< رُوما 5 >

فَإِذْ قَدْ تَبَرَّرْنَا بِٱلْإِيمَانِ لَنَا سَلَامٌ مَعَ ٱللهِ بِرَبِّنَا يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ، ١ 1
पस जब हम ईमान से रास्तबाज़ ठहरे, तो ख़ुदा के साथ अपने ख़ुदावन्द ईसा मसीह के वसीले से सुलह रखें।
ٱلَّذِي بِهِ أَيْضًا قَدْ صَارَ لَنَا ٱلدُّخُولُ بِٱلْإِيمَانِ، إِلَى هَذِهِ ٱلنِّعْمَةِ ٱلَّتِي نَحْنُ فِيهَا مُقِيمُونَ، وَنَفْتَخِرُ عَلَى رَجَاءِ مَجْدِ ٱللهِ. ٢ 2
जिस के वसीले से ईमान की वजह से उस फ़ज़ल तक हमारी रिसाई भी हुई जिस पर क़ाईम हैं और ख़ुदा के जलाल की उम्मीद पर फ़ख़्र करें।
وَلَيْسَ ذَلِكَ فَقَطْ، بَلْ نَفْتَخِرُ أَيْضًا فِي ٱلضِّيقَاتِ، عَالِمِينَ أَنَّ ٱلضِّيقَ يُنْشِئُ صَبْرًا، ٣ 3
और सिर्फ़ यही नहीं बल्कि मुसीबतों में भी फ़ख़्र करें ये जानकर कि मुसीबत से सब्र पैदा होता है।
وَٱلصَّبْرُ تَزْكِيَةً، وَٱلتَّزْكِيَةُ رَجَاءً، ٤ 4
और सब्र से पुख़्तगी और पुख़्तगी से उम्मीद पैदा होती है।
وَٱلرَّجَاءُ لَا يُخْزِي، لِأَنَّ مَحَبَّةَ ٱللهِ قَدِ ٱنْسَكَبَتْ فِي قُلُوبِنَا بِٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ ٱلْمُعْطَى لَنَا. ٥ 5
और उम्मीद से शर्मिन्दगी हासिल नहीं होती क्यूँकि रूह — उल — क़ुद्दूस जो हम को बख़्शा गया है उसके वसीले से ख़ुदा की मुहब्बत हमारे दिलों में डाली गई है।
لِأَنَّ ٱلْمَسِيحَ، إِذْ كُنَّا بَعْدُ ضُعَفَاءَ، مَاتَ فِي ٱلْوَقْتِ ٱلْمُعَيَّنِ لِأَجْلِ ٱلْفُجَّارِ. ٦ 6
क्यूँकि जब हम कमज़ोर ही थे तो ऐ'न वक़्त पर मसीह बे'दीनों की ख़ातिर मरा।
فَإِنَّهُ بِٱلْجَهْدِ يَمُوتُ أَحَدٌ لِأَجْلِ بَارٍّ. رُبَّمَا لِأَجْلِ ٱلصَّالِحِ يَجْسُرُ أَحَدٌ أَيْضًا أَنْ يَمُوتَ. ٧ 7
किसी रास्तबाज़ की ख़ातिर भी मुश्किल से कोई अपनी जान देगा मगर शायद किसी नेक आदमी के लिए कोई अपनी जान तक दे देने की हिम्मत करे;
وَلَكِنَّ ٱللهَ بَيَّنَ مَحَبَّتَهُ لَنَا، لِأَنَّهُ وَنَحْنُ بَعْدُ خُطَاةٌ مَاتَ ٱلْمَسِيحُ لِأَجْلِنَا. ٨ 8
लेकिन ख़ुदा अपनी मुहब्बत की ख़ूबी हम पर यूँ ज़ाहिर करता है कि जब हम गुनाहगार ही थे, तो मसीह हमारी ख़ातिर मरा।
فَبِٱلْأَوْلَى كَثِيرًا وَنَحْنُ مُتَبَرِّرُونَ ٱلْآنَ بِدَمِهِ نَخْلُصُ بِهِ مِنَ ٱلْغَضَبِ! ٩ 9
पस जब हम उसके ख़ून के ज़रिए अब रास्तबाज़ ठहरे तो उसके वसीले से ग़ज़ब 'ए इलाही से ज़रूर बचेंगे।
لِأَنَّهُ إِنْ كُنَّا وَنَحْنُ أَعْدَاءٌ قَدْ صُولِحْنَا مَعَ ٱللهِ بِمَوْتِ ٱبْنِهِ، فَبِٱلْأَوْلَى كَثِيرًا وَنَحْنُ مُصَالَحُونَ نَخْلُصُ بِحَيَاتِهِ! ١٠ 10
