< رُوما 7 >

أَمْ تَجْهَلُونَ أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ - لِأَنِّي أُكَلِّمُ ٱلْعَارِفِينَ بِٱلنَّامُوسِ - أَنَّ ٱلنَّامُوسَ يَسُودُ عَلَى ٱلْإِنْسَانِ مَا دَامَ حَيًّا؟ ١ 1
ऐ भाइयों, क्या तुम नहीं जानते में उन से कहता हूँ जो शरी'अत से वाक़िफ़ हैं कि जब तक आदमी जीता है उसी वक़्त तक शरी'अत उस पर इख़्तियार रखती है?
فَإِنَّ ٱلْمَرْأَةَ ٱلَّتِي تَحْتَ رَجُلٍ هِيَ مُرْتَبِطَةٌ بِٱلنَّامُوسِ بِٱلرَّجُلِ ٱلْحَيِّ. وَلَكِنْ إِنْ مَاتَ ٱلرَّجُلُ فَقَدْ تَحَرَّرَتْ مِنْ نَامُوسِ ٱلرَّجُلِ. ٢ 2
चुनाँचे जिस औरत का शौहर मौजूद है वो शरी'अत के मुवाफ़िक़ अपने शौहर की ज़िन्दगी तक उसके बन्द में है; लेकिन अगर शौहर मर गया तो वो शौहर की शरी'अत से छूट गई।
فَإِذًا مَا دَامَ ٱلرَّجُلُ حَيًّا تُدْعَى زَانِيَةً إِنْ صَارَتْ لِرَجُلٍ آخَرَ. وَلَكِنْ إِنْ مَاتَ ٱلرَّجُلُ فَهِيَ حُرَّةٌ مِنَ ٱلنَّامُوسِ، حَتَّى إِنَّهَا لَيْسَتْ زَانِيَةً إِنْ صَارَتْ لِرَجُلٍ آخَرَ. ٣ 3
पस अगर शौहर के जीते जी दूसरे मर्द की हो जाए तो ज़ानिया कहलाएगी लेकिन अगर शौहर मर जाए तो वो उस शरी'अत से आज़ाद है; यहाँ तक कि अगर दुसरे मर्द की हो भी जाए तो ज़ानिया न ठहरेगी।
إِذًا يَا إِخْوَتِي أَنْتُمْ أَيْضًا قَدْ مُتُّمْ لِلنَّامُوسِ بِجَسَدِ ٱلْمَسِيحِ، لِكَيْ تَصِيرُوا لِآخَرَ، لِلَّذِي قَدْ أُقِيمَ مِنَ ٱلْأَمْوَاتِ لِنُثْمِرَ لِلهِ. ٤ 4
पस ऐ मेरे भाइयों; तुम भी मसीह के बदन के वसीले से शरी'अत के ऐ'तिबार से इसलिए मुर्दा बन गए, कि उस दूसरे के हो; जाओ जो मुर्दों में से जिलाया गया ताकि हम सब ख़ुदा के लिए फल पैदा करें।
لِأَنَّهُ لَمَّا كُنَّا فِي ٱلْجَسَدِ كَانَتْ أَهْوَاءُ ٱلْخَطَايَا ٱلَّتِي بِٱلنَّامُوسِ تَعْمَلُ فِي أَعْضَائِنَا، لِكَيْ نُثْمِرَ لِلْمَوْتِ. ٥ 5
क्यूँकि जब हम जिस्मानी थे गुनाह की ख़्वाहिशों जो शरी'अत के ज़रिए पैदा होती थीं मौत का फल पैदा करने के लिए हमारे आ'ज़ा में तासीर करती थी।
وَأَمَّا ٱلْآنَ فَقَدْ تَحَرَّرْنَا مِنَ ٱلنَّامُوسِ، إِذْ مَاتَ ٱلَّذِي كُنَّا مُمْسَكِينَ فِيهِ، حَتَّى نَعْبُدَ بِجِدَّةِ ٱلرُّوحِ لَا بِعِتْقِ ٱلْحَرْفِ. ٦ 6
लेकिन जिस चीज़ की क़ैद में थे उसके ऐ'तिबार से मर कर अब हम शरी'अत से ऐसे छूट गए, कि रूह के नए तौर पर न कि लफ़्ज़ों के पूराने तौर पर ख़िदमत करते हैं।
فَمَاذَا نَقُولُ؟ هَلِ ٱلنَّامُوسُ خَطِيَّةٌ؟ حَاشَا! بَلْ لَمْ أَعْرِفِ ٱلْخَطِيَّةَ إِلَّا بِٱلنَّامُوسِ. فَإِنَّنِي لَمْ أَعْرِفِ ٱلشَّهْوَةَ لَوْ لَمْ يَقُلِ ٱلنَّامُوسُ: «لَا تَشْتَهِ». ٧ 7
