< תְהִלִּים 10 >

לָמָ֣ה יְ֭הוָה תַּעֲמֹ֣ד בְּרָח֑וֹק תַּ֝עְלִ֗ים לְעִתּ֥וֹת בַּצָּרָֽה׃ 1
ऐ ख़ुदावन्द तू क्यूँ दूर खड़ा रहता है? मुसीबत के वक़्त तू क्यूँ छिप जाता है?
בְּגַאֲוַ֣ת רָ֭שָׁע יִדְלַ֣ק עָנִ֑י יִתָּפְשׂ֓וּ ׀ בִּמְזִמּ֖וֹת ז֣וּ חָשָֽׁבוּ׃ 2
शरीर के गु़रूर की वजह से ग़रीब का तेज़ी से पीछा किया जाता है; जो मन्सूबे उन्होंने बाँधे हैं, वह उन ही में गिरफ़्तार हो जाएँ।
כִּֽי־הִלֵּ֣ל רָ֭שָׁע עַל־תַּאֲוַ֣ת נַפְשׁ֑וֹ וּבֹצֵ֥עַ בֵּ֝רֵ֗ךְ נִ֘אֵ֥ץ ׀ יְהוָֽה׃ 3
क्यूँकि शरीर अपनी जिस्मानी ख़्वाहिश पर फ़ख़्र करता है, और लालची ख़ुदावन्द को छोड़ देता बल्कि उसकी नाक़द्री करता है।
רָשָׁ֗ע כְּגֹ֣בַהּ אַ֭פּוֹ בַּל־יִדְרֹ֑שׁ אֵ֥ין אֱ֝לֹהִ֗ים כָּל־מְזִמּוֹתָֽיו׃ 4
शरीर अपने तकब्बुर में कहता है कि वह पूछताछ नहीं करेगा; उसका ख़याल सरासर यही है कि कोई ख़ुदा नहीं।
יָ֘חִ֤ילוּ דרכו ׀ בְּכָל־עֵ֗ת מָר֣וֹם מִ֭שְׁפָּטֶיךָ מִנֶּגְדּ֑וֹ כָּל־צ֝וֹרְרָ֗יו יָפִ֥יחַ בָּהֶֽם׃ 5
उसकी राहें हमेशा बराबर हैं, तेरे अहकाम उसकी नज़र से दूर — ओ — बुलन्द हैं; वह अपने सब मुख़ालिफ़ों पर फूंकारता है।
אָמַ֣ר בְּ֭לִבּוֹ בַּל־אֶמּ֑וֹט לְדֹ֥ר וָ֝דֹ֗ר אֲשֶׁ֣ר לֹֽא־בְרָֽע׃ 6
वह अपने दिल में कहता है, “मैं जुम्बिश नहीं खाने का; नसल दर नसल मुझ पर कभी मुसीबत न आएगी।”
אָלָ֤ה פִּ֣יהוּ מָ֭לֵא וּמִרְמ֣וֹת וָתֹ֑ךְ תַּ֥חַת לְ֝שׁוֹנ֗וֹ עָמָ֥ל וָאָֽוֶן׃ 7
उसका मुँह ला'नत — ओ — दग़ा और ज़ुल्म से भरा है; शरारत और बदी उसकी ज़बान पर हैं।
יֵשֵׁ֤ב ׀ בְּמַאְרַ֬ב חֲצֵרִ֗ים בַּֽ֭מִּסְתָּרִים יַהֲרֹ֣ג נָקִ֑י עֵ֝ינָ֗יו לְֽחֵלְכָ֥ה יִצְפֹּֽנוּ׃ 8
वह देहात की घातों में बैठता है, वह पोशीदा मक़ामों में बेगुनाह को क़त्ल करता है; उसकी आँखें बेकस की घात में लगी रहती हैं।
יֶאֱרֹ֬ב בַּמִּסְתָּ֨ר ׀ כְּאַרְיֵ֬ה בְסֻכֹּ֗ה יֶ֭אֱרֹב לַחֲט֣וֹף עָנִ֑י יַחְטֹ֥ף עָ֝נִ֗י בְּמָשְׁכ֥וֹ בְרִשְׁתּֽוֹ׃ 9
