁ֥ר עַל־רֹאשְׁךָ֖ נְחֹ֑שֶׁת וְהָאָ֥רֶץ אֲשֶׁר־תַּחְתֶּ֖יךָ בַּרְזֶֽל׃
24 ख़ुदावन्द मेंह के बदले तेरी ज़मीन पर ख़ाक और धूल बरसाएगा; यह आसमान से तुझ पर पड़ती ही रहेगी, जब तक कि तू हलाक न हो जाये।
יִתֵּ֧ן יְהוָ֛ה אֶת־מְטַ֥ר אַרְצְךָ֖ אָבָ֣ק וְעָפָ֑ר מִן־הַשָּׁמַ֙יִם֙ יֵרֵ֣ד עָלֶ֔יךָ עַ֖ד הִשָּׁמְדָֽךְ׃
25 “ख़ुदावन्द तुझको तेरे दुश्मनों के आगे शिकस्त दिलाएगा; तू उनके मुक़ाबले के लिए तो एक ही रास्ते से जाएगा, और उनके सामने से सात — सात रास्तों से होकर भागेगा, और दुनिया की तमाम सल्तनतों में तू मारा — मारा फिरेगा।
יִתֶּנְךָ֨ יְהוָ֥ה ׀ נִגָּף֮ לִפְנֵ֣י אֹיְבֶיךָ֒ בְּדֶ֤רֶךְ אֶחָד֙ תֵּצֵ֣א אֵלָ֔יו וּבְשִׁבְעָ֥ה דְרָכִ֖ים תָּנ֣וּס לְפָנָ֑יו וְהָיִ֣יתָ לְזַעֲוָ֔ה לְכֹ֖ל מַמְלְכֹ֥ות הָאָֽרֶץ׃
26 और तेरी लाश हवा के परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होगी, और कोई उनको हंका कर भगाने को भी न होगा।
וְהָיְתָ֤ה נִבְלָֽתְךָ֙ לְמַאֲכָ֔ל לְכָל־עֹ֥וף הַשָּׁמַ֖יִם וּלְבֶהֱמַ֣ת הָאָ֑רֶץ וְאֵ֖ין מַחֲרִֽיד׃
27 ख़ुदावन्द तुझको मिस्र के फोड़ों, और बवासीर, और खुजली, और ख़ारिश में ऐसा मुब्तिला करेगा कि तू कभी अच्छा भी नहीं होने का।
יַכְּכָ֨ה יְהוָ֜ה בִּשְׁחִ֤ין מִצְרַ֙יִם֙ וּבָעֳפָלִים (וּבַטְּחֹרִ֔ים) וּבַגָּרָ֖ב וּבֶחָ֑רֶס אֲשֶׁ֥ר לֹא־תוּכַ֖ל לְהֵרָפֵֽא׃
28 ख़ुदावन्द तुझको जुनून और नाबीनाई और दिल की घबराहट में भी मुब्तिला कर देगा।
יַכְּכָ֣ה יְהוָ֔ה בְּשִׁגָּעֹ֖ון וּבְעִוָּרֹ֑ון וּבְתִמְהֹ֖ון לֵבָֽב׃
29 और जैसे अंधा अँधेरे में टटोलता है वैसे ही तू दोपहर दिन को टटोलता फिरेगा और तू अपने धन्धों में नाकाम रहेगा; और तुझ पर हमेशा जुल्म ही होगा, और तू लुटता ही रहेगा और कोई न होगा जो तुझको बचाए।
וְהָיִ֜יתָ מְמַשֵּׁ֣שׁ בַּֽצָּהֳרַ֗יִם כַּאֲשֶׁ֨ר יְמַשֵּׁ֤שׁ הָעִוֵּר֙ בָּאֲפֵלָ֔ה וְלֹ֥א תַצְלִ֖יחַ אֶת־דְּרָכֶ֑יךָ וְהָיִ֜יתָ אַ֣ךְ עָשׁ֧וּק וְגָז֛וּל כָּל־הַיָּמִ֖ים וְאֵ֥ין מֹושִֽׁיעַ׃
