< زَكَريَّا 7 >

وَكَانَ فِي ٱلسَّنَةِ ٱلرَّابِعَةِ لِدَارِيُوسَ ٱلْمَلِكِ أَنَّ كَلَامَ ٱلرَّبِّ صَارَ إِلَى زَكَرِيَّا فِي ٱلرَّابِعِ مِنَ ٱلشَّهْرِ ٱلتَّاسِعِ فِي كِسْلُو. ١ 1
दारा बादशाह की सल्तनत के चौथे बरस के नवें महीने, या'नी किसलेव महीने की चौथी तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम ज़करियाह पर नाज़िल हुआ।
لَمَّا أَرْسَلَ أَهْلُ بَيْتِ إِيلَ شَرَاصِرَ وَرَجَمَ مَلِكَ وَرِجَالَهُمْ لِيُصَلُّوا قُدَّامَ ٱلرَّبِّ، ٢ 2
और बैतएल के बाशिन्दों ने शराज़र और रजममलिक और उसके लोगों को भेजा कि ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करें,
وَلِيُكَلِّمُوا ٱلْكَهَنَةَ ٱلَّذِينَ فِي بَيْتِ رَبِّ ٱلْجُنُودِ وَٱلْأَنْبِيَاءَ قَائِلِينَ: «أَأَبْكِي فِي ٱلشَّهْرِ ٱلْخَامِسِ مُنْفَصِلًا، كَمَا فَعَلْتُ كَمْ مِنَ ٱلسِّنِينَ هَذِهِ؟». ٣ 3
और रब्ब — उल — अफ़वाज के घर के काहिनों और नबियों से पूछे, कि “क्या मैं पाँचवें महीने में गोशानशीन होकर मातम करूँ, जैसा कि मैंने सालहाँ साल से किया है?”
ثُمَّ صَارَ إِلَيَّ كَلَامُ رَبِّ ٱلْجُنُودِ قَائِلًا: ٤ 4
तब रब्ब — उल — अफ़वाज का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
«قُلْ لِجَمِيعِ شَعْبِ ٱلْأَرْضِ وَلِلْكَهَنَةِ قَائِلًا: لَمَّا صُمْتُمْ وَنُحْتُمْ فِي ٱلشَّهْرِ ٱلْخَامِسِ وَٱلشَّهْرِ ٱلسَّابِعِ، وَذَلِكَ هَذِهِ ٱلسَّبْعِينَ سَنَةً، فَهَلْ صُمْتُمْ صَوْمًا لِي أَنَا؟ ٥ 5
कि मम्लुकत के सब लोगों और काहिनों से कह कि जब तुम ने पाँचवें और सातवें महीने में, इन सत्तर बरस तक रोज़ा रख्खा और मातम किया, तो क्या था कभी मेरे लिए ख़ास मेरे ही लिए रोज़ा रख्खा था?
وَلَمَّا أَكَلْتُمْ وَلَمَّا شَرِبْتُمْ، أَفَمَا كُنْتُمْ أَنْتُمُ ٱلْآكِلِينَ وَأَنْتُمُ ٱلشَّارِبِينَ؟ ٦ 6
और जब तुम खाते — पीते थे तो अपने ही लिए न खाते — पीते थे?
أَلَيْسَ هَذَا هُوَ ٱلْكَلَامُ ٱلَّذِي نَادَى بِهِ ٱلرَّبُّ عَنْ يَدِ ٱلْأَنْبِيَاءِ ٱلْأَوَّلِينَ، حِينَ كَانَتْ أُورُشَلِيمُ مَعْمُورَةً وَمُسْتَرِيحَةً، وَمُدُنُهَا حَوْلَهَا، وَٱلْجَنُوبُ وَٱلسَّهْلُ مَعْمُورَيْنِ؟». ٧ 7
“क्या यह वही कलाम नहीं जो ख़ुदावन्द ने गुज़िश्ता नबियों की मा'रिफ़त फ़रमाया, जब येरूशलेम आबाद और आसूदा हाल था, और उसके 'इलाक़े के शहर और दक्खिन की सर ज़मीन और सैदान आबाद थे?”
