< رُؤيا 21 >
ثُمَّ رَأَيْتُ سَمَاءً جَدِيدَةً وَأَرْضًا جَدِيدَةً، لِأَنَّ ٱلسَّمَاءَ ٱلْأُولَى وَٱلْأَرْضَ ٱلْأُولَى مَضَتَا، وَٱلْبَحْرُ لَا يُوجَدُ فِي مَا بَعْدُ. | ١ 1 |
फिर मैंने एक नए आसमान और नई ज़मीन को देखा, क्यूँकि पहला आसमान और पहली ज़मीन जाती रही थी, और समुन्दर भी न रहा।
وَأَنَا يُوحَنَّا رَأَيْتُ ٱلْمَدِينَةَ ٱلْمُقَدَّسَةَ أُورُشَلِيمَ ٱلْجَدِيدَةَ نَازِلَةً مِنَ ٱلسَّمَاءِ مِنْ عِنْدِ ٱللهِ مُهَيَّأَةً كَعَرُوسٍ مُزَيَّنَةٍ لِرَجُلِهَا. | ٢ 2 |
फिर मैंने शहर — ए — मुक़द्दस नए येरूशलेम को आसमान पर से ख़ुदा के पास से उतरते देखा, और वो उस दुल्हन की तरह सजा था जिसने अपने शौहर के लिए सिंगार किया हो।
وَسَمِعْتُ صَوْتًا عَظِيمًا مِنَ ٱلسَّمَاءِ قَائِلًا: «هُوَذَا مَسْكَنُ ٱللهِ مَعَ ٱلنَّاسِ، وَهُوَ سَيَسْكُنُ مَعَهُمْ، وَهُمْ يَكُونُونَ لَهُ شَعْبًا، وَٱللهُ نَفْسُهُ يَكُونُ مَعَهُمْ إِلَهًا لَهُمْ. | ٣ 3 |
फिर मैंने तख़्त में से किसी को उनको ऊँची आवाज़ से ये कहते सुना, “देख, ख़ुदा का ख़ेमा आदमियों के दर्मियान है। और वो उनके साथ सुकूनत करेगा, और वो उनके साथ रहेगा और उनका ख़ुदा होगा।
وَسَيَمْسَحُ ٱللهُ كُلَّ دَمْعَةٍ مِنْ عُيُونِهِمْ، وَٱلْمَوْتُ لَا يَكُونُ فِي مَا بَعْدُ، وَلَا يَكُونُ حُزْنٌ وَلَا صُرَاخٌ وَلَا وَجَعٌ فِي مَا بَعْدُ، لِأَنَّ ٱلْأُمُورَ ٱلْأُولَى قَدْ مَضَتْ». | ٤ 4 |
और उनकी आँखों के सब आँसू पोंछ देगा; इसके बाद न मौत रहेगी, और न मातम रहेगा, न आह — ओ — नाला न दर्द; पहली चीज़ें जाती रहीं।”
وَقَالَ ٱلْجَالِسُ عَلَى ٱلْعَرْشِ: «هَا أَنَا أَصْنَعُ كُلَّ شَيْءٍ جَدِيدًا!». وَقَالَ لِيَ: «ٱكْتُبْ: فَإِنَّ هَذِهِ ٱلْأَقْوَالَ صَادِقَةٌ وَأَمِينَةٌ». | ٥ 5 |
और जो तख़्त पर बैठा हुआ था, उसने कहा, “देख, मैं सब चीज़ों को नया बना देता हूँ।” फिर उसने कहा, “लिख ले, क्यूँकि ये बातें सच और बरहक़ हैं।”
ثُمَّ قَالَ لِي: «قَدْ تَمَّ! أَنَا هُوَ ٱلْأَلِفُ وَٱلْيَاءُ، ٱلْبِدَايَةُ وَٱلنِّهَايَةُ. أَنَا أُعْطِي ٱلْعَطْشَانَ مِنْ يَنْبُوعِ مَاءِ ٱلْحَيَاةِ مَجَّانًا. | ٦ 6 |
फिर उसने मुझ से कहा, ये बातें पूरी हो गईं। मैं अल्फ़ा और ओमेगा, या'नी शुरू और आख़िर हूँ। मैं प्यासे को आब — ए — हयात के चश्मे से मुफ़्त पिलाऊँगा।