30 'औरत से मंगनी तो तू करेगा लेकिन दूसरा उससे मुबाश्रत करेगा, तू घर बनाएगा लेकिन उसमें बसने न पाएगा, तू ताकिस्तान लगाएगा लेकिन उसका फल इस्ते'माल न करेगा।
אִשָּׁ֣ה תְאָרֵ֗שׂ וְאִ֤ישׁ אַחֵר֙ יִשְׁגָּלֶנָּה (יִשְׁכָּבֶ֔נָּה) בַּ֥יִת תִּבְנֶ֖ה וְלֹא־תֵשֵׁ֣ב בֹּ֑ו כֶּ֥רֶם תִּטַּ֖ע וְלֹ֥א תְחַלְּלֶֽנּוּ׃
31 तेरा बैल तेरी आँखों के सामने ज़बह किया जाएगा लेकिन तू उसका गोश्त खाने न पाएगा, तेरा गधा तुझ से जबरन छीन लिया जाएगा और तुझको फिर न मिलेगा, तेरी भेड़ें तेरे दुश्मनों के हाथ लगेंगी और कोई न होगा जो तुझको बचाए।
שֹׁורְךָ֞ טָב֣וּחַ לְעֵינֶ֗יךָ וְלֹ֣א תֹאכַל֮ מִמֶּנּוּ֒ חֲמֹֽרְךָ֙ גָּז֣וּל מִלְּפָנֶ֔יךָ וְלֹ֥א יָשׁ֖וּב לָ֑ךְ צֹֽאנְךָ֙ נְתֻנֹ֣ות לְאֹיְבֶ֔יךָ וְאֵ֥ין לְךָ֖ מֹושִֽׁיעַ׃
32 तेरे बेटे और बेटियाँ दूसरी क़ौम को दी जाएँगी, और तेरी आँखें देखेंगी और सारे दिन उनके लिए तरसते — तरसते रह जाएँगी; और तेरा कुछ बस नहीं चलेगा।
בָּנֶ֨יךָ וּבְנֹתֶ֜יךָ נְתֻנִ֨ים לְעַ֤ם אַחֵר֙ וְעֵינֶ֣יךָ רֹאֹ֔ות וְכָלֹ֥ות אֲלֵיהֶ֖ם כָּל־הַיֹּ֑ום וְאֵ֥ין לְאֵ֖ל יָדֶֽךָ׃
33 तेरी ज़मीन की पैदावार और तेरी सारी कमाई को एक ऐसी क़ौम खाएगी जिससे तू वाक़िफ़ नहीं; और तू हमेशा मज़लूम और दबा ही रहेगा,
פְּרִ֤י אַדְמָֽתְךָ֙ וְכָל־יְגִ֣יעֲךָ֔ יֹאכַ֥ל עַ֖ם אֲשֶׁ֣ר לֹא־יָדָ֑עְתָּ וְהָיִ֗יתָ רַ֛ק עָשׁ֥וּק וְרָצ֖וּץ כָּל־הַיָּמִֽים׃
34 यहाँ तक कि इन बातों को अपनी आँखों से देख देखकर दीवाना हो जाएगा।
וְהָיִ֖יתָ מְשֻׁגָּ֑ע מִמַּרְאֵ֥ה עֵינֶ֖יךָ אֲשֶׁ֥ר תִּרְאֶֽה׃
35 ख़ुदावन्द तेरे घुटनों और टाँगों में ऐसे बुरे फोड़े पैदा करेगा, कि उनसे तू पाँव के तलवे से लेकर सिर की चाँद तक शिफ़ा न पा सकेगा।
יַכְּכָ֨ה יְהוָ֜ה בִּשְׁחִ֣ין רָ֗ע עַל־הַבִּרְכַּ֙יִם֙ וְעַל־הַשֹּׁקַ֔יִם אֲשֶׁ֥ר לֹא־תוּכַ֖ל לְהֵרָפֵ֑א מִכַּ֥ף רַגְלְךָ֖ וְעַ֥ד קָדְקֳדֶֽךָ׃
