< رُوما 15 >

فَيَجِبُ عَلَيْنَا نَحْنُ ٱلْأَقْوِيَاءَ أَنْ نَحْتَمِلَ أَضْعَافَ ٱلضُّعَفَاءِ، وَلَا نُرْضِيَ أَنْفُسَنَا. ١ 1
ग़रज़ हम ताक़तवरों को चाहिए कि कमज़ोरों के कमज़ोरियों की रि'आयत करें न कि अपनी ख़ुशी करें।
فَلْيُرْضِ كُلُّ وَاحِدٍ مِنَّا قَرِيبَهُ لِلْخَيْرِ، لِأَجْلِ ٱلْبُنْيَانِ. ٢ 2
हम में हर शख़्स अपने पड़ोसी को उसकी बेहतरी के वास्ते ख़ुश करे; ताकि उसकी तरक़्क़ी हो।
لِأَنَّ ٱلْمَسِيحَ أَيْضًا لَمْ يُرْضِ نَفْسَهُ، بَلْ كَمَا هُوَ مَكْتُوبٌ: «تَعْيِيرَاتُ مُعَيِّرِيكَ وَقَعَتْ عَلَيَّ». ٣ 3
क्यूँकि मसीह ने भी अपनी ख़ुशी नहीं की “बल्कि यूँ लिखा है; तेरे लान तान करनेवालों के लान'तान मुझ पर आ पड़े।”
لِأَنَّ كُلَّ مَا سَبَقَ فَكُتِبَ كُتِبَ لِأَجْلِ تَعْلِيمِنَا، حَتَّى بِٱلصَّبْرِ وَٱلتَّعْزِيَةِ بِمَا فِي ٱلْكُتُبِ يَكُونُ لَنَا رَجَاءٌ. ٤ 4
क्यूँकि जितनी बातें पहले लिखी गईं, वो हमारी ता'लीम के लिए लिखी गईं, ताकि सब्र और किताब'ए मुक़द्दस की तसल्ली से उम्मीद रखे।
وَلْيُعْطِكُمْ إِلَهُ ٱلصَّبْرِ وَٱلتَّعْزِيَةِ أَنْ تَهْتَمُّوا ٱهْتِمَامًا وَاحِدًا فِيمَا بَيْنَكُمْ، بِحَسَبِ ٱلْمَسِيحِ يَسُوعَ، ٥ 5
और ख़ुदा सब्र और तसल्ली का चश्मा तुम को ये तौफ़ीक़ दे कि मसीह ईसा के मुताबिक़ आपस में एक दिल रहो।
لِكَيْ تُمَجِّدُوا ٱللهَ أَبَا رَبِّنَا يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ، بِنَفْسٍ وَاحِدَةٍ وَفَمٍ وَاحِدٍ. ٦ 6
ताकि तुम एक दिल और यक ज़बान हो कर हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के ख़ुदा और बाप की बड़ाई करो।
لِذَلِكَ ٱقْبَلُوا بَعْضُكُمْ بَعْضًا كَمَا أَنَّ ٱلْمَسِيحَ أَيْضًا قَبِلَنَا، لِمَجْدِ ٱللهِ. ٧ 7
पस जिस तरह मसीह ने ख़ुदा के जलाल के लिए तुम को अपने साथ शामिल कर लिया है उसी तरह तुम भी एक दूसरे को शामिल कर लो।
وَأَقُولُ: إِنَّ يَسُوعَ ٱلْمَسِيحَ قَدْ صَارَ خَادِمَ ٱلْخِتَانِ، مِنْ أَجْلِ صِدْقِ ٱللهِ، حَتَّى يُثَبِّتَ مَوَاعِيدَ ٱلْآبَاءِ. ٨ 8
में कहता हूँ कि ख़ुदा की सच्चाई साबित करने के लिए मसीह मख़्तूनों का ख़ादिम बना ताकि उन वा'दों को पूरा करूँ जो बाप दादा से किए गए थे।
وَأَمَّا ٱلْأُمَمُ فَمَجَّدُوا ٱللهَ مِنْ أَجْلِ ٱلرَّحْمَةِ، كَمَا هُوَ مَكْتُوبٌ: «مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ سَأَحْمَدُكَ فِي ٱلْأُمَمِ وَأُرَتِّلُ لِٱسْمِكَ». ٩ 9
और ग़ैर क़ौमें भी रहम की वजह से ख़ुदा की हम्द करें चुनाँचे लिखा है, “इस वास्ते मैं ग़ैर क़ौमों में तेरा इक़रार करूँगा और तेरे नाम के गीत गाऊँगा।”
وَيَقُولُ أَيْضًا: «تَهَلَّلُوا أَيُّهَا ٱلْأُمَمُ مَعَ شَعْبِهِ». ١٠ 10
और फिर वो फ़रमाता है “ऐ'ग़ैर क़ौमों उसकी उम्मत के साथ ख़ुशी करो।”
وَأَيْضًا: «سَبِّحُوا ٱلرَّبَّ يَاجَمِيعَ ٱلْأُمَمِ، وَٱمْدَحُوهُ يَا جَمِيعَ ٱلشُّعُوبِ». ١١ 11
फिर ये “ऐ, ग़ैर क़ौमों ख़ुदावन्द की हम्द करो और उम्मतें उसकी सिताइश करें!”