مَنْ يَغْلِبْ يَرِثْ كُلَّ شَيْءٍ، وَأَكُونُ لَهُ إِلَهًا وَهُوَ يَكُونُ لِيَ ٱبْنًا. | ٧ 7 |
जो ग़ालिब आए वही इन चीज़ों का वारिस होगा, और मैं उसका ख़ुदा हूँगा और वो मेरा बेटा होगा।
وَأَمَّا ٱلْخَائِفُونَ وَغَيْرُ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلرَّجِسُونَ وَٱلْقَاتِلُونَ وَٱلزُّنَاةُ وَٱلسَّحَرَةُ وَعَبَدَةُ ٱلْأَوْثَانِ وَجَمِيعُ ٱلْكَذَبَةِ، فَنَصِيبُهُمْ فِي ٱلْبُحَيْرَةِ ٱلْمُتَّقِدَةِ بِنَارٍ وَكِبْرِيتٍ، ٱلَّذِي هُوَ ٱلْمَوْتُ ٱلثَّانِي». (Limnē Pyr ) | ٨ 8 |
मगर बुज़दिलों, और बेईमान लोगों, और घिनौने लोगों, और ख़ूनियों, और हरामकारों, और जादूगरों, और बुत परस्तों, और सब झूठों का हिस्सा आग और गन्धक से जलने वाली झील में होगा; ये दूसरी मौत है। (Limnē Pyr )
ثُمَّ جَاءَ إِلَيَّ وَاحِدٌ مِنَ ٱلسَّبْعَةِ ٱلْمَلَائِكَةِ ٱلَّذِينَ مَعَهُمُ ٱلسَّبْعَةُ ٱلْجَامَاتِ ٱلْمَمْلُوَّةِ مِنَ ٱلسَّبْعِ ٱلضَّرَبَاتِ ٱلْأَخِيرَةِ، وَتَكَلَّمَ مَعِي قَائِلًا: «هَلُمَّ فَأُرِيَكَ ٱلْعَرُوسَ ٱمْرَأَةَ ٱلْخَرُوفِ». | ٩ 9 |
फिर इन सात फ़रिश्तों में से जिनके पास प्याले थे, एक ने आकर मुझ से कहा, “इधर आ, मैं तुझे दुल्हन, या'नी बर्रे की बीवी दिखाऊँ।”
وَذَهَبَ بِي بِٱلرُّوحِ إِلَى جَبَلٍ عَظِيمٍ عَالٍ، وَأَرَانِي ٱلْمَدِينَةَ ٱلْعَظِيمَةَ أُورُشَلِيمَ ٱلْمُقَدَّسَةَ نَازِلَةً مِنَ ٱلسَّمَاءِ مِنْ عِنْدِ ٱللهِ، | ١٠ 10 |
और वो मुझे रूह में एक बड़े और ऊँचे पहाड़ पर ले गया, और शहर — ए — मुक़द्दस येरूशलेम को आसमान पर से ख़ुदा के पास से उतरते दिखाया।
لَهَا مَجْدُ ٱللهِ، وَلَمَعَانُهَا شِبْهُ أَكْرَمِ حَجَرٍ كَحَجَرِ يَشْبٍ بَلُّورِيٍّ. | ١١ 11 |
उसमें ख़ुदा का जलाल था, और उसकी चमक निहायत क़ीमती पत्थर, या'नी उस यशब की सी थी जो बिल्लौर की तरह शफ़ाफ़ हो।
وَكَانَ لَهَا سُورٌ عَظِيمٌ وَعَالٍ، وَكَانَ لَهَا ٱثْنَا عَشَرَ بَابًا، وَعَلَى ٱلْأَبْوَابِ ٱثْنَا عَشَرَ مَلَاكًا، وَأَسْمَاءٌ مَكْتُوبَةٌ هِيَ أَسْمَاءُ أَسْبَاطِ بَنِي إِسْرَائِيلَ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ. | ١٢ 12 |
और उसकी शहरपनाह बड़ी और ऊँची थी, और उसके बारह दरवाज़े और दरवाज़ों पर बारह फ़रिश्ते थे, और उन पर बनी — इस्राईल के बारह क़बीलों के नाम लिखे हुए थे।