36 ख़ुदावन्द तुझको और तेरे बादशाह को, जिसे तू अपने ऊपर मुक़र्रर करेगा, एक ऐसी क़ौम के बीच ले जाएगा जिसे तू और तेरे बाप — दादा जानते भी नहीं; और वहाँ तू और मा'बूदों की जो महज़ लकड़ी और पत्थर है इबादत करेंगे।
יֹולֵ֨ךְ יְהוָ֜ה אֹֽתְךָ֗ וְאֶֽת־מַלְכְּךָ֙ אֲשֶׁ֣ר תָּקִ֣ים עָלֶ֔יךָ אֶל־גֹּ֕וי אֲשֶׁ֥ר לֹא־יָדַ֖עְתָּ אַתָּ֣ה וַאֲבֹתֶ֑יךָ וְעָבַ֥דְתָּ שָּׁ֛ם אֱלֹהִ֥ים אֲחֵרִ֖ים עֵ֥ץ וָאָֽבֶן׃
37 और उन सब क़ौमों में, जहाँ — जहाँ ख़ुदावन्द तुझको पहुँचाएगा, तू बाइस — ए — हैरत और ज़र्ब — उल — मसल और अंगुश्त नुमा बनेगा।
וְהָיִ֣יתָ לְשַׁמָּ֔ה לְמָשָׁ֖ל וְלִשְׁנִינָ֑ה בְּכֹל֙ הָֽעַמִּ֔ים אֲשֶׁר־יְנַהֶגְךָ֥ יְהוָ֖ה שָֽׁמָּה׃
38 तू खेत में बहुत सा बीज ले जाएगा लोकन थोड़ा सा जमा' करेगा, क्यूँकि टिड्डी उसे चाट लेंगी।
זֶ֥רַע רַ֖ב תֹּוצִ֣יא הַשָּׂדֶ֑ה וּמְעַ֣ט תֶּאֱסֹ֔ף כִּ֥י יַחְסְלֶ֖נּוּ הָאַרְבֶּֽה׃
39 तू ताकिस्तान लगाएगा और उन पर मेहनत करेगा, लेकिन न तो मय पीने और न अंगूर जमा' करने पायेगा; क्यूँकि उनको कीड़े खा जाएँगे।
כְּרָמִ֥ים תִּטַּ֖ע וְעָבָ֑דְתָּ וְיַ֤יִן לֹֽא־תִשְׁתֶּה֙ וְלֹ֣א תֶאֱגֹ֔ר כִּ֥י תֹאכְלֶ֖נּוּ הַתֹּלָֽעַת׃
40 तेरी सब हदों में ज़ैतून के दरख़्त लगे होंगे, लेकिन तू उनका तेल नहीं लगाने पाएगा; क्यूँकि तेरे ज़ैतून के दरख़्तों का फल झड़ जाया करेगा।
זֵיתִ֛ים יִהְי֥וּ לְךָ֖ בְּכָל־גְּבוּלֶ֑ךָ וְשֶׁ֙מֶן֙ לֹ֣א תָס֔וּךְ כִּ֥י יִשַּׁ֖ל זֵיתֶֽךָ׃
41 तेरे बेटे और बेटियाँ पैदा होंगी लेकिन वह सब तेरे न रहेंगे, क्यूँकि वह ग़ुलाम हो कर चले जाएँगे।
בָּנִ֥ים וּבָנֹ֖ות תֹּולִ֑יד וְלֹא־יִהְי֣וּ לָ֔ךְ כִּ֥י יֵלְכ֖וּ בַּשֶּֽׁבִי׃
42 तेरे सब दरख़्तों और तेरी सब ज़मीन की पैदावार पर टिड्डियाँ क़ब्ज़ा कर लेंगी।
כָּל־עֵצְךָ֖ וּפְרִ֣י אַדְמָתֶ֑ךָ יְיָרֵ֖שׁ הַצְּלָצַֽל׃
43 परदेसी जो तेरे बीच होगा वह तुझसे बढ़ता और सरफ़राज़ होता जाएगा, लेकिन तू पस्त ही पस्त होता जाएगा।
הַגֵּר֙ אֲשֶׁ֣ר בְּקִרְבְּךָ֔ יַעֲלֶ֥ה עָלֶ֖יךָ מַ֣עְלָה מָּ֑עְלָה וְאַתָּ֥ה תֵרֵ֖ד מַ֥טָּה מָּֽטָּה׃