पस हम क्या करें क्या शरी'अत गुनाह है? हरगिज़ नहीं बल्कि बग़ैर शरी'अत के मैं गुनाह को न पहचानता मसलन अगर शरी'अत ये न कहती कि तू लालच न कर तो में लालच को न जानता।
وَلَكِنَّ ٱلْخَطِيَّةَ وَهِيَ مُتَّخِذَةٌ فُرْصَةً بِٱلْوَصِيَّةِ أَنْشَأَتْ فِيَّ كُلَّ شَهْوَةٍ. لِأَنْ بِدُونِ ٱلنَّامُوسِ ٱلْخَطِيَّةُ مَيِّتَةٌ. ٨ 8
मगर गुनाह ने मौक़ा पाकर हुक्म के ज़रिए से मुझ में हर तरह का लालच पैदा कर दिया; क्यूँकि शरी'अत के बग़ैर गुनाह मुर्दा है।
أَمَّا أَنَا فَكُنْتُ بِدُونِ ٱلنَّامُوسِ عَائِشًا قَبْلًا. وَلَكِنْ لَمَّا جَاءَتِ ٱلْوَصِيَّةُ عَاشَتِ ٱلْخَطِيَّةُ، فَمُتُّ أَنَا، ٩ 9
एक ज़माने में शरी'अत के बग़ैर मैं ज़िन्दा था, मगर अब हुक्म आया तो गुनाह ज़िन्दा हो गया और मैं मर गया।
فَوُجِدَتِ ٱلْوَصِيَّةُ ٱلَّتِي لِلْحَيَاةِ هِيَ نَفْسُهَا لِي لِلْمَوْتِ. ١٠ 10
और जिस हुक्म की चाहत ज़िन्दगी थी, वही मेरे हक़ में मौत का ज़रिया बन गया।
لِأَنَّ ٱلْخَطِيَّةَ، وَهِيَ مُتَّخِذَةٌ فُرْصَةً بِٱلْوَصِيَّةِ، خَدَعَتْنِي بِهَا وَقَتَلَتْنِي. ١١ 11
क्यूँकि गुनाह ने मौक़ा पाकर हुक्म के ज़रिए से मुझे बहकाया और उसी के ज़रिए से मुझे मार भी डाला।
إِذًا ٱلنَّامُوسُ مُقَدَّسٌ، وَٱلْوَصِيَّةُ مُقَدَّسَةٌ وَعَادِلَةٌ وَصَالِحَةٌ. ١٢ 12
पस शरी'अत पाक है और हुक्म भी पाक और रास्ता भी अच्छा है।
فَهَلْ صَارَ لِي ٱلصَّالِحُ مَوْتًا؟ حَاشَا! بَلِ ٱلْخَطِيَّةُ. لِكَيْ تَظْهَرَ خَطِيَّةً مُنْشِئَةً لِي بِٱلصَّالِحِ مَوْتًا، لِكَيْ تَصِيرَ ٱلْخَطِيَّةُ خَاطِئَةً جِدًّا بِٱلْوَصِيَّةِ. ١٣ 13
पस जो चीज़ अच्छी है क्या वो मेरे लिए मौत ठहरी? हरगिज़ नहीं बल्कि गुनाह ने अच्छी चीज़ के ज़रिए से मेरे लिए मौत पैदा करके मुझे मार डाला ताकि उसका गुनाह होना ज़ाहिर हो; और हुक्म के ज़रिए से गुनाह हद से ज़्यादा मकरूह मा'लूम हो।
فَإِنَّنَا نَعْلَمُ أَنَّ ٱلنَّامُوسَ رُوحِيٌّ، وَأَمَّا أَنَا فَجَسَدِيٌّ مَبِيعٌ تَحْتَ ٱلْخَطِيَّةِ. ١٤ 14
क्या हम जानते हैं कि शरी'अत तो रूहानी है मगर मैं जिस्मानी और गुनाह के हाथ बिका हुआ हूँ।
لِأَنِّي لَسْتُ أَعْرِفُ مَا أَنَا أَفْعَلُهُ، إِذْ لَسْتُ أَفْعَلُ مَا أُرِيدُهُ، بَلْ مَا أُبْغِضُهُ فَإِيَّاهُ أَفْعَلُ. ١٥ 15
और जो मैं करता हूँ उसको नहीं जानता क्यूँकि जिसका मैं इरादा करता हूँ वो नहीं करता बल्कि जिससे मुझको नफ़रत है वही करता हूँ।
فَإِنْ كُنْتُ أَفْعَلُ مَا لَسْتُ أُرِيدُهُ، فَإِنِّي أُصَادِقُ ٱلنَّامُوسَ أَنَّهُ حَسَنٌ. ١٦ 16