क्यूँकि जब बावजूद दुश्मन होने के ख़ुदा से उसके बेटे की मौत के वसीले से हमारा मेल हो गया तो मेल होने के बाद तो हम उसकी ज़िन्दगी की वजह से ज़रूर ही बचेंगे।
وَلَيْسَ ذَلِكَ فَقَطْ، بَلْ نَفْتَخِرُ أَيْضًا بِٱللهِ، بِرَبِّنَا يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ، ٱلَّذِي نِلْنَا بِهِ ٱلْآنَ ٱلْمُصَالَحَةَ. ١١ 11
और सिर्फ़ यही नहीं बल्कि अपने ख़ुदावन्द ईसा मसीह के तुफ़ैल से जिसके वसीले से अब हमारा ख़ुदा के साथ मेल हो गया ख़ुदा पर फ़ख़्र भी करते हैं।
مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ كَأَنَّمَا بِإِنْسَانٍ وَاحِدٍ دَخَلَتِ ٱلْخَطِيَّةُ إِلَى ٱلْعَالَمِ، وَبِٱلْخَطِيَّةِ ٱلْمَوْتُ، وَهَكَذَا ٱجْتَازَ ٱلْمَوْتُ إِلَى جَمِيعِ ٱلنَّاسِ، إِذْ أَخْطَأَ ٱلْجَمِيعُ. ١٢ 12
पस जिस तरह एक आदमी की वजह से गुनाह दुनिया में आया और गुनाह की वजह से मौत आई और यूँ मौत सब आदमियों में फैल गई इसलिए कि सब ने गुनाह किया।
فَإِنَّهُ حَتَّى ٱلنَّامُوسِ كَانَتِ ٱلْخَطِيَّةُ فِي ٱلْعَالَمِ. عَلَى أَنَّ ٱلْخَطِيَّةَ لَا تُحْسَبُ إِنْ لَمْ يَكُنْ نَامُوسٌ. ١٣ 13
क्यूँकि शरी'अत के दिए जाने तक दुनिया में गुनाह तो था मगर जहाँ शरी'अत नहीं वहाँ गुनाह शूमार नहीं होता।
لَكِنْ قَدْ مَلَكَ ٱلْمَوْتُ مِنْ آدَمَ إِلَى مُوسَى، وَذَلِكَ عَلَى ٱلَّذِينَ لَمْ يُخْطِئُوا عَلَى شِبْهِ تَعَدِّي آدَمَ، ٱلَّذِي هُوَ مِثَالُ ٱلْآتِي. ١٤ 14
तो भी आदम से लेकर मूसा तक मौत ने उन पर भी बादशाही की जिन्होंने उस आदम की नाफ़रमानी की तरह जो आनेवाले की मिसाल था गुनाह न किया था।
وَلَكِنْ لَيْسَ كَٱلْخَطِيَّةِ هَكَذَا أَيْضًا ٱلْهِبَةُ. لِأَنَّهُ إِنْ كَانَ بِخَطِيَّةِ وَاحِدٍ مَاتَ ٱلْكَثِيرُونَ، فَبِٱلْأَوْلَى كَثِيرًا نِعْمَةُ ٱللهِ، وَٱلْعَطِيَّةُ بِٱلنِّعْمَةِ ٱلَّتِي بِٱلْإِنْسَانِ ٱلْوَاحِدِ يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ، قَدِ ٱزْدَادَتْ لِلْكَثِيرِينَ! ١٥ 15
लेकिन गुनाह का जो हाल है वो फ़ज़ल की नेअ'मत का नहीं क्यूँकि जब एक शख़्स के गुनाह से बहुत से आदमी मर गए तो ख़ुदा का फ़ज़ल और उसकी जो बख़्शिश एक ही आदमी या'नी ईसा मसीह के फ़ज़ल से पैदा हुई और बहुत से आदमियों पर ज़रूर ही इफ़्रात से नाज़िल हुई।
وَلَيْسَ كَمَا بِوَاحِدٍ قَدْ أَخْطَأَ هَكَذَا ٱلْعَطِيَّةُ. لِأَنَّ ٱلْحُكْمَ مِنْ وَاحِدٍ لِلدَّيْنُونَةِ، وَأَمَّا ٱلْهِبَةُ فَمِنْ جَرَّى خَطَايَا كَثِيرَةٍ لِلتَّبْرِيرِ. ١٦ 16