44 वह तुझको क़र्ज़ देगा, लेकिन तू उसे क़र्ज़ न दे सकेगा; वह सिर होगा और तू दुम ठहरेगा।
ה֣וּא יַלְוְךָ֔ וְאַתָּ֖ה לֹ֣א תַלְוֶ֑נּוּ ה֚וּא יִהְיֶ֣ה לְרֹ֔אשׁ וְאַתָּ֖ה תִּֽהְיֶ֥ה לְזָנָֽב׃
45 और चूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के उन हुक्मों और आईन पर जिनको उसने तुझको दिया है, 'अमल करने के लिए उसकी बात नहीं सुनेंगे; इसलिए यह सब ला'नतें तुझ पर आएँगी और तेरे पीछे पड़ी रहेंगी और तुझको लगेंगी, जब तक तेरा नास न हो जाए।
וּבָ֨אוּ עָלֶ֜יךָ כָּל־הַקְּלָלֹ֣ות הָאֵ֗לֶּה וּרְדָפ֙וּךָ֙ וְהִשִּׂיג֔וּךָ עַ֖ד הִשָּֽׁמְדָ֑ךְ כִּי־לֹ֣א שָׁמַ֗עְתָּ בְּקֹול֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ לִשְׁמֹ֛ר מִצְוֹתָ֥יו וְחֻקֹּתָ֖יו אֲשֶׁ֥ר צִוָּֽךְ׃
46 और वह तुझ पर और तेरी औलाद पर हमेशा निशान और अचम्भे के तौर पर रहेंगी।
וְהָי֣וּ בְךָ֔ לְאֹ֖ות וּלְמֹופֵ֑ת וּֽבְזַרְעֲךָ֖ עַד־עֹולָֽם׃
47 और चूँकि तू बावजूद सब चीज़ों की फ़िरावानी के फ़रहत और ख़ुशदिली से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की इबादत नहीं करेगा।
תַּ֗חַת אֲשֶׁ֤ר לֹא־עָבַ֙דְתָּ֙ אֶת־יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ בְּשִׂמְחָ֖ה וּבְט֣וּב לֵבָ֑ב מֵרֹ֖ב כֹּֽל׃
48 इसलिए भूका और प्यासा और नंगा और सब चीज़ों का मुहताज होकर तू अपने दुश्मनों की ख़िदमत करेगा जिनको ख़ुदावन्द तेरे बरख़िलाफ़ भेजेगा; और ग़नीम तेरी गरदन पर लोहे का जुआ रख्खे रहेगा, जब तक वह तेरा नास न कर दे।
וְעָבַדְתָּ֣ אֶת־אֹיְבֶ֗יךָ אֲשֶׁ֨ר יְשַׁלְּחֶ֤נּוּ יְהוָה֙ בָּ֔ךְ בְּרָעָ֧ב וּבְצָמָ֛א וּבְעֵירֹ֖ם וּבְחֹ֣סֶר כֹּ֑ל וְנָתַ֞ן עֹ֤ל בַּרְזֶל֙ עַל־צַוָּארֶ֔ךָ עַ֥ד הִשְׁמִידֹ֖ו אֹתָֽךְ׃
49 ख़ुदावन्द दूर से बल्कि ज़मीन के किनारे से एक क़ौम को तुझ पर चढ़ा लाएगा जैसे 'उक़ाब टूट कर आता है, उस क़ौम की ज़बान को तू नहीं समझेगा;
יִשָּׂ֣א יְהוָה֩ עָלֶ֨יךָ גֹּ֤וי מֵרָחֹוק֙ מִקְצֵ֣ה הָאָ֔רֶץ כַּאֲשֶׁ֥ר יִדְאֶ֖ה הַנָּ֑שֶׁר גֹּ֕וי אֲשֶׁ֥ר לֹא־תִשְׁמַ֖ע לְשֹׁנֹֽו׃