وَأَيْضًا يَقُولُ إِشَعْيَاءُ: «سَيَكُونُ أَصْلُ يَسَّى وَٱلْقَائِمُ لِيَسُودَ عَلَى ٱلْأُمَمِ، عَلَيْهِ سَيَكُونُ رَجَاءُ ٱلْأُمَمِ». ١٢ 12
और यसायाह भी कहता है यस्सी की जड़ ज़ाहिर होगी या'नी वो शख़्स जो ग़ैर क़ौमों पर हुकूमत करने को उठेगा, उसी से ग़ैर क़ौमें उम्मीद रख्खेंगी।
وَلْيَمْلَأْكُمْ إِلَهُ ٱلرَّجَاءِ كُلَّ سُرُورٍ وَسَلَامٍ فِي ٱلْإِيمَانِ، لِتَزْدَادُوا فِي ٱلرَّجَاءِ بِقُوَّةِ ٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ. ١٣ 13
पस ख़ुदा जो उम्मीद का चश्मा है तुम्हें ईमान रखने के ज़रिए सारी ख़ुशी और इत्मीनान से मा'मूर करे ताकि रूह — उल क़ुद्दूस की क़ुदरत से तुम्हारी उम्मीद ज़्यादा होती जाए।
وَأَنَا نَفْسِي أَيْضًا مُتَيَقِّنٌ مِنْ جِهَتِكُمْ، يَا إِخْوَتِي، أَنَّكُمْ أَنْتُمْ مَشْحُونُونَ صَلَاحًا، وَمَمْلُوؤُونَ كُلَّ عِلْمٍ، قَادِرُونَ أَنْ يُنْذِرَ بَعْضُكُمْ بَعْضًا. ١٤ 14
ऐ मेरे भाइयों; मैं ख़ुद भी तुम्हारी निस्बत यक़ीन रखता हूँ कि तुम आप नेकी से मा'मूर और मुकम्मल मा'रिफ़त से भरे हो और एक दूसरे को नसीहत भी कर सकते हो।
وَلَكِنْ بِأَكْثَرِ جَسَارَةٍ كَتَبْتُ إِلَيْكُمْ جُزْئِيًّا أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ، كَمُذَكِّرٍ لَكُمْ، بِسَبَبِ ٱلنِّعْمَةِ ٱلَّتِي وُهِبَتْ لِي مِنَ ٱللهِ، ١٥ 15
तोभी मैं ने कुछ जगह ज़्यादा दिलेरी के साथ याद दिलाने के तौर पर इसलिए तुम को लिखा; कि मुझ को ख़ुदा की तरफ़ से ग़ैर क़ौमों के लिए मसीह ईसा मसीह के ख़ादिम होने की तौफ़ीक़ मिली है।
حَتَّى أَكُونَ خَادِمًا لِيَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ لِأَجْلِ ٱلْأُمَمِ، مُبَاشِرًا لِإِنْجِيلِ ٱللهِ كَكَاهِنٍ، لِيَكُونَ قُرْبَانُ ٱلْأُمَمِ مَقْبُولًا مُقَدَّسًا بِٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ. ١٦ 16
कि मैं ख़ुदा की ख़ुशख़बरी की ख़िदमत इमाम की तरह अंजाम दूँ ताकि ग़ैर क़ौमें नज़्र के तौर पर रूह — उल क़ुद्दूस से मुक़द्दस बन कर मक़्बूल हो जाएँ।
فَلِي ٱفْتِخَارٌ فِي ٱلْمَسِيحِ يَسُوعَ مِنْ جِهَةِ مَا لِلهِ. ١٧ 17
पस मैं उन बातों में जो ख़ुदा से मुतल्लिक़ हैं मसीह ईसा के ज़रिए फ़ख़्र कर सकता हूँ।
لِأَنِّي لَا أَجْسُرُ أَنْ أَتَكَلَّمَ عَنْ شَيْءٍ مِمَّا لَمْ يَفْعَلْهُ ٱلْمَسِيحُ بِوَاسِطَتِي لِأَجْلِ إِطَاعَةِ ٱلْأُمَمِ، بِٱلْقَوْلِ وَٱلْفِعْلِ، ١٨ 18