مِنَ ٱلشَّرْقِ ثَلَاثَةُ أَبْوَابٍ، وَمِنَ ٱلشِّمَالِ ثَلَاثَةُ أَبْوَابٍ، وَمِنَ ٱلْجَنُوبِ ثَلَاثَةُ أَبْوَابٍ، وَمِنَ ٱلْغَرْبِ ثَلَاثَةُ أَبْوَابٍ. | ١٣ 13 |
तीन दरवाज़े मशरिक़ की तरफ़ थे, तीन दरवाज़े शुमाल की तरफ़, तीन दरवाज़े जुनूब की तरफ़, और तीन दरवाज़े मग़रिब की तरफ़।
وَسُورُ ٱلْمَدِينَةِ كَانَ لَهُ ٱثْنَا عَشَرَ أَسَاسًا، وَعَلَيْهَا أَسْمَاءُ رُسُلِ ٱلْخَرُوفِ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ. | ١٤ 14 |
और उस शाहर की शहरपनाह की बारह बुनियादें थीं, और उन पर बर्रे के बारह रसूलों के बारह नाम लिखे थे।
وَٱلَّذِي كَانَ يَتَكَلَّمُ مَعِي كَانَ مَعَهُ قَصَبَةٌ مِنْ ذَهَبٍ لِكَيْ يَقِيسَ ٱلْمَدِينَةَ وَأَبْوَابَهَا وَسُورَهَا. | ١٥ 15 |
और जो मुझ से कह रहा था, उसके पास शहर और उसके दरवाज़ों और उसकी शहरपनाह के नापने के लिए एक पैमाइश का आला, या'नी सोने का गज़ था।
وَٱلْمَدِينَةُ كَانَتْ مَوْضُوعَةً مُرَبَّعَةً، طُولُهَا بِقَدْرِ ٱلْعَرْضِ. فَقَاسَ ٱلْمَدِينَةَ بِٱلْقَصَبَةِ مَسَافَةَ ٱثْنَيْ عَشَرَ أَلْفَ غَلْوَةٍ. ٱلطُّولُ وَٱلْعَرْضُ وَٱلِٱرْتِفَاعُ مُتَسَاوِيَةٌ. | ١٦ 16 |
और वो शहर चौकोर वाक़े' हुआ था, और उसकी लम्बाई चौड़ाई के बराबर थी; उसने शहर को उस गज़ से नापा, तो बारह हज़ार फ़रलाँग निकला: उसकी लम्बाई और चौड़ाई बराबर थी।
وَقَاسَ سُورَهَا: مِئَةً وَأَرْبَعًا وَأَرْبَعِينَ ذِرَاعًا، ذِرَاعَ إِنْسَانٍ أَيِ ٱلْمَلَاكُ. | ١٧ 17 |
और उसने उसकी शहरपनाह को आदमी की, या'नी फ़रिश्ते की पैमाइश के मुताबिक़ नापा, तो एक सौ चवालीस हाथ निकली।
وَكَانَ بِنَاءُ سُورِهَا مِنْ يَشْبٍ، وَٱلْمَدِينَةُ ذَهَبٌ نَقِيٌّ شِبْهُ زُجَاجٍ نَقِيٍّ. | ١٨ 18 |
और उसकी शहरपनाह की ता'मीर यशब की थी, और शहर ऐसे ख़ालिस सोने का था जो साफ़ शीशे की तरह हो।
وَأَسَاسَاتُ سُورِ ٱلْمَدِينَةِ مُزَيَّنَةٌ بِكُلِّ حَجَرٍ كَرِيمٍ. ٱلْأَسَاسُ ٱلْأَوَّلُ يَشْبٌ. ٱلثَّانِي يَاقُوتٌ أَزْرَقُ. ٱلثَّالِثُ عَقِيقٌ أَبْيَضُ. ٱلرَّابِعُ زُمُرُّدٌ ذُبَابِيٌّ | ١٩ 19 |
और उस शहर की शहरपनाह की बुनियादें हर तरह के जवाहर से आरास्ता थीं; पहली बुनियाद यश्ब की थी, दूसरी नीलम की, तीसरी शब चिराग़ की, चौथी ज़मुर्रुद की,