50 उस क़ौम के लोग तुर्शरू होंगे, जो न बुड्ढों का लिहाज़ करेंगे न जवानों पर तरस खाएँगे।
גֹּ֖וי עַ֣ז פָּנִ֑ים אֲשֶׁ֨ר לֹא־יִשָּׂ֤א פָנִים֙ לְזָקֵ֔ן וְנַ֖עַר לֹ֥א יָחֹֽן׃
51 और वह तेरे चौपायों के बच्चों और तेरी ज़मीन की पैदावार को खाते रहेंगे, जब तक तेरा नास न हो जाए और वह तेरे लिए अनाज, या मय, या तेल, या गाय — बैल की बढ़ती, या तेरी भेड़ — बकरियों के बच्चे कुछ नहीं छोड़ेंगे, जब तक वह तुझको फ़ना न कर दें।
וְ֠אָכַל פְּרִ֨י בְהֶמְתְּךָ֥ וּפְרִֽי־אַדְמָתְךָ֮ עַ֣ד הִשָּֽׁמְדָךְ֒ אֲשֶׁ֨ר לֹֽא־יַשְׁאִ֜יר לְךָ֗ דָּגָן֙ תִּירֹ֣ושׁ וְיִצְהָ֔ר שְׁגַ֥ר אֲלָפֶ֖יךָ וְעַשְׁתְּרֹ֣ת צֹאנֶ֑ךָ עַ֥ד הַאֲבִידֹ֖ו אֹתָֽךְ׃
52 और वह तेरे तमाम मुल्क में तेरा घिराव तेरी ही बस्तियों में किए रहेंगे; जब तक तेरी ऊँची — ऊँची फ़सीलें जिन पर तेरा भरोसा होगा, गिर न जाएँ। तेरा घिराव वह तेरे ही उस मुल्क की सब बस्तियों में करेंगे, जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है।
וְהֵצַ֨ר לְךָ֜ בְּכָל־שְׁעָרֶ֗יךָ עַ֣ד רֶ֤דֶת חֹמֹתֶ֙יךָ֙ הַגְּבֹהֹ֣ות וְהַבְּצֻרֹ֔ות אֲשֶׁ֥ר אַתָּ֛ה בֹּטֵ֥חַ בָּהֵ֖ן בְּכָל־אַרְצֶ֑ךָ וְהֵצַ֤ר לְךָ֙ בְּכָל־שְׁעָרֶ֔יךָ בְּכָ֨ל־אַרְצְךָ֔ אֲשֶׁ֥ר נָתַ֛ן יְהוָ֥ה אֱלֹהֶ֖יךָ לָֽךְ׃
53 तब उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में तू अपने दुश्मनों से तंग आकर अपने ही जिस्म के पहले फल को, या'नी अपने ही बेटों और बेटियों का गोश्त जिनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको 'अता किया होगा खायेगा।
וְאָכַלְתָּ֣ פְרִֽי־בִטְנְךָ֗ בְּשַׂ֤ר בָּנֶ֙יךָ֙ וּבְנֹתֶ֔יךָ אֲשֶׁ֥ר נָֽתַן־לְךָ֖ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֑יךָ בְּמָצֹור֙ וּבְמָצֹ֔וק אֲשֶׁר־יָצִ֥יק לְךָ֖ אֹיְבֶֽךָ׃
54 वह शख़्स जो तुम में नाज़ुक मिज़ाज और नाज़ुक बदन होगा, उसकी भी अपने भाई और अपनी हमआग़ोश बीवी और अपने बाक़ी मांदा बच्चों की तरफ़ बुरी नज़र होगी;