वह पोशीदा मक़ाम में शेर — ए — बबर की तरह दुबक कर बैठता है; वह ग़रीब को पकड़ने की घात लगाए रहता है; वह ग़रीब को अपने जाल में फंसा कर पकड़ लेता है।
ודכה יָשֹׁ֑חַ וְנָפַ֥ל בַּ֝עֲצוּמָ֗יו חלכאים ׃ 10
वह दुबकता है, वह झुक जाता है; और बेकस उसके पहलवानों के हाथ से मारे जाते हैं।
אָמַ֣ר בְּ֭לִבּוֹ שָׁ֣כַֽח אֵ֑ל הִסְתִּ֥יר פָּ֝נָ֗יו בַּל־רָאָ֥ה לָנֶֽצַח׃ 11
वह अपने दिल में कहता है, “ख़ुदा भूल गया है, वह अपना मुँह छिपाता है; वह हरगिज़ नहीं देखेगा।”
קוּמָ֤ה יְהוָ֗ה אֵ֭ל נְשָׂ֣א יָדֶ֑ךָ אַל־תִּשְׁכַּ֥ח עניים׃ 12
उठ ऐ ख़ुदावन्द! ऐ ख़ुदा अपना हाथ बुलंद कर! ग़रीबों को न भूल।
עַל־מֶ֤ה ׀ נִאֵ֖ץ רָשָׁ֥ע ׀ אֱלֹהִ֑ים אָמַ֥ר בְּ֝לִבּ֗וֹ לֹ֣א תִּדְרֹֽשׁ׃ 13
शरीर किस लिए ख़ुदा की नाक़द्री करता है और अपने दिल में कहता है कि तू पूछताछ ना करेगा?
רָאִ֡תָה כִּֽי־אַתָּ֤ה ׀ עָ֘מָ֤ל וָכַ֨עַס ׀ תַּבִּיט֮ לָתֵ֪ת בְּיָ֫דֶ֥ךָ עָ֭לֶיךָ יַעֲזֹ֣ב חֵלֶ֑כָה יָ֝ת֗וֹם אַתָּ֤ה ׀ הָיִ֬יתָ עוֹזֵֽר׃ 14
तूने देख लिया है क्यूँकि तू शरारत और बुग्ज़ देखता है ताकि अपने हाथ से बदला दे। बेकस अपने आप को तेरे सिपुर्द करता है तू ही यतीम का मददगार रहा है।
שְׁ֭בֹר זְר֣וֹעַ רָשָׁ֑ע וָ֝רָ֗ע תִּֽדְרוֹשׁ־רִשְׁע֥וֹ בַל־תִּמְצָֽא׃ 15
शरीर का बाज़ू तोड़ दे। और बदकार की शरारत को जब तक बर्बाद न हो ढूँढ़ — ढूँढ़ कर निकाल।
יְהוָ֣ה מֶ֭לֶךְ עוֹלָ֣ם וָעֶ֑ד אָבְד֥וּ ג֝וֹיִ֗ם מֵֽאַרְצֽוֹ׃ 16
ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा बादशाह है। क़ौमें उसके मुल्क में से हलाक हो गयीं।
תַּאֲוַ֬ת עֲנָוִ֣ים שָׁמַ֣עְתָּ יְהוָ֑ה תָּכִ֥ין לִ֝בָּ֗ם תַּקְשִׁ֥יב אָזְנֶֽךָ׃ 17
ऐ ख़ुदावन्द तूने हलीमों का मुद्दा'सुन लिया है तू उनके दिल को तैयार करेगा — तू कान लगा कर सुनेगा
לִשְׁפֹּ֥ט יָת֗וֹם וָ֫דָ֥ךְ בַּל־יוֹסִ֥יף ע֑וֹד לַעֲרֹ֥ץ אֱ֝נ֗וֹשׁ מִן־הָאָֽרֶץ׃ 18
कि यतीम और मज़लूम का इन्साफ़ करे ताकि इंसान जो ख़ाक से है फिर ना डराए।

< תְהִלִּים 10 >