क्यूँकि मुझे किसी और बात के ज़िक्र करने की हिम्मत नहीं सिवा उन बातों के जो मसीह ने ग़ैर क़ौमों के ताबे करने के लिए क़ौल और फ़े'ल से निशानों और मोजिज़ों की ताक़त से और रूह — उल क़ुद्दस की क़ुदरत से मेरे वसीले से कीं।
بِقُوَّةِ آيَاتٍ وَعَجَائِبَ، بِقُوَّةِ رُوحِ ٱللهِ. حَتَّى إِنِّي مِنْ أُورُشَلِيمَ وَمَا حَوْلَهَا إِلَى إِللِّيرِيكُونَ، قَدْ أَكْمَلْتُ ٱلتَّبْشِيرَ بِإِنْجِيلِ ٱلْمَسِيحِ. ١٩ 19
यहाँ तक कि मैने येरूशलेम से लेकर चारों तरफ़ इल्लुरिकुम सूबे तक मसीह की ख़ुशख़बरी की पूरी पूरी मनादी की।
وَلَكِنْ كُنْتُ مُحْتَرِصًا أَنْ أُبَشِّرَ هَكَذَا: لَيْسَ حَيْثُ سُمِّيَ ٱلْمَسِيحُ، لِئَلَّا أَبْنِيَ عَلَى أَسَاسٍ لِآخَرَ. ٢٠ 20
और मैं ने यही हौसला रखा कि जहाँ मसीह का नाम नहीं लिया गया वहाँ ख़ुशख़बरी सुनाऊँ ताकि दूसरे की बुनियाद पर इमारत न उठाऊँ।
بَلْ كَمَا هُوَ مَكْتُوبٌ: «ٱلَّذِينَ لَمْ يُخْبَرُوا بِهِ سَيُبْصِرُونَ، وَٱلَّذِينَ لَمْ يَسْمَعُوا سَيَفْهَمُونَ». ٢١ 21
बल्कि जैसा लिखा है वैसा ही हो जिनको उसकी ख़बर नहीं पहुँची वो देखेंगे; और जिन्होंने नहीं सुना वो समझेंगे।
لِذَلِكَ كُنْتُ أُعَاقُ ٱلْمِرَارَ ٱلْكَثِيرَةَ عَنِ ٱلْمَجِيءِ إِلَيْكُمْ. ٢٢ 22
इसी लिए में तुम्हारे पास आने से बार बार रुका रहा।
وَأَمَّا ٱلْآنَ فَإِذْ لَيْسَ لِي مَكَانٌ بَعْدُ فِي هَذِهِ ٱلْأَقَالِيمِ، وَلِي ٱشْتِيَاقٌ إِلَى ٱلْمَجِيءِ إِلَيْكُمْ مُنْذُ سِنِينَ كَثِيرَةٍ، ٢٣ 23
मगर चुँकि मुझ को अब इन मुल्कों में जगह बाक़ी नहीं रही और बहुत बरसों से तुम्हारे पास आने का मुश्ताक़ भी हूँ।
فَعِنْدَمَا أَذْهَبُ إِلَى ٱسْبَانِيَا آتِي إِلَيْكُمْ. لِأَنِّي أَرْجُو أَنْ أَرَاكُمْ فِي مُرُورِي وَتُشَيِّعُونِي إِلَى هُنَاكَ، إِنْ تَمَلَّأْتُ أَوَّلًا مِنْكُمْ جُزْئِيًّا. ٢٤ 24
इसलिए जब इस्फ़ानिया मुल्क को जाऊँगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जाऊँगा; क्यूँकि मुझे उम्मीद है कि उस सफ़र में तुम से मिलूँगा और जब तुम्हारी सोहबत से किसी क़दर मेरा जी भर जाएगा तो तुम मुझे उस तरफ़ रवाना कर दोगे।
وَلَكِنِ ٱلْآنَ أَنَا ذَاهِبٌ إِلَى أُورُشَلِيمَ لِأَخْدِمَ ٱلْقِدِّيسِينَ، ٢٥ 25
लेकिन फिलहाल तो मुक़द्दसों की ख़िदमत करने के लिए येरूशलेम को जाता हूँ।