הָאִישׁ֙ הָרַ֣ךְ בְּךָ֔ וְהֶעָנֹ֖ג מְאֹ֑ד תֵּרַ֨ע עֵינֹ֤ו בְאָחִיו֙ וּבְאֵ֣שֶׁת חֵיקֹ֔ו וּבְיֶ֥תֶר בָּנָ֖יו אֲשֶׁ֥ר יֹותִֽיר׃
55 यहाँ तक कि वह इनमें से किसी को भी अपने ही बच्चों के गोश्त में से, जिनको वह ख़ुद खाएगा कुछ नहीं देगा; क्यूँकि उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में जब तेरे दुश्मन तुझको तेरी ही सब बस्तियों में तंग कर मारेंगे, तो उसके पास और कुछ बाक़ी न रहेगा।
מִתֵּ֣ת ׀ לְאַחַ֣ד מֵהֶ֗ם מִבְּשַׂ֤ר בָּנָיו֙ אֲשֶׁ֣ר יֹאכֵ֔ל מִבְּלִ֥י הִשְׁאִֽיר־לֹ֖ו כֹּ֑ל בְּמָצֹור֙ וּבְמָצֹ֔וק אֲשֶׁ֨ר יָצִ֥יק לְךָ֛ אֹיִבְךָ֖ בְּכָל־שְׁעָרֶֽיךָ׃
56 वह 'औरत भी जो तुम्हारे बीच ऐसी नाज़ुक मिज़ाज और नाज़ुक बदन होगी कि नर्मी — ओ — नज़ाकत की वजह से अपने पाँव का तलवा भी ज़मीन से लगाने की जुर'अत न करती हो, उसकी भी अपने पहलू के शौहर और अपने ही बेटे और बेटी,
הָרַכָּ֨ה בְךָ֜ וְהָעֲנֻגָּ֗ה אֲשֶׁ֨ר לֹא־נִסְּתָ֤ה כַף־רַגְלָהּ֙ הַצֵּ֣ג עַל־הָאָ֔רֶץ מֵהִתְעַנֵּ֖ג וּמֵרֹ֑ךְ תֵּרַ֤ע עֵינָהּ֙ בְּאִ֣ישׁ חֵיקָ֔הּ וּבִבְנָ֖הּ וּבְבִתָּֽהּ׃
57 और अपने ही नौज़ाद बच्चे की तरफ़ जो उसकी रानों के बीच से निकला हो, बल्कि अपने सब लड़के बालों की तरफ़ जिनको वह जनेगी बुरी नज़र होगी; क्यूँकि वह तमाम चीज़ों की क़िल्लत की वजह से उन्हीं को छुप — छुप कर खाएगी, जब उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में तेरे दुश्मन तेरी ही बस्तियों में तुझको तंग कर मारेंगे।
וּֽבְשִׁלְיָתָ֞הּ הַיֹּוצֵ֣ת ׀ מִבֵּ֣ין רַגְלֶ֗יהָ וּבְבָנֶ֙יהָ֙ אֲשֶׁ֣ר תֵּלֵ֔ד כִּֽי־תֹאכְלֵ֥ם בְּחֹֽסֶר־כֹּ֖ל בַּסָּ֑תֶר בְּמָצֹור֙ וּבְמָצֹ֔וק אֲשֶׁ֨ר יָצִ֥יק לְךָ֛ אֹיִבְךָ֖ בִּשְׁעָרֶֽיךָ׃
58 अगर तू उस शरी'अत की उन सब बातों पर जो इस किताब में लिखी हैं, एहतियात रख कर इस तरह 'अमल न करे कि तुमको ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के जलाली और मुहीब नाम का ख़ौफ़ हो;