ٱلْخَامِسُ جَزَعٌ عَقِيقِيٌّ. ٱلسَّادِسُ عَقِيقٌ أَحْمَرُ. ٱلسَّابِعُ زَبَرْجَدٌ. ٱلثَّامِنُ زُمُرُّدٌ سِلْقِيٌّ. ٱلتَّاسِعُ يَاقُوتٌ أَصْفَرُ. ٱلْعَاشِرُ عَقِيقٌ أَخْضَرُ. ٱلْحَادِي عَشَرَ أَسْمَانْجُونِيٌّ. ٱلثَّانِي عَشَرَ جَمَشْتٌ. | ٢٠ 20 |
पाँचवीं 'आक़ीक़ की, छटी ला'ल की, सातवीं सुन्हरे पत्थर की, आठवीं फ़ीरोज़ की, नवीं ज़बरजद की, और बारहवीं याकूत की।
وَٱلِٱثْنَا عَشَرَ بَابًا ٱثْنَتَا عَشَرَةَ لُؤْلُؤَةً، كُلُّ وَاحِدٍ مِنَ ٱلْأَبْوَابِ كَانَ مِنْ لُؤْلُؤَةٍ وَاحِدَةٍ. وَسُوقُ ٱلْمَدِينَةِ ذَهَبٌ نَقِيٌّ كَزُجَاجٍ شَفَّافٍ. | ٢١ 21 |
और बारह दरवाज़े बारह मोतियों के थे; हर दरवाज़ा एक मोती का था, और शहर की सड़क साफ़ शीशे की तरह ख़ालिस सोने की थी।
وَلَمْ أَرَ فِيهَا هَيْكَلًا، لِأَنَّ ٱلرَّبَّ ٱللهَ ٱلْقَادِرَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ، هُوَ وَٱلْخَرُوفُ هَيْكَلُهَا. | ٢٢ 22 |
और मैंने उसमें कोई मक़्दिस न देखे, इसलिए कि ख़ुदावन्द ख़ुदा क़ादिर — ए — मुतल्लिक़ और बर्रा उसका मक़्दिस हैं।
وَٱلْمَدِينَةُ لَا تَحْتَاجُ إِلَى ٱلشَّمْسِ وَلَا إِلَى ٱلْقَمَرِ لِيُضِيئَا فِيهَا، لِأَنَّ مَجْدَ ٱللهِ قَدْ أَنَارَهَا، وَٱلْخَرُوفُ سِرَاجُهَا. | ٢٣ 23 |
और उस शहर में सूरज या चाँद की रौशनी की कुछ हाजत नहीं, क्यूँकि ख़ुदा के जलाल ने उसे रौशन कर रख्खा है, और बर्रा उसका चिराग़ है।
وَتَمْشِي شُعُوبُ ٱلْمُخَلَّصِينَ بِنُورِهَا، وَمُلُوكُ ٱلْأَرْضِ يَجِيئُونَ بِمَجْدِهِمْ وَكَرَامَتِهِمْ إِلَيْهَا. | ٢٤ 24 |
और क़ौमें उसकी रौशनी में चले फिरेंगी, और ज़मीन के बादशाह अपनी शान — ओ — शौकत का सामान उसमें लाएँगे।
وَأَبْوَابُهَا لَنْ تُغْلَقَ نَهَارًا، لِأَنَّ لَيْلًا لَا يَكُونُ هُنَاكَ. | ٢٥ 25 |
और उसके दरवाज़े दिन को हरगिज़ बन्द न होंगे, और रात वहाँ न होगी।
وَيَجِيئُونَ بِمَجْدِ ٱلْأُمَمِ وَكَرَامَتِهِمْ إِلَيْهَا. | ٢٦ 26 |
और लोग क़ौमों की शान — ओ — शौकत और इज़्ज़त का सामान उसमें लाएँगे।
وَلَنْ يَدْخُلَهَا شَيْءٌ دَنِسٌ وَلَا مَا يَصْنَعُ رَجِسًا وَكَذِبًا، إِلَّا ٱلْمَكْتُوبِينَ فِي سِفْرِ حَيَاةِ ٱلْخَرُوفِ. | ٢٧ 27 |
और उसमें कोई नापाक या झूठी बातें घढ़ता है, हरगिज़ दाख़िल न होगा, मगर वही जिनके नाम बर्रे की किताब — ए — हयात में लिखे हुए हैं।