وَكَانَ كَلَامُ ٱلرَّبِّ إِلَى زَكَرِيَّا قَائِلًا: ٨ 8
फिर ख़ुदावन्द का कलाम ज़करियाह पर नाज़िल हुआ:
«هَكَذَا قَالَ رَبُّ ٱلْجُنُودِ قَائِلًا: ٱقْضُوا قَضَاءَ ٱلْحَقِّ، وَٱعْمَلُوا إِحْسَانًا وَرَحْمَةً، كُلُّ إِنْسَانٍ مَعَ أَخِيهِ. ٩ 9
कि “रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाया था, कि रास्ती से 'अदालत करो, और हर शख़्स अपने भाई पर करम और रहम किया करे,
وَلَا تَظْلِمُوا ٱلْأَرْمَلَةَ وَلَا ٱلْيَتِيمَ وَلَا ٱلْغَرِيبَ وَلَا ٱلْفَقِيرَ، وَلَا يُفَكِّرْ أَحَدٌ مِنْكُمْ شَرًّا عَلَى أَخِيهِ فِي قَلْبِكُمْ. ١٠ 10
और बेवा और यतीम और मुसाफ़िर और मिस्कीन पर ज़ुल्म न करो, और तुम में से कोई अपने भाई के ख़िलाफ़ दिल में बुरा मन्सूबा न बाँधे।”
فَأَبَوْا أَنْ يُصْغُوا وَأَعْطَوْا كَتِفًا مُعَانِدَةً، وَثَقَّلُوا آذَانَهُمْ عَنِ ٱلسَّمْعِ. ١١ 11
लेकिन वह सुनने वाले न हुए, बल्कि उन्होंने गर्दनकशी की तरफ़ अपने कानों को बंद किया ताकि न सुनें।
بَلْ جَعَلُوا قَلْبَهُمْ مَاسًا لِئَلَّا يَسْمَعُوا ٱلشَّرِيعَةَ وَٱلْكَلَامَ ٱلَّذِي أَرْسَلَهُ رَبُّ ٱلْجُنُودِ بِرُوحِهِ عَنْ يَدِ ٱلْأَنْبِيَاءِ ٱلْأَوَّلِينَ. فَجَاءَ غَضَبٌ عَظِيمٌ مِنْ عِنْدِ رَبِّ ٱلْجُنُودِ. ١٢ 12
और उन्होंने अपने दिलों को अल्मास की तरह सख़्त किया, ताकि शरी'अत और उस कलाम को न सुनें जो रब्बुल — अफ़वाज ने गुज़िश्ता नबियों पर अपने रूह की मा'रिफ़त नाज़िल फ़रमाया था। इसलिए रब्ब — उल — अफ़वाज की तरफ़ से क़हर — ए — शदीद नाज़िल हुआ।
فَكَانَ كَمَا نَادَى هُوَ فَلَمْ يَسْمَعُوا، كَذَلِكَ يُنَادُونَ هُمْ فَلَا أَسْمَعُ، قَالَ رَبُّ ٱلْجُنُودِ. ١٣ 13
और रब्ब — उल — अफ़वाज ने फ़रमाया था: “जिस तरह मैंने पुकार कर कहा और वह सुनने वाले न हुए, उसी तरह वह पुकारेंगे और मैं नहीं सुनूँगा।
وَأَعْصِفُهُمْ إِلَى كُلِّ ٱلْأُمَمِ ٱلَّذِينَ لَمْ يَعْرِفُوهُمْ. فَخَرِبَتِ ٱلْأَرْضُ وَرَاءَهُمْ، لَا ذَاهِبَ وَلَا آئِبَ. فَجَعَلُوا ٱلْأَرْضَ ٱلْبَهِجَةَ خَرَابًا». ١٤ 14
बल्कि उनको सब क़ौमों में जिनसे वह नावाक़िफ़ हैं तितर — बितर करूँगा। यूँ उनके बाद मुल्क वीरान हुआ, यहाँ तक कि किसी ने उसमें आमद — ओ — रफ़्त न की, क्यूँकि उन्होंने उस दिलकुशा मुल्क को वीरान कर दिया।”

< زَكَريَّا 7 >