אִם־לֹ֨א תִשְׁמֹ֜ר לַעֲשֹׂ֗ות אֶת־כָּל־דִּבְרֵי֙ הַתֹּורָ֣ה הַזֹּ֔את הַכְּתוּבִ֖ים בַּסֵּ֣פֶר הַזֶּ֑ה לְ֠יִרְאָה אֶת־הַשֵּׁ֞ם הַנִּכְבָּ֤ד וְהַנֹּורָא֙ הַזֶּ֔ה אֵ֖ת יְהוָ֥ה אֱלֹהֶֽיךָ׃
59 तो ख़ुदावन्द तुम पर 'अजीब आफ़तें नाज़िल करेगा, और तुम्हारी औलाद की आफ़तों को बढ़ा कर बड़ी और देरपा आफ़तें और सख़्त और देरपा बीमारियाँ कर देगा।
וְהִפְלָ֤א יְהוָה֙ אֶת־מַכֹּ֣תְךָ֔ וְאֵ֖ת מַכֹּ֣ות זַרְעֶ֑ךָ מַכֹּ֤ות גְּדֹלֹות֙ וְנֶ֣אֱמָנֹ֔ות וָחֳלָיִ֥ם רָעִ֖ים וְנֶאֱמָנִֽים׃
60 और मिस्र के सब रोग जिनसे तू डरता था तुझको लगाएगा और वह तुझको लगे रहेंगे।
וְהֵשִׁ֣יב בְּךָ֗ אֵ֚ת כָּל־מַדְוֵ֣ה מִצְרַ֔יִם אֲשֶׁ֥ר יָגֹ֖רְתָּ מִפְּנֵיהֶ֑ם וְדָבְק֖וּ בָּֽךְ׃
61 और उन सब बीमारियों और आफ़तों को भी जो इस शरी'अत की किताब में मज़कूर नहीं हैं, ख़ुदावन्द तुझको लगाएगा जब तक तेरा नास न हो जाए।
גַּ֤ם כָּל־חֳלִי֙ וְכָל־מַכָּ֔ה אֲשֶׁר֙ לֹ֣א כָת֔וּב בְּסֵ֖פֶר הַתֹּורָ֣ה הַזֹּ֑את יַעְלֵ֤ם יְהוָה֙ עָלֶ֔יךָ עַ֖ד הִשָּׁמְדָֽךְ׃
62 और चूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात नहीं सुनेगा, इसलिए कहाँ तो तुम कसरत में आसमान के तारों की तरह हो, और कहाँ शुमार में थोड़े ही से रह जाओगे।
וְנִשְׁאַרְתֶּם֙ בִּמְתֵ֣י מְעָ֔ט תַּ֚חַת אֲשֶׁ֣ר הֱיִיתֶ֔ם כְּכֹוכְבֵ֥י הַשָּׁמַ֖יִם לָרֹ֑ב כִּי־לֹ֣א שָׁמַ֔עְתָּ בְּקֹ֖ול יְהוָ֥ה אֱלֹהֶֽיךָ׃
63 तब यह होगा कि जैसे तुम्हारे साथ भलाई करने और तुमको बढ़ाने से ख़ुदावन्द ख़ुशनूद हुआ, ऐसे ही तुमको फ़ना कराने और हलाक कर डालने से ख़ुदावन्द ख़ुशनूद होगा; और तुम उस मुल्क से उखाड़ दिए जाओगे, जहाँ तू उस पर क़ब्ज़ा करने को जा रहा है।
וְ֠הָיָה כַּאֲשֶׁר־שָׂ֨שׂ יְהוָ֜ה עֲלֵיכֶ֗ם לְהֵיטִ֣יב אֶתְכֶם֮ וּלְהַרְבֹּ֣ות אֶתְכֶם֒ כֵּ֣ן יָשִׂ֤ישׂ יְהוָה֙ עֲלֵיכֶ֔ם לְהַאֲבִ֥יד אֶתְכֶ֖ם וּלְהַשְׁמִ֣יד אֶתְכֶ֑ם וְנִסַּחְתֶּם֙ מֵעַ֣ל הֽ͏ָאֲדָמָ֔ה אֲשֶׁר־אַתָּ֥ה בָא־שָׁ֖מָּה לְרִשְׁתָּֽהּ׃
