< اَلْمَزَامِيرُ 88 >

تَسْبِيحَةٌ. مَزْمُورٌ لِبَنِي قُورَحَ. لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ عَلَى «ٱلْعُودِ» لِلْغِنَاءِ. قَصِيدَةٌ لِهَيْمَانَ ٱلْأَزْرَاحِيِّ يَارَبُّ إِلَهَ خَلَاصِي، بِٱلنَّهَارِ وَٱللَّيْلِ صَرَخْتُ أَمَامَكَ، ١ 1
ऐ ख़ुदावन्द, मेरी नजात देने वाले ख़ुदा, मैंने रात दिन तेरे सामने फ़रियाद की है।
فَلْتَأْتِ قُدَّامَكَ صَلَاتِي. أَمِلْ أُذُنَكَ إِلَى صُرَاخِي، ٢ 2
मेरी दुआ तेरे सामने पहुँचे, मेरी फ़रियाद पर कान लगा!
لِأَنَّهُ قَدْ شَبِعَتْ مِنَ ٱلْمَصَائِبِ نَفْسِي، وَحَيَاتِي إِلَى ٱلْهَاوِيَةِ دَنَتْ. (Sheol h7585) ٣ 3
क्यूँकि मेरा दिल दुखों से भरा है, और मेरी जान पाताल के नज़दीक पहुँच गई है। (Sheol h7585)
حُسِبْتُ مِثْلَ ٱلْمُنْحَدِرِينَ إِلَى ٱلْجُبِّ. صِرْتُ كَرَجُلٍ لَا قُوَّةَ لَهُ. ٤ 4
मैं क़ब्र में उतरने वालों के साथ गिना जाता हूँ। मैं उस शख़्स की तरह हूँ, जो बिल्कुल बेकस हो।
بَيْنَ ٱلْأَمْوَاتِ فِرَاشِي مِثْلُ ٱلْقَتْلَى ٱلْمُضْطَجِعِينَ فِي ٱلْقَبْرِ، ٱلَّذِينَ لَا تَذْكُرُهُمْ بَعْدُ، وَهُمْ مِنْ يَدِكَ ٱنْقَطَعُوا. ٥ 5
जैसे मक़्तूलो की तरह जो क़ब्र में पड़े हैं, मुर्दों के बीच डाल दिया गया हूँ, जिनको तू फिर कभी याद नहीं करता और वह तेरे हाथ से काट डाले गए।
وَضَعْتَنِي فِي ٱلْجُبِّ ٱلْأَسْفَلِ، فِي ظُلُمَاتٍ، فِي أَعْمَاقٍ. ٦ 6
तूने मुझे गहराओ में, अँधेरी जगह में, पाताल की तह में रख्खा है।
عَلَيَّ ٱسْتَقَرَّ غَضَبُكَ، وَبِكُلِّ تَيَّارَاتِكَ ذَلَّلْتَنِي. سِلَاهْ. ٧ 7
मुझ पर तेरा क़हर भारी है, तूने अपनी सब मौजों से मुझे दुख दिया है। (सिलाह)
أَبْعَدْتَ عَنِّي مَعَارِفِي. جَعَلْتَنِي رِجْسًا لَهُمْ. أُغْلِقَ عَلَيَّ فَمَا أَخْرُجُ. ٨ 8
तूने मेरे जान पहचानों को मुझ से दूर कर दिया; तूने मुझे उनके नज़दीक घिनौना बना दिया। मैं बन्द हूँ और निकल नहीं सकता।
عَيْنِي ذَابَتْ مِنَ ٱلذُّلِّ. دَعَوْتُكَ يَارَبُّ كُلَّ يَوْمٍ. بَسَطْتُ إِلَيْكَ يَدَيَّ. ٩ 9
मेरी आँख दुख से धुंधला चली। ऐ ख़ुदावन्द, मैंने हर रोज़ तुझ से दुआ की है; मैंने अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाए हैं।
أَفَلَعَلَّكَ لِلْأَمْوَاتِ تَصْنَعُ عَجَائِبَ؟ أَمِ ٱلْأَخِيلَةُ تَقُومُ تُمَجِّدُكَ؟ سِلَاهْ. ١٠ 10
क्या तू मुर्दों को 'अजायब दिखाएगा? क्या वह जो मर गए हैं उठ कर तेरी ता'रीफ़ करेंगे? (सिलाह)
هَلْ يُحَدَّثُ فِي ٱلْقَبْرِ بِرَحْمَتِكَ، أَوْ بِحَقِّكَ فِي ٱلْهَلَاكِ؟ ١١ 11
क्या तेरी शफ़क़त का ज़िक्र क़ब्र में होगा, या तेरी वफ़ादारी का जहन्नुम में?
هَلْ تُعْرَفُ فِي ٱلظُّلْمَةِ عَجَائِبُكَ، وَبِرُّكَ فِي أَرْضِ ٱلنِّسْيَانِ؟ ١٢ 12
क्या तेरे 'अजायब को अंधेरे में पहचानेंगे, और तेरी सदाक़त को फ़रामोशी की सरज़मीन में?
أَمَّا أَنَا فَإِلَيْكَ يَارَبُّ صَرَخْتُ، وَفِي ٱلْغَدَاةِ صَلَاتِي تَتَقَدَّمُكَ. ١٣ 13
लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तो तेरी दुहाई दी है; और सुबह को मेरी दुआ तेरे सामने पहुँचेगी।
لِمَاذَا يَارَبُّ تَرْفُضُ نَفْسِي؟ لِمَاذَا تَحْجُبُ وَجْهَكَ عَنِّي؟ ١٤ 14
ऐ ख़ुदावन्द, तू क्यूँ। मेरी जान को छोड़ देता है? तू अपना चेहरा मुझ से क्यूँ छिपाता है?
أَنَا مِسْكِينٌ وَمُسَلِّمُ ٱلرُّوحِ مُنْذُ صِبَايَ. ٱحْتَمَلْتُ أَهْوَالَكَ. تَحَيَّرْتُ. ١٥ 15
मैं लड़कपन ही से मुसीबतज़दा और मौत के क़रीब हूँ मैं तेरे डर के मारे बद हवास हो गया।
عَلَيَّ عَبَرَ سَخَطُكَ. أَهْوَالُكَ أَهْلَكَتْنِي. ١٦ 16
तेरा क़हर — ए — शदीद मुझ पर आ पड़ा: तेरी दहशत ने मेरा काम तमाम कर दिया।
أَحَاطَتْ بِي كَٱلْمِيَاهِ ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ. ٱكْتَنَفَتْنِي مَعًا. ١٧ 17
उसने दिनभर सैलाब की तरह मेरा घेराव किया; उसने मुझे बिल्कुल घेर लिया।
أَبْعَدْتَ عَنِّي مُحِبًّا وَصَاحِبًا. مَعَارِفِي فِي ٱلظُّلْمَةِ. ١٨ 18
तूने दोस्त व अहबाब को मुझ से दूर किया और मेरे जान पहचानों को अंधेरे में डाल दिया है।

< اَلْمَزَامِيرُ 88 >