لِأَنَّ أَهْلَ مَكِدُونِيَّةَ وَأَخَائِيَةَ ٱسْتَحْسَنُوا أَنْ يَصْنَعُوا تَوْزِيعًا لِفُقَرَاءِ ٱلْقِدِّيسِينَ ٱلَّذِينَ فِي أُورُشَلِيمَ. ٢٦ 26
क्यूँकि मकिदुनिया और अख़िया के लोग येरूशलेम के ग़रीब मुक़द्दसों के लिए कुछ चन्दा करने को रज़ामन्द हुए।
ٱسْتَحْسَنُوا ذَلِكَ، وَإِنَّهُمْ لَهُمْ مَدْيُونُونَ! لِأَنَّهُ إِنْ كَانَ ٱلْأُمَمُ قَدِ ٱشْتَرَكُوا فِي رُوحِيَّاتِهِمْ، يَجِبُ عَلَيْهِمْ أَنْ يَخْدِمُوهُمْ فِي ٱلْجَسَدِيَّاتِ أَيْضًا. ٢٧ 27
किया तो रज़ामन्दी से मगर वो उनके क़र्ज़दार भी हैं क्यूँकि जब ग़ैर क़ौमें रूहानी बातों में उनकी शरीक हुई हैं तो लाज़िम है कि जिस्मानी बातों में उनकी ख़िदमत करें।
فَمَتَى أَكْمَلْتُ ذَلِكَ، وَخَتَمْتُ لَهُمْ هَذَا ٱلثَّمَرَ، فَسَأَمْضِي مَارًّا بِكُمْ إِلَى ٱسْبَانِيَا. ٢٨ 28
पस मैं इस ख़िदमत को पूरा करके और जो कुछ हासिल हुआ उनको सौंप कर तुम्हारे पास होता हुआ इस्फ़ानिया को जाऊँगा।
وَأَنَا أَعْلَمُ أَنِّي إِذَا جِئْتُ إِلَيْكُمْ، سَأَجِيءُ فِي مِلْءِ بَرَكَةِ إِنْجِيلِ ٱلْمَسِيحِ. ٢٩ 29
और मैं जानता हूँ कि जब तुम्हारे पास आऊँगा तो मसीह की कामिल बर्क़त लेकर आऊँगा।
فَأَطْلُبُ إِلَيْكُمْ أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ، بِرَبِّنَا يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ، وَبِمَحَبَّةِ ٱلرُّوحِ، أَنْ تُجَاهِدُوا مَعِي فِي ٱلصَّلَوَاتِ مِنْ أَجْلِي إِلَى ٱللهِ، ٣٠ 30
ऐ, भाइयों; मैं ईसा मसीह का जो हमारा ख़ुदावन्द है वास्ता देकर और रूह की मुहब्बत को याद दिला कर तुम से गुज़ारिश करता हूँ कि मेरे लिए ख़ुदा से दुआ करने में मेरे साथ मिल कर मेहनत करो।
لِكَيْ أُنْقَذَ مِنَ ٱلَّذِينَ هُمْ غَيْرُ مُؤْمِنِينَ فِي ٱلْيَهُودِيَّةِ، وَلِكَيْ تَكُونَ خِدْمَتِي لِأَجْلِ أُورُشَلِيمَ مَقْبُولَةً عِنْدَ ٱلْقِدِّيسِينَ، ٣١ 31
कि मैं यहूदिया के नाफ़रमानों से बचा रहूँ, और मेरी वो ख़िदमत जो येरूशलेम के लिए है मुक़द्दसों को पसन्द आए।
حَتَّى أَجِيءَ إِلَيْكُمْ بِفَرَحٍ بِإِرَادَةِ ٱللهِ، وَأَسْتَرِيحَ مَعَكُمْ. ٣٢ 32
और ख़ुदा की मर्ज़ी से तुम्हारे पास ख़ुशी के साथ आकर तुम्हारे साथ आराम पाऊँ।
إِلَهُ ٱلسَّلَامِ مَعَكُمْ أَجْمَعِينَ. آمِينَ. ٣٣ 33
ख़ुदा जो इत्मीनान का चश्मा है तुम सब के साथ रहे; आमीन।

< رُوما 15 >