64 और ख़ुदावन्द तुझको ज़मीन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक तमाम क़ौमों में तितर — बितर करेगा, वहाँ तू लकड़ी और पत्थर के और मा'बूदों को जिनको तू या तेरे बाप — दादा जानते भी नहीं इबादत करेगा।
וֶהֱפִֽיצְךָ֤ יְהוָה֙ בְּכָל־הָ֣עַמִּ֔ים מִקְצֵ֥ה הָאָ֖רֶץ וְעַד־קְצֵ֣ה הָאָ֑רֶץ וְעָבַ֨דְתָּ שָּׁ֜ם אֱלֹהִ֣ים אֲחֵרִ֗ים אֲשֶׁ֧ר לֹא־יָדַ֛עְתָּ אַתָּ֥ה וַאֲבֹתֶ֖יךָ עֵ֥ץ וָאָֽבֶן׃
65 उन क़ौमों के बीच तुझको चैन नसीब न होगा और न तेरे पाँव के तलवे को आराम मिलेगा, बल्कि ख़ुदावन्द तुझको वहाँ दिल — ए — लरज़ाँ और आँखों को धुंधलाहट और जी को कुढ़न देगा।
וּבַגֹּויִ֤ם הָהֵם֙ לֹ֣א תַרְגִּ֔יעַ וְלֹא־יִהְיֶ֥ה מָנֹ֖וחַ לְכַף־רַגְלֶ֑ךָ וְנָתַן֩ יְהוָ֨ה לְךָ֥ שָׁם֙ לֵ֣ב רַגָּ֔ז וְכִלְיֹ֥ון עֵינַ֖יִם וְדֽ͏ַאֲבֹ֥ון נָֽפֶשׁ׃
66 और तेरी जान शक में अटकी रहेगी और तू रात — दिन डरता रहेगा, और तुम्हारी ज़िन्दगी का कोई ठिकाना न होगा।
וְהָי֣וּ חַיֶּ֔יךָ תְּלֻאִ֥ים לְךָ֖ מִנֶּ֑גֶד וּפָֽחַדְתָּ֙ לַ֣יְלָה וְיֹומָ֔ם וְלֹ֥א תַאֲמִ֖ין בְּחַיֶּֽיךָ׃
67 और तू अपने दिली ख़ौफ़ के और उन नज़ारों की वजह से जिनको तू अपनी आँखों से देखेगा, सुबह को कहेगा कि ऐ काश कि शाम होती और शाम को कहेगा ऐ काश कि सुबह होती।
בַּבֹּ֤קֶר תֹּאמַר֙ מִֽי־יִתֵּ֣ן עֶ֔רֶב וּבָעֶ֥רֶב תֹּאמַ֖ר מִֽי־יִתֵּ֣ן בֹּ֑קֶר מִפַּ֤חַד לְבָֽבְךָ֙ אֲשֶׁ֣ר תִּפְחָ֔ד וּמִמַּרְאֵ֥ה עֵינֶ֖יךָ אֲשֶׁ֥ר תִּרְאֶֽה׃
68 और ख़ुदावन्द तुझको किश्तियों में चढ़ा कर उस रास्ते से मिस्र में लौटा ले जाएगा, जिसके बारे में मैंने तुझसे कहा कि तू उसे फिर कभी न देखना; और वहाँ तुम अपने दुश्मनों के ग़ुलाम और लौंडी होने के लिए अपने को बेचोगे लेकिन कोई ख़रीदार न होगा।”
וֶֽהֱשִֽׁיבְךָ֨ יְהוָ֥ה ׀ מִצְרַיִם֮ בָּאֳנִיֹּות֒ בַּדֶּ֙רֶךְ֙ אֲשֶׁ֣ר אָמַ֣רְתִּֽי לְךָ֔ לֹא־תֹסִ֥יף עֹ֖וד לִרְאֹתָ֑הּ וְהִתְמַכַּרְתֶּ֨ם שָׁ֧ם לְאֹיְבֶ֛יךָ לַעֲבָדִ֥ים וְלִשְׁפָחֹ֖ות וְאֵ֥ין קֹנֶֽה׃ ס

< इस्त 28 >