और अगर मैं उस पर अमल करता हूँ जिसका इरादा नहीं करता तो मैं मानता हुँ कि शरी'अत उम्दा है।
فَٱلْآنَ لَسْتُ بَعْدُ أَفْعَلُ ذَلِكَ أَنَا، بَلِ ٱلْخَطِيَّةُ ٱلسَّاكِنَةُ فِيَّ. ١٧ 17
पस इस सूरत में उसका करने वाला में न रहा बल्कि गुनाह है जो मुझ में बसा हुआ है।
فَإِنِّي أَعْلَمُ أَنَّهُ لَيْسَ سَاكِنٌ فِيَّ، أَيْ فِي جَسَدِي، شَيْءٌ صَالِحٌ. لِأَنَّ ٱلْإِرَادَةَ حَاضِرَةٌ عِنْدِي، وَأَمَّا أَنْ أَفْعَلَ ٱلْحُسْنَى فَلَسْتُ أَجِدُ. ١٨ 18
क्यूँकि मैं जानता हूँ कि मुझ में या'नी मेरे जिस्म में कोई नेकी बसी हुई नहीं; अलबत्ता इरादा तो मुझ में मौजूद है, मगर नेक काम मुझ में बन नहीं पड़ते।
لِأَنِّي لَسْتُ أَفْعَلُ ٱلصَّالِحَ ٱلَّذِي أُرِيدُهُ، بَلِ ٱلشَّرَّ ٱلَّذِي لَسْتُ أُرِيدُهُ فَإِيَّاهُ أَفْعَلُ. ١٩ 19
चुनाँचे जिस नेकी का इरादा करता हूँ वो तो नहीं करता मगर जिस बदी का इरादा नहीं करता उसे कर लेता हूँ।
فَإِنْ كُنْتُ مَا لَسْتُ أُرِيدُهُ إِيَّاهُ أَفْعَلُ، فَلَسْتُ بَعْدُ أَفْعَلُهُ أَنَا، بَلِ ٱلْخَطِيَّةُ ٱلسَّاكِنَةُ فِيَّ. ٢٠ 20
पस अगर मैं वो करता हूँ जिसका इरादा नहीं करता तो उसका करने वाला मैं न रहा बल्कि गुनाह है; जो मुझ में बसा हुआ है।
إِذًا أَجِدُ ٱلنَّامُوسَ لِي حِينَمَا أُرِيدُ أَنْ أَفْعَلَ ٱلْحُسْنَى أَنَّ ٱلشَّرَّ حَاضِرٌ عِنْدِي. ٢١ 21
ग़रज़ मैं ऐसी शरी'अत पाता हूँ कि जब नेकी का इरादा करता हूँ तो बदी मेरे पास आ मौजूद होती है।
فَإِنِّي أُسَرُّ بِنَامُوسِ ٱللهِ بِحَسَبِ ٱلْإِنْسَانِ ٱلْبَاطِنِ. ٢٢ 22
क्यूँकि बातिनी इंसान ियत के ऐतबार से तो मैं ख़ुदा की शरी'अत को बहुत पसन्द करता हूँ।
وَلَكِنِّي أَرَى نَامُوسًا آخَرَ فِي أَعْضَائِي يُحَارِبُ نَامُوسَ ذِهْنِي، وَيَسْبِينِي إِلَى نَامُوسِ ٱلْخَطِيَّةِ ٱلْكَائِنِ فِي أَعْضَائِي. ٢٣ 23
मगर मुझे अपने आ'ज़ा में एक और तरह की शरी'अत नज़र आती है जो मेरी अक़्ल की शरी'अत से लड़कर मुझे उस गुनाह की शरी'अत की क़ैद में ले आती है; जो मेरे आ'ज़ा में मौजूद है।
وَيْحِي أَنَا ٱلْإِنْسَانُ ٱلشَّقِيُّ! مَنْ يُنْقِذُنِي مِنْ جَسَدِ هَذَا ٱلْمَوْتِ؟ ٢٤ 24
हाय मैं कैसा कम्बख़्त आदमी हूँ इस मौत के बदन से मुझे कौन छुड़ाएगा?
أَشْكُرُ ٱللهَ بِيَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ رَبِّنَا! إِذًا أَنَا نَفْسِي بِذِهْنِي أَخْدِمُ نَامُوسَ ٱللهِ، وَلَكِنْ بِٱلْجَسَدِ نَامُوسَ ٱلْخَطِيَّةِ. ٢٥ 25
अपने ख़ुदावन्द ईसा मसीह के वासीले से ख़ुदा का शुक्र करता हूँ; ग़रज़ में ख़ुद अपनी अक़्ल से तो ख़ुदा की शरी'अत का मगर जिस्म से गुनाह की शरी'अत का ग़ुलाम हूँ।

< رُوما 7 >