और जैसा एक शख़्स के गुनाह करने का अंजाम हुआ बख़्शिश का वैसा हाल नहीं क्यूँकि एक ही की वजह से वो फ़ैसला हुआ जिसका नतीजा सज़ा का हुक्म था; मगर बहुतेरे गुनाहों से ऐसी नेअ'मत पैदा हुई जिसका नतीजा ये हुआ कि लोग रास्तबाज़ ठहरें।
لِأَنَّهُ إِنْ كَانَ بِخَطِيَّةِ ٱلْوَاحِدِ قَدْ مَلَكَ ٱلْمَوْتُ بِٱلْوَاحِدِ، فَبِٱلْأَوْلَى كَثِيرًا ٱلَّذِينَ يَنَالُونَ فَيْضَ ٱلنِّعْمَةِ وَعَطِيَّةَ ٱلْبِرِّ، سَيَمْلِكُونَ فِي ٱلْحَيَاةِ بِٱلْوَاحِدِ يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ! ١٧ 17
क्यूँकि जब एक शख़्स के गुनाह की वजह से मौत ने उस एक के ज़रिए से बादशाही की तो जो लोग फ़ज़ल और रास्तबाज़ी की बख़्शिश इफ़्रात से हासिल करते हैं “वो एक शख़्स या'नी ईसा” मसीह के वसीले से हमेशा की ज़िन्दगी में ज़रूर ही बादशाही करेंगे।
فَإِذًا كَمَا بِخَطِيَّةٍ وَاحِدَةٍ صَارَ ٱلْحُكْمُ إِلَى جَمِيعِ ٱلنَّاسِ لِلدَّيْنُونَةِ، هَكَذَا بِبِرٍّ وَاحِدٍ صَارَتِ ٱلْهِبَةُ إِلَى جَمِيعِ ٱلنَّاسِ، لِتَبْرِيرِ ٱلْحَيَاةِ. ١٨ 18
ग़रज़ जैसा एक गुनाह की वजह से वो फ़ैसला हुआ जिसका नतीजा सब आदमियों की सज़ा का हुक्म था; वैसे ही रास्तबाज़ी के एक काम के वसीले से सब आदमियों को वो ने'मत मिली जिससे रास्तबाज़ ठहराकर ज़िन्दगी पाएँ।
لِأَنَّهُ كَمَا بِمَعْصِيَةِ ٱلْإِنْسَانِ ٱلْوَاحِدِ جُعِلَ ٱلْكَثِيرُونَ خُطَاةً، هَكَذَا أَيْضًا بِإِطَاعَةِ ٱلْوَاحِدِ سَيُجْعَلُ ٱلْكَثِيرُونَ أَبْرَارًا. ١٩ 19
क्यूँकि जिस तरह एक ही शख़्स की नाफ़रमानी से बहुत से लोग गुनाहगार ठहरे, उसी तरह एक की फ़रमाँबरदारी से बहुत से लोग रास्तबाज़ ठहरे।
وَأَمَّا ٱلنَّامُوسُ فَدَخَلَ لِكَيْ تَكْثُرَ ٱلْخَطِيَّةُ. وَلَكِنْ حَيْثُ كَثُرَتِ ٱلْخَطِيَّةُ ٱزْدَادَتِ ٱلنِّعْمَةُ جِدًّا. ٢٠ 20
और बीच में शरी'अत आ मौजूद हुई ताकि गुनाह ज़्यादा हो जाए मगर जहाँ गुनाह ज़्यादा हुआ फ़ज़ल उससे भी निहायत ज़्यादा हुआ।
حَتَّى كَمَا مَلَكَتِ ٱلْخَطِيَّةُ فِي ٱلْمَوْتِ، هَكَذَا تَمْلِكُ ٱلنِّعْمَةُ بِٱلْبِرِّ، لِلْحَيَاةِ ٱلْأَبَدِيَّةِ، بِيَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ رَبِّنَا. (aiōnios g166) ٢١ 21
ताकि जिस तरह गुनाह ने मौत की वजह से बादशाही की उसी तरह फ़ज़ल भी हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के वसीले से हमेशा की ज़िन्दगी के लिए रास्तबाज़ी के ज़रिए से बादशाही करे। (aiōnios g166)

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